इस्लाम जीवन के हर क्षेत्र में मध्यम और संतुलन की शिक्षा देता है, किसी चीज़ के उपयोग में एक ओर कंजूसी से मना करता है तो दूसरी ओर फुजूलखर्ची से रोकता है और हर हालत में संतुलन अपनाने पर बल देता है। क़ुरआन ने कहा:
“खाओ और पियो, परन्तु हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही, वह हद से आगे बढ़ने वालों को पसन्द नहीं करता।” (सूरः अल-आराफः31)
अच्छा वस्त्र और अच्छा खानपान दोष की बात नहीं लेकिन दोष की बात यह है कि उसमें फुजूलखर्ची आ जाए, और ऐसी हालत में व्यर्थ खर्च अल्लाह की दृष्टि में अप्रिय ठहरता है।
आज जीवन के हर विभाग में फुजूलखर्ची ने हमें मौत के किनारे ला खड़ा किया है, यह बीमारी हर समाज के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है, यह दुख और कठिनाइयों का कारण बन रही है, इस से संपत्ति का विनाश हो रहा है, मालों की बर्बादी हो रही है, इसी लिए ऐसे लोगों को क़ुरआन ने सख्त चेतावनी दी:
” और हद से गुज़रने वाले ही, निःसंदेह आग (में पड़ने) वाले हैं”। (सूरः अल-ग़ाफिरः 43)
इमाम इब्ने क़य्यिम रहिमहुल्लाह ने कहा: “इन सब बातों की जड़ यह है कि हमारे जीवन में संतुलन आ जाए, उसी आधार पर सांसारिक और पारलौकिक हित की प्राप्ति सम्भव है, बल्कि शरीर का हित इसी के द्वारा ठीक रह सकता है, शरीर के कुछ भाग अगर संतुलन खो दें यानी उस में अतिशयोक्ति आ जाए या कोताही होने लगे तो उसी के अनुपात से उसकी शक्ति और स्वास्थ्य प्रभावित होगी। यही स्थिति भौतिक कारवाई की है जैसे सोना, जागना, पीना, सम्भोग करना, चलना, व्यायाम करना, एकांत में होना और सभा में रहना आदि अगर ऊच नीच से मुक्त हों तो संतुलित होंगे और यदि किसी एक ओर उसका झुकाव आ जाए तो यह कोताही होगी और इसका परिणाम बुराई पर आधारित होगा।”
आज हमारे दैनिक जीवन में फुजूलखर्ची की जो विभिन्न शक्लें पाई जाती हैं उनमें से एक शक्ल यह है कि हम ज़रूरत से ज़्यादा खानपान का सेवन कर तेले हैं। यहाँ तक कि सांस लेने के लिए भी जगह बाक़ी नहीं रहती, मुहम्मह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रवचनों में आता हैः
” एक आदमी जिन बर्तनों को भरता है उनमें पेट को भरने से अधिक बुरा कोई बर्तन नहीं, आदम की संतान के लिए कुछ लुक़्मे पर्याप्त हैं, जिनसे अपने शरीर को सीधा रख सके, अगर खाना ही चाहता हो तो एक तिहाई हिस्से में खाए, एक तिहाई हिस्से में पिए और एक तिहाई हिस्सा सांस लेने के लिए रहने दे”। (सहीहुल जामिअ़: 5674)
भोजन के कुछ हिस्से को कचरे में डालना भी फुज़ूल-खर्ची की एक शक्ल है जो अफसोस कि आज हमारे समाज में फैशन बन गई है, आज हमारे कितने खाने कचरा के डिब्बा में फेंके जाते हैं, क्या यह नेमत की अवहेलना नहीं? क्या यह गरीबी को दावत देना नहीं? क्या इन नेमतों के बारे में कल क़यामत के दिन हमसे सवाल होने वाला नहीं?
फुजूलख़र्ची की एक शक्ल यह भी है कि आज कपड़े और वस्त्र की खरीदारी में पैसे पानी के जैसे बहाए जा रहे हैं, हालांकि आज कितने देश हैं जहां लोगों को पहनने के लिए फटे कपड़े भी उपलब्ध नहीं हैं।
फुजूलख़र्ची की एक शक्ल वुज़ू और स्नान में अत्यधिक पानी का उपयोग करना भी है, हालांकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लगभग 525 ग्राम पानी में वुज़ू और लगभग ढाई तीन लीटर पानी में स्नान कर लेते थे। हमारे लिए आदर्श मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र जीवनी है जो बचत और संतुलन का व्यवहारिक नमूना थे।
सुनन इब्ने माजा की रिवायत है हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़िअल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हज़रत साद रज़ियअल्लाहु अन्हु के पास से गुज़रे जबकि वह वुज़ू कर रहे थे (और पानी का उपयोग अत्यधिक कर रहे थे) आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन से कहाः ऐ साद! यह क्या फुजूलखर्ची है? उन्होंने पूछा: क्या वुज़ू में भी फिजूल-खर्ची है? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: हां क्यों नहीं, यधपि तुम बहती नदी के किनारे ही क्यों न हो। (अल-सिलसिलः अल-सहीहः 7/860 हसन)
फुजूलख़र्ची की एक शक्ल यह भी है कि हम पानी, बिजली और एलेक्ट्रानिक मीडिया का अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं, अगर हमें पानी और बिजली मुफ्त में उपलब्ध है या कंपनी ने नेट की सुविधा अधिक मात्रा में दे रखी है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उनके उपयोग में संयम और संतुलन खो दें, आज हर व्यक्ति पानी का दुरुपयोग कर रहा है, बाथरूम, पेशाब घर, रसोई घर और खेती तथा बागीचों की सिंचाई आदि में पानी का उपयोग अत्यधिक हो रहा है। खेतों और बागीचों की सिंचाई बाल्टी से करने की बजाए पाइप से करते हैं, वाहनों की सफाई में भी हमारी वही स्थिति है कि अत्यधिक पानी बह जाता है।
बिजली के उपयोग में भी हम बहुत लापरवाही बरतते हैं, रातों में बल्ब जलते छोड़ देते हैं, ड्यूटी के लिए निकलते समय लाइट नहीं लड़ रहे हैं, यह फिजूलखर्ची नहीं तो और क्या है। उसी तरह आज कम्पनियां हमें अपने लाभ के लिए अत्यधिक सुविधाएं देती हैं जिनका हम उपयोग करके घंटों चाटिंग करते हैं, सोशल मीडिया पर समय बिताया करते हैं या मोबाइल फोन पर व्यर्थ बातें करते रहते हैं, उस में फुज़ूलखर्ची के साथ समय की बर्बादी भी होती है।
फुज़ूलखर्ची की एक शक्त यह भी है कि हम शादी विवाह में अपने पैसे पानी के जैसे बहाते हैं। लोग न चाहते हुए भी बेकार प्रथायें निभाना अपनी नाक का मस्ला बना लेते हैं और आर्थिक परेशानियों के बोझ तले दब जाते हैं। मालदार अपनी झूठी तारीफ के लिए फुज़ूलखर्ची करते हैं जिससे ग़रीबों को भी बिल्ली का बकरा बनना पड़ता है। जिन चीज़ों की ज़रूरत नहीं उनको भी हम अपनी शादियों का ज़रूरी हिस्सा बनाते हैं। यदि वही पैसे किसी ग़रीब बच्ची की शादी करने में ख़र्च कर दें तो यह बहतु बड़ा समाजी काम होगा और ग़रीब जवान लड़कियाँ भी शादी के बंधन में आसानी से जुड़ सकती हैं।