इस्रा व मेराज एक महान घटना

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बहुत परिशान और ग़मों में डूबे हुए थे। अल्लाह की ओर निमंत्रण के रास्ते में प्रत्येक प्रकार की कठिनाईयां का सामना कर रहे थे। उस समय अल्लाह तआला ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बहुत ही बड़ा पुरस्कार दे कर बहुत सम्मानजनक स्थान पर स्थापित किया। वह सम्मानजनक स्थान इस्रा व मेराज का स्थान है। इस्रा व मेराज की महान घटना की सही तिथि और वर्ष के प्रति इतिहासकारों के बीच मतभेत है। कोई भी सही और स्पष्ट रिवायत नहीं मिलती, जिस से इस्रा व मेराज की सही तिथि और वर्ष का पता चल सके, जिस कारण बड़े बड़े विद्वानों के बीच मतभेत है।

अल्लामा सफीउर्रहमान मुबारकफूरी ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक अर्रहीक़ुल मख्तूम में इस्रा व मेराज के प्रति इतिहासकारों के मतभेत को इस प्रकार बयान किया है।

  • इस्रा व मेराज की घटना उसी वर्ष पेश आइ, जिस वर्ष अल्लाह ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को नबी बनाया। (इमाम तबरी)
  • इस्रा व मेराज की घटना आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के नबी बनाए जाने के पांचवें वर्ष पेश आई। (इमाम क़ुरतुबी व इमाम नववी)
  • इस्रा व मेराज की घटना 27 रजब सन 10 नुबुव्वत को घटित हुई। (अल्लामा मन्सूर पूरी)
  • इस्रा व मेराज की घटना हिजरत से 16 महीने पहले घटित हुई। अर्थातः रमज़ान सन 12 नुबुव्वत को घटित हुई।
  • इस्रा व मेराज की घटना हिजरत से 14 महीने पहले घटित हुई। अर्थातः मुहर्रम सन 13 नुबुव्वत को घटित हुई।
  • इस्रा व मेराज की घटना हिजरत से एक वर्ष पहले घटित हुई। अर्थातः रबीउल अव्वल सन 13 नुबुव्वत को घटित हुई।

यह सब इतिहासकारों की बातें बयान करने के बाद मुबारकपूरी अपनी बहुचर्चित पुस्तक में लिखते हैं:

प्रथम के तीनों बातों को अस्वीकार किया जाता है। क्योंकि रमज़ान सन 10 नुबुव्वत में खदीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) का देहान्त हो गया। निः संदेह पांच समय के नमाज़ के अनिवार्य होने से पहले ही खदीजा (रज़ियल्लाहु अन्हा) का देहान्त हो गया और सब इतिहासकारों की सहमति है कि पांच समय की नमाज़ें इस्रा व मेराज में ही अनिवार्य हुई है।

बाद के तीनों राय के प्रति कोई एक बात प्रमाणति नहीं है कि किस सन और किस तिथि को इस्रा व मेराज की घटना घटित हुई। परन्तु सुरतुल इस्रा के अवतरित से यही स्पष्ट होता है कि इस्रा व मेराज की घटना हिजरत से कुछ पहले घटित हुई। (अर्रहीक़ुल मख्तूमः 208)

इस्रा व मेराज की तैयारीः

इस्रा व मेराज एक महान घटना के लिए अल्लाह तआला के आज्ञानुसार जिबरील फरिश्ते आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अपने घर से उठाकर खाना काबा ले गए और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का सीना चाक कर के आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हृदय को ज़मज़म के पानी से धोया और मानव अशुद्ध विचारों, कल्पनाओं और शैतानी वस्वसों को निकाल फेंका गया ताकि अल्लाह से मुलाकात के समय आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का हृदय, शरीर तथा मन बिल्कुल पवित्र और साफ हो।

इस्रा व मेराज की परिभाषाः

इस्रा की परिभाषाः ” अल्लाह तआला के आज्ञा से जिबरील फरिश्ते के साथ आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के शरीर मुबारक के साथ बुराक़ पर बैठ कर मस्जिद हराम से ले कर मस्जिद अक्सा तक के यात्रा को इस्रा कहते है।

मेराज की परिभाषाः ” अल्लाह तआला के आज्ञा से जिबरील फरिश्ते के साथ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को शरीर मुबारक के साथ मस्जिद अक्सा से ले कर आकाश में ले जाया गया ” जहां आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बहुत सारे नबियों और रसूलों से मुलाकात कराया गया, फिर अल्लाह से बिना किसी माध्यम के बात चीत करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ और जहां अल्लाह तआला की बहुत सी निशानियों का दर्शन कराया गया। इसे मेराज कहा जाता है।

नबी को शरीर के साथ पुरी बेदारी की स्तिथि में इस्रा व मेराज कर वाया गया।

जैसा कि अल्लाह तआला ने इस्रा के प्रति फरमायाः

” سبحان الذي اسرى بعبده ليلا من المسجد الحرام إلى المسجد الأقصى الذي باركنا حوله لنريه من آياتنا انه هو السميع البصير” [ سورة بني اسرائيل: 1

पाक और पवित्र है वह जो एक ही रात में अपने बन्दे को प्रतिष्ठित मस्जिद (मस्जिद हराम) से दूर की मस्जिद (मस्जिद अक़्सा) ले गया, जिस के आस पास उसने बरकत दे रखी हैं, ताकि उसे अपनी निशानियां दिखलाए, वास्तव में वह सब कुछ सुन्ने और देखने वाला है। (सूरह इस्राः 1)

इस्रा व मेराज की कुछ महत्वपूर्ण घटना को एक हदीस की रोशनी में जानते हैः

अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमयाः मेरे लिए बुराक लाया गया और बुराक सफैद लम्बा और गधा से बड़ा और खच्चर से छोटा जानवर है, जो अपने निगाह की दूरी तक अपना पहला कदम रखता है, तो मैं उस पर सवार हो गया और मस्जिदे अक्सा आया और बुराक को उस कड़े से बान्ध दिया जिस से दुसरे नबी अपने जानवर बांधा करते थे। फिर मस्जिद में दाखिल हुआ और दो रकआत नमाज़ पढ़ाया और फिर मस्जिद से निकला तो जिबरील मेरे पास एक शराब से भरा बर्तन और दुसरा दूध से भरा बर्तन ले कर आए। तो मैं ने दूध का चयन किया, तो जिबरील ने कहा, तुम ने प्राकृतिक का चयन किया है, फिर जिबरील मुझे ले कर आकाश की ओर चढ़ने लगे। तो जिबरील ने आकाश का दरवाज़ा खुलवाया, तो आवाज आई तुम कौन हो, तो जिबरील ने कहाः मैं जिबरील हूँ, तो आवाज आई तुम्हारे साथ कौन है ?, जिबरील ने उत्तर दियाः मेरे साथ मुहम्मद है। तो आवाज आईः क्या उन्हें बुलाया गया है ?, तो जिबरील ने उत्तर दियाः हाँ, उन्हें निमन्त्रण दिया गया है। तो हमारे लिए आकाश का द्वार खोला गया, तो सामने आदम (अलैहिस्सलाम) उपस्थित थे, तो आदम (अलैहिस्सलाम) ने मेरा हार्दिक स्वागतम किया और मेरे लिए भलाइ की दुआ दी। फिर मुझे दुसरे आकाश की ओर ले जाया गया, तो जिबरील ने आकाश का दरवाज़ा खुलवाया, तो आवाज आई तुम कौन हो, तो जिबरील ने कहाः मैं जिबरील हूँ, तो आवाज आई तुम्हारे साथ कौन है ?, जिबरील ने उत्तर दियाः मेरे साथ मुहम्मद है। तो आवाज आईः क्या उन्हें बुलाया गया है ?, तो जिबरील ने उत्तर दियाः हाँ, उन्हें निमन्त्रण दिया गया है। तो हमारे लिए आकाश का द्वार खोला गया, तो सामने ईसा और यहया (अलैहिमस्सलाम) उपस्थित थे, तो उन दोनों ने मेरा हार्दिक स्वागतम किया और मेरे लिए भलाइ की दुआ दी। फिर मुझे तीसरे आकाश की ओर ले जाया गया, तो जिबरील ने आकाश का दरवाज़ा खुलवाया, तो आवाज आई तुम कौन हो, तो जिबरील ने कहाः मैं जिबरील हूँ, तो आवाज आई तुम्हारे साथ कौन है ?, जिबरील ने उत्तर दियाः मेरे साथ मुहम्मद है। तो आवाज आईः क्या उन्हें बुलाया गया है ?, तो जिबरील ने उत्तर दियाः हाँ, उन्हें निमन्त्रण दिया गया है। तो हमारे लिए आकाश का द्वार खोला गया, तो सामने यूसुफ (अलैहिस्सलाम) उपस्थित थे, और उन्हें (पूरी दुनिया का) आधा हुस्न दिया गया है। तो उन्हों मेरा हार्दिक स्वागतम किया और मेरे लिए भलाइ की दुआ दी। फिर मुझे चौथे आकाश की ओर ले जाया गया, तो जिबरील ने आकाश का दरवाज़ा खुलवाया, तो आवाज आई तुम कौन हो, तो जिबरील ने कहाः मैं जिबरील हूँ, तो आवाज आई तुम्हारे साथ कौन है ?, जिबरील ने उत्तर दियाः मेरे साथ मुहम्मद है। तो आवाज आईः क्या उन्हें बुलाया गया है ?, तो जिबरील ने उत्तर दियाः हाँ, उन्हें निमन्त्रण दिया गया है। तो हमारे लिए आकाश का द्वार खोला गया, तो सामने ईद्रीस(अलैहिस्सलाम) उपस्थित थे, तो उन्हों ने मेरा हार्दिक स्वागतम किया और मेरे लिए भलाइ की दुआ दी। और अल्लाह का फरमान हैः हमने उसे उच्च स्थान पर उठाया था।(सूरहमर्यमः 57), फिर मुझे पाँचवें आकाश की ओर ले जाया गया, तो जिबरील ने आकाश का दरवाज़ा खुलवाया, तो आवाज आई तुम कौन हो, तो जिबरील ने कहाः मैं जिबरील हूँ, तो आवाज आई तुम्हारे साथ कौन है ?, जिबरील ने उत्तर दियाः मेरे साथ मुहम्मद है। तो आवाज आईः क्या उन्हें बुलाया गया है ?, तो जिबरील ने उत्तर दियाः हाँ, उन्हें निमन्त्रण दिया गया है। तो हमारे लिए आकाश का द्वार खोला गया, तो सामने हारून (अलैहिस्सलाम) उपस्थित थे, तो उन्हों ने मेरा हार्दिक स्वागतम किया और मेरे लिए भलाइ की दुआ दी।फिर मुझे छटे आकाश की ओर ले जाया गया, तो जिबरील ने आकाश का दरवाज़ा खुलवाया, तो आवाज आई तुम कौन हो, तो जिबरील ने कहाः मैं जिबरील हूँ, तो आवाज आई तुम्हारे साथ कौन है ?, जिबरील ने उत्तर दियाः मेरे साथ मुहम्मद है। तो आवाज आईः क्या उन्हें बुलाया गया है ?, तो जिबरील ने उत्तर दियाः हाँ, उन्हें निमन्त्रण दिया गया है। तो हमारे लिए आकाश का द्वार खोला गया, तो सामने मूसा (अलैहिस्सलाम) उपस्थित थे, तो उन्हों ने मेरा हार्दिक स्वागतम किया और मेरे लिए भलाइ की दुआ दी।फिर मुझे सातवें आकाश की ओर ले जाया गया, तो जिबरील ने आकाश का दरवाज़ा खुलवाया, तो आवाज आई तुम कौन हो, तो जिबरील ने कहाः मैं जिबरील हूँ, तो आवाज आई तुम्हारे साथ कौन है ?, जिबरील ने उत्तर दियाः मेरे साथ मुहम्मद है। तो आवाज आईः क्या उन्हें बुलाया गया है ?, तो जिबरील ने उत्तर दियाः हाँ, उन्हें निमन्त्रण दिया गया है। तो हमारे लिए आकाश का द्वार खोला गया, तो सामने इबराहीम(अलैहिस्सलाम)अपना पीठ बैतुल्-मअमूर से टेक लगाए बैठे थे, और बैतुल्-मअमूर में प्रति दिन सत्तर हज़ार फरिश्ते प्रवेश होते हैं और फिर दोबारा उनकी बारी नहीं आएगी। फिर मुझे सिद्रतुल मुन्तहा (बैड़ी का पैड़) की ओर ले जाया गया, उसका पत्ता हाथी के कान के जैसा और उसका फल मटके के जैसा था, तो जब अल्लाह के आदेश से उस (पैड़) को ढ़ाप लिया गया तो उसका रंग परिवर्तन हो गया, तो उसकी अतिसुन्दरता को कोइ भी अल्लाह का दास बयान नहीं कर सकता है। तो अल्लाह ने जो चाहा मेरी ओर वह्यी (प्रकाशना) अवतरित की, तो प्रति रात और दिन में पचास समय की नमाज़ मेरी उम्मत पर फर्ज़ (अनिवार्य) किया। तो मैं मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास आया, तो उन्हों ने प्रश्न किया। आप के रब्ब ने आप की उम्मत पर क्या फर्ज़ (अनिवार्य) किया ?, तो मैं ने उत्तर दियाः पचास समय की नमाज़ें, तो उन्हों ने कहाः अपने रब्ब की ओर वापस जाओ और रब्ब से कुछ कम करने का विनती करो, तो बेशक आप की उम्मती इस की क्षमता नहीं रखेगी, क्योंकि मुझे बनु इस्राईल समाज में इसका अनुभव है। तो मैं अपने रब्ब की ओर वापस गया और बिनती कियाः ऐ मेरे रब्ब मेरे उम्मत से कुछ नमाज़ें कम कर दीजिये। तो अल्लाह ने मुझ से पांच नमाज़ें कम कर दी, तो मैं मूसा (अलैहिस्सलाम) के पास वापस आया तो मैं ने मूसा (अलैहिस्सलाम) से कहा कि मेरे रब्ब ने पांच नमाज़ें कम कर दिया है , तो उन्हों ने कहाः अपने रब्ब की ओर वापस जाओ और रब्ब से कुछ कम करने का विनती करो, तो बेशक आप की उम्मती इस की क्षमता नहीं रखेगी, तो मैं अपने रब्ब और मूसा के बीच आता और जाता रहा, यहां तक कि मेरे रब्ब ने फरमायाः ऐ मुहम्मद! यह प्रत्येक दिन और रात की पांच समय की नमाज़ें हैं, परन्तु प्रत्येक एक नमाज़ का सवाब दस के बराबर है तो पांच समय की नमाज़ का सवाब पचास समय के बराबर है और जिसने किसी एक नेकी के करने का इरादा किया और वह नेकी नहीं कर सका, तो उसे एक नेकी का सवाब प्राप्त होगा और यदि वह नेकी कर सका, तो उसे दस नेकी के बराबर सवाब प्राप्त होगा। जिस ने किसी एक बुराइ के करने का इच्छा किया, परन्तु वह बुराइ कर न सका तो उस के लिए कुछ भी नहीं लिखा जाता है और यदि उसने बुराइ किया तो केवल एक बुराइ ही लिखा जाता है। तो मैं वापस मूसा (अलैहिस्लाम) के पास वापस आया और उन्हें सूचित किया। तो उन्हों ने कहाः अपने रब्ब की ओर वापस जाओ और रब्ब से कुछ कम करने का विनती करो, तो मैं ने कहाः मैं बार बार अपने रब्ब की ओर वापस जाता रहा हूँ, अब मुझे शर्म आ रही है। (सहीहुल-जामिअः 127)

अल्लाह तआला ने भी मेराज के प्रति कुछ आयतों में स्पष्टिकरण कियाः

مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَ‌أَىٰ – أَفَتُمَارُ‌ونَهُ عَلَىٰ مَا يَرَ‌ىٰ – وَلَقَدْ رَ‌آهُ نَزْلَةً أُخْرَ‌ىٰ – عِندَ سِدْرَ‌ةِ الْمُنتَهَىٰ – عِندَهَا جَنَّةُ الْمَأْوَىٰ – إِذْ يَغْشَى السِّدْرَ‌ةَ مَا يَغْشَىٰ – مَا زَاغَ الْبَصَرُ‌ وَمَا طَغَىٰ- لَقَدْ رَ‌أَىٰ مِنْ آيَاتِ رَ‌بِّهِ الْكُبْرَ‌ىٰ. (سورة النجم: 11-18

दिल ने कोई धोखा नहीं दिया, जो कुछ उसने देखा अब क्या तुम उस चीज़ पर झगड़ते हो,जिसे वह देख रहा है?-और निश्चय ही वह उसे एक बार और -‘सिदरतुल मुन्तहा’ (परली सीमा के बेर) के पास उतरते देख चुका है-उसी के निकट ‘जन्नतुल मावा’ (ठिकानेवाली जन्नत) है। – जबकि छा रहा था उस बेर पर, जो कुछ छा रहा था -निगाह न तो टेढ़ी हुइ और न हद से आगे बढ़ी -निश्चय ही उसने अपने रब की बड़ी-बड़ी निशानियाँ देखीं। (सूरह अन्नज्मः 11-18)

इस्रा व मेराज की घटना के प्रति बहुत सी रिवायत सही बुखारी और सही मुस्लिम में वर्णन हुई हैं, जिन्हें यहां बयान करना संभव नहीं है।

इस घटना का प्रभावः

इस महान घटना के घटितहेतु आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सुबह को लोगों को बताया। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के शत्रू झुटलाने लगे, आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का मज़ाक उड़ाने लगे, क्योंकि एक साधारण व्यक्ति के लिए यह संभव नही था कि एक रात के कुछ छण में मस्जिद हराम से मस्जिद अक़्सा का यात्रा कर के वापस आ जाए। क्योंकि केवल मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा का यात्रा एक महीने में पूर्ण होता था और फिर मस्जिदे अक्सा से मस्जिदे हराम तक एक महीना लगता था। इस लिए मक्का वासी आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का परिक्षा लेने के लिए नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से मस्जिद अक़्सा की निशानियां पुंछने लगे, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) परिशान हो गये। क्योंकि रात में गए थे और कभी नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मस्जिद अक़्सा को देखे नहीं थे, परन्तु अल्लाह की सहायता हमेशा नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ होती है, इस लिए अल्लाह तआला ने मस्जिद अक़्सा के रूप को नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सामने कर दिया और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मस्जिद अक़्सा को देख कर मक्का वासियों के प्रश्न का उत्तर देते थे और जो लोग कई बार मस्जिद अक़्सा को अच्छे से देख चुके थे, उन्हों ने गवाही दी कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मस्जिद अक़्सा की निशानियां इतनी अच्छी तरह बयान किया कि हम लोग बयान नहीं कर सकते।

मस्जिद अक़्सा से वापसी के समय मक्का मुकर्रमा से कुछ दूरी पर एक यात्री टोली आ रही थी, जिस के ढ़केबरतन से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पानी पीया और फिर बरतन ढ़क दिया, और उसका एक ऊंट गुम हो गया था जिस के प्रति सुचित किया। यात्री टोली के मक्का में प्रवेश होने का समय के प्रति सुचित किया। जिस के सच्चाइ के प्रति भी पुष्टि हो गइ। इस घटना का बहुत से लोगों ने इन्कार किया, परन्तु जब अबू बकर (रज़ियल्लाह अन्हु) से इस के बारे में प्रश्न किया गया, तो उन्हों ने बिना किसी चूँ चरां के मान लिया, इसी कारण अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) को सिद्दीक़ के उपाधि से पुकारा जाने लगा। इस महान घटना के बाद रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह तआला के दीन और धर्म को लोगों तक पहुंचाने के लिए नये जोश एवं उत्साह और रूची से करने लगे। बहुत ज़्यादा प्रयास और कोशिश करने लगे। घूम घूम कर लोगों तक इस्लामिक निमन्त्रण पेश करने लगे। जिस का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ने लगा।

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