शव्वाल के 6 रोज़े हमेशा रोज़ा रखने के समान हैं
रमज़ान के समाप्त होते ही एक मुस्लिम पर शैतान का आक्रमण सख्त हो जाता है, लेकिन अल्लाह के नेक बन्दों पर उसका दाव नहीं चल सकता, कि वे हर स्थिति में अल्लाह से अपना सम्बन्ध जोड़े होते हैं। अतः रमज़ान के समाप्त होते ही अल्लाह के बन्दे शव्वाल के 6 रोज़े रखना शुरू कर देते हैं और उसके बाद भी ग्यारह महीनों तक विभिन्न दिनों में रोज़े रखते हैं। निम्न में शव्वाल के 6 रोज़ों का वर्णन किया जा रहा हैः
शव्वाल के रोज़ों की हिकमतः
(1) रमज़ान में जो नेकी और ईमान का वातावरण बनता है उसका प्रभाव रमज़ान के बाद भी बाक़ी रखने के लिए शायद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नें शव्वाल के महीने में 6 रोज़े रखने को अत्तम सिद्ध किया है। हज़रत अबू अय्यूब अनसारी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
من صام رمضان ثم أتبعه ستا من شوال كان كصيام الدهر رواه مسلم
” जिस ने रमज़ान के रोज़े रखे फिर उसके बाद शव्वाल के 6 रोज़े रखे तो मानो वह हमेशा रोज़ा रखता रहा” ( सहीह मुस्लिम)
(2) शव्वाल के यह 6 रोज़े इस बात के लिए प्रमाण हैं कि अल्लाह के नेक बन्दे रमज़ान में नेकियों की तौफ़ीक़ मिलने पर उसकी आज्ञाकारी में लग जाते हैं, उन्हें नेकियों से प्रेम हो जाता है और वह हर समय नेकी के रास्ते पर चलने के लिए तैयार रहते हैं, उसी प्रकार नेकियों की तौफ़ीक़ के शुकराने के तौर पर वह शव्वाल के 6 रोज़े रखते हैं। ईद के दिन बन्दे को रमज़ान के रोज़े का इनआम मिलता है तो शुकराने के तौर पर बन्दा शव्वाल के 6 रोज़े रखता है इसी लिए अल्लाह तआला ने फ़रमायाः
ولتكملوا العدة ولتكبروا الله على ما هداكم ولعلكم تشكرون سورة البقرة 185
सलफ़ सालहीन के सम्बन्ध में आता है कि जब उनको रात में जग कर क़्याम करने की तौफ़ीक़ मिल जाती तो दिन में शुकराने के तौर पर रोज़ा रखते थे।
(3) रमज़ान से पहले शाबान और रमज़ान के बाद शव्वाल के रोज़े वास्तव में फर्ज़ नमाज़ों से पहले और बाद की सुन्नतों का हुक्म रखते हैं कि जिस प्रकार नमाज़ से पहले और बाद की सुन्नतों को अदा करने के कारण फर्ज़ में पाई जाने वाली कमी दूर कर दी जाएगी उसी प्रकार शाबान के रोज़े और शव्वाल के रोज़े रखने से रमज़ान के रोज़ों में जो कमी आई थी उसे अल्लाह तआला अपनी दया से दूर कर देगा।
(4) रमज़ान के बाद शव्वाल के रोज़ों का एहतमाम इस बात का प्रमाण है कि रमज़ान के रोज़े स्वीकार कर लिए गये हैं क्यों कि अल्लाह तआला जब बन्दे की नेकी स्वीकार कर लेता है तो उसके बाद उसे नेक अमल की तौफ़ीक़ देता है, इस प्रकार जिसने नेकी का काम किया फ़िर नेकी के काम को जारी रखा तो यह पहचान है कि उसकी नेकी स्वीकार कर ली गई है।
शव्वाल के 6 रोज़ों से सम्बन्धिक कुछ मसाइलः
(1) जिस पर रमज़ान के रोज़ों की अदाएगी अनिवार्ज हो क्या वह शव्वाल के रोज़े रख सकता है ?
रमज़ान में किसी उज्रे शरई (सही कारण) से जिसके रोज़े छूट गए हों उसके लिए उत्तम और श्रेष्ठ तो यही है कि वह पहले फ़र्ज़ रोज़ों की अदाएगी करे फिर उसके बाद शव्वाल के रोज़े रखे, क्यों कि रमज़ान के रोज़े अनिवार्य हैं जब कि शव्वाल के रोज़े सुन्नत हैं और अनिवार्य को टाल कर सुन्नत की अदाएगी में लगना उचित नहीं। लेकिन उसके बावजूद यदि कोई आदमी पहले शव्वाल के रोज़े रख लेता है उसके बाद रमज़ान में छूटे हुए रोज़ों की अदाइगी करता है को यह जाइज़ है और कुछ इस्लामी विद्वानों ने इसकी छूट दी है।
(2) क्या शव्वाल के रोज़ों में तर्तीब ज़रूरी है ?
हदीस में من شوال अर्थात् “शव्वाल से” का शब्द आया है इस लिए शव्वाल के महीने में यह 6 रोज़े कभी भी रखे जा सकते हैं, इसके लिए तर्तीब ज़रूरी नहीं है, ईद के दूसरे दिन से शव्वाल का महीना समाप्त होने तक कभी भी यह रोज़े रखे जा सकते हैं। एक साथ कोई रखना चाहता हो तो एक साथ भी रख सकता है और यदि कोई विभिन्न दिनों में गैप करके रखना चाहता हो तो इसकी भी अनुमति है।
(3) यदि किसी ने शव्वाल के रोज़े शव्वाल के अन्त में शुरू किया और मुकम्मल करने से पहले बीमार पड़ गया तो उसे क्या करना होगा ?
यदि किसी ने शव्वाल के रोज़े अन्त में शुरू किया और उन्हें पूर्ण करने से पहले बीमार पड़ गया तो ऐसे व्यक्ति पर शव्वाल के बाद उन रोज़ों की अदाएगी नहीं है , उसे उसकी नियात का पुण्य भी मिलेगा, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः
إذا مرض العبد أو سافر كتب له مثل ما كان يعمل مقيما صحيحا رواه البخاري
” जब एक बन्दा बीमार पड़ जाए अथवा यात्रा में हो तो वह अपने घर पर और स्वास्थ्य की स्थिति में जो ( नेकी के ) काम करता था वह सब उसके लिए लिखे जाते हैं। “