मुसलमानों ने न केवल क़ुरआन की सुरक्षा का प्रबंध किया अपितु हदीस की सुरक्षा के लिए भी अविस्मरणीय भूमिका अदा की, इसकी सुरक्षा के लिए जो उपाये अपनाये गए वह निम्न में बयान किये जा रहे हैं:
मौखिक रूप में हदीसों को कंठस्त करनाः
अरबों की स्मरण-शक्ति बहुत तेज़ थी, वे प्राचीन समय की वृत्तान्तों को मौखिक रूप में याद रखते, वे क़बीलों की वंशावली ही नहीं बल्कि घोड़ों तक की वंशावली को याद रखते थे, अब यह कैसे सम्भव था कि वह उस व्यक्ति की कथनी और करनी को सुरक्षित न रखते जो उनके दिल में उनकी अपनी आत्मा से भी अधिक प्रिय था।
हदीसों को लिपिबद्ध करनाः शुरू में यह भय था कि ऐसा न हो कि लोग हदीस और क़ुरआन दोनों में मिला कर लिख लें फिर कुछ लोगों के लिए उनमें अन्तर करना कठिन हो जाए इसी लिए आप e ने सहाबा को हदीसें लिखने से मना कर दिया था, जैसा कि मुस्नद अहमद की हदीस हैः
لا تكتبوا عني، ومن كتب عني شيئاً سوى القرآن فليمحه مسند أحمد: ج3 ص21.
“मुझ से कुछ मत लिखो, और जिसने क़ुरआन के अतिरिक्त मुझ से कुछ बात लिखी हो उसे चाहिए कि मिटा दे”।
अल्लाह के रसूल सल्ल का यह आदेश 7 हिजरी तक रहा, परन्तु जब क़ुरआन की सुरक्षा के प्रति अल्लाह के रसूल को संतुष्ठ हो गया तो अपने साथियों को हदीसें भी लिपिबद्ध करने की अनुमति दे दी, सहाबा में कुछ लोग ऐसे थे जो आपकी बातें सुनने के बाद उन्हें लिपिबद्ध कर लेते थे, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रजि. कहते हैं कि मैं अल्लाह के रसूल e से जो कुछ सुनता उसे याद करने के लिए लिख लिया करता था, लोगों ने मुझे रोका और कहाः अल्लाह के रसूल e एक मनुष्य हैं, कभी प्रसन्नता की स्थिति में बातें करते हैं तो कभी क्रोध की दशा में, इस पर मैं ने लिखना छोड़ दियाः फिर मैंने अल्लाह के रसूल e से इसका वर्णन किया तो आपने अपनी उंगलियों से अपने मुंह की ओर संकेत करते हुए कहाः
اكتب فوالذي نفسي بيده لا يخرج منه إلا حق رواه أبو داود والحاكم
“लिख लिया करो, क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है इस मुख से हक़ (सत्य) के सिवा कुछ नहीं निकलता”। (अबू-दाऊद, हाकिम)
उसी प्रकार अबूहुरैरा रज़ि. बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल e ने (मक्का की विजय के अवसर पर) एक ख़ुतबा दिया। अबू शाह ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे लिए लिखा दीजिए, आपने कहाः أكتبوا لأبي شاةइसे अबू- शाह के लिए लिख दो। (बुख़ारी, मुस्लिम)
तिर्मिज़ी की रिवायत के अनुसार हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. बयान करते हैं कि अनसार में से एक व्यक्ति ने कहाः मैं आपसे बहुत सी बातें सुनता हूँ परन्तु याद नहीं रख पाता।अल्लाह के रसूल e ने कहाः अपने हाथ से सहायता लो।और नबी e ने अपने हाथ के इशारा से बताया कि लिख लिया करो। (तिर्मिज़ी)
उसी प्रकार सही बुख़ारी में हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. का बयान हैः
ما في أصحاب رسول الله صلى الله عليه أحد أكثر حديثاً مني إلا ما كان من عبدالله بن عمرو فإنه كان يكتب ولا أكتب
अल्लाह के रसूल सल्ल. के साथियों में मुझ से अधिक हदीस बयान करने वाले कोई नहीं हैं सिवाए अब्दुल्लाह बिन अमर के कि वह लिख लेते थे और मैं नहीं लिखता था। (बुख़ारी)
सहाबा के युग में हदीसों के सहीफ़ेः
अल्लाह के रसूल सल्ल. के देहांत के पश्चात क़ुरआन झिल्लियों, हड्डियों और खजूर के पत्तों पर अलग अलग लिखित था सहाबा ने उसे एकत्र कर दिया परन्तु हदीस को एकत्र करने की ओर सहाबा का ध्यान नहीं गया परन्तु वह मौखिक रूप में एक दूसरे तक उसे पहुंचाते रहे, उसके बावजूद कुछ सहाबा ने जो हदीसें लिखीं थीं उनमें से कुछ सहीफ़े प्रसिद्ध हो गए थे। जैसे (1) सहीफ़ा सादक़ा, जो एक हज़ार हदीसों पर सम्मिलित अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़ि का सहीफ़ा था, इसका अधिक भाग मुस्नद अहमद में पाया जाता है। (2) सहीफ़ा समुरा बिन जुनदुब रजि. (3) सहीफ़ा साद बिन उबादा रज़ि. (4) सहीफ़ा जाबिर बिन अब्दुल्लाह अल-अनसारी रज़ि.
ताबिईन के युग में हदीसों का संकलनः
जब इस्लाम विभिन्न देशों में फैलने लगा और सहाबा विभिन्न देशों में फैल गए फिर उन में से अधिकतर लोग मरने लगे तो लोगों की स्मरण-शक्ति में भी कमी आने लगी। अब हदीस को एकत्र करने की आवश्यकता का अनुभव हुआ अतः सन् 99 हिजरी में जब उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहि. मुसलमानों के ख़लीफ़ा बने और मुसलमानों की स्थिति की ओर देखा जिस से वह गुज़र रहे थे तो इस नतीज़ा पर पहुंचे कि हदीसों की सुरक्षा हेतु उन्हें एकत्र कर दिया जाये, इसी संकल्प के साथ अपने अधिकारियों और प्रतिनिधियों को इसका आदेश देते हुए लिखा और ताकीद की कि अल्लाह के रसूल सल्ल. की हदीसों को एकत्र करने का काम शुरू कर दिया जाये, जैसे आपने मदीना के क़ाज़ी अबू बकर बिन हज़्म को लिखा किः
” तुम देखो, अल्लाह के रसूल सल्ल. की जो हदीसें तुम्हें मिलें उन्हें लिख लो क्यों कि मुझे ज्ञान के समाप्त होने और उलमा के चले जाने का भय लगता है। ” उसी प्रकार आपने दूसरे शहरों में भी मुस्लिम उलमाओं को सम्बोधित किया कि अल्लाह के रसूल सल्ल. की हदीसें एकत्र करने की ओर ध्यान दें। उनमें से एक हिजाज़ और शाम के विद्वान इमाम अबू बकर बिन मुहम्मद बिन मुस्लिम बिन अब्दुल्लाह इब्ने शिहाब अल-ज़ुहरी (मृत्यु 124हिजरी) हैं जिन्हों ने उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ के आदेश का पालन करते हुए मदीना वालों की हदीसें एकत्र कीं और उनकी सेवा में प्रस्तुत किया तो उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने उसकी विभिन्न प्रतियां बनवा कर अलग अलग शहरों में भेज दिया। इस सम्बन्ध में यह पहली कोशिश थी जिसे उन्हों ने बिना किसी तरतीब के अपने सुनने के हिसाब से सहाबा की हदीसों को एकत्र कर दिया था।
ताबिईन (जिन्हों ने सहाबी को देखा, रसूल सल्ल. को न देख सके) ने जब हदीसें एकत्र कीं तो इसके साथ उन्हों ने सहाबी का जीवन-चरित्र भी बयान किया .
ताबिईन के युग में रबीअ बिन सुबैह (मृत्यु 160 हिजरी) सईद बिन अबी उरूबा (मृत्यु 156 हिजरी) मक्का में इब्ने जुरैज (150 हिजरी) ने, सीरिया में औज़ाई (156हिजरी) ने, कूफ़ा में सुफ़यान सौरी(161हिजरी) ने, बसरा में अबू सल्मा (176हिजरी) ने, यमन में मामर बिन राशिद (153हिजरी) ने, रै में जरीर बिन अब्दुल हुमैद(188हिजरी) ने, और ख़ुरासान में अब्दुल्लाह बिन मुबारक (181 हिजरी) ने। और उनके अतिरिक्त विद्वानों नें भी हदीसें एकत्र कीं। इस युग में हदीसें हर बाब की अलग अलग जमा की गईं फिर उनमें सहाबा और ताबईन की कथनी और करनी को भी सम्मिलित कर दिया गया था। इसी लिए इस युग की पुस्तकें “मुसन्नफ़” “मुअत्ता” और “जामिअ” के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
जब तीसरी शताब्दी आई तो इसमें हदीसें एकत्र करने का एक अलग तरीक़ा प्रचलिग हुआ कि मात्र अल्लाह के रसूल सल्ल. की हदीसें जमा की गईं, और उन में सहाबा की कथनी और करनी को शामिल नहीं किया गया। इस प्रकार मसानीद की लिखी गई, जिसमें विषय की एकता की रिआयत किए बिना हर सहाबी की हदीस को अलग अलग एकत्र किया गया,
जैसे मुस्नद इमाम अहमद बिन हम्बल, मुस्नद इस्हाक़ बिन राहवैह, मुस्नद उस्मान बिन अबी-शैबा आदि। लेकिन इन किताबों में सहीह हदीस को ही एकत्र करने का प्रयत्न नहीं किया गया बल्कि इसमें ज़ईफ़ (कमज़ोर) हदीसें भी एकत्र कर दी गई थीं उसी प्रकार यह फ़ेक्ही तरतीब के एतबार से नहीं थी जिसके कारण हदीसों को खोजना मुश्किल था इसी लिए बुख़ारा के मुहम्मद बिन इस्माईल अल-बुख़ारी रहि. ने फ़ेक्ही तरतीब के अनुसार मात्र सहीह हदीसों का संग्रह तैयार किया जिसे दुनिया आज सहीह बुख़ारी के नाम से जानती है जो हदीस की प्रमाणित पुस्तकों में प्रथम पद पर आती है, फिर उनके बाद उनके ही शिष्य इमाम मुस्लिम बिन हज्जाज अल-क़ुशैरी ने हसीह हदीस का एक संग्रह तैयार किया जो आज सहीह मुस्लिम के नाम से प्रचलित है। और सहीह बुख़ारी के बाद दूसरे नम्बर पर आता है।
इमाम बुख़ारी और इमाम मुस्लिम के तरीक़े पर उनके युग में और उनके बाद भी हदीस के विद्वानों ने किताबें लिखीं, इस प्रकार उनके बाद चार सुनन लीखी गई सुनन अबी दाऊद, सुनन तिर्मिज़ी, सुनन नसाई, सुनन इब्ने माजा। लेकिन इन इमामों ने अपनी किताबों में सहीह हदीसें ही एकत्र करने का एहतमाम नहीं किया बल्कि उसमें कमज़ोर हदीसें भी आ गई हैं।
हदीस का वर्णन रावियों के साथः
आज हदीस की महान किताबों में जो हदीसें सुरक्षित मिलती हैं उनको उनके संकलनकर्ता विद्वानों नें रावी (अल्लेखकर्ता) के हवाले से वर्णन किया है, सहाबा ने अल्लाह के रसूल सल्ल. को जो कुछ कहते सुना था या करते देखा था उसे उन्हों ने कंठस्थ किया और कुछ लोगों ने उसे लिखा फिर बाद की पीढियों तक उसे पहुंचाया, जिनकी संख्या लाखों तक पहुंचती है फिर सुनने वालों ने दूसरों को सुनाया यहाँ तक कि उसे लिपिबद्ध कर दिया गया। जैसे फ़लाँ ने फलाँ से कहा और फलाँ ने फलाँ से…..कहा कि मैंने अपने कानों से मुहम्मद सल्ल0 को यह कहते हुए सुना है। जैसे यह उदाहरण देखें:
حَدَّثَنَا عَبْدُ الرَّحْمَنِ بْنُ إِبْرَاهِيمَ الدِّمَشْقِيُّ حَدَّثَنَا بِشْرُ بْنُ بَكْرٍ حَدَّثَنَا ابْنُ جَابِرٍ حَدَّثَنِي أَبُو عَبْدِ السَّلَامِ عَنْ ثَوْبَانَ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهم عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُوشِكُ الْأُمَمُ أَنْ تَدَاعَى عَلَيْكُمْ كَمَا تَدَاعَى الْأَكَلَةُ إِلَى قَصْعَتِهَا …(رواه ابوداؤد)
अर्थात् इमाम अबू दाऊद (जो दहीस लिखने वाले विद्वान हैं) वर्णन करते हैं कि मुझ से अब्दुर्रहमान बिन इब्राहीम अल-दिमशक़ी ने बयान किया, अब्दुर्रहमान बिन इब्राहीम अल-दिमशक़ी ने कहा कि मुझ से बिश्र बिन बक्र ने बयान किया, बिश्र बिन बक्र ने कहा कि मुझ से अबू अब्दिस्सलाम ने बयान किया, अबू अब्दिस्सलाम ने कहा कि मुझ से सौबान ने बयान किया, सौबान ने कहा कि मुझ से अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कहाः कि एक समय ऐसा आने वाला है कि अन्य समुदाय तुम पर टूट पड़ेंगी जैसे खाने वाला दस्तर-ख़ान पर टूट पड़ते हैं…( अबू दाऊद) विस्तृत जानकारी हेतु यह विडियु अवश्य देखें: