आज विश्व रेडियो दिवस है, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस दौर में हम रेडियो के महत्व से इनकार नहीं कर सकते, आज भी रेडियो सुनने का एहतमाम किया जाता है, यह आम जनता से सम्पर्क करने का उत्तम स्रोत है, एक आदमी अपने घर बैठे देश-विदेश में प्रसारित होने वाला कार्यक्रम सरलता पूर्वक सुन सकता है। इसी लिए आज बातिल के प्रचारक रेडियो द्वारा अपने बातिल विचार को फैलाने में रात दिन एक किए हुए हैं।
एक बार मेरी बस्ती का एक अनपढ़ युवा मेरे पास रेडियो लेकर आया और ईसाई मशीनरीज़ का प्रसारण सुनाते हुए कहने लगा कि देखो ना पाकिस्तान से कितना अच्छा देनी कार्यक्रम प्रसारित होता है, हालांकि वह ईसाई उपदेशक था जो बाईबल से से उर्दू में नबियों के किस्से सुनाकर ईसाई धर्म का प्रचार कर रहा था।
इन पंक्तियों का लेखक अपने ज्ञान और दक्षता की कमी के बावजूद एक समय से रेडियो कुवैत पर देनी कार्यक्रम प्रस्तुत करता आ रहा है, हमनें कार्यक्रम की तैयारी और प्रस्तुति में जहाँ तक हो सका कोशिश की कि श्रोताओं को बेहतर से बेहतर सामग्री प्रदान किया जा सके, जिसे रेडियो के ज़िम्मेदारों और श्रोताओं ने बेहद पसंद किया, और अल्लाह का शुक्र है कि अब तक यह सिलसिला जारी है, इस कार्यक्रम के माध्यम से कितने पुरुषों और महिलाओं को इस्लाम स्वीकार करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और अल-हम्दुलिल्लाह आज वे इस्लाम पर जमे हुए हैं, कितने घरों का सुधार हुआ, कितने युवाओं ने पश्चाताप किया और सीधे रास्ते पर आ गए। अल-हम्दुलिल्लाह
अभी कुछ महीना पहले IPC पब्लिक रिलेशन्स के निदेशक जौदा अलफ़ारिस किसी कुवैती से मिलने गए, कुवैती का एक कर्मचारी वहां मौजूद था, जो भारतीय है, और मेरा कार्यक्रम लगातार सुनता आ रहा है, जौदा अल-फ़ारिस ने कुवैती के सामने मेरा एक दावती क्लिप पेश किया तो युवक ने क्लिप देखते ही मुझे पहचान लिया, तुरंत अल-फ़ारिस ने उसकी भावनाओं को रिकॉर्ड कर लिया, जिसमें वह बता रहा है कि मैं दीन से बहुत दूर था, लेकिन शेख के कार्यक्रम ने मुझे जीने का सलीक़ा बताया, शैख़ को केवल एक नज़र देखना चाहता हूँ, यह शब्द उसकी ज़ुबान से निकल रहे थे और उसकी आँखें डबडबा गई थीं, मैं उसकी भावनाओं को सुनकर खुद बेकाबू हो गया, हालांकि मैंने कुछ नहीं किया।
तात्पर्य यह कि अगर मुस्लिम विद्वानों की रेडियो तक पहुंच हासिल हो जाती है तो उन्हें चाहिए कि उसे ग़नीमत समझें, प्रोग्राम की पहले प्लानिंग करें और रूपरेखा बनायें, समाज को जिस चीज की जरूरत है उसके हिसाब से कार्यक्रम की तैयारी करें, सबसे बढ़ कर आज जरूरत है कि इस्लाम के विश्व व्यापी संदेश को प्रकट किया जाए जिस से मुस्लिम और गैर मुस्लिम दोनों लाभ उठायें। उसी प्रकार मुसलमानों के लिए अक़ाइद के मुद्दों को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाए, समाज सुधार पर ध्यान दिया जाए और मतभेद की बातों से पूरी तरह बचा जाए। ऐसे हजारों लोग हैं जो रेडियो कार्यक्रम सुन कर मुसलमान हुए हैं। इसका सकारात्मक पहलू यह है कि इससे पढ़ा लिखा और अनपढ़ वर्ग दोनों लाभ उठाता है इसलिए प्रोग्राम बिल्कुल सीधी, आसान और चलती फिरती भाषा में प्रस्तुत करना चाहिए।