कुरआन क्या है ?

 

quran5क़ुरआन ईश-वाणी अर्थात अल्लाह की वाणी है ( वह अल्लाह जो एक है, जिसको किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिसके पास न माता पिता है नसंतान, न उसका कोई भागीदार है) उस अल्लाह ने मानव को अपनी सृष्टी के एक कोने धरती पर बसाया तो उसको जीवन बिताने के नियमों से भी अवगत किया वैसे ही जैसे कोई कम्पनी कोई सामान तैयार करती है तो उसके प्रयोग करने का नियम भी बताती है। अतः उसने मानव मार्गदर्शन हेतु हर युग और हर देश में मानव में से ही कुछ संदेष्टाओं को भेजा जिन में से अधिक संदेष्टाओं पर ग्रन्थ भी उतारा ताकि संदेष्टा उसके द्वारा मानव को अपने पैदा किए जाने के उद्धेश्य से अवगत करते रहें।
सब से अन्त में अल्लाह ने मानव के लिए अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 को “विश्व नायक” बनाकर भेजा और उन पर ” क़ुरआन ” अवतरित किया जो सम्पूर्ण मानव का मार्गदर्शक है।
क़ुरआन अरबी भाषा में “आकाशीय दूत” (ईश्वरीय आदेशों के पालन हेतु प्रकाश से पैदा की गई जाति जिनको “फरिशता” कहते हैं जो अल्लाह के अधीन होते हैं ) जिब्रील के माध्यम से अन्तिम ईश्दुत मुहम्मद सल्ल0 पर 23 वर्ष की लम्बी अवधि में थाड़ा थोड़ा करके अवतरित हुआ। न तो इसे मुहम्मद सल्ल0 ने लिखा है और न ही आपके किसी साथी का उसमें कोई हस्तक्षेप रहा है।
क़ुरआन जैसे जेसे अवतरित होता मुहम्मद सल्ल0 अपने अनुभवि लिपिक से अपनी निगरानी में लिपिबद्ध करवा लेते। फिर उसे सुनते और साथियों को संठस्थ करा देते। इस प्रकार क़ुरआन मुहम्मद सल्ल0 की मृत्यु से पूर्व ही पूर्ण रूप में संकलित हो गया तथा संकलन कर्म भी अल्लाह के आदेशानुसार हुआ। मुहम्मद सल्ल0 का उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं रहा।
क़ुरआन का यह सब से बड़ा गुण है कि इसके लेखन कोई इनसान नहीं बल्कि स्वयं अल्लाह की ओर से अवतरित हुआ है। अगली पोस्ट में हम बताएंगे कि अन्य धार्मिक ग्रन्थों की तुलना में क़ुरआन की विशेषताएं क्या हैं। तब तक के लिए अनुमति दीजिए, धन्यवाद।

 सुरक्षित ग्रन्थ

पिछले सप्ताह एक सज्जन ने मेरे क़ुरआन से सम्बन्धित लेख पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि धार्मिक ग्रन्थों का शत-प्रतिशत सुरक्षित रहना सम्भव नहीं है। मैं उनके विचार का पूरी तरह समर्थन करता हूं। क्योंकि ज़माने के परिवर्तन तथा लोगों की नीतियों में बदलाव के कारण ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं। परन्तु सारे धार्मिक ग्रन्थों में केवल क़ुरआन को यह विशेषता प्राप्त है कि आज हमारे पास जो क़ुरआन है वह ज्यों का त्यों सुरक्षित है। उसके शब्द वही हैं जो ईश्वर की ओर से अवतरित हुए थे। उनमें से कोई एक शब्द भी नष्ट नहीं हुआ है, न ही ऐसा हुआ है कि कोई शब्द अथवा अक्षर हटा कर उसके स्थान पर कोई और शब्द या अक्षर रख दिया गया हो। उसमें कोई शब्द या अक्षर बढ़ाया भी नहीं गया है, यहाँ तक कि अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 ( जिन पर क़ुरआन का अवतरण हुआ) का अपना कोई शब्द या अक्षर उसमें शामिल भी नहीं हुआ।

हज़रत उस्मान रजि0 (तीसरे खलीफ़ा) के समय में जब क़ुरआन की सरकारी नक्लें इस्लाम के केन्द्रीय स्थानों पर भेजी गईं उनमें से दो प्रतियाँ आज भी पाई जाती हैं। एक ताशक़न्द में और दूसरी इस्तम्बोल में।

जहाँ अल्लाह ने उसके शब्द की सुरक्षा की वहीं उसके अर्थ की सुरक्षा का भी पूर्ण प्रबन्ध किया, इसलिए कि मात्र शब्द का सुरक्षित होना काफी नहीं था क्यों कि अभिप्राय और अर्थ सुरक्षित न हो तो उसमें परिवर्तन निश्चित हो जाता है। यदि आप इतिहास का अध्ययन करें तो पाएंगे कि मुहम्मद सल्ल0 ने अपने साथियों को क़ुरआन याद कराने के साथ साथ उसके अर्थ भी बताए, लोगों ने आप से उनका अर्थ समझा और अपने बाद लोगों तक पहुँचाया। जिन विद्वानों ने मुहम्मद सल्ल0 के प्रवचनों को संकलन करने का प्रबन्ध किया है उन्होंने अपने संग्रह में मुहम्मद सल्ल0 से प्रमाणित क़ुरआन की व्याख्या को भी जगह दी है।

क़रआन की व्याख्या पर आने वाली पुस्तकों में विशेष ऐसी पुस्तकें लिखी गई हैं जिनमें क़ुरआन की व्याख्या हदीस से की गई है। उन व्याख्याओं ( तफ्सीरों) को “तफ्सीर बिल-मासूर” अर्थात् ” मुहम्मद सल्ल0 द्वारा प्रमाणित व्याख्या ” कहते हैं। जिनमें इमाम सुयूती और इमाम इब्ने-कसीर आदि विद्वानों की तफ्सीरें प्रसिद्ध हैं जिन में उन्होंने हर आयत की व्याख्या हदीस से कर की है, जो वास्तव में अल्लाह ही की ओर से है। क्योंकि क़ुरआन ने स्वयं यह घोषणा कर दी थी  إن علينا بيانه ” इन्न अलैना बयानहू ” ( सूरः क़ियामह 19/29) अर्थात् “इस क़ुरआन की व्याख्या की भी हमने ज़िम्मेवारी ले रखी है।” 

एक दूसरे स्थान पर कहा गया है किः

وَمَا يَنطِقُ عَنِ الْهَوَىٰ  إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَىٰ   سورة النجم 3,4 

“(मुहम्मद सल्ल0) कोई बात अपनी ओर से नहीं कहते”अपितु वह अल्लाह की ओर से प्रकाशना होती है। ज्ञात यह हुआ कि “तफ्सीर बिर मासूर” नामक व्याख्याएं वास्तव में अल्लाह ही की अवतरित की हुई व्याख्याएं हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वयं ईश्वर ने जब क़ुरआन को अवतरित किया तो इसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी ले ली, क्यों कि क़ुरआन के बाद अब कोई ग्रन्थ अवतरित होने वाला नहीं था और क़ुरआन से पूर्व जितने भी ग्रन्थ अवतरित हुए थे उनके मानने वालों ने उन में परिवर्तन कर दिया था इसी लिए सब से पहले क़ुरआन की शैली मानव शैली से भिन्न रखी फिर उसकी सुरक्षा की भी ज़िम्मेदारी ले ली। कुहआन कहता हैः 

إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ   سورة الحجر9 

” रहा यह ज़िक्र ( कुरआन) तो इसको हमने उतारा है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं”। ( सूरः15 आयत 9)

यह ऐसी सच्चाई है जिसकी गवाही कितने गैर-मुस्लिम विद्वानों ने भी दी है। एक ईसाई विद्वान मिस्टर विल्यम मयूर कहते हैं-

” संसार में क़ुरआन के अतिरिक्त कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं पाया जाता जिसका अक्षर एवं शैली बारह शताब्दि गुज़रने के बावजूद पूर्ण रूप में सुरक्षित हो”।

क़ुरआन एक पूर्ण जीवन व्यवस्था

क़ुरआन हर पहलू से एक पूर्ण मार्गदर्शन है इसमें मनुष्य के विचार और व्यवहार, बाहरी और आन्तरिक, व्यक्तिगत और सामुहिक, राष्ट्रीयय और अंतर्राष्ट्रीय अर्थात जीवन के एक एक अंग के सम्बन्ध में आदेश मौजूद है। इस्लामी शिक्षाओं के दो भाग हैं (1) मानव के अधिकार (2) ईश्वर के अधिकार। मानव के अधिकार में मानव जाति के पारस्परिक सम्बन्ध तथा आचरण व्यवहार शामिल हैं जबकि ईश्वर के अधिकार में आस्थाएं और उपासनाएं आती हैं। पवित्र क़ुरआन इन सारी शिक्षाओं पर प्रकाश डालता हैः क़ुरआन में एक स्थान पर ईश्वर का कथन हैः “आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को पूर्ण कर दिया और तुम पर अपना उपकार पूरा कर दिया” (सूरः 5 आयत 3)
प्रोफेसर हरबर्ट वाईल कहते हैं : “क़ुरआन एक पूर्ण जीवन व्यवस्था है, यदि एक व्यक्ति उसकी शिक्षाओं को अपने जीवन में व्यवह्रत कर ले तो वह आध्यात्मिक और सांसारिक जीवन के उच्च शिखर पर पहुंत सकता है।”

क़ुरआन की शिक्षाएं हर युग के लिए:

क़ुरआन एक ऐसा ग्रन्थ है जिसकी शिक्षाएं हर युग के लोगों के सिए समान रूप में व्यवहारिक आदर्श हैं इसी लिए वह अपने लाए हुए धर्म को “व्यवहारिक धर्म” ( सूरः 30 मंत्र 30 ) के नाम से मानव के सामने प्रस्तुत करता है। एक दूसरे स्थान पर क़ुरआन में हैः

    إِنَّ هَـٰذَا الْقُرْآنَ يَهْدِي لِلَّتِي هِيَ أَقْوَمُ   سورة الإسراء 9  

 ” वास्तव में यह क़ुरआन वह मार्ग दिखाता है जो सब से सीधा है” (सूरः 17 आयत 9 ) –

आज के इस आधुनिक युग में यदि कोई नियम पूर्ण रूप में लाभदायक हो सकता है तो वह क़ुरआनी नियम है। क़ुरआन नें शराब पर प्रतिबन्ध लगाया, महिलाओं को पर्दा करने का आदेश दिया, ब्याज को अवैध ठहराया, व्यभिचार को समाज के लिए घृणित कार्य बताया- तात्पर्य यह कि हर अच्छे काम का आदेश दिया और हर बुरे काम से रोका। विदित है कि इन्हीं बुराइयों के फैलने के कारण हमारा समाज खराब होता जा रहा है। इन बुराइयों का खंडन करने की आवश्यकता हर युग में रही है और रहेगी।

जीवित भाषा:

क़ुरआन जिस भाषा में उतारा वह एक जीवित भाषा है। मुस्लिम देशों के अतिरिक्त संसार के सभी देशों में न केवल इस भाषा का प्रचलन है अपितु यह जीवित और शिक्षा का माध्यम है और यह विशेषता मात्र क़ुरआन की है। बाईबल तथा वेद आदि की भाषा अब संसार के किसी क्षेत्र अथवा भाग में प्रयोग नही होती।

सब से अधिक पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ:

क़ुरआन संसार में सब से अधिक पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ है और लाखों की संख्या में लोगों ने उसे कंठस्थ कर रखा है। छोटे छोटे बच्चे दो चार वर्ष में क़ुरआन को कंठस्थ कर लेते हैं। मुसलमानों में बहुत कम ऐसे लोग हैं जो क़ुरआन पढ़ना न जानते हों जब कि संस्कृत भाषा में ग्रन्थ पढने वाले आज दाल में नमक के समान हैं।

संरक्षक ग्रन्थ:

पवित्र क़ुरआन के अनुसार ईश्वर का भेजा हुआ धर्म शुरू से एक ही रहा है। परन्तु लोगों ने उसमें अपने स्वार्थ के लिए परिवर्तन कर दिया। इस लिए आज अन्य धर्म ग्रन्थों की वास्तविक शिक्षाएं भी पवित्र ग्रन्थ से ही मालूम हो सकती हैं। क़ुरआन में है:

 وَأَنزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ مِنَ الْكِتَابِ وَمُهَيْمِنًا عَلَيْهِ   سورة المائدة 48  

” हे पैगम्बर! हमने सच्चाई के साथ तुम पर क़ुरआन को अवतरित किया है जो अपने से पूर्व ग्रन्थों की पुष्टि करने वाला है तथा उनका रक्षक भी है। ” ( सूरः 5 आयत 48)

अर्थात पिछले ग्रन्थों के मूल संदेश पर मिलावटों और परिवर्तनों के जो पर्दे डाल दिए गए हैं उन्हें क़ुरआन हटा देता है और उनकी मूल शिक्षाओं का निर्धारण कर देता है।

अन्तिम ग्रन्थ :

ईश्वर ने संदेष्टाओं का क्रम मुहम्मद सल्ल0 पर बन्द किया तो क़ुरआन को भी फाइनल अथार्टी ( Final Authority) के रूप में अवतरित किया। क़ुरआन अपने लाने वाले संदेष्टा के सम्बन्ध में कहता है: وَلَـٰكِن رَّسُولَ اللَّـهِ وَخَاتَمَ النَّبِيِّينَ ” बल्कि वह अल्लाह के संदेष्टा और नबियों के समापक ( अन्तिम संदेष्टा ) हैं।” ( सूरः 33 आयत 40 )

क़ुरआन के व्यवहारिक रूप की सुरक्षा

प्रिय मित्रो ! क़ुरआन का एक बहुत बड़ा चमत्कार यह है किइसके शब्द और अर्थ की सुरक्षा के साथ साथ इसके व्यावहारिक रूप की सुरक्षा का भी पूरा पूरा प्रबन्ध किया गया। वह इस प्रकार कि क़ुरआन मुहम्मद साहब पर जिस शब्द में अवतरित होता आप सल्ल0 उसका अर्थ अपने साथियों को प्रकाशना द्वारा समझाते, फिर समझाने ही पर बस नहीं करते अपितु उसे व्यवहारिक रूप देकर बताते भी थे जिसे आज की भाषा में थ्यूरी (Theory) के साथ साथ परेक्टिकल (Practical) कहा जाता है।

क़ुरआन जिस वातावरण में अवतरित हुआ, जिस सन्दर्भ में आयतें उतरीं उस संदर्भ को भी सुरक्षित कर दिया गया। यहाँ तक कि अवतरण के संदर्भ पर विशेष रूप में पुस्तकें लिखी गई हैं जिस से आयतों के संदर्भ का सरलतापूर्वक ज्ञान होता है। इस विषय को क़ुरआन के विशेषज्ञों ने ” अस्बाबे नुज़ूल ” ( अवतरण के कारण) का नाम दिया है। अर्थात् आयत के अवतरित होने का कारण और संदर्भ।

फिर जिस संदेष्टा अर्थात् मुहम्मद सल्ल0 पर क़ुरआन का अवतरण हुआ उनकी जीवनी को पूर्ण रूप में सुरक्षित कर दिया गया क्योंकि मुहम्मद सल्ल0 ने क़ुरआनी आदेशों का पालन कर के उनके बीच अपना आदर्श छोड़ा था ताकि कल आकर कोई ऐसा न कहे कि मैं क़ुरआनी आदेशों को अपने व्यवहारिक जीवन में जगह देने की क्षमता नहीं रखता।

इसी लिए जब एक बार मुहम्मद सल्ल0 की पत्नी हज़रत आइशा रज़ि0 से पूछा गया कि मुहम्मद सल्ल0 का आचार व्यवहार कैसा था ? तो आपने उत्तर दिया : क्या तुमने क़ुरआन नहीं पढ़ा। कहाँ: हाँ, तो उन्होंने फरमाया: “आपका आचार व्यवहार क़ुरआन था।” (सहीह मुस्लिम) अर्थात् आप क़ुरआन का चलता फिरता आदर्श थे।

जहाँ कोई आदेश आया सर्वप्रथम उसे व्यवहारिक रूप दिया। आज भी कोई व्यक्ति मुहम्मद सल्ल0 की जीवनी को खंगाल कर देश ले उसे आप सल्ल0 क़ुरआन का पूर्ण व्यवहारिक आदर्श देखाई देंगे जिस से वह समझ सकता है कि क़ुरआन एक Theory है और मुहम्मद सल्ल0 की जीवनी Practical।

मुहम्मद सल्ल0 ने बाल्यावस्था से ले कर अन्तिम सांस तक जो कुछ किया और बोला उसे उनके साथियों ने कंठस्थ किया और कुछ लोगों ने उसे लिखा फिर बाद की पीढियों तक उसे पहुंचाया, जिनकी संख्या लाखों तक पहुंचती है फिर सुनने वालों ने दूसरों को सुनाया यहाँ तक कि उसे लिपिबद्ध कर दिया गया। जैसे फ़लाँ ने फलाँ से कहा और फलाँ ने फलाँ से कहा कि मैंने अपने कानों से मुहम्मद सल्ल0 को यह कहते हुए सुना है।

जिन व्यक्तियों द्वारा यह खबरें दूसरों तक पहुंचती हैं उनको रावी कहते हैं। इस्लामी विद्वानों ने उन रावियों की पूरी जीवनी लिखी है। यदि उन में से कोई कभी सामान्य लोगों के साथ झूठ बोलते पाया गया अथवा उसकी स्मरण-शक्ति कम्ज़ोर थी तो उसके माध्यम से बयान किए गए प्रवचनों को रद्द कर दिया गया। ताकि मुहम्मद सल्ल0 का प्रवचन और उनकी जीवनी हर प्रकार से संदेहों से पवित्र रहे।

इस प्रकार देखा जाए तो आज मानव इतिहास में मुहम्मद सल्ल0 ही वह महान व्यक्ति हैं जिनके जीवन का एक एक वाक्य – बाल्यावस्था से लेकर मृत्यु तक- हम तक सर्वथा सुरक्षित रूप में पहुंचा है।

आज इस धरती पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रन्थ पाए जाते हैं जो सर्वथा प्रमाणित नहीं , चे जाए कि वह व्यवहारिक रूप में सुरक्षित हों। यह मात्र क़ुरआन का चमत्कार है कि एक ओर क़ुरआन थ्यूरी (Theory) है तो दूसरी ओर मुहम्मद साहब की जीवनी उसका परेक्टिकल (Practical) रूप।

क़ुरआन एक चमत्कार है।

हर चीज़ की एक विशेषता होती है, क़ुरआन जो आज हमारे बीच पाया जाता है अन्य धार्मिक ग्रन्थों की तुलना में उसकी भी बहुत सारी विशेषताएं हैं आज हम उसकी एक विशेषताक़ुरआन एक चमत्कार है के विषय पर प्रकाश डालेंगे।

जब हम कहते हैं कि क़ुरआन एक चमत्कार है तो इस का अर्थ यह होता है कि क़ुरआन मुहम्मद सल्ल0 के लिए चमत्कार के रूप में अवतरित किया गया है।

ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु हर देश और हर युग में संदेष्टाओं को भेजा तो उन्हें चमत्कारियाँ भी दी ताकि लोग उनके ईश-दुतत्व पर भलिभांति विश्वास कर लें। उदाहरण स्वरूपः

(1) एक संदेष्टा इब्राहीम अलै0 हैं जिनको दहकती हुई आग में डाल दिया गया परन्तु आग उनके लिए अल्लाह की अनुमति से शांन्तिपूर्ण रूप में ठंडी हो गई।

(2) हज़रत मूसा अलै0 लाठी फेंकते तो साँप का रूप धारण कर लेती और जब समुद्र में लाठी मारा तो समुद्र के दोनो ओर का पानी रूक कर मध्य से रास्ता बन गया।

(3) ईसा अलै0 ईश्वर की अनुमति से मृतकों को जीवित कर देते थे और पैदाइशी अंधे की आँखों पर हाथ फेर देते तो उसकी आँख में रोशनी आ जाती थी।

उसी प्रकार अल्लाह ने अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 को भी विभिन्न चमत्कारियाँ दीं जिन में एक महत्वपूर्ण चमत्कार कुरआन है जो अपने अवतरण-काल से ले कर आज तक सम्पूर्ण मानव जाति के लिए चुनौति है।

क़ुरआन का सब से महान चमत्कार यह है कि इसकी शैली मानव शैली से सर्वथा भिन्न है। वह अरब जिसमें क़ुरआन का अवतरण हुआ था अपने शुद्ध साहित्यिक रसासवादन के लिए अति प्रसिद्ध थे । उनको अपनी भाषा शैली पर बड़ा गर्व था। ऐसे लोगों को क़ुरआन ने चुनौति दीः

وَإِن كُنتُمْ فِي رَيْبٍ مِّمَّا نَزَّلْنَا عَلَىٰ عَبْدِنَا فَأْتُوا بِسُورَةٍ مِّن مِّثْلِهِ وَادْعُوا شُهَدَاءَكُم مِّن دُونِ اللَّـهِ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴿٢٣﴾ فَإِن لَّمْ تَفْعَلُوا وَلَن تَفْعَلُوا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ ۖ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ  سورة البقرة  23, 24

“यदि उस (क़रआन) के विषय में जो हम ने अपने बंदे (मुहम्मद ) पर उतारा है, तुम किसी संदेह में हो तो उस जैसी कोई सूरः ले आओ और अल्लाह से हट कर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास है, यदि तुम सच्चे हो।”(सूरः2 आयत 23-24)

लेकिन इतिहास साक्षी है कि पूरे अरब उसके समान एक अध्यय तो क्या एख श्लोक भी पेश करने में असमर्थ्य रहे, हालाँकि वह मुहम्मद सल्ल0 के विरोद्ध में पूरे साहसी बने थे और आपत्ति का कोई अवसर खोना नहीं चाहते थे। सब से बड़ी बात यह है कि वह अरबी भाषा के भी पूरे तौर पर माहिर थे, उनकी भाषा इतनी उच्च-कोटी की थी कि शायरी में बातें करते थे। आप स्वयं सोचिए कि यदि क़ुरआन मानव रचित होता तो कुछ लोग अवश्य इसके समान पेश कर सकते थे लेकिन न कर सके। यह ग्रन्थ आज तक संसार वालों के लिए चुनौति बना हुआ है तथा रहती दुनिया तक बना रहेगा।

बात बिल्कुल स्पष्ट है आप स्वयं विचार कर सकते हैं कि यदि किसी पुस्तक का लेखक यह दावा करे कि कोई माई का लाल मेरे जैसी शैली में नहीं लिख सकता और चैलेंज दे कि यदि पूरे संसार के इनसान भी मन-मस्तिष्क मिला कर मेरी पुस्तक के समान लिखना चाहें तो वह एख पृष्ठ तो दूर की बात है एक लाईन भी नहीं लिख सकते।

ऐसा दावा करने वाला मेरी समझ से मूर्ख ही होगा क्योंकि उससे अच्छा लिखने वाले हज़ारों व्यक्ति मिल जाएंगे। लेकिन क़ुरआन ने ऐसा ही चैलेंज आज से साढ़े चौदह सौ शताब्दी पूर्व दिया जिसको कुबूल करने से लोग असमर्थ्य रहे और आज तक हैं। हालाँकि क़ुरआन की भाषा को समझ लेना बहुत आसान है ।

उस समय से आज तक कितने देशों में अरबी के साहित्यकार गुज़रे हैं लेकिन किसी को इसके समान बना कर पेश करने का साहस न हो सका। और होता भी कैसे कि अल्लाह ने इसे रहती दुनिया के मार्गदर्शन हेतु चमत्कार के रूप में उतारा था । आज एख व्यक्ति मात्र इस विषय पर चिंतन मनन कर ले तो वह सरलतापूर्वक अपने ईश्वर की ओर से आए हुए संदेश को अपनाकर स्वर्ग का भागीदार बन सकता है।

Related Post