अल्लाह के अनगिनत निर्माण में एक छोटा सा भाग पृथ्वी है जिसे उसने अनगिनत प्राणियों से सजाया है, अल्लाह ने पहले इंसान हज़रत आदम और उनकी पत्नी हव्वा अलैहिमास्सलाम को जन्नत के हमेशा रहने वाले आनंद से निकाल कर इस धरती पर बसाया और चेतावनी दी:
فَإِمَّا يَأْتِيَنَّكُم مِّنِّي هُدًى فَمَن تَبِعَ هُدَايَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ سورہ البقرہ 37
“ फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहुँचे तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया, तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।“ (सूरः अल-बक़रः 37)
अतः हर युग और हर समुदाय में नबियों और रसूलों द्वारा यह निर्देश आता रहा, जिन लोगों ने नबियों के निमंत्रण को स्वीकार किया और उनके संदेश का पालन किया वह सफलता पाए और जिन्हों ने इस निर्देश से इनकार किया, नबियों के आमंत्रण को ठुकराया और कुफ़्र तथा अवज्ञा पर आमादा हुए, और पृथ्वी में बिगाड़ पैदा करने लगे तो ऐसों पर अल्लाह का क्रोध टूटा और उन्हें धरती से नष्ट कर दिया गया, आज उनके निशान भी धरती पर नहीं बचे हैं, कुछ इस दुनिया से बिल्कुल नष्ट कर दिए गए, अब उनका अस्तित्व केवल इतिहास के पन्नों पर शेष रह गया है।
नूह अलैहिस्सलाम ने अपने समुदाय को साढ़े नौ सौ वर्ष तक समझाया, विभिन्न शैली और तरीके से उन्हें आमंत्रित किया, लेकिन समुदाय की शत्रुता और घमंड में अधिक वृद्धि होने लगी, जब नूह अलैहिस्सलाम उनके ईमान लाने से बिल्कुल निराश हो गए तो सर्वशक्तिमान अल्लाह से दुआ की:
وَقَالَ نُوحٌ رَّبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا إِنَّكَ إِن تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا – سورہ نوح27-26
“ और नूह ने कहा, “ऐ मेरे रब! धरती पर इनकार करनेवालों में से किसी बसनेवाले को न छोड (26) “यदि तू उन्हें छोड़ देगा तो वे तेरे बन्दों को पथभ्रष्ट कर देंगे और वे दुराचारियों और बड़े अधर्मियों को ही जन्म देंगे “। (सूरः नूहः 27-26)
अतःअल्लाह ने नूह अलैहिस्सलाम और उन पर ईमान लाने वालों के अलावा सब्हों को डबो दिया।
हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम की नाप तौल में कमी की रसिया थी, पाप करने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं था, भूमि फसाद और दंगा से भर गई थी। हज़रत शोएब अलैहिस्सलाम के उपदेश का उन पर कोई असर नहीं हुआ, अंततः बादलों के साये वाले दिन, जिब्रईल अलैहिस्सलाम की एक कड़ी चीख से पृथ्वी भूकंप से हिल उठी, जिस से उनके दिल उनकी आंखों में आ गए और घुटनों के बल बैठे ही बैठे उनकी मौत आ गई। कुरआन ने कहा:
فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَأَصْبَحُوا فِي دَارِهِمْ جَاثِمِينَ –سورہ العنکبوت 37
किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। अन्ततः भूकम्प ने उन्हें आ लिया। और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए (सूरः अन्कबूत 37)
आद समुदाय अपनी शक्ति में अभूतपूर्व थी, उनके नबी हज़रत हूद अलैहिस्सलाम थे, उनका इनकार किया और अपनी मूर्ति पूजा पर अपने पूर्वजों के अनुकरण को तर्क बनाया, अतः उस समुदाय पर तेज़ हवा की यातना आई जो सात रातों और आठ दिन तक लगातार जारी रहा, जिसने सब कुछ तहस-नहस करके रख दिया, अनके शरीर खुजूर के कटे हुए तनों के समान ज़मीन पर नजर आते थे. करआन ने कहा:
فَلَمَّا رَأَوْهُ عَارِضًا مُّسْتَقْبِلَ أَوْدِيَتِهِمْ قَالُوا هَـٰذَا عَارِضٌ مُّمْطِرُنَا ۚ بَلْ هُوَ مَا اسْتَعْجَلْتُم بِهِ ۖ رِيحٌ فِيهَا عَذَابٌ أَلِيمٌ تُدَمِّرُ كُلَّ شَيْءٍ بِأَمْرِ رَبِّهَا فَأَصْبَحُوا لَا يُرَىٰ إِلَّا مَسَاكِنُهُمْ ۚ كَذَٰلِكَ نَجْزِي الْقَوْمَ الْمُجْرِمِينَ – سورہ احقاف 25-24
“ फिर जब उन्होंने उसे बादल के रूप में देखा, जिसका रुख़ उनकी घाटियों की ओर था, तो वे कहने लगे, “यह बादल है जो हमपर बरसनेवाला है!’ “नहीं, बल्कि यह तो वही चीज़ है जिसके लिए तुमने जल्दी मचा रखी थी। – यह वायु है जिसमें दुखद यातना है। हर चीज़ को अपने रब के आदेश से विनष्ट- कर देगी।” अन्ततः वे ऐसे हो गए कि उनके रहने की जगहों के सिवा कुछ नज़र न आता था। अपराधी लोगों को हम इसी तरह बदला देते है “(सूरः अहकाफ 25-24)
समूद समुदाय बहुत ही अड़यल समुदाय थी जिनके नबी हज़रत सालिह अलैहिस्सलाम थे, उन्होंने अपने नबी से मांग की कि पत्थर की चट्टान से ऊँटनी निकाल कर दिखा, जिसे निकलते हुए हम अपनी आंखों से देखें, हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम ने उनसे संकल्प लिया कि इसके बाद भी अगर ईमान न लाए तो वे नष्ट कर दिए जाएंगे, अतः अल्लाह उनकी मांग पर ऊँटनी प्रकट कर दी, इस ऊँटनी के बारे उन्हें ताकीद की गई थी कि उसे बुरी नीयत से कोई व्यक्ति हाथ न लगाए अन्था अल्लाह की यातना आ जाएगी, लेकिन ज़ालिमों ने ऊँटनी को भी क़त्ल कर डाला, जिसके तीन दिन बाद उन्हें कठोर चीख और भूकंप के प्रकोप से मार डाला गया, जिससे वे अपने घरों में औंधे के औंधे पड़े रह गए। कुरआन ने कहा:
فَأَخَذَتْهُمُ الرَّجْفَةُ فَأَصْبَحُوا فِي دَارِهِمْ جَاثِمِينَ – سورہ الأعراف 78
अन्ततः भूकम्प ने उन्हें आ लिया। और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए । (सूरः अल-आराफ 78)
हज़रत लूत अलैहिस्सलाम की क़ौम दूसरी बड़ाइयों के साथ लिवातत (गुदामैथुन) की इच्छुक थी, गुदामैथुन के यह रोगी महिलाओं की बजाय पुरुषों से यौन इच्छा पूरी करते थे, इस लिहाज से वह बिल्कुल पशुओं की तरह थे जो मात्र वासना के लिए एक दूसरे पर चढ़ते थे।
लूत अलैहिस्सलाम ने उन्हें बार-बार समझाया, इस बुरे काम के घृणित होने का खोल खोल कर बयान किया लेकिन वे टस से मस न हुए तो अल्लाह ने उनकी बस्ती को नष्ट करके रख दया.करआन ने कहा:
فَلَمَّا جَاءَ أَمْرُنَا جَعَلْنَا عَالِيَهَا سَافِلَهَا وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهَا حِجَارَةً مِّن سِجِّيلٍ مَّنضُودٍ –سورہ ھو د آیت 82
फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने उसको तलपट कर दिया और उसपर ककरीले पत्थर ताबड़-तोड़ बरसाए, (सूरः हूदः 82)
लेकिन अब उसी प्रकृति के खिलाफ चलने और सीमा पार करने को पश्चिम की संस्कृति ने अपना लिया है तो अब यही कार्य इंसानों का मौलिक अधिकार घोषित कर दिया गया है जिससे रोकने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए अब वहाँ गुदामैथुन को कानूनी संरक्षण प्राप्त हो गया है, और यह सिरे से अपराध ही नहीं रहा।
यह तो पश्चिम की बात हुई, पूर्वी देश जिनके पास अपनी विशेष सभ्यता थी, जिन्हें अपनी संस्कृति पर गर्व था आज विकसित कहलाने के गुमान में पश्चिम की हर आदत को अपनाने पर तुले हुए हैं क्या देखते नहीं कि प्राचीन सभ्यता पर गर्व करने वाले हमारे देश भारत के एक हाईकोर्ट ने पिछले साल समलैंगिकता के पक्ष में फैसला सुनाया था यानी परुष का पुरष के साथ और महिला का महिला के साथ यौन संबंध कानूनी अधिकार होना चाहिए, लेकिन भारत की सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत देश में समलैंगिक संबंध अवैध है।
गुदामैथुन जैसी अप्राकृतिक हरकत करने वालों पर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तीन बार लानत भेजी हैः
لعن اللهُ من عَمَلَ عَمَلَ قومِ لوطٍ– مسند أحمد: 4/326
अल्लाह की लानत है उस व्यक्ति पर जो लूत समुदाय वाली प्रक्रिया करे। (मुस्नद अहमद: 4/326)
और उनके परिणाम के बारे में कहा कि:
من وجدتموه يعمل عمل قوم لوط فاقتلوا الفاعل والمفعول به –سنن أبی داؤد: 4462، سكت عنه
जब किसी व्यक्ति को देखो कि लूत समुदाय वाला काम कर रहा है तो यह काम करने वाले और जिनके साथ किया जा रहा है दोनों को क़त्ल कर दो. (सुनन अबी दाऊद: 4462)
क्यों कि यह धर्म तो क्या प्रकृति के विरोध है, इसी लिए जानवर भी ऐसा काम नहीं करते, वास्तव में यह सब क़्यामत के लक्षण हैं जो धीरे धीरे प्रकट हो रहे हैं।
उसी प्रकार जब मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में फिरौन ने अत्याचार और घमंड किया और रब होने का दावा कर बैठा तो अल्लाह ने विभिन्न रूप में उसे चेतावनी दी, तूफान भेज कर, टिड्डी द्वारा जो उनकी खेतियों और फसलों को खा कर चट कर जातीं, जुयें जो उनके शरीर, कपड़े और बालों में हो जाती थीं, उसी तरह मेंढक ही मेंढक हो गए जो उनके खानों में बेड में रखे हुए अनाज में तात्पर्य यह हर जगह और हर तरफ मेंढक ही मेंढक हो गये जिस से उनका खाना, पीना, सोना और आराम करना हराम हो गया, साथ ही पानी खून बन जाया करता था, लेकिन उनके दिल में जो घमंड और दिमागों में जो अहंकार था, वह सही रास्ते में उनके लिए रुकावट बना रहा था और बड़े बड़े संकेत के बावजूद ईमान लाने के लिए तैयार नहीं हुए अंततः अल्लाह ने उसे पूरे लश्कर सहित एक सुबह नदी डुबा दिया।
अल्लाह तआला ने फरमाया:
فَانتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَأَغْرَقْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ بِأَنَّهُمْ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا وَكَانُوا عَنْهَا غَافِلِينَ –سورہ الأعراف 136
“ फिर हमने उनसे बदला लिया और उन्हें गहरे पानी में डूबो दिया, क्योंकि उन्होंने हमारी निशानियों को ग़लत समझा और उनसे ग़ाफिल हो गए ।“ (सूरः अल-आराफ 136)
कारून जिसे माल और दौलत के खजाने प्रदान किए गए थे, उसके ख़जाने की कुंजी का बोझ इतना अधिक था कि एक शक्तिशाली दल भी उसे उठाते हुए दिक्कत महसूस करना था लेकिन वह इस घमंड में पड़ गया कि धन इस बात की दलील है कि मैं अल्लाह के यहां वह सम्मानित और आदरणीय हूँ, मुझे मूसा की बात मानने की क्या जरूरत है, तब उसे अपने खजाने और भवन सहित जमीन में धंसा दिया गया।
कुरआन ने कहा:
فَخَسَفْنَا بِهِ وَبِدَارِهِ الْأَرْضَ فَمَا كَانَ لَهُ مِن فِئَةٍ يَنصُرُونَهُ مِن دُونِ اللَّـهِ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُنتَصِرِينَ –سورہ القصص 81
“ अन्ततः हमने उसको और उसके घर को धरती में धँसा दिया। और कोई ऐसा गिरोह न हुआ जो अल्लाह के मुक़ाबले में उसकी सहायता करता, और न वह स्वयं अपना बचाव कर सका “ (सूरः अल-क़सस 81)
न गोरे सिकंदर न है कब्रे दारा
मिटे नामयों के निशां कैसे कैसे
यह तो रही कुरआन में वर्णित इन मर्दूद क़ौमों की संक्षिप्त झलक जिन्हों ने जब अल्लाह के आदेश से मुंह मोड़ा, विद्रोह पर उतर आए और अवज्ञा करने लगे तो अल्लाह ने देखते ही देखते उनका किस्सा समाप्त कर दिया।
आज 21 शताब्दि में भी इस धरती पर जो समुद्री तूफान और प्राकृतिक आपदा आए हैं और आ रहे हैं उनका भी संबंध कुछ इसी से है, इनसान को जब कभी जानी-माली क्षति हुई है उसका कारण वास्तव में अल्लाह की अवज्ञा और उसके आदेशों से दूरी और गफ़लत ही रहा है।
अल्लाह का आदेश है:
وَمَا أَصَابَكُم مِّن مُّصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَن كَثِيرٍ – سورہ الشوری 30