रोज़ेदारों की कुछ ग़लतियाँ

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निम्न में हम उन ग़लतियों की ओर संकेत कर रहे हैं जो रोज़ा के अहकाम से अज्ञानता के कारण रोज़ेदारों से होती रहती हैं:

(1) कुछ रोज़ेदार सहरी पहले ही समय में करते हैं हालांकि सुन्नत का तरीक़ा यह है कि सहरी ताख़ीर से की जाए और इफ़तार सूर्यास्त के तुरन्त बाद कर लिया जाए।

(2) कुछ लोग अपने बच्चों को रोज़ा रखने से मना करते हैं हालांकि सही बात यह है कि बच्चों को रोज़े की आदत डालने के लिए सात आठ वर्ष से ही रोज़ा रखवाना चाहिए। विषेश रूप में यदि बच्चियाँ ग्यारह बारह वर्ष की हो चुकी हों और मासिक चक्र शुरू हो जाए तो उनको रोज़ो रखने से मना नहीं करना चाहिए। बल्कि उनपर अब रोज़ा रखना अनिवार्य हो चुका।  

(3) कुछ लोग रोज़ा के दिनों में दो पहर के बाद मस्वाक करने के बचते हैं और यह समझते हैं कि दो पहर के बाद मिस्वाक करने से रोज़ा टूट जाता है हालांकि एक रोज़ेदार दिन के किसी भी भाग में मिस्वाक कर सकता है।

(4) कुछ लोग रोज़ा की स्थिति में झूठ, गाली गलोज और बेकार बातों में लगे रहते हैं हालाँकि  नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदेश है

  जब तुम में से किसी के रोज़ा का दिन हो तो वह गंदी बात ज़बान से न निकाले न शोर करे न चींख़ें चिल्लाए और यदि कोइ उसे गाली दे या उस से झगड़ा करे तो वह कह दे कि मैं रोज़ा से हूँ। (बुख़ारी, मुस्लिम)

और एक दूसरी हदीस में आता है :

जो व्यक्ति झूठ बोलने और उस अमल करने से न रुके तो अल्लाह तआला को इस बात की कोई आवश्यकता नहीं कि वह अपना खाना पीना बन्द करे।  (बुखारी)

  और एक दूसरी हदीस में आता है  उस व्यक्ति ने (वास्तव में ) रोज़ा नहीं रखा जो लोगों का खाता रहा (ग़ीबत करता रहा)  (इब्नु अबीशैबा 2/273 हदीस न. 8890)

(5) कुछ लोग समय पास करने के लिए ताश खेलते हैं, कुछ लोग टेलिवीज़न और वीडियो अथवा फिल्म हालों में फिल्म देखते हैं और कुछ दुकानों या घरों में रेडियो या टेप रिकार्डर से फिल्मी गाने सुनते हैं यह सारे काम आम दीनों में तो हराम ही हैं रमज़ान के दिनों में विशेष रुप में हराम होंगे।

(6) कुछ लोग इस महीने की रातों मैं इतनी अधिक मात्रा में खान-पान करते हैं कि दिन भर उन पर सुस्ती छाई रहती है इसलिए खाने पीने में संतुलन होना चाहिए।

(7) कुछ लोग पूरी रात जागते हैं और सहरी खाकर सो जाते हैं फज्र की नमाज़ भी नही पढ़ते हालाँकि जमाअत से नमाज़ छोड़ना बहुत बड़ा पाप है इस लिए रात में सवेरे सोने की आदत डालें ताकि फज्र की नमाज़ जमाअत से पढ़ सकें।

(8) कुछ लोग ऐसे हैं जो रमज़ान में रोज़ा तो रखते हैं परन्तु फ़र्ज नमाज़ों को छोड़े बैठे रहते हैं जबकि नमाज़ का नहत्व रोज़ा से अधिक है, नमाज़ तो इस्लाम और कुफ्र के बीच फ़र्क़ करने वाली चीज़ है, इस लिए रोज़ा के साथ नमाज़ अवश्य पढ़ें अन्यथा भय है कि रोज़ा भी स्वीकार न किया जाए।

(9) कुछ लोग समझते हैं कि दूसरों के यहाँ इफ़्तार करने पर उनके रोज़ा का पुण्य इफ़्तार कराने वाले को मिल जाएगा हालाँकि सही यह है कि इफ़्तार कराने वाले को रोज़ा रखने वाले के समान सवाब मिलता है परन्तु रोज़ेदार के सवाब में कोई कमी नही आती।

(10) कुछ लोग इफ़्तार करते ही जमाअत से मगरिब की नमाज़ पढ़े बिना खाने पर बैठ जाते हैं इस प्रकार उनकी जमाअत से नमाज़ छूट जाती है और वह बहुत सारे पुण्य से वंचित रह जाते हैं हालाँकि होना यह चाहिए कि इफ़्तार करने के बाद जमाअत से मगरिब की नमाज़ पढ़ें फिर खाना खाएं।

यह कुछ ग़लतियाँ थीं जो आम तौर पर रोज़ेदारों से होती रहती हैं अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हम सब की नेकियाँ स्वीकार फ़रमाए, और हमारे रोज़े हमारा क़याम और हमारी इबादतें कुबूल फ़रमाए। आमीन  

 

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