एक सज्जन ने पूछा है कि शिर्क सब से बड़ा ज़ुल्म कैसे है? उन से हम कहना चाहेंगे कि सब से पहले आप इस उदाहरण पर विचार कीजिएः
एक राजा के पास उसकी प्रजा के लिए अपराध के हिसाब से सज़ायें तय होती हैं, लेकिन कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनसे विद्रोह प्रकट हो रहा होता है जैसे राजा की जगह किसी अन्य को राजा बना लेना तो यह अपराध सारे अपराधों से बढ़ कर है और उसकी सजा सबसे बड़ी होगी।
यही उदाहरण शिर्क का है जिसे कुरआन सबसे बड़ा ज़ुल्म कहता है, क़ुरआन ने हज़रत लुक़मान अलैहिस्सलाम की अपने बेटे को की गई वसीयत का वर्णन किया है जिसमें लुक़मान अलैहिस्सलाम अपने बेटे को सब से पहले उपदेश देते हैंः
وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّـهِ ۖ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ – سورة لقمان :13
“याद करो जब लुक़मान ने अपने बेटे से, उसे नसीहत करते हुए कहा, “ऐ मेरे बेटे! अल्लाह का साझी न ठहराना। निश्चय ही शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है।”( सूरः लुक़मानः 13)
ज़ुल्म कहते हैं हकदार का हक़ छीनकर किसी दूसरे को दे देना, पूजा उसकी होनी चाहिए थी जो हमारा निर्माता, प्रभु और मालिक है, लेकिन हमने अल्लाह का अधिकार दास को दे दिया, अपना माथा इंसान के सामने झुकाना शुरू कर दिया जिसने न हमें बनाया, न हमें पोसा पाला और न ही हमारे मामले का कोई अधिकार रखता है। इससे बढ़कर ज़ुल्म और क्या हो सकता है। जिस सृष्टि को हमारे लाभ हेतु बनाया था उसके सामने अपना माथा झुकाकर निर्माता का भी अपमान किया।
इसी लिए शिर्क ऐसा पाप ठहरा जिसे अल्लाह कदापि क्षमा नहीं कर सकताः
إِنَّ اللَّـهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَاءُ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِاللَّـهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا – سورة النساء: 116
निस्संदेह अल्लाह इस चीज़ को क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ किसी को शामिल किया जाए। हाँ, इससे नीचे दर्जे के अपराध को, जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराता है, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा। ( सूरः अन्निसाः 116)
उसी प्रकार शिर्क करने वाले के प्रत्येक अमल बर्बाद हो जाते हैंः अल्लाग ने सूर: अनआम के दसवें रुकुअ में अल्लाह तआला ने अठारह महान संदेष्टाओं के नाम ले लेकर उनके स्थान और महत्व का उल्लेख किया है, उसके बाद आयत नंबर 88 में सब्हों को मिलाकर कहाः
وَلَوْ أَشْرَكُوا لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ – سورة الأنعام: 88
“अगर उन नबियों ने भी अल्लाह का भागीदार ठहराया होता तो उनके भी सारे अमल अकारत और बर्बाद हो जाते “।
और सूर: ज़ुमर आयत नंबर 65 में अल्लाह तआला नबी सल्ल. को संबोधित करते हुए कहता हैः
لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ – سورة الزمر :65
“यदि आप ने अल्लाह का भागीदार ठहराया तो वास्तव में आपका सारा अमल बेकार हो जाएगा और आप ( मरने के बाद वाले जीवन में ) घाटा पाने वालों में से हो जाएंगे।”
जरा विचार कीजिए ! शिर्क के मामले में जब नबियों और रसूलों को इस प्रकार संबोधित किया गया तो उनके सामने हम किस खेत की मूली होते हैं , हमें तो और अधिक शिर्क की खतरनाकी से संवेदनशील रहना चाहिए . ऐसा न हो कि हमारे अमल अकारत हो जाएँ।
उसी प्रकार शिर्क की स्थिति में जिसकी मृत्यु हुई वह हमेशा हमेश के लिए नरक में जलेगा। अल्लाह ने कहाः
إِنَّهُ مَنْ يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدْ حَرَّمَ اللَّهُ عَلَيْهِ الْجَنَّةَ وَمَأْوَاهُ النَّارُ – المائدة: 72
जो कोई अल्लाह का साझी ठहराएगा, उसपर तो अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है और उसका ठिकाना आग है। अत्याचारियों को कोई सहायक नहीं।” (सूरः अल-माइदाः 72)
एक सज्जन ने फेसबुक पर टिप्पणी की थी कि जब अल्लाह अति कृपाशील और दयालु है तो हमें शिर्क पर सजा क्यों देता है? माफ क्यों नहीं कर सकता ?