ज्ञान का प्राप्त करना हर मुसलमान पर अनिवार्य है
हम मुसलमान हैं, हमारा धर्म इस्लाम है, यह हमारे लिए बड़े गर्व की बात है कि अल्लाह तआला ने हमें मुस्लिम बनाया, यदि वह चाहता तो हमें किसी ग़ैर मुस्लिम परिवार में ही रहने देता, हम मूर्तियों के सामने सर टेकते होते, लेकिन हम पर दया फ़रमाया, अपने सम्बन्ध में सही पहचान प्रदान की, वह दीन दिया जो दुनिया में सुख और आख़िरत में मुक्ति का ज़ामिन है….याद रखें! इस दीन के प्रति हमारी पहली जिम्मेदारी यह बनती है कि हम इसे सीखें, इसे जानें….क्यों?…. इसलिए कि दीन का सीखना हर मुसलमान की जिम्मेदारी है. हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदेश है:
طَلَبُ العِلْمِ فَرِيْضَةٌ عَلَىْ كُلِّ مُسْلِمٍ رواه ابن ماجه ( 224 ) و صححه الألباني
“इल्म का सीखना हर मुसलमान पर अनिवार्य है”. इसका अर्थ दीन का आवश्यक और बुनियादी ज्ञान है।
ज्ञान क्या है? अज्ञानता का विपरीत शब्द है, और किसी जाहिल को यह पसनद नहीं होता कि उसे जाहिल कहा जाए, इसी से आप इल्म के महत्व का अनुमान लगा सकते हैं. अल्लाह का एक गुण “अल-अलीम” है, अर्थात् बहुत अधिक जानने वाला, आदम अलैहिस्सलाम को फरिश्तों पर प्रधानता इल्म के आधार पर दी गई थी, कुरआन में सबसे पहली आयत जो अवतरित हुई उसकी शुरुआत إقرأ “इक़रा” से हो रही है. इस में पढ़ने का आदेश दिया जा रहा है और विदित है कि “पढ़ना” ज्ञान की कुंजी है।
क़ुरआन में वह आयतें जो बुद्धि, ज्ञान तथा सोचने और विचार करने से सम्बन्धित हैं अनुमानतः एक हज़ार की संख्या तक पहुंचती हैं। और विभिन्न स्थानों पर अल्लाह ने ज्ञान के महत्व को स्पष्ट किया है, जैसा कि अल्लाह ने फ़रमायाः
قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الَّذِينَ يَعْلَمُونَ وَالَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ ۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُولُو الْأَلْبَابِ سورة الزمر 9
कहो, “क्या वे लोग जो जानते है और वे लोग जो नहीं जानते दोनों समान होंगे? शिक्षा तो बुद्धि और समझ वाले ही ग्रहण करते है।” (सूरः अल-ज़ुमर 9)
दूसरे स्थान पर अल्लाह ने ज्ञान वालों का महत्व बयान करते हुए फ़रमायाः
يَرْفَعِ اللَّـهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنكُمْ وَالَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ دَرَجَات سورة المجادلة 11
तुममें से जो लोग ईमान लाए है और उन्हें ज्ञान प्रदान किया गया है, अल्लाह उनके दरजों को उच्चता प्रदान करेगा। (सूरः अल-मुजादलः 11)
यह ज्ञान है जिसे प्राप्त करने के लिए एव व्यक्ति जब निकलता है तो उसके लिए स्वर्ग का पथ सरल कर दिया जाता है, फ़रिश्ते उसके रास्ते में अपना पर बिछाते हैं, तालिबे इल्म के लिए धरती और आकाश की प्रत्येक वस्तुयें यहां तक कि मछलियाँ भी समुद्र के पेट में दुआ करती हैं. आलिम को आबीद पर ऐसी प्रथानता प्राप्त है जैसे 14वीं रात के चाँद को सितारों पर प्रधानता हासिल है। ( तिर्मज़ी 2682 )
ज़रा विचार करें कि इस से बढ़ कर सौभग्य और क्या होगा कि हमारे लिए फ़रिश्ते जो नूरानी प्राणी हैं अपना पर बिछायें और समुद्र की मछलियां भी दुआ करें।
इल्म के इसी महत्व के कारण अल्लाह तआला ने अपने नबी को आदेश दिया कि इस में वृद्धि की दुआ करते रहें:
وَقُل رَّبِّ زِدْنِي عِلْمًا سورة طه 114
और कहो, “मेरे रब, मुझे ज्ञान में अभिवृद्धि प्रदान कर।” (सूरः ताहा 114)
इस्लाम अमल से पहले ज्ञान प्राप्त करने का आदेश देता है, इमाम बुखारी रहि. अपनी सहीह में बाब बांधते हैः
باب العلم قبل القول والعمل
कथनी और करनी से पूर्व ज्ञान प्राप्त करने का बाब।
और इस संदर्भ में यह आयत प्रस्तुत करते हैं:
فَاعْلَمْ أَنَّهُ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا اللَّـهُ سورة محمد 19
“अतः जान रखों कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं।” (सूरः मुहम्मद 19)
इस आयत में अल्लाह ने इस्लाम में प्रवेश करने से पहले कलिमा तय्येबा को जानने का आदेश दिया है, पता यह चला कि एक मुसलमान जाहिल नहीं हो सकता. पहले उसे लाइलाह इल्लल्लाह शब्द को जानने की जरूरत पड़ती है, फिर वह मुसलमान बनता है।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक युवक को देखा जो काम के समय इबादत कर रहा था तो आपने उस से पूछाः तेरे लिए खान-पान की व्यवस्था कौन करता है? उसने कहाः मेरा भाई, आपने फ़रमायाः तेरा भाई तुझ से अधिक इबादत करने वाला है। जब कि एक दूसरी हदीस में आता है कि अल्लाह के रसूल के ज़माने में दो भाई थे जिन में से एक कमाता था और दूसरा इल्म सीखने में लगा रहता था, एक दिन कमाने वाले ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित हो कर अपने भाई के सम्बन्ध में शिकायत की तो आपने फ़रमायाः لعلك ترزق به शायद तुझे उसी के कारण जीविका दी जा रही है।
ٍएक व्यक्ति सम्पत्ति एकत्र करने में दिन रात एक कर देता है और आने के बाद उसकी सुरक्षा और निगरानी में अपना समय लगाता है हालांकि वह खर्च करने से समाप्त भी होती है जब कि इल्म वह सम्पत्ति है जो इल्म वाले की सुरक्षा और निगरानी करती है और कभी समाप्त नहीं होती बल्कि जितना ख़र्च किया जाये उतना ही इसमें बढ़ोतरी होती है, इमाम अली रज़ि. ने फ़रमायाः
يا بني العلم خير من المال، لأن العلم يحرسك، وأنت تحرس المال، والمال تنقصه النفقة، والعلم يزكو على الإنفاق
“ऐ बेटे ! ज्ञान माल से उत्तम है, क्योंकि ज्ञान तेरी निगरानी करता है और तुम माल की निगरानी करते हो, माल खर्ज करने से कम होता है जब कि ज्ञान खर्ज करने से बढ़ता है।”
इल्म सीखने का यही महत्व था कि इस्लामी विद्वानों ने इल्म सीखने और इसके प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी कोशिशें सर्फ़ कर दीं, इस्लामी विद्वानों ने जिस प्रकार इस रास्ते में परिश्रम किया दुनिया के इतिहास में इसका कोई उदाहरण नहीं मिलता। आज इस्लामिक पुस्तकालयों में इस्लामी किताबों का जो भंडार पाया जाता है जिन्हें देख कर इंसान दंग रह जाता है, यह उन्हीं विद्वानो के प्रयास का परिणाम है.
दीन सीखने के रास्ते में बहानेः
कुछ लोग दीन सीखने के रास्ते में विभिन्न प्रकार के बहाने बनाते हैं, उमर ज़्यादा होने का बहाना, समय न मिलने का बहाना, काम का बहाना आदि…हांलाकि इन बहानों की कोई हैसियत नहीं है, दीन सीखने में लज्जा की क्या बात है, चाहे हमारी उम्र कितनी भी हो गई हो, एक व्यक्ति साठ या सत्तर वर्ष का क्यों न हो चुका हो उसके लिए ज्ञान का द्वार खुला हुआ है और इल्म प्राप्त करने के माध्यम अति सरल हैं, आज इल्म के रास्ते में कोई रुकालट नहीं रही, हम जानते हैं कि कितने सहाबा जब इस्लाम लाये तो उनमें कुछ की आयु साठ सत्तर वर्ष की थी फ़िर भी उन्हों ने इल्म सीखा, और इसके लिए समय निकाला, उसी प्रकार हर युग में जिन लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया उन्हों ने इस्लाम को सीखा। कोई जरूरी नहीं है कि आदमी ज्ञान प्राप्त करने के लिए स्वयं को पूरे तौर पर फ़ारिग कर ले, काम भी कर सकता है, और इधर छात्र भी बना सकता है, रिवायत में यहां तक आता है कि हज़रत उमर रज़ि. ने अपने एक पड़ोसी के साथ यह मामला तै कर लिया था कि एक दिन वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित हों और दूसरे दिन हम उपस्थित हों फ़िर ज्ञान का आदान प्रदान हो जाए, इस प्रकार वह काम भी कर लेते थे और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मज्लिस से भी वंचित न रह पाते थे।
और यह कहना बिल्कुल गलत है कि हमारे पास समय नहीं है, यदि हम दीन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए डाईम नहीं निकाल सकते तो हमारे जीवन का उद्देश्य ही जाता रहा। और हाँ! समय निश्चित निकलेगा बस टाईम की प्लानिंग करने की ज़रूरत है.
दीन सीखने के शिष्टाचारः
जब हम दीन सीखने पर समहमत हो जाते हैं तो इसके कुछ शिष्टाचार हैं जिनका पालन करना विधार्थी के लिए अति आवश्यक हैः
सीखते समये दिल हाज़िर होः कितने लोग इल्म की मज्लिसों में उपस्थित तो होते हैं परन्तु उनका दिल इधर उधर भटकता रहता है, विदित है कि ऐसे लोग इल्म की सभा से कुछ भी लाभ नहीं उठा सकते। इस लिए इल्म की सभा में दिल का उपस्थित होना ज़रूरी है।
सीखने की इच्छा पाई जाती होः एक व्यक्ति में सीखने और ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा पाई जानी चाहिए, वह सीखने का इच्छुक हो, उसके दिल में सदैव सीखने की तड़प पाई जाती हो।
इल्म सीखने के लिए समय निकालता होः कितने लोग अपने मित्रों के साथ, इन्टर्नेट पर अपना बहुमूल्य समय नष्ट कर देते हैं, कितने दुनिया कमाने में अपना पूरा समय लगाते हैं, कितने मनोरंजन में अपना बहुत सारा समय बर्बाद करते हैं, लेकिन जब इल्म सीखने की बारी आती है तो कहते हैं कि हमारे पास समय नहीं विदित है कि ऐसे लोग ज्ञान में वृद्धि नहीं ला सकते, हर व्यक्ति को दीन सीखने के लिए दिन या रात में कुछ घंटे अवश्य निकालना चाहिए।
धैर्य और सहनशीलताः इल्म हासिल करने के लिए धैर्य और सहनशीलता से काम लेना होगा, दिल को मनाना होगा, इच्छाओं को मारना होगा कि प्राकृतिक रूप में मानव के अन्दर अपनी इच्छाओं के पीछे भागने की भावना पाई जाती है लेकिन उसे लगाम कस्ते ही उसका स्वभाव उसके अधीन हो जाता है।
इल्म सीखने का कर्म निरंतर जारी रखनाः बिना नाग़ा किये हमेशा ज्ञान की प्राप्ती में लगे रहने वालों को हर युग में सफलता मिली है, जो कुछ इल्म सीखने से एक समय के बाद कट जाते हैं उनका इल्म सीमित हो जाता है और धीरे धीरे वह पतन की ओर चले जाते है।
भारत के एक बड़े विचारक और विद्वान मौलाना अबुल-हसन अली नदवी ने एक बार इस्लामिक विश्वविद्यालय मदीना, सऊदी अरब के विशाल हाल में विभिन्न भाषाओं के विधार्थियों को अरबी भाषा में सम्बोधित करते हुए कहा थाः “प्यारे भाइयो! मैं अपने क्लास में एक औसत दरजे का विधार्थी था, मेरे कलास में मुझ से ऊंचा नंबर पाने वाले साथी आज देखाई नहीं देते, न जाने आकाश ने उन्हें उचक लिया या धरती ने निगल लिया। जबकि आपका भाई आपके समक्ष अपनी भावनायें प्रकट करने की साहस कर पा रहा है, करण यही है कि मैंने अपने सीखने के कर्म को निरंतर जारी रखा।” ( यह बात मैंने डा0 मुहम्मद तुक़मान सलफ़ी संस्थापक जामिया इमाम इब्ने तैमिया की ज़बान से छात्र जीवन में सुना था)
इल्म को लिख लेनाः क्लास में उपस्थित हों अथवा किसी सभा में या स्वयं किसी पुस्तक का अध्ययन कर रहे हों यदि ज्ञान को सुरक्षित रखने के इच्छुक हैं तो उन्हें लिख लेना अति आवश्यक है, इस लिए विधार्थी के पास इल्म को नोट करने के लिए विशेष कांपी होनी चाहिए कि लिखना इल्म को सुरक्षित कर देता है।
दीन सीखने में प्राथमिकता होनी चाहिए:
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा इल्म रसिया (खोजी) थे, उन में से कुछ लोग हमेशा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मज्लिस में बैठा करते थे, वह प्रश्न कर के अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ज्ञान सीखा करते थे, सहाबा को यह बात भी पसंद होती थी कि देहाती लोग आएं, आप से दीन के बारे में पूछें इस प्रकार सीखने का शुभ अवसर मिल जाये।
एक दिन की बात है, आदत के अनुसार सहाबा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मज्लिस में बैठे हुए थे, अचानक मज्लिस में एक अजनबी व्यक्ति आ गया, मज्लिस में कोई आदमी उसे पहचान नहीं रहा है, सफेद कपड़े पहने हुए है, बाल बिल्कुल काला है, और आश्चर्यजनक बात यह है कि उस पर यात्रा का कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहा है, सब हैरान हैं कि यह कौनसा आदमी है? वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ घुटने टेक कर बैठ गया और अपनी दोनों हथेलियाँ दोनों रानों पर रख लीं. फिर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से संबोधित होकर कुछ प्रश्न कियाः
पहला सवाल था: हे मुहम्मद! मुझे बताइए इस्लाम क्या है? आपने फ़रमाया: इस्लाम यह है कि ज़बान से तू इस बात की गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई सही इबादत के लाइक़ नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के रसूल हैं. नमाज़ क़ाईम करो, ज़कात दो, रमजान के रोज़े रखो, यदि तुझे सामर्थ्य प्राप्त है अर्थात् सवारी और रास्ते का ख़र्च मौजूद है तो बैतुल्लाह का हज कर. उसने कहा: आप ने सच फ़रमाया:
हज़रत उमर कहते हैं हमें आश्चर्य हुआ कि ये कैसा आदमी है जो पूछ भी रहा है और फिर उसका समर्थन भी कर रहा है. क्योंकि पूछता तो वह है जिसे जानकारी न हो और समर्थन वह करता है जिसे जानकारी हो…. दोनों एक साथ जमा हो रहा था तो ज़ाहिर सी बात है हैरानी होगी ही.
उसने दूसरा सवाल किया: हे पैगंबर! मुझे बताइए ईमान क्या किया है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: ईमान यह है कि तो अल्लाह में ईमान लाये, उसके फरशतों पर ईमान लाये, उसकी अवतरित की हुई कताबों को स्वीकार करे, उसके दूतों में तेरा विश्वास हो, मरने के बाद दोबारा उठाये जाने पर तेरा ईमान हो और भाग्य की अच्छाई और बुराई पर ईमान लाए। उस आदमी ने कहा: आप ने सच फ़रमाया:
उसने तीसरा सवाल किया: हे पैगंबर मुझे बताइए एहसान किया है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
أن تعبد الله كأنك تراه فإن لم تكن تراه فإنه يراك .. .
अल्लाह की इबादत यूं करो मानो तुम उसे देख रहे हो. यदि अल्लाह को अपनी आंखों से देखने का तसव्वुर पैदा न हो सके तो कम से कम यह सोचो कि वह तुझे देख रहा है.
उसने चौथा सवाल किया: हे पैगंबर! मुझे बताइए क़यामत कब आएगी? आपने फ़रमायाः “जिस से सवाल किया गया है सवाल करने वाले से कुछ अधिक नहीं जानता. यानी इसके बारे में मेरे पास तुम से कोई ज्यादा ज्ञान नहीं है. उस ने पूछा: तो फिर मुझे क़्यामत की पहचान ही बता दीजिए. आपने कहाः क़यामत की निशानी यह है कि दासी अपने मालिक को जन्म देने लगेगी, और नंगे पैर, नंगे बदन, निर्धन और बकरियों के चरवाहे ऊँची ऊँची इमारतें बनाने में गर्व करेंगे।
उसने यही चार सवाल किया कि इस्लाम क्या है? ईमान क्या है? एहसान क्या है? क़्यामत कब आएगी? फिर उठकर चला गया, सारे सहाबा मज्लिस में बैठे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का चेहरा देखकर रहे हैं कि कब पता चले इस आदमी के सम्बन्ध में,जो आया, पूछा और चलता बना. कुछ ही देर में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछाः ऐ उमर! तुम जानते हो यह सवाल करने वाला कौन था? उमर फारूक़ ने कहा: अल्लाह और उसके रसूल ही बेहतर जानते हैं. आपने उत्तर दियाः
فإنه جبريل أتاكم يعلمكم دينكم
“यह जिब्रील अमीन थे जो तुम्हें तुम्हारा दीन सिखाने आए थे”.
यह हदीस “हदीसे जिब्रील” के नाम से मशहूर है, इस हदीस में जिब्रील अलैहिस्सलाम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में आते हैं और तर्रतीब से दीन सिखाते हैं, सबसे पहले इस्लाम के स्तम्भ बताये जा रहे हैं, उसके बाद ईमान के स्तम्भ पर प्रकाश डाला जा रहा है, उसके बाद एहसान की स्थिति को स्पष्ट किया जा रहा है, और अन्त में क़यामत की निशानियों के बारे में बात-चीत हो रही है. दीन सीखने का यही तरीक़ा सब से अच्छा तरीक़ा है, तभी तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अन्त में कहाः “यह जिब्रील अमीन थे जो तुम्हें तुम्हारा दीन सिखाने आए थे”.
इसी क्रम को सामने रखते हुए अपना दीन सीखना चाहिए कि यह तर्तीब सबसे अच्छी तर्तीब है।
ज्ञान की क़िस्में:
ज्ञान को दीनी और दुनियावी दो भागों में बांटना इस्लाम की दृष्टि में सही नहीं है कि सारा ज्ञान अल्लाह का प्रदान किया हुआ है और एक मुस्लिम को दोनों की समान रूप में आवश्यकता है। हां यह बात बिल्कुल सही है कि व्यवसाय से जुड़े ज्ञान का सम्बन्ध दुनिया से होता है परन्तु इस्लाम दुनिया से एक मुस्लिम को काटता नहीं अपितु जोड़ता है और धरती की शोभा को बढ़ाने में भाग लेने का आदेश देता है और विदित है कि इस धरती पर शासन हमेशा ज्ञान वालों ने ही किया है, और आज भी ज्ञान वाले ही कर रहे हैं, एक जाहिल का वेतन चाहे वह कितना भी परिश्रम कर ले 7 हज़ार से अधिक नहीं होता जब कि एक पढ़ा लिखा व्यक्ति 2 लाख तख प्रति महीना वेतन प्राप्त करता है, इस प्रकार उसका System Of Life और जीने का ढ़ंग ऊंचा और प्रगतीशील होता है इस लिए दुनिया चाहिए तो इल्म सीखना होगा, आख़िरत चाहिए तब भी इल्म सीखना होगा।
अन्त मेः
आइए अन्त में हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि رَّبِّ زِدْنِي عِلْمًا “मेरे रब, मुझे ज्ञान में अभिवृद्धि प्रदान कर।” उसी प्रकार यह दुआ भी करेः
اللّهمّ انفعني بما علّمتني، وعلّمني ما ينفعني، وزدني علما، رواه الترمذي 3599
ऐ अल्लाह मुझे तूने जो इल्म दिया है उस से हमें फ़ाइदा पहुंचा, और वह इल्म दे जिस से मुझे फ़ाइदा पहुंच सके, और मेरे इल्म में अभिवृद्धि प्रदान कर।।
اللّهمّ إنّي أعوذ بك من علم لا ينفع، ومن دعاء لا يسمع، ومن قلب لا يخشع، ومن نفس لا تشبع النسائي (8/ 284)
ऐ अल्लाह मैं उस इल्म से पनाह माँगता हूं जो फ़ाइदा न पहुंचा सके, ऐसी दुआ से पनाह माँगता हूं जो सुनी न जा सके, ऐसे दिल से पनाह मांगता हूं जिसमें ख़ुशू न हो, और ऐसेनफ्ससे पनाह मांगता हूं जो संतुष्ट न हो सके। ( नसई 8/284)
प्रिय पाठकगण! इन्हीं कुछ शब्दों के साथ हमारा विषय समाप्त हो गया परन्तु अन्त में हम आप से अनुरोध करेंगे कि इस लेख को पढ़ने के पश्चात निम्न विडियों का दर्शन करने का भी कष्ट करें यदि किया तो विषय पूर्ण हो जायगा, हमारी नेक भावनायें आपके साथ हैं