रोज़ा का महत्व और उसकी श्रेष्ठता

 razaरमज़ान का महीना इस्लामी कलेंडर के अनुसार नवाँ महीना है। यह महीना दया, क्षमा, नरक से मुक्ति तथा पारस्परिक सहानु भूति का महीना है। इस में स्वर्ग के द्वार खोल दिये जाते हैं, नरक के द्वार बन्द कर दिए जाते हैं और बदमाश जिनों और शैतानों को बैड़ियों में जकड़ दिया जाता है। इस प्रकार इंसान की आध्यात्मिक प्रगति के रास्ते से बहुत बड़ी रुकावट दूर हो जाती है और उस के लिए नेकियों के काम बहूत आसान हो जाते हैं।

इस महीने में नेकियों का प्रत्युपकार भी बढ़ा दिया जाता है, इसी महीने में कुरआन जैसे पवित्र ग्रन्थ का अवतरण हुआ जो सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शक है। इसी महीने में शबेक़द्र होती है जो हज़ार महीनों अर्थात् 83 र्वष 4 महीना से ऊत्तम है। सारांश यह कि यह महीना अति उत्तम और श्रेष्ठ महीना है जिस में हर ओर नेकियों का दौर दौरा हौता है, मानो यह नेकियों का वसंत ऋत  है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः

إذا كان أول ليلة في شهر رمضان صُفِّدت الشياطين ومَرَدَة الجن ، وغلقت أبواب النار فلم يُفتح منها باب ، وفتحت أبواب الجنة فلم يغلق منها باب   وينادي منادٍ : يا باغي الخير أقبل، ويا باغي الشر أقصر . ولله عُتقاء من النار وذلك كل ليلة  . رواه الترمذي وابن ماجه وابن خزيمة وحسنه الألباني في صحيح الجامع 759

“जब रमज़ान की प्रथम रात होती है तो बदमाश जिनों और शैतानों को जकड़ दिया जाता है,स्वर्ग के प्रत्येक द्वार खोल दिए जाते हैं फ़िर कोई दरवाजा बन्द नहीं किया जाता और नरक के प्रत्येक द्वार बन्द कर दिए जाते हैं फ़िर कोई दरवाज़ा खोला नहीं जाता, और घोषणा करने वाला घोषणा करता है “हे भलाई के चाहने वाले, ज़रा आगे बढ़ और हे बुराई के चाहने वाले अब तो बस कर” और अल्लाह तआला लोंगों को नरक से मुक्ति देता है, यह क्रम हर रात चलता रहता है।” (तिर्मिज़ी, इब्ने-माजा, इब्ने-ख़ुज़ैमा, अल्लामा अलबानी ने सहीहुल-जामिअ 759 में इसे हसन कहा है।)

बड़े सौभाग्यशाली हैं वह लोग जो रमज़ान के इस शुभ अवसर से लाभ उठाते हैं और बड़े दुर्भागी हैं वह लोग जो इस महीने मे भीं बुराइयों में ग्रस्त रहते हैं। रमज़ान के इस महीने में हर एक मुस्लिम पर रोज़ा रखना अनिवार्य किया गया है जो इस्लाम के पाँच स्तम्भों में से चौथा स्तम्भ है, अल्लाह का आदेश है:

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ﴿البقرة 183﴾

“ऐ इमान वालो! तुम्हारे लिए रोज़े अनिवार्य कर दिए गए, जिस प्रकार तुम से पहले नबियों के अनुयाइयों के लिए अनिवार्य किए गए थे, इस से आशा है कि तुम में परहेज़गारी (इशपरायणता) का गुण पैदा होगा।” (सुरह अल-बक़र-183)

एक दूसरे स्थान पर अल्लाह ने फ़रमायाः

 فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ ۖ ﴿البقرة 185﴾

“अतः तुम में जो कोई इस महीने में मौजूद हो उसे चाहिए कि उस के रोज़े रखे ।” (सूरः अल-बक़रा 185)    

रोज़ा की परिभाषा

मात्र अल्लाह की उपासना के इरादे से भोर समय से सुरज डूबने तक खाने पीने तथा पत्नी के साथ सहवास करने से रुक जाना।

रोज़ा कब अनिवार्य हुआ ?

रोज़ा इस्लाम के पाँच स्तम्भों में से एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है जो हिजरत के दूसरे वर्ष फर्ज़ हुआ, इस प्रकार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपने पूरे जीवन में 9 रमज़ान के रोज़े रखने का अवसर मिला।

रोज़ा का महत्व

रोज़ा बहुत महत्व-पूर्ण इबादत है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

من صام رمضان إيمانا واحتسابا ، غُفر له ما تقدم من ذنبه ( متفق عليه)

” जिसने ईमान और सवाब की नीयत से रोज़ा रखा उसके प्रत्येक पिछले गुनाह क्षमा कर दिए जायेंगे।”(बुख़ारी,मुस्लिम)

एक दूसरी जगह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि अल्लाह तआला ने फरमाया:

 كل عمل ابن آدم له إلا الصيام فإنه لي وأنا أجزي به والصيام جنة، فإذا كان يوم صوم أحدكم فلا يرفث يومئذ ولا يصخب – الخصام والصياح -، فإن سابَّه أحدٌ أو قاتله، فليقل: إني امرؤ صائم، والذي نفس محمدٍ بيده لخلوف فم الصائم – الرائحة – أطيب عند الله يوم القيامة من ريح المسك، وللصائم فرحتان يفرحهما، إذا أفطر فرح بفطره، وإذا لقي ربه فرح بصومه رواه البخاري ومسلم واللفظ له

“आदम की सन्तान को उसकी नेकी के बदले में दस गुना से लेकर सात सौ गुना तक पुण्य मिलता है, जबकि रोज़ा इस से पृथक है, इसलिए कि रोज़ा केवल मेरे लिए है और मैं ही उसका बदला दूंगा, बन्दा ने अपनी ख़ाहिश, सम्भोग और खान-पान को केवल मेरे कारण छोड़ दिया, और रोज़ेदार की ख़ूशी के दो अवसर हैं, एक तो इफ्तार के समय, दूसरे अल्लाह से मुलाक़ात के समय, और रोज़ेदार के मुँह की बू अल्लाह को सुगन्ध से अधिक प्रिय है।” (बुख़ारी, मुस्लिम)

रोज़ा की एक फ़जीलत यह भी है कि अल्लाह ने स्वर्ग में एक द्वार तैयार कर रखा है जिस से केवल रोज़ेदार ही प्रवेश करेंगे उसका नाम (रय्यान) है। हदीस में है:

 إنَّ في الجنة بابًا يقال له: الرَّيَّان، يدخل منه الصائمون يوم القيامة، لا يدخل منه أحدٌ غيرهم   متفق عليه

“जन्नत में आठ द्वार हैं उन में से एक का नाम रय्यान है, उस से केवल रोज़ेदार लोग प्रवेश करेंगे, उनके अतिरिक्त कोई दूसरा प्रवेश न कर सकेगा।” (बुख़ारी, मुस्लिम)

रोज़ा क़यामत के दिन रोज़ा रखने वाले के पक्ष में सिफारिश करेगा और उसकी सिफ़ारिश स्वीकार की जाएगी. जैसा कि मुस्नद अहमद और मुस्तदरक हाकिम की रिवायत है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

 الصيام والقرآن يشفعان للعبد يوم القيامة، يقول الصيام: أي رب منعته الطعام والشهوات بالنهار فشفعني فيه، ويقول القرآن: منعته النوم بالليل فشفعني فيه، قال: فيُشَفَّعان رواه الإمام أحمد في المسند  والحاكم في المستدرك

“रोज़ा और कुरआन दोनों बन्दों के पक्ष में क़्यामत के दिन सिफ़ारिश करेगा. रोज़ा कहेगा: हे अल्लाह! मैंने उसे खान-पान और सम्भोग से रोक दिया था, इसलिए तू इसके पक्ष में मेरी सिफारिश स्वीकार कर ले. और कुरआन कहेगा: मैं ने उसे रात को सोने से रोक दिया था, इसलिए तू इसके पक्ष में मेरी सिफारिश स्वीकार कर ले. आपने कहाः तो इन दोनों की सिफारिशें स्वीकार कर ली जाएंगी. “

उसी प्रकार रोज़ा सब से अत्तम इबादत है, सुनन निसाई और इब्न ख़ुज़ैमा में  हज़रत अबू उमामः रज़ि. वर्णन करते हैं कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित हुआ और अनुरोध किया कि ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे किसी ऐसे काम का आदेश दीजिए जो मुझे स्वर्ग में प्रवेश कर सके. तो रसूल ल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

عليك بالصوم فإنه لا عدل له

“तुम रोज़ा रखो क्योंकि उसके बराबर कोई काम नहीं।.”

  रोज़ा न रखने वालों का परिणाम

रमजान  के महीने की इतनी सारी फज़ीलत के बावजूद अगर कोई आदमी रोज़ा नहीं रखता है तो वह बहुत बड़ा पाप कर रहा है, जान बूझ कर रमज़ान का रोज़ा छोड़ना महा-पाप हैः

हज़रत अबू उमामा रज़ि0 कहते हैं कि मैंने नबी अल्लाह के सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना –

मै सोया हुआ था कि स्वप्न में मेरे निकट दो फरिश्ते आए जिन्हों ने मेरे बाहों को पकड़ कर मुझे उठाया और एक कठिन चढ़ाई वाले पहाड़ तक ले जाकर मुझे उस पर चढ़ने के लिए कहा।

मैं ने कहा  :   मैं उस पर चढ़ नहीं सकता।

उन्होंने कहा : आप प्रयास करें हम आप की सहायता करेंगे। मैं ने उस पर चढ़ना आरम्भ किया,

यहाँ तक कि पहाड़ की चोटी तक पहुँच गया तो मैंने वहाँ चींख़ने और चिल्लाने की आवाज़ें सुनीं।

मैंने पुछा : यह चींख़ और पुकार कैसी है ?

उत्तर दिया : यह नरकवासियों की चींख़ और पुकार है, फिर मुझे उससे आगे ले जाया गया जहाँ मैंने कुछ लोगों को उलटा लटके हुए देखा जिनकी बाछें चीर दी गई थीं और उन से खून बह रहा था। मैंने पुछा: यह कौन लोग हैं ? उत्तर मिला : यह वह लोग हैं जो रोज़ों के दिनों में खाया पिया करते थे। (सहीह अत्तरग़ीब वत्तरहीब)

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