अनाथों के साथ अच्छे व्यवहार को इस्लाम में बड़ा महत्व दिया गया है, क़ुरआन में ईमान वालों की पहचान यह बताई गई कि :
وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَىٰ حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا – سورة الإنسان: 8
“और वे मुहताज, अनाथ और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखते हुए खिलाते हैं।” ( सूरः अल-इंसानः 8)
हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के संबन्ध में आता है कि आपके हर खाना के समय आपके दस्तरख़ान पर कोई अनाथ अवश्य होता था। ( सहीहुल अल-अदबुल मुफ्रदः हदीस न. 102)
जबकि ईमान से वंचित लोगों की यह पहचान बताई गई कि वे अनाथों को धक्के देते हैं, क़ुरआन ने कहाः
أَرَأَيْتَ الَّذِي يُكَذِّبُ بِالدِّينِ ﴿١﴾ فَذَٰلِكَ الَّذِي يَدُعُّ الْيَتِيمَ ﴿٢﴾ – سورة الماعون
“क्या तुमने उसे देखा जो दीन को झुठलाता है? वही तो है जो अनाथ को धक्के देता है। ” (सूरः अल-माऊनः 1-2)
इस से ज्ञात यह हुआ कि इंसान में मानवता तब ही आ सकती है जब वह सच्चा मुसलमान होता और अल्लाह की सही पहचान रखता है।
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने विभिन्न प्रवचनों में अनाथों के साथ अच्छे व्यवहार का महत्व बयान किया, आपने कहाः “अनाथों और विधवाओं के लिए दौड़धूप करने वाला लगातार क़्याम करने वाले और रोज़ा रखने वाले के समान है।” (बुख़ारी,मुस्लिम)
ऐसे व्यक्ति को मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने शुभसूचना सुनाई कि “मैं और अनाथ की देखरेख करने वाला जुन्नत में यूँ हूंगा, फिर आपने अपनी शहादत की और बीच वाली ऊंलगी से इशारा किया।” (बुख़ारी)
हज़रत अबु्द्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में आया और अपने दिल की तंगी की शिकायत की, तो आपने उस से कहाः क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारा दिल नर्म हो जाए और तुम्हारी ज़रूरत पूरी हो ? अनाथ पर दया करो, उसके सिर पर हाथ फेरो, अपने खाने में से उसे खिलाओ तुम्हारा दिल नर्म पड़ेगा और तुम्हारी ज़रूरत पूरी होगी। ( अत्तब्रानीः सहीहुल जामिअः 80)
अनाथों के साथ व्यवहार के शिष्टाचारः
उनके साथ दया और विनम्रता का मामला किया जाए, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अनाथों के लिए बड़े दयालु थे, उम्मे सल्मा रज़ियल्लाहु अन्हा की अनाथ बेटी को आप प्यार से “ज़ैनब” की बजाए “ज़ुवैनत” कहते थे। (अस्सहीहाः2142)
अमर बिन सल्मा रज़ियल्लाहु अन्हु को खान-पान के शिष्टाचार बताते हुए कहा किः क़रीब हो जा बेटे! बिस्मिल्लाह कहो, दायें हाथ से खाओ और अपने क़रीब से खाओ। (अस्सहीहाः 1184)
अनस रज़ियल्लाहु अन्हु जो अनाथ थे और आपके सेवक भी, उनको बुलाते हुए आपने कहाः “ऐ बेटे।” (सही मुस्लिमः 14/129) अनस रज़ियल्लाहु अन्हु स्वंय आपके व्यवहार को बयान करते हुए कहते हैंः अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बड़े अच्छे अख़लाक़ के थे, एक दिन किसी ज़रूरत पर उन्होंने मुझे भेजा तो मैंने कहाः मैं नहीं जा सकता, हालाँकि दिल में था कि जाऊंगा कि अल्लाह के नबी का आदेश जो है। मैं निकला यहाँ तक कि बच्चों के पास से गुज़रा जो बाज़ार में खेल रहे थे। (वहाँ ठहर कर खेल देखने लगा) अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ( वहाँ तशरीफ लाये और ) पीछे से मेरा माथा पकड़ लिया, मैंने आपकी ओर देखा तो आप हंस रहे थे। आपने कहाः उनैस! जाओ, जहाँ जाने का हुक्म दिया है, मैंने कहाः हाँ अभी जाता हूं ऐ अल्लाह के रसूल। अनस कहते हैं कि अल्लाह की क़सम! मैंने अल्लाह के रसूल की 9 वर्ष तक सेवा की लेकिन इस अवधि में मुझे पता नहीं कि आपने किसी काम के संबन्ध में कहा हो जिसे मैंने किया है कि तुमने ऐसा क्यों किया या जिसे छोड़ दिया है कि तुम ने ऐसा क्यों नहीं किया। (सही मुस्लिम)