“यदि क़यामत का समय आ जाए और तुम में से किसी के हाथ में खजूर के पौधे हों और वह महा-प्रलय के बरपा होने से पहले पौधे को लगा सकता हो तो लगा दे क्योंकि उसे इसके बदले पुण्य मिलेगा।” (सही जामिअ़ हदीस संख्या 1424).

हदीस यह हैः “यदि क़यामत का समय आ जाए और तुम में से किसी के हाथ में खजूर के पौधे हों और वह महा-प्रलय के बरपा होने से पहले पौधे को लगा सकता हो तो लगा दे क्योंकि उसे इसके बदले पुण्य मिलेगा।” (सही जामिअ़ हदीस संख्या 1424). सुनने वालों को मुहम्मद सल्ल0 को मुख से यह वाक्य सुनने की अपेक्षा भी मुश्किल से हो सकती थी. उन्हें यह उम्मीद हो सकती थी कि मुहम्मद सल्ल0 जो दुनिया में इसलिए भेजे गए थे कि लोगों को परलोक की याद दिलाएँ, इस के लिए काम करने पर उभारें और उन्हें यह निमंत्रण दें कि महा-प्रलय के भयानक दिन की तैयारी के लिए अपने दिलों को पाक साफ करें, यह बताएं कि ऐसे गम्भीर अवसर पर लोगों को जल्दी से अपने पापों की क्षमा मांगनी चाहिए यदि आप यह कहते तो क्या आश्चर्य की बात होती? लेकिन मुहम्मद सल्ल0 ने ऐसा कुछ नहीं फरमाया अपितु ऐसी बात फ़रमाई जो सुनने वाले उम्मीद भी नहीं कर सकते थे. आपने यह कहा कि अगर किसी के हाथ में कोई खजूर के पौधे (अर्थात कोई भी पौधे) हों और वह क़यामत से पहले उसे लगा सकता हो तो अवश्य लगा दे क्योंकि उस पर भी उसे पुण्य मिलेगा। ज़रा सोचिए! खजूर के पौधे लगाने का निर्देश दिया जा रहा है जो कई वर्षों बाद फल दे सकता है और क़ियामत बस कुछ छणों में संसार को नष्ट- भ्रष्ट कर देने वाली है जिसमें कोई संदेह ही नहीं!! क्या ऐसी बात इस्लाम के संदेष्टा की जबाने मुबारक से निकल सकती है….जी हाँ ! इस संक्षिप्त से वाक्य में न जाने कितने अर्थ निहित हैं: सबसे पहले तो वह इस तथ्य को उजागर करता है कि परलोक का रास्ता दुनिया के रास्ते से होकर गुज़रता है। दुनिया और परलोक के रास्ते भिन्न भिन्न नहीं। दोनों एक ही रास्ते के दो किनारे हैं। ऐसा नहीं है कि प्रलोक सुधारने के लिए संसार त्याग कर दो, सांसारिक भोगों से कट जाओं। दीन और दुनिया के रास्ते अलग अलग न करो अपितु दोनों रास्ता एक ही हैं और वह है अल्लाह की ओर ले जाने वाला रास्ता। इस हदीस से यह पाठ भी मिलता है कि धरती से एक क्षण के लिए भी परिणाम से निराशा के कारण काम नहीं रोकना चाहिए। यहाँ तक कि यदि एक क्षण बाद ही महा-प्रलय आने वाला हो, संसार से मानव जीवन का सिलसिला ही टूट जाने वाला हो और उसके प्रयास का कोई प्रत्यक्ष परिणाम न निकल सकता हो, तब भी लोगों को काम नहीं रोकना चाहिए, उन्हें भविष्य को आशा के साथ देखना चाहिए। आज के आलस्य मुसलमानों के सामने मुहम्मद सल्ल0 का यह आदर्श है, यदि वह इस से पाठ लेना चाहें। इस प्रवचन के आधार पर उनकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह निरंतर काम करते रहें और थकने का नाम न लें। वह पौधे लगाएँ चाहे महा-प्रलय अगले ही क्षण आने वाला हो। वह यह न सोचें कि हम इस से लाभ न उठा सकेंगे। उनका काम है करते रहना परिणाम के चक्कर में न पड़ना।