मैं ने इस्लाम क्यों स्वीकार किया ?

मैं जैसे जैसे कुरआन शरीफ का अध्ययन करता जा रहा था मेरा दिल ईमान की मिठास से लबरेज़ होता जा रहा था. वह सभी प्रश्न और संदेह जो कि बाईबल के अध्ययन के दौरान मेरे मन में घूम रहे थे उनका संतोषजनक जवाब मुझे कुरआन में मिल चुका था.

मैं जैसे जैसे कुरआन शरीफ का अध्ययन करता जा रहा था मेरा दिल ईमान की मिठास से लबरेज़ होता जा रहा था. वह सभी प्रश्न और संदेह जो कि बाईबल के अध्ययन के दौरान मेरे मन में घूम रहे थे उनका संतोषजनक जवाब मुझे कुरआन में मिल चुका था.

मेरा पुराना नाम थोमास पॉवेल और इस्लामी नाम इब्राहीम है. मैं ईसाई धर्म से संबंध रखता था. मेरे परिवार के लोग शुरू से कट्टर ईसाई हैं और हर सप्ताह निरंतर चर्च की यात्रा करते हैं, मैं स्वयं “क्रास” पकड़ने में आगे आगे रहता था. इसके बावजूद मैं पारंपरिक ईसाई था, कभी बाइबल का अध्ययन नहीं किया था. जब नौकरी के लिए कुवैत आया तो यहाँ एक ईसाई मित्र के साथ मेरी बैठक होने लगी, वह ईसाई धर्म से संबंधित पर्याप्त जानकारी रखता था, और हर समय बाईबल के हवाले से बात करता था जिस से मेरे दिल में बाइबिल के अध्ययन का शौक जागा. इसलिए मैं ने बाइबल की एक प्रति प्राप्त की और अध्ययन करने बैठा, न जाने क्या हुआ कि बाईबल के अध्ययन में मेरा दिल न लगा और मेरे अंदर अजीब तरह की बेचैनी पैदा होने लगी, मैंने उसी समय बाईबल को बंद कर दिया. जब मैंने अपने ईसाई दोस्त से इस मामले में बात की तो उसने तसल्ली देते हुए कहा कि “तुमने बाईबल पहली बार पढ़ी है इसलिए तेरा दिल इस में नहीं लग रहा है, धीरे धीरे जब सामान्य हो जाएगा तो उसके अध्ययन में आनंद महसूस करोगे. वैसे भी ईसाई धर्म सबसे अच्छा और प्राचीन धर्म है।”

त्योहार के अवसर पर दोस्तों के बीच केक और मिठाइयां बांटना मेरी आदत बन गई थी, आदत के अनुसार एक त्योहार के अवसर पर हम सब मिल कर केक खा रहे थे, वहाँ मेरा एक मुस्लिम दोस्त भी मौजूद था, उसकी एक बात पर मैं चौंक पड़ा, उसने कहा कि ईसा अलैहिस्सलाम  अल्लाह के बेटा नहीं थे बल्कि एक नबी और अल्लाह के रसूल थे. इस बात पर हम दोनों में काफी नोक झोंक और चर्चा हुई, उस समय मुझे ईसाई धर्म की कोई विशेष जानकारी नहीं थी, इसलिए मुझे जवाब देने में झिझक महसूस जरूर हुई लेकिन उसी समय यह संकल्प कर लिया कि इस्लाम और ईसाई धर्म का तुलनात्मक अध्ययन करूंगा ताकि उसकी बातों का ठोस जवाब दे सकूं और स्पष्ट कर दूं कि ईसाई धर्म ही सच्चा और सही धर्म है।

अतः मैं ने एक नए उत्साह और जज़बा के साथ बाईबल का अध्ययन शुरू किया. मैंने इस में बहुत सी ऐसी बातें पाईं जिनका मुसलमान पालन करते हैं लेकिन ईसाई उन से कोसों दूर हैं. जैसे हाजरा और इस्माइल अलैहिमस्सलाम की कहानी के संदर्भ में ज़मज़म का स्रोत फूटना, हाजरा अलैहास्सलाम का सफा और मरवा पर दौड़ लगाना, शराब, सुअर, जुआ की अवैधता, मूर्ति पूजा की निंदा और तौहीद की प्रमाणिकता पाया. अध्ययन के बीच विशेष रूप में जिस चीज़ पर मेरी नज़र टिकी वह ईसा अलैहिस्सलाम का यह आदेश:

  “मुझे जाना होगा क्योंकि मेरे बाद एक नबी आएगा वह लोगों को सीधा रास्ता देखाएगा”

  (To Lays English Version, New Testament, chapter John)

इन बातों ने मेरे मन मस्तिष्क में हलचल मचा दी, और विभिन्न सवालों और संदेह को जन्म दिया. उसी बीच भारत से एक बड़ा पादरी कुवैत आया था, मैंने मोक़ा को ग़नीमत जाना और उसके सामने अपनी अपत्तियां रखीं, लेकिन उसके पास उनका कोई जवाब नहीं था, एक अस्पष्ट सा जवाब मिला कि दूसरे पादरी से पूछ कर जवाब दूंगा. लेकिन उसके पास असल में जवाब कुछ नहीं था।

मेरा मुस्लिम दोस्त मुझे कुछ इस्लामी शिक्षाओं से परिचित कराता रहा और कुछ किताबें ला कर दीं जिन्हें काफी रुचि से पढ़ा. इस्लामी शिक्षायें मेरे तन बदन में सरायत करने लगी थीं, फिर मुझे कुरआन का अंग्रेजी अनुवाद मिला जिसे पूरी लगन से पढ़ा, ज्यों ज्यों कुरआन शरीफ का अध्ययन करता जा रहा था मेरा दिल ईमान की मिठास से लबरेज़ होता जा रहा था. वह सभी प्रश्न और संदेह जो कि बाईबल के अध्ययन के दौरान मेरे मन में घूम रहे थे उनका संतोषजनक जवाब मुझे कुरआन में मिल चुका था. अब मैंने चर्च से दूर रहना शूरू कर दिया, उसके बाद सही बुखारी के अंग्रेजी अनुवाद का भी अध्ययन किया। अब सत्य मार्ग से भागने की कोई गुंजाइश बाक़ी न रह गई थी. ईमान के प्रकाश से मेरा दिल प्रकाशमान हो चुका था, ईसा अलैहिस्सलाम की साफ और शुद्ध कल्पना मेरे मन में अपनी जगह बना चुकी था. मरयम अलैहास्सलाम के वास्तविक स्थान .जो कुरआन ने उन्हें दिया है. से परिचित हो चुका था और प्राचीन ईसाई सिद्धांतों की वास्तविकता मुझ पर उदित हो चुकी थी. चर्च की दीवार मेरे मन से ध्वस्त हो चुकी थी. इस लिए मैंने इस्लाम स्वीकार करने से पहले ही नमाज़ की दुआयें याद कर लीं और अपने रूम ही में नमाज़ की मिठास से अपने शरीर और आत्मा की प्यास बुझाने लगा. फिर एक धार्मिक सभा में मौलाना सफात आलम के सामने इस्लाम में प्रवेश करने की घोषणा कर दी।”

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