रोज़े की हक़ीक़त और उसका महत्व

ramadan-kareem

रमज़ान का महीना वह पवित्र तथा बर्कत वाला महीना है जिस में अल्लाह तआला ने भलाई और लोगों के लिए कल्याण का काम करने वालों के लिए पापों से मुक्ति ही रखा है। यह वह महीना है जिस में जन्नत ( स्वर्ग) के द्वार खोल दिये जाते हैं तथा जहन्नम (नरक) के द्वार बन्द कर दिये जाते है, सर्कश जिन और शैतान को जकड़ दिया जाता है और अल्लाह की ओर से पुकारने वाला पुकारता है , हे ! नेकियों के काम करने वालों , पुण्य के कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लो, और हे ! पापों के काम करने वालों , अब तो इस पवित्र महीने में पापों से रुक जा, और अल्लाह तआला नेकी करने वालों को प्रति रात जहन्नम ( नरक ) से मुक्ति देता है। (सहीह उल जामिअ , अलबानी)

रमज़ान के महीने की सब से महत्वपुर्ण इबादत रोज़ा (ब्रत) है जिसे अरबी में  सियाम कहते हैं जिस का अर्थ होता है,” रुकना ” अर्थातः  सुबह सादिक से लेकर सूर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना, रोज़ा कहलाता है। रमज़ान के महीने का रोज़ा हर मुस्लिम , बालिग , बुद्धिमान पुरुष और स्री पर अनिवार्य है, रोज़ा इस्लाम के पांच स्तम्भों में से एक स्तम्भ है। जिसे हर मुस्लिम को हृदय , जुबान और कर्म के अनुसार मानना ज़रुरी है। रोज़े को उसकी वास्तविक हालत से रखने वालों को बहुत ज़्यादा पुण्य प्राप्त होता है जिस पुण्य की असल मात्रा अल्लाह तआला ही जानता है, प्रिय रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ” मनुष्य के हर कर्म पर, उसे दस नेकी से लेकर सात सौ नेकी दी जाती है सिवाए रोज़े के, अल्लाह तआला फरमाता है कि रोज़ा मेरे लिए है और रोज़ेदार को रोज़े का बदला मैं दूंगा, उस ने अपनी शारीरिक इच्छा ( संभोग) और खाना – पीना मेरे कारण त्याग दिया, ( इस लिए इसका बदला मैं ही दूंगा) रोज़ेदार को दो खुशी प्राप्त होती है, एक रोज़ा खोलते समय और दुसरी अपने रब से मिलने के समय, और रोज़ेदार के मुंह की सुगंध अल्लाह के पास मुश्क (कस्तुरी) की सुगंध से ज़्यादा खुश्बूदार है।     ( बुखारी तथा मुस्लिम)

इसी तरह जन्नत ( स्वर्ग ) में एक द्वार एसा है जिस से केवल रोज़ेदार ही प्रवेश करेंगे, रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है, ” जन्नत ( स्वर्ग ) के द्वारों की संख्याँ आठ हैं, उन में से एक द्वार का नाम रय्यान है जिस से केवल रोज़ेदार ही प्रवेश करेंगे  “

रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपने साथियों को शुभ खबर देते हुए फरमाया ” तुम्हारे पास रमज़ान का महीना आया है ,यह बरकत वाला महीना है,अल्लाह तआला तुम्हें इस में ढ़ाप लेगा, तो रहमतें उतारता है, पापों को मिटाता है, और दुआ स्वीकार करता है और इस महीने में तुम लोगों का आपस में इबादतों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने को देखता है, तो फरिश्तों के पास तुम्हारे बारे में बयान करता है, तो तुम अल्लाह को अच्छे कार्ये करके दिखाओ, निःसन्देह बदबख्त वह है जो इस महिने की रहमतों से वंचित रहे.  ” ( अल – तबरानी)

रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया ” जो व्यक्ति रमज़ान महीने का रोज़ा अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रखेगा , उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे ”  ( बुखारी तथा मुस्लिम)

रोज़ा और क़ुरआन करीम  क़ियामत के दिन अल्लाह तआला से बिन्ती करेगा के रोज़ा रखने वाले , क़ुरआन पढ़ने वाले को क्षमा किया जाए, तो अल्लाह तआला उसकी सिफारिश स्वीकार करेगा, जैसा कि रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है ” रोज़ा और कुरआन करीम  क़ियामत के दिन अल्लाह तआला से बिन्ती करेगा कि ऐ रब, मैं उसे दिन में खाने – पीने और संभोग से रोके रखा तो मेरी सिफारिश उस के बारे में स्वीकार कर, क़ुरआन कहेगा, ऐ रब, मैं उसे रातों में सोने से रोके रखा तो मेरी सिफारिश उस के बारे में स्वीकार कर, तो उन दोनो की सिफारिश स्वीकार की जाएगी ” (मुस्नद अहमद और सही तरग़ीब वत्तरहीब)

फजर से पहले से लेकर सूर्य के डुबने तक खाने – पीने तथा संभोग से रुके रहना ही रोज़ा की वास्तविक्ता नहीं बल्कि रोज़ा की असल हक़ीक़त यह कि मानव हर तरह की बुराई , झूट, झगड़ा लड़ाइ, गाली गुलूच, तथा गलत व्यवहार और अवैध चीज़ो से अपने आप को रोके रखे ताकि रोज़े के पुण्य उसे प्राप्त हो, जैसा कि रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है ” जो व्यक्ति अवैध काम और झूट और झूटी गवाही तथा जहालत से दूर न रहे तो अल्लाह को कोई अवशक्ता नहीं कि वह भूका, पीयासा रहे ”     ( बुखारी )

यदि कोई व्यक्ति रोज़ेदार व्यक्ति से लड़ाइ झगड़ा करने की कोशिश करे तो वह  लड़ाइ, झगड़ा न करे बल्कि स्थिर कहे कि मैं रोज़े से हूँ, जैसा कि रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है ” जब तुम में कोई रोज़े की हालत में हो तो आपत्तिजनक बात न करे, जोर से न चीखे चिल्लाए, यदि कोइ उसे बुरा भला कहे या गाली गुलूच करे तो वह उत्तर दे, मैं रोज़े से हूँ। ”  ( बुखारी तथा मुस्लिम)

गोया कि रमज़ान महीने में अल्लाह तआला की ओर से दी जाने वाली माफी, अच्छे कामों से प्राप्त होनी वाली नेकियाँ उसी समय हम हासिल कर सकते हैं जब हम रोज़े की असल हक़कीत के साथ रोज़े रखेंगे और एक महीने की प्रयास दस महीने की कोशिश के बराबर होगी।

अल्लाह हमें और आप को इस महीने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की पुजा तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे ताकि हमारी झोली में पुण्य ही पुण्य हो,  आमीन

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