मुसलमान के जीवन में समय का महत्व

समय ही जीवन है।

समय ही जीवन है।

समय वास्तव में जीवन है, और यही इंसान की वास्तविक आयु है, जिसकी सुरक्षा हर भलाई का स्रोत और जिसे नष्ट करना हर बर्बादी और बुराई का कारण है। क्योंकि इंसान इस दुनिया में एक जिम्मेदार इकाई है, उसे अपने निर्माता और मालिक के पास उपस्थित होना है और अपने किए का हिसाब व किताब चुकाना है। सुनन तिर्मिज़ी की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

لا تزول قدما عبدٍ حتى يُسألَ عن عمُرهِ فيما أفناهُ، وعن علمِه فيما فعل، وعن مالِه من أين اكتسَبه وفيما أنفقَه، وعن جسمِه فيما أبلاهُ – سنن الترمذی 2417

महा-प्रलय के दिन एक बन्दे का कदम अपनी जगह से हिल नहीं सकता जब तक कि उस से पूछ न लिया जाए कि उम्र कहाँ बिताई, अपने ज्ञान के अनुसार कहां तक अमल किया, माल कहां से कमाया और कहां खर्च किया और अपना शरीर किस चीज में लगाया ।  (सुनन तिर्मिज़ी 2417)

 

 

समय का महत्व बताने के लिए अल्लाह तआला कई सूरतों की शुरुआत में उसके कुछ भागों जैसे रात, दिन, सुबह, चाशत का समय और युग की क़स्में खाई हैं, जैसा कि अल्लाह तआला कहता है:

وَاللَّيْلِ إِذَا يَغْشَىٰ  وَالنَّهَارِ إِذَا تَجَلَّىٰ – سورۃ اللیل1-2  

” क़सम है रात की जब वह छा जाए और दिन की जब वह उज्ज्वल हो ” (सूरः अल्लैल1-2)

وَالْفَجْرِ وَلَيَالٍ عَشْرٍ- سورۃ الفجر1-2  

” क़सम है सुबह की और दस रातों की ”

 وَالضُّحَىٰ  وَاللَّيْلِ إِذَا سَجَىٰ  – سورہ الضحی 1-2

 

 ” साक्षी है चढ़ता दिन,  और रात जबकि उसका सन्नाटा छा जाए  ”

وَالْعَصْرِ  إِنَّ الْإِنسَانَ لَفِي خُسْرٍ- سورۃ العصر1-2

  ” गवाह है गुज़रता समय, कि वास्तव में मनुष्य घाटे में है। ”

क़ुरआन करीम ने दो मौकों पर इंसान की हसरत और नादानी का उल्लेख किया है जब कि वह समय की बर्बादी पर पछताएगा:

पहला अवसर: मौत के समय:

अल्लाह तआला ने फरमाया:

رَبِّ لَوْلَا أَخَّرْتَنِي إِلَىٰ أَجَلٍ قَرِيبٍ فَأَصَّدَّقَ وَأَكُن مِّنَ الصَّالِحِينَ – سورہ المنافقون آیت نمبر10 

 

 “ऐ मेरे रब! तूने मुझे कुछ थोड़े समय तक और मुहलत क्यों न दी कि मैं सदक़ा (दान) करता (मुझे मुहलत दे कि मैं सदक़ा करूँ) और अच्छे लोगों में सम्मिलित हो जाऊँ।”

 

लेकिन फिर काहे को पछतावा जब चिड़िया चुग गई खेत

وَلَن يُؤَخِّرَ اللَّـهُ نَفْسًا إِذَا جَاءَ أَجَلُهَا ۚ – سورہ المنافقون آیت نمبر 11  

किन्तु अल्लाह, किसी व्यक्ति को जब तक उसका नियत समय आ जाता है, कदापि मुहलत नहीं देता। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है

दूसरा अवसरः

जिस में इनसान समय की बर्बादी पर पछताएगा वह हिसाब व किताब के बाद नरक में प्रवेश करने के बाद का अवसर है। अल्लाह तआला ने फरमाया:

وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ – سورہ فاطر آیت 37 

वे वहाँ चिल्लाएँगे कि “ऐ हमारे रब! हमें निकाल ले। हम अच्छा कर्म करेंगे, उससे भिन्न जो हम करते रहे।” (सूरः फ़ातिर आयत 37)

लेकिन गया वक्त फिर हाथ आता नहीं, अल्लाह झंझोरने वाला सवाल करेगा जिससे उनकी सारी इच्छायें मिट्टी में मिल जाएंगी, अल्लाह कहेगा:

أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُم مَّا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَن تَذَكَّرَ وَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ ۖ فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِن نَّصِيرٍ – سورہ فاطر آیت 37    

“क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी कि जिसमें कोई होश में आना चाहता तो होश में आ जाता? और तुम्हारे पास सचेतकर्ता भी आया था, तो अब मज़ा चखते रहो! ज़ालिमों का कोई सहायक नहीं!” “

जब समय इतना मूल्यवान ठहरा कि समय ही जीवन है यहां तक कि लोग भविष्य में समय नष्ट करने पर ही पछताएँ तो जरूरत थी कि एक मुसलमान समय के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझने और उनसे लाभ उठाकर अपने लिए नेकियां एकत्र कर ले।

समय के प्रति एक मुसलमान की जिम्मेदारियाँः

इसलिए समय के प्रति एक मुसलमान की पहली जिम्मेदारी यह है कि वह समय से लाभ उठाने का इच्छुक हो, अपने समय की रक्षा करे जिस तरह वह अपने धन और सम्पत्ति की रक्षा करता है, जब आप बड़ों की सफलता का रहस्य जानना चाहेंगे तो आपको पता चलेगा कि वह अपने समय की असीम सुरक्षा करते और उन्हें लाभदायक कार्यों में इस्तेमाल करते थे, वह अपने समय के मामले में सबसे अधिक चौकन्ना रहे. हसन बसरी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं:

أدركت أقواماً كانوا على أوقاتهم أشد منكم حرصاً على دراهمكم ودنانيركم  

मैं ऐसे लोगों को पाया है, जो तुम्हारे दिरहम व दीनार के लालच से अधिक वे अपने समय के लालची थे।

इसलिए हमें चाहिए कि पाँच चीज़ों को पांच चीजों से पहले ग़नीमत जानें जवानी को बुढ़ापे से पहले, स्वास्थ्य को बीमारी से पहले, मालदारी को फक़ीरी से पहले, फुरसत को मशग़ुलियत से पहले और जीवन को मृत्यु से पहले। (इमाम हाकिम ने इस हदीस को रिवायत किया है और अल्लामा अल-बानी ने इसे सही कहा है)

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:

«ما نَدِمْتُ علَى شَيْءٍ نَدَمِي علَى يَوْمٍ غَرَبَتْ شَمْسُهُ، نَقَصَ فِيهِ أَجَلِي وَلَمْ يَزِدْ فِيهِ عَمَلِي».

मुझे इतना अफसोस किसी चीज़ पर नहीं हुआ जितना ऐसे दिन पर हुआ जिस का सूरज डूबा हो और मेरी उमर में कमी आई हो लेकिन उस दिन मेरे अमल में कोई ज़्यादती न हुई हो।

 

समय के प्रति एक मुसलमान के दूसरे जिम्मेदारी यह है कि वह अपने कामों और जिम्मेदारियों का चार्ट बना ले चाहे वह काम देनी हों या दुनियावी, एक मोमिन के पास अपने कामों की अदाएगी का एक पूरा चार्ट और ठोस रणनीति होता है इसलिए आप देखेंगे कि वह हर काम अपने समय पर करता है, न अनिवार्य की अदाएगी में देरी करता है और न वाजिब को उत्तम पर प्राथमिकता देता है और न बन्दों के अधिकारकी अदायगी में कोताही करता है, वह जानता है कि उस पर अल्लाह का अधिकार है, उसके शरीर का अधिकार है, उसके परिवार का अधिकार है, वह दिन भर में अल्लाह और उसके रसूल के तरीके के अनुसार अपने सर्वाधिकार की अदाएगी करता है।

काम की प्लानिंग का लाभ यह है कि विभिन्न कामों के बीच मुठभेड़ की आशंका समाप्त हो जाती है, और हर काम समय पर भलीभांति अंजाम पाता है, इस प्रकार एक मोमिन  का दैनिक जीवन बंधे टिके सिद्धांत के अंर्तगत गुजरता है।

समय के प्रति एक मुसलमान की तीसरी जिम्मेदारी यह है कि वह अपने खाली समय को ग़नीमत जाने क्योंकि अवकाश की नेमत भी उन नेमतों में से एक है जिस से अक्सर लोग लापरवाह हैं, सही बुखारी में हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

 نِعمَتانِ من نعمِ اللهِ مَغبونٌ فيهما كثيرٌ منَ الناسِ الصحةُ والفراغُ – صحيح البخاري 3364 

अल्लाह की खुशी में दो प्रसन्न हैं जो उनमें अक्सर लोग धोखा खा जाता है एक तनदरसती और अन्य अवकाश। (सही बुख़ारीः 3364)

एक दूसरी हदीस में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है:

 اغتنِمْ خمسًا قبلَ خمسٍ : حَياتَك قبلَ موتِك ، و صِحَّتَك قبلَ سَقَمِك ، و فراغَك قبلَ شُغْلِك ، و شبابَك  قبلَ هَرَمِك ، و غِناك قبلَ فقرِكَ – صحیح الجامع :  1077 

पांच चीजें को पांच चीजों से पहले गनीमत जानो, जीवन को मौत से पहले, स्वास्थ्य को बीमारी से पहले, अवकाश को संलग्न से पहले, जवानी को बुढ़ापे से पहले और अमीरी को फक़ीरी से पहले। (सहीहुल जामिअ: 1077)

अल्लामा यूसुफ अल-करज़ावी लिखते हैं ” फुर्सत हमेशा फुर्सत नहीं रहती है बल्कि इसका भलाई और बुराई से भरा होना अनिवार्य है, जो व्यक्ति स्वयं को सही काम में व्यस्त नहीं रखता है वह ग़लत कामों में व्यस्त हो जाता है इसलिए सराहनीय हैं वे लोग जो अपने अवकाश को भलाई के कामों में इस्तेमाल किया और बर्बादी हो उन लोगों के लिए जिन्हों ने अपने अवकाश को बुराई से भर दिया।

इसलिए एक बुद्धिमान के लिए जरूरी है कि अपने अवकाश को अच्छे कार्यों में उपयोग करे अन्यथा अवकाश मुसीबत बन सकता है, इसी लिए कहते हैं: अवकाश पुरुषों के लिए उपेक्षा का कारण है और महिलाओं के लिए निर्लज्जा का।

समय की सुरक्षा हेतु कुछ नियमः

 अब आइए कुछ ऐसे संसाधनों की जानकारी प्राप्त करते हैं जो समय की रक्षा में हमारे सहयोगी बन सकते हैं:

इसके लिए सबसे मूल साधन स्वयं का जाइज़ा लेना है, इस लिए अपने नफ्स का जाइज़ा लें कि आपने दिन भर क्या किया? अपना समय कहाँ गंवाया? अपने दिन के क्षणों को किस काम में बिताया? नेकियाँ कमाई या बुराइयों के इच्छुक बने रहे?

फिर अपने नफ्स के अंदर उच्च साहस पैदा करें, क्योंकि जिस व्यक्ति का साहस बुलंद होता है, वह अपने समय से लाभ उठाने के अति इच्छुक होते हैं, साथ ही ऐसे लोगों की संगत अपनायें जो अपने समय से लाभ उठाते हैं क्योंकि उनकी संगत आपके अंदर समय से लाभ उठाने का उत्साह पैदा करेगा और इसके साथ साथ अल्लाह वालों के जीवन का अध्ययन करें कि कैसे उन्हों ने समय से लाभ उठाया, उन्हों ने जीवन के क्षणों को जिस भलाई से बिताया वह वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श है।

इब्ने मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं किः

सबसे अधिक मैं अपने उस दिन पर नादिम होता हूँ जिसका सूरज डूब जाता है और मेरी उम्र का एक दिन कम हो जाता है लेकिन इस में मेरे प्रक्रिया में कोई वृद्धि नहीं होती।

और इब्ने क़य्यिम कहते हैं: समय को नष्ट करना मौत से अधिक कठिन है क्योंकि समय की बर्बादी तुझे अल्लाह और  मरनोपरांत जीवन के दिन से काट देगा जब कि मौत तुझे केवल दुनिया और दुनिया वालों से काट देती है।

बड़े खेद की बात है कि आज अधिकतर लोगों के बहुमूल्य समय बेफाइदा वार्ताओं या टेलीविजन के फिल्मी गीतों के सुनने में बर्बाद हो रहे हैं, अगर गौर किया जाए तो पता चलेगा कि उसका मुख्य कारण लक्ष्य से लापरवाही और ग़फलत है, जाहिर है कि जिसके सामने कोई उद्देश्य और लक्ष्य ही न हो वह आखिर कैसे अपने समय के महत्व को समझेगा। कुरआन हमें लापरवाही  और ग़फलत से सख्ती के साथ रोकता है, अल्लाह का आदेश है:

وَلَقَدْ ذَرَأْنَا لِجَهَنَّمَ كَثِيرًا مِّنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ ۖ لَهُمْ قُلُوبٌ لَّا يَفْقَهُونَ بِهَا وَلَهُمْ أَعْيُنٌ لَّا يُبْصِرُونَ بِهَا وَلَهُمْ آذَانٌ لَّا يَسْمَعُونَ بِهَا ۚ أُولَـٰئِكَ كَالْأَنْعَامِ بَلْ هُمْ أَضَلُّ ۚ أُولَـٰئِكَ هُمُ الْغَافِلُونَ – سورہ الأعراف 179 

निश्चय ही हमने बहुत-से जिन्नों और मनुष्यों को जहन्नम ही के लिए फैला रखा है। उनके पास दिल है जिनसे वे समझते नहीं, उनके पास आँखें है जिनसे वे देखते नहीं; उनके पास कान है जिनसे वे सुनते नहीं। वे पशुओं की तरह है, बल्कि वे उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट है। वही लोग है जो ग़फ़लत में पड़े हुए है । (सूरः अल-आराफः 179)

उसी प्रकार टालमटोल भी समय की बर्बादी का मुख्य कारण है, हसन बसरी रहिमहुल्लाह कहते हैं: “टालमटोल से बचो क्योंकि तेरा अस्तित्व आज के दिन से है कल के दिन से नहीं।” कल न कर कल का कोई भरोसा नहीं।

एक अरबी कवि कहता है:

تزود من التقوى فانك لا تدري          اذا جن ليل هل تعيشُ الى الفجر

  كم من سليم مات من غير علة          وكم من سقيم عاش حيناً من الدهرِ

وكم من فتى يمسى ويصبح لاهياً          وقد نُسجت أكفانه وهو لا يدرى

तक़वा का तोशा अपना लो क्योंकि तुझे पता नहीं कि जब रात तुझ पर छा जाए तो तू सुबह तक जीवित रह सकेगा, कितने ऐसे स्वस्थ हैं जो बिना रोग के मर गए और कितने ऐसे बीमार हैं जो एक अवधि तक जीवित रहे, और कितने ऐसे युवा हैं जो अमन और चैन की हालत में सुबह और शाम करते हैं हालांकि उसके कफ़न बुने जा रहे हैं और उसे पता नहीं।

अल्लाह हमें समय का लाभ उठाकर लोक और परलोक को संवारने की तौफ़ीक़ प्रदान करे। आमीन या रब्बलआलमीन

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