यदि कोई व्यक्ति किसी के पास उसकी अनुमति के बिना चला जाता है तो उसको ऐसी स्थिति में देखेगा जिसमें शायद उसे देखना अथवा देखा जाना अप्रिय हो। इसी लिए इस्लाम ने अनुमति के कुछ शिष्टाचार बयान किये ताकि उसके मानने वाले इसके दर्पण में अपना व्यवहारिक जीवन बिता सकें।
अनुमति लेना एक अच्छे और सांस्कृतिक इनसान की पहचान है जो उसकी लज्जा, बहादुरी और सज्जनता का प्रमाण है। विदित है कि यदि कोई व्यक्ति किसी के पास उसकी अनुमति के बिना चला जाता है तो उसको ऐसी स्थिति में देखेगा जिसमें शायद उसे देखना अथवा देखा जाना अप्रिय हो। इसी लिए इस्लाम ने अनुमति के कुछ शिष्टाचार बयान किये ताकि उसके मानने वाले इसके दर्पण में अपना व्यवहारिक जीवन बिता सकें। निम्न में हम कुछ शिष्टाचार का वर्णन कर रहे हैं:
अनुमति लेने का हुक्मः
एक व्यक्ति के लिए अवैध है कि वह किसी के घर में उसकी अनुमति के बिना प्रवेश करे। अल्लाह ने फरमायाः
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتاً غَيْرَ بُيُوتِكُمْ حَتَّى تَسْتَأْنِسُوا وَتُسَلِّمُوا عَلَى أَهْلِهَا سورة النور 27
“ऐ इमान वालो!अपने घरों के अतिरिक्त किसी अन्य घर में न जाओ जब तक कि अनुमति न ले लो, और वहां के रहने वालों को सलाम न कर लो।” ( सूरः अल-नूर 27)
घर के अंदर न देखा जाएः
कुछ लोगों की घर में और ऊपर नीचे झांकने की आदत होती है, ऐसे लोग अच्छे स्वभाव के कदापि नहीं हो सकते। सहल बिन साद रज़ि. बयान करते हैं कि एक व्यक्ति ने मोके से मुहम्मद सल्ल. के घर में झांका, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास उस समय एक कंघी थी जिस से सर खुजला रहे थे। आपने फरमायाः
لو أعلم أنك تنظر لطعنت به في عينك، إنما جُعل الاستئذان من أجل البصر متفق عليه
“यदि मुझे पता हुता कि तुम देख रहे हो तो मैं ने इस कंघी से तेरी आंख में मारा होता। देखने के भय से ही ना अनुमति लेने का आदेश दिया गया है।” (सहीह बुख़ारी, सहीह मुस्लिम)
और हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः “यदि किसी व्यक्ति ने तुम्हारे घर में बिना तुम्हारी अनुमति के झांका और तुमने उसे कंकड़ी फेंक कर मारा और उसकी आंख फूट गई तो तुम्हारे ऊपर कोई पाप नहीं।” (बुख़ारी, मुस्लिम)
अनुमति लेने का तरीक़ाः
अनुमति लेने का तरीक़ा यह है कि आदमी द्वार पर खड़े हो कर अस्सलामु अलैकुम कहते हुए कहेः क्या मैं प्रवेश कर सकता हूं?
रिबई कहते हैं कि मुझ से बनू आमिर के एक व्यक्ति ने बयान किया किः
أَنَّهُ اسْتَأْذَنَ عَلَى النَّبِيِّ صلى الله عليه وسلم وَهُوَ فِي بَيْتٍ فَقَالَ : أأَلِجُ ؟ فَقَالَ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم لِخَادِمِهِ : ” أخْرُجْ إِلَى هَذَا فَعَلِّمْهُ الاِسْتِئْذَانَ ، فَقُلْ لَهُ : قُلِ : السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ ، أَأَدْخُلُ ” ، فَسَمِعَهُ الرَّجُلُ فَقَالَ : السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ ، أَأَدْخُلُ ؟ فَأَذِنَ لَهُ النَّبِيُّ صلى الله عليه وسلم فَدَخَلَ ” أخرجه أبو داود وأحمد وهو حديث صحيح ، صححه الألباني
“उन्हों ने अल्लाह के रसूल सल्ल. से घर में प्रवेश करने की अनुमति चाही, उस समय आप घर में थे, उसने कहाः क्या मैं प्रवेश कर सकता हूं? नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने सेवक से कहाः उसके पास निकलो और उसे अनुमति लेने का तरीक़ा सिखाओ, उससे कहो कि वह कहेः अस्सलामु अलैकुम, क्या मैं प्रवेश कर सकता हूं? उसने सुन लिया, अतः उसने कहाः अस्सलामु अलैकुम, क्या मैं प्रवेश कर सकता हूं? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसे अनुमति दे दी और वह दाख़िल हो गया।” ( सुनन अबी दाऊद, मुस्नद अहमदः अल-बानी ने इसे सहीह कहा है)
अनुमति लेने वाला कहाँ खड़ा हो ?
अनुमति लेने वाले को चाहिए कि वह द्वार के बिल्कुल सामने न खड़ा हो, बल्कि दायें या बायें ओर खड़ा हो ताकि सीधे घर में नज़र न पड़ सके।
“साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक व्यक्ति आया और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दरवाज़े पर सामने खड़ा हो गया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः दायें या बायें ओर खड़ा हो कि अनुमति लेने का आदेश नज़र पड़ जाने के भय से ही है।”(अबू दाऊद, अल्लामा अल-बानी ने इसे सही कहा है)
“अब्दुल्लाह बिन बुस्र कहते हैं कि नबी सल्ल. जब किसी दरवाज़े पर आते थे तो दरवाज़े के बिल्कुल सामने मुंह करके नहीं खड़े होते थे बल्कि दरवाज़े के दायें या बायें ओर खड़े होते थे और कहते थे अस्सलामु अलैकुम, अस्सलामु अलैकुम।” (मुस्नद अहमद, अबूदाऊद)
अनुमति लेने वाले को चाहिए कि अपना नाम बताएः
जब आप किसी के दरवाज़े पर दस्तक देंगे और वह आपके लिए दरवाज़ा खोलना चाहता है तो विदित है कि वह दरवाज़ा खोलने से पहले आपका नाम जानना चाहेगा, इस लिए अपना नाम बताने में किसी प्रकार के झिझक का अनुभव नहीं करना चाहिए।
हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं किः
« أتيت النبي صلى الله عليه وسلم في دَيْن كان على أبي فدققت الباب فقال: من ذا ؟ فقلت أنا، فقال : أنا أنا كأنه كرهها متفق عليه
“मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक क़र्ज़ में सहायता मांगने के लिए आया जो हमारे बाप पर था। मैं ने दरवाज़ा पर दस्तक दिया तो आपने पूछाः कौन ? मैंने कहाः मैं, तो आपने दरवाज़ा खोलते हुए कहाः मैं मैं मानो आपने इसे अप्रिय समझा।”(बुख़ारी, मुस्लिम)
अपने रिश्तेदारों के पास दाखिल होने से पहले अनुमतिः
इब्ने मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि तुम्हें चाहिए कि अपनी माओं के पास भी जाओ तो अनुमति ले लो। (तबरानी, अल्लामा अल-बानी ने इस हदीस को सही कहा है)
अता कहते हैं कि मैं ने इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा से पूछा कि क्या अपनी बहन के पास जाते समय भी उन से अनुमति चाहूं? उन्हों ने कहाः हां, मैंने कहाः वह दोनों तो मेरी निगरानी में हैं। आप ने फरमायाः क्या तुम उन दोनों को नंगी देखना पसंद करोगे। (अल-अदबुल मुफ्रद लिल-बुख़ारी)
दरवाज़े पर सख्ती से दस्तक न दिया जाएः
दरवाज़े पर दस्तक देते समय ज़ोर ज़ोर से दरवाज़ा पीटना अच्छी बात नहीं बल्कि इतनी ज़ोर से दरवाज़ा मारा जाए कि आवाज़ अंदर चली जाए।
अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दरवाज़ों पर नाख़ुनों से दस्तक दिए जाते थे। “( अल- अदबुल मुफ्रदः बुख़ारी )
तीन बार अनुमति लेः
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
إِذَا اسْتَأْذَنَ أَحَدُكُمْ ثَلاَثاً فَلَمْ يُؤْذَنْ لَهُ ، فَلْيَرْجِعْ متفق عليه
तुम में से जिस किसी व्यक्ति ने तीन बार अनुमति चाही परन्तु उसे अनुमति न मिल सकी तो उसे चाहिए कि लौट जाए। (बुख़ारी, मुस्लिम)
इमाम मालिक रहिमहुल्लाह कहते हैं- “अनुमति तीन बार ली जाए, मैं पसंद नहीं करता कि कोई तीन से अधिक बार अनुमति चाहे, हां यदि किसी के सम्बन्ध में पता लगा कि उसने सुना नहीं है तो तीन से अधिक बार अनुमति लेने में कोई हर्ज नहीं जब कि उसे विश्वास हो कि वास्तव में उसने नहीं सुना है।”(अत्तम्हीदः इब्ने अब्दुल बर 3/192)
दरवाज़े पर तीन बार ठहर ठहर कर दस्तक दे, और उत्तम है कि दस्तक देने के साथ हर बार सलाम करे।
अनुमति न मिलने पर लौट जाएः
यदि अनुमति न मिल सके तो घर वालों के सम्बन्ध में कोई बुरा ख्याल न रखें और वहाँ से लौट जाएं कि विदित है कि किसी सही कारण के आधार पर ही आपको अनुमति नहीं मिली हैः अल्लाह ने फरमायाः
فَإِن لَّمْ تَجِدُوا فِيهَا أَحَدًا فَلَا تَدْخُلُوهَا حَتَّىٰ يُؤْذَنَ لَكُمْ ۖ وَإِن قِيلَ لَكُمُ ارْجِعُوا فَارْجِعُوا ۖ هُوَ أَزْكَىٰ لَكُمْ ۚ وَاللَّـهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ سورة النور 28
फिर यदि उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो जब तक कि तुम्हें अनुमति प्राप्त न हो। और यदि तुमसे कहा जाए कि वापस हो जाओ तो वापस हो जाओ, यही तुम्हारे लिए अधिक अच्छी बात है। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम करते हो (सूरः अल-नूर आयत 28)
जिसे अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं:
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनको अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती जैसे उनके पास बुलाने के लिए आदमी गया रहा हो, तो ऐसे लोगों को अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं क्यों कि घर के सदस्य उसकी प्रतिक्षा कर रहे होते हैं।
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
رَسُولُ الرَّجُلِ إِلَى الرَّجُلِ إِذْنُهُ أخرجه أبو داود وصححه الألباني في الإرواء : سنده صحيح على شرط مسلم 7/17
“एक आदमी का एक आदमी के पास भेजा जाना उसके लिए अनुमति है।”(सुनन अबी दाऊद)
निलकते समय अनुमति लेः
यदि एक व्यक्ति किसी के पास गया अब वह घर से निकलना चाहता है तो उसे चाहिए कि निकलने से पहले घर के सदस्य से अनुमति प्राप्त कर ले। क्यों कि सम्भव है कि बिना अनुमति के निकलेगा तो ऐसी चीज़ पर उनकी निगाह पड़ सकती है जिसे देखना उसके लिए उचित नहीं था और अनुमति लेने का आदेश इसी लिए है कि नज़र न पड़ जाए। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
إذَا زَارَ أحَدُكُمْ أخَاهُ فَجَلَسَ عِنْدَهُ ، فَلا يَقُومَنَّ حَتَى يَسْتَأذِنَهُ ” صححه الألباني في صحيح الجامع برقم 583 ، وأورده في السلسلة الصحيحة وصححه 1/354
“जब तुम में का एक व्यक्ति अपने भाई की ज़ियारत करे और उसके पास बैठे तो उठने से पहले उस से अनुमति अवश्य प्राप्त कर ले।” (सहीहुल जामिअ 583, सिलसिला सहीहा 1/354)
बच्चों का अनुमति चाहनाः
जो बच्चे व्यस्क न हुए हों अथवा लड़कियों के प्रति उनमें उठान न आई हो उनके लिए घर में प्रवेश करते समय अनुमति लेना आवश्यक नहीं, परन्तु तीन वक़्तों में उनके लिए भी अनुमति लेना आवश्यक हैः
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لِيَسْتَأْذِنكُمُ الَّذِينَ مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ وَالَّذِينَ لَمْ يَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنكُمْ ثَلَاثَ مَرَّاتٍ مِن قَبْلِ صَلَاةِ الْفَجْرِ وَحِينَ تَضَعُونَ ثِيَابَكُم مِّنَ الظَّهِيرَةِ وَمِن بَعْدِ صَلَاةِ الْعِشَاء ثَلَاثُ عَوْرَاتٍ لَّكُمْ لَيْسَ عَلَيْكُمْ وَلَا عَلَيْهِمْ جُنَاحٌ بَعْدَهُنَّ طَوَّافُونَ عَلَيْكُم بَعْضُكُمْ عَلَى بَعْضٍ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ وَاللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ النور58
“ऐ ईमान लानेवालो! जो तुम्हारी मिल्कियत में हो और तुममें जो अभी युवावस्था को नहीं पहुँचे है, उनको चाहिए कि तीन समयों में तुमसे अनुमति लेकर तुम्हारे पास आएँ: प्रभात काल की नमाज़ से पहले और जब दोपहर को तुम (आराम के लिए) अपने कपड़े उतार रखते हो और रात्रि की नमाज़ के पश्चात – ये तीन समय तुम्हारे लिए परदे के हैं।” (सूरः अल-नूर 58)
फज्र की नमाज़ से पहले, दो पहर में जब आराम कर रहे हों, और ईशा के बाद, इन तीन वक़्तों में छोटे बच्चों के लिए ज़रूरी है कि अनुमति प्राप्त करें। इस वक़्तों में अनुमति प्राप्त करने की हिकमत यह है कि इन वक़्तों में सामान्य रूप में इनसान विश्राम करने के लिए तैयार होता है और ऐसे कपड़े में होता है जिसमें उसकी पसंद नहीं होती कि सब उसे देख सकें। इस लिए इन तीन वक़्तों में झोटे बच्चों के लिए अनुमति लेना आवश्यक है।
विदित होना चाहिए कि आज के युग में कितने बच्चे दस वर्ष की आयु से पहले ही स्त्रियों के परदे की बातों से परिचित हो जाते हैं ऐसे बच्चों के लिए मात्र तीन समय की क़ैद नहीं है बल्कि उनके लिए आवश्यक है कि हर समय अनुमति लेकर ही घर में प्रवेश करें।
नमाज़ पढ़ने वाले की अनुमतिः
यदि घर वाले नमाज़ पढ़ रहे हों और कोई ऐसी स्थिति में घर में प्रवेश करना चाहता है तो शरीअत का आदेश यह है कि यदि महिला हो तो ताली बजाए, अर्थात् हाथ पर हाथ मारे, और यदि परुष हो तो सुब्हानल्लाह कह दे। यह इस बात का प्रमाण होगा कि दोनों की ओर से अनुमति मिल गई है। हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः
إذا استؤذن على الرجل وهو يصلي ، فإذنه التسبيح ، وإذا استؤذن على المرأة وهي تصلى ، فإذنها التصفيق أخرجه البيهقي وصححه الألباني في صحيح الجامع برقم 320 .
“जब पुरुष से अनुमति तलब की जाए और वह नमाज़ पढ़ रहा हो तो उसकी अनुमति सुब्हानल्लाह कहना है और यदि महिला से अनुमति मांगी जाए और वह नमाज़ पढ़ रही हो तो उसकी अनुमति ताली मारना है।” (सुनन बैहक़ी, अल्लामा अलबानी ने इसे सहीहुल जामिए 329 में सही कहा है।)
यह संक्षिप्त में अनुमति लेने के कुछ शिष्टाचार थे जिन्हें बयान करने का उद्देश्य मात्र यह है कि हम इस्लामी जीवन व्यवस्था के दर्पण में अपना व्यवहारिक जीवन बिता सकें। अल्लाह हमें इसकी तौफीक़ प्रदान करे। आमीन