आदर्श जीवन ( मुहम्मद सल्ल0)

आप इतिहास के एक मात्र व्यक्ति हैं जो अन्तिम सीमा तक सफल रहे धार्मीक स्तर पर भी और सांसारिक स्तर पर भी”

यह टिप्पणी एmohammadक इसाई वैज्ञानिक डा0 माइकल एच हार्ट की है जिन्हों ने अपनी पुस्तक The 100 (एक सौ) में मानव इतिहास पर प्रभाव डालने वाले संसार के सौ अत्यंत महान विभूतियों का वर्णन करते हुए प्रथम स्थान पर जिस पहापुरूष को रखा है उन्हीं के सम्बन्ध में यह टिप्पणी लिखी है। अर्थात संसार के क्रान्तिकारी व्यक्तियों की छानबीन के बाद सौ व्यक्तियों में प्रथम स्थान ऐसे महापुरुष को दिया है जिनका वह अनुयाई नहीं। जानते हैं वह कौन महा-पुरुष हैं…….?

उनका नाम मुहम्मद हैः

मुहम्मद सल्ल0 वह इनसान हैं जिनके समान वास्तव में संसार में न कोई मनुष्य पैदा हुआ और न हो सकता है जबहि तो एक वैज्ञानिक लेकख जब हर प्रकार के पक्षपात से अलग होकर क्रान्तिकारी व्यक्तियों की खोज में निकलता है तो उसे पहले नम्बर पर यही मनुष्य देखाई देते हैं। ऐसा क्यों ? आख़िर क्यों मुहम्मद सल्ल0 को उन्हों ने संसार में पैदा होने वाले प्रत्येक व्यक्तियों में प्रथम स्थान पर रखा हालाँकि वह इसाई थे ईसा अलै0 अथवा किसी अन्य इसाई विद्धानों को पहला स्थान दे सकते थे…..?
वास्तविकता यह है कि आपने जो संदेश दिया था वह मानव संदेश था, उसका सम्बन्ध किसी जाति विशेष से नहीं था, वह अन्तिम क्षण तक मानव कल्याण की बात करते रहे और इसी स्थिति में संसार त्याग गए और इसी संदेश के आधार पर मात्र 23 वर्ष की अवधि में पूरे अरब को बदल कर रख दिया, प्रोफेसर रामाकृष्णा राव के शब्दों में –
{आप के द्वारा एक ऐसे नए राज्य की स्थापना हुई जो मराकश से ले कर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों – एशिया, अफ्रीक़ा, और यूरोप- के विचार और जीवन पर अपना असर डाला}
( पैग़म्बर मुहम्मद , प्रोफेसर रामाकृष्णा राव पृष्ठ 3)

आइए ज़रा इस महान व्यक्ति की जीवनी पर एक दृष्टि डाल कर देखते हैं कि ऐसा कैसे हुआ?
मुहम्मद सल्ल0 20 अप्रैल 571 ई0 में अरब के मक्का शहर के एक प्रतिष्ठित वेश में पैदा हुए । जन्म के पूर्व ही आपके पिता का देहांत हो गया। छः वर्ष के हुए तो दादा का साया भी सर से उठ गया जिसके कारण कुछ भी पढ़ लिख न सके। आरम्भ ही से गम्भीर, सदाचारी, एकांत प्रिय तथा पवित्र एवं शुद्ध आचरण के थे। आपका नाम यधपि मुहम्मद था परन्तु इन्हीं गुणों के कारण लोग आपको «सत्यवादी»तथा «अमानतदार» की अपाधि से पुकारते थे। आपकी जीवनी बाल्यावस्था हो कि किशोरावस्था हर प्रकार के दाग़ से शुद्ध एंव उज्जवल थी।
हालांकि वह ऐसे समाज में पैदा हुए थे जहां हर प्रकार की बुराइयाँ हो रही थीं, शराब, जुवा, हत्या, लूट-पाथ तात्पर्य यह कि वह कौन सी बुराई थी जो उनमें न पाई जा रही हो? लेकिन उन सब के बीच सर्वथा शुद्ध तथा उज्जवल रहे।

जब आपकी आयु चालीस वर्ष की हो गई तो ईश्वर ने मानव-मार्गदर्शन हेतु आपको संदेष्टा बनाया,आपके पास आकाशीय दूत जिब्रील अलै0 आए और उन्हों ने ईश्वर की वाणी क़ुरआन पढ़ कर आपको सुनाया। यहीं से क़ुरआन के अवतरण का आरम्भ हुआ, जो इश्वर की वाणी है, मानव-रचना नहीं। इसी के साथ आपको ईश्दुतत्व के पद पर भी आसीन कर दिया गया। फिर आपको आदेश दिया गया कि मानव का मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हो जाएं। अतः आपने लोगों को बुराई से रोका। जुआ, शराब, व्यभिचार, और बेहयाई से मना किया। उच्च आचरण और नैतिकता की शिक्षा दी, एक ईश्वर का संदेश देते हुआ कहा कि «हे लोगो! एक ईश्वर की पूजा करो, सफल हो जा ओगे» सज्जन लोगों ने आपका अनुसरण किया और एक ईश्वर के नियमानुसार जीवन बिताने लगे। परन्तु जाति वाले जो विभिन्न बुराइयों में ग्रस्त थे, स्वयं अपने ही जैसे लोगों की पूजा करते थे और ईश्वर को भूल चुके थे, काबा में तीन सौ साठ मुर्तियाँ रखी थीं। जब आपने उनको बुराइयों से रोका तो सब आपका विरोद्ध करने लगे। आपके पीछे पड़ गए क्योंकि इस से उनके पूर्वजों के तरीक़े का खण्डन हो रहा था। पर सत्य इनसान की धरोहर हीता है उसका सम्बन्ध किसी जाति-विशेष से नहीं होता। वह जिनके बीच चालीस वर्ष की अवधि बिताई थी और जिन्हों ने उनको सत्यवान और अमानतदार की उपाधि दे रखी थी वही आज आपके शत्रु बन गए थे। आपको गालियाँ दी, पत्थर मारा, रास्ते में काँटे बिछाए, आप पर पर ईमान लाने वालों को एक दिन और दो दिन नहीं बल्कि निरंतर 13 वर्ष तक भयानक यातनायें दी, यहाँ तक कि आपको और आपके अनुयाइयों को जन्म-भूमी से भी निकाला, अपने घर-बार धन-सम्पत्ती को छोड़ कर मदीना चेले गए थे और उन पर आपके शुत्रुओं ने कब्ज़ा कर लिया था लेकिन मदीना पहुँचने के पश्चात भी शत्रुओं ने आपको और आपके साथियों को शान्ति से रहने न दिया। उनकी शत्रुता में कोई कमी न आई। आठ वर्ष तक आपके विरोद्ध लड़ाई ठाने रहे परन्तु आप और आपके अनुयाइयों नें उन सब कष्टों को सहन किया। हालांकि जाति वाले आपको अपना सम्राट बना लेने को तैयार थे, धन के ढ़ेर उनके चरणों में डालने के लिए राज़ी थे शर्त यह थी कि वह लोगों को अपने पूर्जों के तरीक़ा पर चलने के लिए छोड़ दे तथा उनको मार्गदर्शन न करें।
लेकिन जो इनसान अंधे के सामने कुंवा देखे, बच्चे के सामने आग देखे और अंधे को कुंयें में गिरने से न रोके, और बच्चे को आग के पास से हटाने की चेष्टा न करे वह इनसान नहीं। तो फिर मुहम्मद सल्ल0 के सम्बन्ध में यह कैसे कल्पना की जा सकती थी कि आप लोगों को बुराइयों में अग्रसर देखें और उन्हें न रोकें हांलाकि आप जगत-गुरू थे।
फिर 21 वर्ष के बाद एक दिन वह भी आया कि आप के अनुयाइयों की संख्या दस हज़ार तक पहुंच चुकी थी और आप वह जन्म-भूमि (मक्का) जिस से आपको निकाल दिया गया था उस पर विजय पा चुके थे। प्रत्येक विरोद्धी और शुत्रु आपके कबज़ा में थे, यदि आप चाहते तो हर एक से एक एक कर के बदला ले सकते थे और 21 वर्ष तक जो उन्हें चैन की साँस तक लेने नहीं दिया था सब्हों का सफाया कर सकते थे लेकिन आपको तो सम्पूर्ण मानवता के लिए दयालुता बना कर भेजा गया था। ऐसा आदेश देते तो कैसे ? उनका उद्देश्य तो पूरे जगत का कल्याण था इस लिए आपने लोगों की क्षमा का एलाम कर दिया। इस सार्वजनिक एलान का उन शत्रुओं पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि मक्का विजय के समय आपके अनुयाइयों की संख्या मात्र दस हज़ार थी जब कि दो वर्ष के पश्चात अन्तिम हज के अवसर पर आपके अनुयाइयों की संख्या डेढ़ लाख हो गई। इस का कारण क्या था गाँधी जी के शब्दों में –
« मुझे पहले से भी ज्यादा विश्वास हो गया है कि यह तलवार की शक्ति न थी जिसने इस्लाम के लिए विश्व क्षेत्र में विजय प्राप्त की, बल्कि यह इस्लाम के पैग़म्बर का अत्यंत सादा जीवन, आपकी निःसवार्थता, प्रतिज्ञापालन और निर्भयता थी»।
मित्रो ! रज़ा ग़ौर करो क्या इतिहास में कोई ऐसा इनसान पैदा हुआ जिसने मानव कल्याण के लिए अपनी पूरी जीवनी बिता दी और लोग 21 वर्ष तक उनका विरोद्ध करते रहे फिर एक दिन वह भी आया कि उन्हीं विरोद्धियों ने उनके संदेश को अपना कर पूरी दुनिया में फैल गए और लोगों ने उनके आचरण से प्रभावित हो कर इस संदेश को गले लगा लिया……॥  तब ही तो हम उन्हें “जगत गुरु” कहते हैं।

महान चमत्कार के होते हुए एक मानव-मात्र

 मानव पथभ्रष्टता का मूल कारण महापुरुषों तथा संदेष्टाओं की चमत्कारियाँ हैं। ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु हर युग एवं हर देश में जब संदेष्टाओं को भेजा, तो उनकी सत्यता को सिद्ध करने के लिए उनको कुछ चमत्कारियां भी दी।
परन्तु लोगों ने इन चमत्कारियों की वास्तविकता को न समझने के कारण उन्हीं को अवतार, ईश्वर, ईश्वर का बटा आदि मान लिया। यह सब से बड़ा अत्याचार था जो संदेष्टाओं पर हुआ। इसी कारण आज लोग अपने सृ,ष्टिकर्ता, अन्नदाता औऱ पालनकर्ता को भूल कर सब कुछ महापुरुषों को समझ चुके हैं। इन प्रत्येक महापुरुषों में केवल मुहम्मद सल्ल0 एक ऐसे महापुरुष हैं जिनको आज तक एक मानव-मात्र माना जाता है। जबकि हम देखते हैं कि मुहम्मद सल्ल0 की चमत्कारियाँ बड़ी बड़ी थीं। उदाहरण-स्वरूप
(1) मक्का वालों ने आपके संदेष्टा होने का प्रमाण माँगा तोआपके एक संकेत पर चाँद के दो टुकड़े हो गए जिसका समर्थन आधुनिक विज्ञान ने भी किया है। इस चमत्कार का समर्थन चाँद पर जाने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक निल आर्म्-स् ट्रंग ने भी किया बल्कि इसी कारण उन्होंने इस्लाम भी स्वाकार किया जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।
(2) हुदैबिया की सन्धि के अवसर पर अंगुलियों से पानी निकला और 1400 व्यक्तियों ने प्यास बुझाई।
(3) मुहम्मद साहिब का सब से बड़ा चमत्कार दिव्य क़ुरआन है,वह कैसे ? क्यों कि वह न लिखना जानते थे न पढ़ना और न ही उनको किसी गुरू की संगती प्राप्त हुई थी, ऐसा इन्सान क़ुरआन पेश कर रहा है जो स्वयं चुनौती दे रहा है कि
( यदि तुझे क़ुरआन के ईश्वाणी होने में संदेह है तो इसके समान एक सूरः «अध्याय» ही पेश कर दो, यदि तुम सच्चे हो) [सूरः अल-बक़रः23]
परन्तु इतिहास साक्षी है कि वह अरब विद्वान जिनको अपने भाषा सौन्दर्य पर गर्व था, अपनी भाषा के सामने दूसरों का गुंगा समझते थे, उसके समान एक टुकड़ा भी पेश न कर सके। हालांकि उन्हीं के समाज में पलने बढ़ने वाला एक अपढ़ व्यक्ति ऐसी वाणी पेश कर रहा था। जिस से ज्ञात यह होता है कि क़ुरआन मुहम्मद साहिब की वाणी नहीं बल्कि ईश्वर की वाणी है। औऱ आज तक क़ुरआन सारे संसार वालों के लिए चैलेंज बना हुआ है। जी हाँ! क़ुरआन की शैली ही ऐसी है कि उसके समान न कोई बना सका है न बना सकता है। प्रिय भाई ! इन स्पष्ट चमत्कारियों के होते हुए क्या मुहम्मद सल्ल0 का हक़ नहीं था कि उनकी पूजा की जाए ? या वह अपने पूज्य होने का दावा करें ? यदि वह ऐसा दावा करते तो वह संसार जिस ने राम को ईश्वर बना डाला, जिसने कृष्ण जी को गभवान कहने से संकोच न किया, जिसने ईसा अलै0 (जिसस) को ईश्वर का बटा मान लिया। वह ऐसे महान व्यक्ति को ईश्वर मानने से कभी संकोच न करता। लेकिन वह ऐसा कैसे कह सकते थे जबकि वह सत्य संदेश ले कर आए थे। वह तो स्वंय को केवल एक मानव के रूप में प्रकट करते हैं और कहते हैं «मैं एक मानव-मात्र हूं तुम्ही जैसा» आज यदि कोई मुस्लिम मुहम्मद साहिब की पूजा करने लगे तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा।

ऐसे थे …विश्व नायक

विश्व नाइक मुहम्मद सल्ल0 की जीवनी की एक विशेषता यह है कि आपने जो कुछ कहा सर्वप्रथम करके दिखाया, कोई भी व्यक्ति मुहम्मद सल्ल0 की कथनी और करनी में अन्तर नहीं पा सकता।
मुहम्मद सल्ल0 की पत्नी हज़रत आइशा रज़ि0 से किसी ने आपके आचरण के सम्बन्ध में पूछा तो उन्हों ने उत्तर दिया ” आप सल्ल0 का आचरण स्वयं क़ुरआन था ” अर्थात् मुहम्मद सल्ल0 क़ुरआन के चलता फिरता आदर्श थे।

मुहम्मद सल्ल0 ने कभी किसी खाने में ऐब नहीं लगाया, इच्छा होती तो खाते वरना छोड़ देते।
मुहम्मद सल्ल0 मिलने वाले को सब से पहले सलाम करते थे, हर व्यक्ति से हंस कर बात करते, तपाक से हाथ मिलाते और हाथ न छोड़ते जब तक वह स्वयं अपना हाथ न खींच लेता।
 मुहम्मद सल्ल0 निर्धनों को अपने पास बैठाते थे।
मुहम्मद सल्ल० को यह बात अप्रिय थी कि कोई उनको देख कर खड़ा हो, उसी प्रकार अपने सम्बन्ध में अतिशयोक्ति (गुलू) करने से भी रोकते थे और सभा में जहाँ जगह मिलती वहाँ बैठ जाते थे।
मुहम्मद सल्ल० बड़े दानशील थे, बड़े बहादुर थे।
मुहम्मद सल्ल० से कोई चीज़ मांगी गई हो और आपने नहीं कहा हो, कभी ऐसा नहीं हुआ।
मुहम्मद सल्ल० मुर्खों के साथ विनम्रता बरतते और अत्याचारी को क्षमा कर देते थे।
 मुहम्मद सल्ल० बात करने वाले की बात को इतना ध्यान से सुनते कि हर बार करने वाला समझता कि आप के पास सब से अधिक प्रिय वही है।
मुहम्मद सल्ल० से जो कोई भी एकांत में बात करने की इच्छा व्यक्त करता उसकी इच्छा पूरी करते और उसकी बात को खूब ध्यान से सुनते।
मुहम्मद सल्ल० जब किसी चीज़ को अप्रिय समझते तो उसका अनुमान आपके चेहरे से लग जाता था। मुहम्मद सल्ल० ने पत्नी, सेवक अथवा किसी अन्य को कदापि नहीं मारा।आपके सेवक अनस कहते हैं “मैंने 9 वर्ष तक आप सल्ल0 की सेवा की परन्तु याद नहीं कि आपने कभी हमसे कहा हो कि तुमने ऐसा ऐसा क्यों किया।”
मुहम्मद सल्ल० सांसारिक भोग विलास से दूर थे। आप चटाई पर सोते थे। आपका बिस्तर चमड़ेका था जिसमें खुजूर की छाल भर दी गई थी।
मुहम्मद सल्ल० को झूट से अति घृणा थी।
मुहम्मद सल्ल० के निकट प्रिय काम वह होता जिसको निरंतर किया जाए चाहे कम ही क्यों न हो। मुहम्मद सल्ल० को जब किसी प्रकार की प्रसन्नता की बात पहुंचती तो ईश्वर की कृतज्ञता हेतु सज्दे में गिर जाते।
मुहम्मद सल्ल० सोते तो आपके सर के पास दतौन (मिस्वाक) होता था, जब उठते तो सर्वप्रथम दतौन करते थे।
मुहम्मद सल्ल० हर समय अल्लाह का स्मरण करते रहते थे।

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