Main Menu
أكاديمية سبيلي Sabeeli Academy

आत्म-हत्या की बढ़ती हुई मानसिकता और उसका समाधान

इस समय दुर्भाग्य से पूरी दुनिया में आत्म-हत्या का रुजहान बढ़ता जा रहा है। पश्चिमी देशों में सामाजिक व्यवस्था के बिखराव के कारण समय से आत्म-हत्या की बीमारी प्रचलिम है। भारत सरकार की तत्कालिन रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर एक घंटे में आत्म-हत्या की पंद्रह घटनाएं पेश आती हैं। खेद की बात यह है कि आत्म-हत्या की इन घटनाओं में एक अच्छी खासी संख्या पढ़े लिखे और उच्च शिक्षित युवकों की है । सप्ताह में चार पाँच दिन दैनिक अख़बारों में ऐसी ख़बरें मिल ही जाती हैं जिनमें महिलाओं की आत्म-हत्या का वर्णन होता है, यह घटनायें सामान्य रूप में ससुराल वालों के अत्याचार और पैसों के न खत्म होने वाली मांगों के कारण पेश आती हैं। ऐसे मां बाप की मौत भी अनोखी बात नहीं रही जो अपनी गरीबी के कारण अपनी बेटियों के हाथ पीले करने में असमर्थ हैं और ज़ालिम समाज ने उन्हें सख्त मानसिक तनाव में ग्रस्त किया हुआ है।

इसका कारण क्या है? और इसका समाधान कैसे सम्भव हो सकता है? आइए इस्लामी दृष्टिकोण से इस विषय पर विचार करते हैं:

मनुष्य पर अनिवार्य है कि वह संभवतः अपनी जान की सुरक्षा करे, क्योंकि जीवन उसके पास ईश्वर (अल्लाह) की अमानत है और अमानत की सुरक्षा करना हमारा नैतिक और मानवीय दायित्व है।  इसलिए इस्लाम की निगाह में आत्म-हत्या बहुत बड़ा पाप और गंभीर अपराध है। ऐसा पाप जो उसे दुनिया से भी वंचित करता है और परलोक से भी । खुद कुरआन ने आत्म-हत्या से मना फ़रमाया हैः अल्लाह (ईश्वर) का आदेश है:”अपने आप को क़त्ल मत करो”( सूरः अन्निसा: 29) और अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 के विभिन्य प्रवचनों में आत्म-हत्या का खंडन किया गया और बहुत सख्ती और बल के साथ आत्म-हत्या से मना किया गया है। आपने फरमायाः “जिसने अपने आप को पहाड़ से गिरा कर आत्म-हत्या की वह नरक की आग में भी इसी तरह हमेशा गिरता रहेगा और जिस व्यक्ति ने लोहे की हथियार से खुद को मारा वह नरक में भी हमेशा अपने पेट में हथियार घोंपता रहेगा।”(बुखारी)

एक दूसरे स्थान पर आपका आदेश हैः”गला घोंट कर आत्महत्या करने वाला नरक में हमेशा गला घोंटता रहेगा और अपने आप को भाला मार कर हत्या करने वाला नरक में भी हमेशा अपने आप को भाला मारता रहेगा।” (बुखारी) क़ुरआन और मुहम्मद सल्ल0 के प्रवचनों से अनुमान किया जा सकता है कि आत्म-हत्या इस्लाम की निगाह में कितना गंभीर अपराध है। यह वास्तव में जीवन की समस्याओं और मुश्किलों से भागने का रास्ता अपनाना है और अपनी ज़िम्मेदारियों से भाग निकलने का एक अवैध और अमानवीय उपाय है।

जो व्यक्ति अल्लाह पर विश्वास रखता हो, वह दृढ़ विश्वास रखता हो कि ख़ुदा समस्याओं की काली रात से आसानी और उम्मीद की नई सुबह पैदा कर सकता है, जो व्यक्ति भाग्य में विश्वास रखता हो कि खुशहाली और तंगी संकट और तकलीफ़ अल्लाह ही की ओर से है । धैर्य और संतोष मनुष्य का कर्तव्य है और जो परलोक में विश्वास रखता हो कि जीवन की परेशानियों से थके हुए यात्रियों के लिए वहाँ राहत और आराम है। ऐसा व्यक्ति कभी आत्म-हत्या की मानसिकता नहीं बना सकता।  आज आवश्यकचा इस बात की है कि आत्म-हत्या के नैतिक और सामाजिक नुकसान लोगों को बताए जाएं। समाज के निर्धनों और मकज़ोरों के साथ नरमी और सहयोग का व्यवहार किया जाए। घर और परिवार में प्रेम का वातावरण स्थापित किया जाए। बाहर से आने वाली बहू को प्यार का उपहार दिया जाए, रिती रिवाज की जिन जंजीरों ने समाज को घायल किया है, उन्हें काट फेंका जाए। शादी, विवाह के कामों को सरल बनाए जाएं और जो लोग मानसिक तनाव में ग्रस्त हों और समस्याओं में घिरे हुए हों उनमें जीने और समस्याओं और संकट से मुक़ाबला करने की साहस पैदा की जाए।

Related Post