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أكاديمية سبيلي Sabeeli Academy

इस्लाम की विशेषताएँ

1. इस्लाम ने मदिरा (शराब) को हर प्रकार के पापों की जननी कहा है। अतः इस्लाम में केवल नैतिकता के आधार पर मदिरापान निषेध नहीं है बल्कि घोर दंडनीय अपराध भी है। अर्थात् कोड़े की सजा। इस्लाम में सिद्वांततः ताड़ी, भांग, गांजा आदि सभी मादक वस्तुएँ निषिद्ध (हराम) हैं।

2. ज़कात अर्थात् अनिवार्य दान। यह श्रेय केवल इस्लाम को प्राप्त है कि उसके पाँच आधारभूत कर्तव्योें: कल्मा शहादत की गवाही, नमाज़, रोज़ा, हज (काबा की तीर्थ यात्रा), में एक मुख्य कर्तव्य ज़कात भी है। इस दान को प्राप्त करने के पात्रों में निर्धन भी हैं और ऐसे कर्जदार भी हैं ‘जो कर्ज़ अदा करने में असमर्थ हों या इतना धन न रखते हों कि कोई कारोबार कर सकें। नियमित रूप से धनवानों के धन में इस्लाम ने मूलतः धनहीनों का अधिकार है उनके लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह ज़कात लेने के वास्ते भिक्षुक बनकर धनवानों के पास जाएँ। यह शासन का कर्तव्य है कि वह धनवानों से ज़कात वसूल करे और उसके अधिकारियों को दे) जहां शाषन न हो वहां ज़कात कमेटी यह कार्य करे (धनहीनों का ऐसा आदर किसी धर्म में नहीं है)

3. इस्लाम में हर प्रकार का जुआ निषिद्ध (हराम) है।

4. सूद (ब्याज़) एक ऐसा व्यवहार है जो धनवानों को और धनवान तथा धनहीनों को और धनहीन बना देता है। समाज को इस पतन से सुरक्षित रखने के लिए किसी धर्म ने सूद पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसने सूद को अति वर्जित (हराम) ठहराया है। सूद को निषिद्ध घोषित करते हुए क़ुरआन में बाकी सूद को छोड़ देने की आज्ञा दी गई है और न छोडने पर अल्लाह और उसके पैग़म्बर से युद्ध की धमकी दी गई है। (क़ुरआन 2:279)

5. इस्लाम ही को यह श्रेय भी प्राप्त है कि उसने धार्मिक रूप से रिश्वत (घूस)को निषिद्ध ठहराया है। (क़ुरआन 2:188)

हज़रत मुहम्मद साहब ने रिश्वत देने वाले और लेने वाले दोनों पर ख़ुदा की लानत भेजी है।

6. इस्लाम ही ने सबसे प्रथम स्त्रियों को सम्पत्ति का अधिकार प्रदान किया। उसने मृतक की सम्पत्ति में भी स्त्रियों को भाग दिया। इस्लाम में विधवा के लिए कोई कठोर नियम नहीं है। पति की मृत्यु के चार महीने दस दिन बाद वह अपना विवाह कर सकती है।

7. इस्लाम ही ने अनिवार्य परिस्थिति में स्त्रियों को पति त्याग का अधिकार प्रदान किया है।

8. यह इस्लाम ही है जिसने किसी स्त्री के सतीत्व (चरित्र) पर लांछना (तोहमत) लगाने वाले के लिए चार साक्ष्य (गवाह) उपस्थित करना अनिवार्य ठहराया है और यदि वह चार साक्ष्य उपस्थित न कर सके तो उसके लिए अस्सी कोड़ों की सजा नियुक्त की है।

9. इस्लाम ही है जिसे कम नापने और कम तौलने को वैधानिक अपराध के साथ धार्मिक पाप भी ठहराया और बताया कि परलोक (क़यामत) में भी इसकी पूछ होगी।

10. इस्लाम ने अनाथों के सम्पत्तिहरण को धार्मिक पाप ठहराया है।

11. इस्लाम कहता है कि यदि तुम ईश्वर से प्रेम करते हो तो उसकी सृष्टि से प्रेम करो।

12. इस्लाम कहता है कि ईश्वर उससे प्रेम करता है जो उसके बन्दों के साथ अधिक से अधिक भलाई करता है।

13. इस्लाम कहता है कि जो प्राणियों पर दया करता है, ईश्वर उस पर दया करता है।

14. दया ईमान की निशानी है। जिस में दया नहीं उसमें ईमान नहीं।

15. किसी का ईमान पूर्ण नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने साथी को अपने समान न समझे।

16. इस्लाम के अनुसार इस्लामी राज्य, कुफ़्र (अधर्म) को सहन कर सकता है, परन्तु अत्याचार और अन्याय को सहन नहीं कर सकता।

17. इस्लाम कहता है कि जिसका पड़ोसी उसकी बुराई से सुरक्षित न हो वह ईमान नहीं लाया।

18. जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की एक बालिश्त भूमि भी अनधिकार रूप से लेगा वह क़यामत के दिन सात तह तक पृथ्वी में धंसा दिया जाएगा।

19. इस्लाम में जो समता और बंधुत्व है वह संसार के किसी धर्म में नहीं है। जबकि हिन्दू धर्म में हरिजन घृणित और अपमानित माने जाते हैं। इस भावना के विरूद्ध है।

 

संदर्भः

इस्लाम एक स्वयं सिद्ध ईश्वरीय जीवन व्यवस्था”  लेखकः राजेन्द्र नारायण लाल

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