फ़जर की नमाज़ का महत्व और उसके लिए जगने का आसान तरीक़ा

एक यहूदी सेना के प्रमुख ने नमाज़े फजर के सम्बन्ध में कहा था: “मुसलमान हम पर उस समय विजय प्राप्त कर सकते हैं जब उनकी संख्या सुबह की नमाज़ में इतनी ही हो जाये जितनी फ़जर की नमाज़ में होती है”.

Fajarनमाज़ इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक स्तंभ और आधार है जो दिन और रात में हर मुसलमान पर पांच बार अनिवार्य है, पांच समय की इन नमाज़ो में सब से महत्वपूर्ण नमाज़ फ़जर की नमाज़ है, जब एक आदमी नींद की गोद में होता है, बिस्तर को छोड़ना उस पर बहुत कठिन होता है, लेकिन एक मोमिन बंदा जब अपने बिस्तर पर जाता है तो इस भावना के साथ कि वह अपने पालनहार की उपासना के लिए सुबह में जागेगा, अतः उसे तौफीक़ नसीब होती है और उस समय जबकि मुअज्जिन “नमाज़ नींद से बेहतर है, नमाज़ नींद से बेहतर है” की पुकार लगा रहा होता है वह नरम नरम बिस्तर को छोड़ता है, नींद के स्वाद और शरीर के आराम को अलविदा कहता है, वुज़ू कर के मस्जिद जाता है, जमाअत से नमाज़ पढ़ता है. अतः अल्लाह की दया उसको ढ़ांप लेती है। अब वह अपने मालिक की शरण में आ जाता है और पूरा दिन अल्लाह की रक्षा में रहता है.

हज़रत जुनदुब बिन अब्दुल्लाह रज़ि. बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

من صلی الصبح فھو فی ذمة اللہ ….رواه مسلم  

 “जिसने सुबह की नमाज़ पढ़ी वह अल्लाह की सुरक्षा में आ गया ….”. (मुस्लिम)

सुब्हान-अल्लाह क्या स्थान है मोमिन बंदे का कि दिन की शुरुआत अपने रब की रक्षा में कर रहा है, फिर वह ताज़ा दम होता है, चुस्त और अच्छी तबीअत का बन जाता है.

इसके विपरीत जो व्यक्ति टीवी पर अश्लील कार्यक्रम का दर्शन  करते हुए नींद की गोद में चला जाता है, न अल्लाह का नाम लिया न सोते समय की दुआओं का एहतमाम किया, परिणाम स्वरूप उस पर शैतान पूरे तौर पर काबू पा लेता है, उसे थपकियाँ दे कर सूरज निकलने तक सोलाए रखता है. इसलिए जब वह सूर्योदय के बाद जागता है तो बुरे स्वभाव का सुस्त और कालसी होता है. अल्लाह को उसकी कोई परवाह नहीं होती, वह दिन भर अल्लाह की सुरक्षा से वंचित रहता है.

अब हमें अपना जाइज़ा लेना है कि हम किस हद तक सुबह की नमाज़ की सुरक्षा कर रहे हैं, जिस नमाज़ से अल्लाह की सुरक्षा प्राप्त होती है, मन को शान्ति मिलाती है, जिस नमाज़ पर जन्नत में प्रवेश और नरक से मुक्ति निर्भर है, जिस नमाज़ के द्वारा कल क़यामत के दिन अल्लाह का दर्शन प्राप्त होगा, ऐसी नमाज़ से बे साधारण लोगों की तवज्जुही खेद की बात है…. जब इंसान की पुकार होती है, और ड्यूटी का समय आता है तो हम पूरी तैयारी के साथ सड़कों पर पर पिल पड़ते हैं चाहे चार बजे सुबह ही कयों न हो, लेकिन जब अल्लाह की पुकार होती है तो हम निंद में मस्त होते हैं, ऐसा क्यों? अल्लामा इक़बाल ने कहा थाः

किस क़दर तुम पे गिराँ सुबह की बेदारी है

हम से कब प्यार है हाँ नींद तुम्हें प्यारी है

 जाहिर है कि यह आख़िरत की फ़िक्र में कमी का परिणाम है, अल्लाह की पकड़ से जब इंसान संतुष्ट हो जाता है तो उसके आज्ञाओं का हनन करने में उसे जरा भी संकोच नहीं होता, इसलिए सबसे पहले अपने अंदर यह भावना पैदा करना है कि हम से बहुत बड़ी कोताही हो रही है, फ़िर हल्के से परिश्रम की ज़रूरत है, नमाज़े फ़जर की अदायेगी आसान हो जायेगी.

नमाज़े फज़र के लिए जगने के सहायक कामः हम में से अधिकांश लोगों की तमन्ना होती है कि चार नमाज़ो की तरह सुबह की नमाज़ भी भलिभांती अदा कर सके, और जब यह इच्छा पूरी नहीं होती तो सुबह में उन्हें बड़ा अफ़सोस होता है, तो फिर हम क्या करें कि हमारे लिए जमाअत से नमाज़ की अदायेगी आसान हो जाए… ? सोते समय मस्नून अज़कार पढ़ कर सोयें, नमाज़े फ़जर के लिए जागने का दृढ़ संकल्प हो, रात में सवेरे सोने की आदत डालें, जगाने के लिए एलार्म घड़ी का उपयोग करें या किसी साथी को जगाने की ताकीद कर दें, यदि देनिक जीवन में किसी प्रकार का कोई पाप हो रहा है तो उस से सर्वप्रथम मूक्ति प्राप्त कर लें।

नमाज़े फजर के लिये जागने के व्यावहारिक तरीक़ेः

आम तौर पर नमाज़े फजर की अदायेगी के लिए जो तरीक़े बताए जाते हैं लोगों के सोने जागने के समय में भिन्नता होने की वजह से सारे लोग इस योग्य नहीं होते कि उन्हें अपना कर नमाज़े फजर की सरलतापूर्वक अदायेगी कर सकें, जिसके कारण इच्छा के बावजूद उनकी जमाअत से नमाज़े फजर छूटती रहती है, पिछले कल मैं इंटरनेट पर सर्चिंग के दौरान एक लिंक तक पहुंचा कि “नमाज़े फजर के लिये जागने का व्यावहारिक अनुभव”. विषय बहुत पसंद आया, डाउनलोड किया और एक ही बैठक में पूरी पुस्तक पढ़ गया, यह पुस्तक वास्तव में शैख मुरीद अल-कुल्लाब के भाषण से इबारत थी जिसे पुस्तक की शक्ल में प्रकाशित किया गया था, 39 पृष्ठों इस सम्मलित यह किताब मात्र दो बिन्दुओं को शामिल है, जिसे व्यावहारिक रूप में बयान किया गया है, जो लोग नमाज़े फजर की अदायेगी नहीं कर पाते उनके लिए व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक तरीके बयान किये गये हैं। यह पुस्तक बहुत उपयोगी है. उक्त पुस्तक के दो बिंदु हम नीचे बयान कर रहे हैं ताकि उन्हें सामने रख कर हम स्वयं को नमाज़े फजर का पाबंद बना सकें।

सबसे पहले शैख मुरीद ने मानसिक रूप में ऐसे भाइयों और बहनों को समझाने की कोशिश की है कि वह कभी यह न सोचें कि समय पर नमाज़े फजर को अदा करना मेरी ताकत से बाहर है, बल्कि उनको चाहिये कि सौ प्रतिशत विश्वास रखें कि समय पर नमाज़े फजर ज़रूर अदा करेंगे.

इसके बाद आइये उनके बयान किये हुए दो बिंदुओं का वर्णन करते हैं:

पहला बिंदु: अपना लक्ष्य बनाएं “हम सुबह की नमाज़ मस्जिद में जमाअत से अवश्य अदा करेंगे” इस लक्ष्य को कागज और कलम लेकर 14 दिन तक लगातार 21 बार लिखें या 21दिन तक चौदह बार लिखें. हर बार लिखते समय संदेश पर चिंतन मनन करें कि क्या आप लिख रहे हैं,

दूसरा बिंदु: एलार्म घड़ी के बजाय ब्यालोजी घड़ी का उपयोग करें: एलार्म घड़ी का आपने कई बार परीक्षण किया है, फिर भी समय पर जग न सके हैं कि आवाज सुनते ही घड़ी बंद कर दी है और फिर नींद की गोद में चले गए हैं, इसलिए एलार्म घड़ी के बजाय ब्यालोजी घड़ी जो आपकी आंतरिक घड़ी है उसका उपयोग करें जिसका तरीका यह है कि सबसे पहले यह विचार करें कि आप घड़ी की सुई गिन रहे हैं और एक एक सिकंड की गणना कर रहे हैं. इसके बाद शान्ति के साथ एकांत में बैठ जायें और सोचें कि कल सुबह नमाज़े फजर से पहले जागना है, अल्लाह का नाम लेना है, वुज़ू कर के तैयार होना है, मस्जिद जाकर जमाअत से नमाज़ पढ़नी है, नमाज़ के बाद कुरआन का पठन करना है, सुबह के अज़कार पढ़ना है,   फिर यह करना है वह करना है …. अपनी सोच में बैठे इसका स्वयं दृश्य से पूर्वालोकन करें, इस पर ध्यान  दें मानो कान लगा कर सुन रहे हों।

हमें उम्मीद है कि अगर आप नमाज़े फजर का समय पर प्रतिबंध नहीं कर पा रहे हैं तो निश्चित रूप में इस विषय से लाभ उठायेंगे। अल्लाह हम सबको नमाज़े फजर की अदायेगी की तौफ़ीक़ प्रदान करे. आमीन

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