सामाजिक मतभेद पर काबू कैसे पाएं ? (2)

स्वभाव में अंतर पाए जाने के बावजूद आपसी प्रेम को कैसे स्थापित किया जा सकता है और सामाजिक मतभेद पर कैसे क़ाबू पाया जा सकता है? इस सम्बन्ध में हमने पिछले लेख में कुछ रहनुमा सिद्धांत प्रस्तुत किए गए थे, उनका शेष हम इस लेख में प्रस्तुत कर रहे हैं जिनके द्वारा हमें आपसी मतभेद को पाटने में सहायता मिलेगी।

स्वभाव में अंतर पाए जाने के बावजूद आपसी प्रेम को कैसे स्थापित किया जा सकता है और सामाजिक मतभेद पर कैसे क़ाबू पाया जा सकता है? इस सम्बन्ध में हमने पिछले लेख में कुछ रहनुमा सिद्धांत प्रस्तुत किए गए थे, उनका शेष हम इस लेख में प्रस्तुत कर रहे हैं जिनके द्वारा हमें आपसी मतभेद को पाटने में सहायता मिलेगी।

स्वभाव में अंतर पाए जाने के बावजूद आपसी प्रेम को कैसे स्थापित किया जा सकता है और सामाजिक मतभेद पर कैसे क़ाबू पाया जा सकता है? इस सम्बन्ध में हमने पिछले लेख में कुछ रहनुमा सिद्धांत प्रस्तुत किए गए थे, उनका शेष हम इस लेख में प्रस्तुत कर रहे हैं जिनके द्वारा हमें आपसी मतभेद को पाटने में सहायता मिलेगी।

 ( 3 )  अपने आर्थिक मामलों को साफ सुधरा रखें:

 कारोबार में सफाई न होने के कारण आपस में मतभेद ज्यादा होता है। हमारे यहां ज्यादातर देखने को मिलता है कि एक बेटा कमा रहा है और अपनी पूरी कमाई बाप को देता जा रहा है,कुछ भाई वैसे ही बैठ कर खा रहे हैं, ईधर बाप ने बड़े भाई की कमाई से जमीनें खरीदीं, सम्पत्ति बनाया। अचानक बाप मर जाता है, तो अब कमाने वाला बेटा आसमान सिर पर उठा लेता है कि कमाई मेरी और सारे उसके हकदार बन गए। ईधर सारे भाई बराबर बराबर का दावेदार बन जाते हैं. मामले को शुरू में ही साफ नहीं रखा जिसके कारण दुश्मनियाँ शुरू हो गईं। हक़ तो यह था कि बड़े भाई ने जो कुछ कमाया आवश्यकतानुसार अपने परिवार को देता, बाक़ी अपने हित पर खर्च करता, लेकिन उसने अपनी पूरी कमाई परिवार पर खर्च कर दी तो विदित है कि उसे बाद में अपनी कमाई पर पछतावा होगा ही।

कभी एसा भी होता है कि कोई कारोबार है जिस में पिता शामिल हैं, सारे बेटे शामिल हैं, प्रत्येक अपनी अपनी जरूरत के अनुसार उस से खर्च करते हैं, कोई अधिक काम करता है तो कोई कम काम करता है, हिसाब किताब कुछ नहीं,बाप के मरने के बाद विवाद शुरू हो गया. कोई इस भाई पर आरोप डाल रहा है तो कोई उस भाई को दोषी ठहरा रहा है, आपसी प्रेम नफरत में बदल गया,भाई भाई के दुश्मन हो गए,  ऐसा क्यों हुआ ?  ये सारे मतभेद इस लिए कि शरीयत का पालन नहीं हुआ,किस ने कहा था कि अपनी सारी कमाई घर वालों को देते रहें,  और कारोबार में सब का हिस्सा तै न करें। अगर पहले ही पता होता कि किसका अधिकार कितना है तो कोई मतभेद नहीं हो सकता था।

( 4 )  बहस तकरार करने और बात का बतंगर बनाने से बचें :

बहस तकरार सामान्य रूप में एक आदमी को अपशब्द पर उभारता है फिर मतभेद पैदा होते हैं, शिकवा शिकायत भी नहीं होनी चाहिए, तुमने ऐसा क्यों किया ऐसा क्यों नहीं किया,तुमने मुझे फ़लाँ प्रोग्राम में क्यों नहीं बुलाया,तुम ऐसा करते हो, वैसा करते हो … कुछ लोगों की तबीअत होती है कि उनके पास शिकवे शिकायत का भंडार होता है, जब अवसर मिला दिल खोल कर भरास निकालने लगे, ये बातें ऐसी हैं कि इन से मतभेद पैदा होंगे ही. अगर इंसान यह समझे कि यह सब दुनिया की बातें हैं जो कुछ दिनों के लिए हैं, हमें दुनिया में कुछ दिन बिताने हैं, हमेशा रहने वाला जीवन प्रलोक है वहाँ के बारे में हमें सोचना चाहिए. वहाँ की चिंता करनी चाहिए,  यहां किसी अधिकार से वंचित रह भी गए तो क्या नुकसान हुआ, कोई घाव तो नहीं हो गया, फिर यह शुहरत आनी जानी है,आज है कल नहीं है।

( 5 )  किसी का मजाक न उड़ाएं :

हर इंसान के पास भावनाओं होती हैं,  उनकी भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक होता है, एक है मजाक करना और एक है मजाक उड़ाना। ऐसा मजाक करने की गुंजाइश है जिसका मक़सद दिल-लगी हो, परन्तु जिस से आप दिल-लगी कर रहे हैं उसे बुरा न लगे, अगर बुरा लग गया तो वह मजाक उड़ाना हो गया जो उचित नहीं. कितने लोगों की आदत होती है कि मज़ा लेने के लिए दूसरों का मजाक उड़ाते हैं, दूसरों को परीशान करते हैं,  ऐसा करना एक मुसलमान की शान के खिलाफ है. याद रखें एक मुसलमान का सम्मान काबा की पवित्रता से भी अधिक महत्व रखता है। (सहीहुत्तरग़ीबः लिल- अलबानी 2441)

और एक आदमी तब तक सही ईमान वाला नहीं बन सकता जब तक अपने भाई के लिए वही पसन्द न करे जो अपने लिए पसंद करता है। इस लिए जब आप अपना मजाक उड़ाया जाना पसंद नहीं करते तो दूसरों के लिए भी वही चाहें कि यह ईमान की पहचान है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः

لا يُؤمِنُ أحدُكم حتى يُحِبَّ لأخيه ما يُحِبُّ لنَفْسِه – متفق عليه

तुम में से एक व्यक्ति उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि अपने भाई के लिए वही पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता है। (बुख़ारी, 13 मुस्लिम 45)

 ( 6 ) प्रतयक्ष और परोक्ष को एक रखें :

दो चेहरे वाले मत बनें,अस्थिरता आएगी तो मतभेद होगा,  सामने में कुछ पीठ के पीछे कुछ, रंग बदलना गिरगिट का काम है, और जो रंग बदलता है उसका कभी सम्मान नहीं होता, यह बड़ी घटिया आदत है। सामने वाला आप पर भरोसा कर रहा है और आप उसे झूठी बात कर रहे हैं, यह विश्वासघात है. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया :

کبرت خیانة أن تحدث أخاک حدیثا ھولک بہ مصدق وأنت لہ بہ کاذب –  ابوداؤد

 “यह बड़े विश्वासघात की बात है कि तुम अपने भाई से ऐसी बात करो जिसे वह सच समझ रहा हो जब कि तुम उस से झूठ बोल रहे हो.”

जाहिर है कि जिस पर आपने विश्वास किया वह झूठ बोल रहा हो तो मतभेद होना निश्चित है,इस लिए दोहरे चेहरा वाले मत बनें, जैसे सामने हों वैसे ही पीछे होना चाहिये।

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