ईदुल अज़्हा (बक़्रे ईद) के शिष्टाचार

 ईदुल अज़्हा (बक़्रे ईद) के शिष्टाचार

इस्लाम धर्म में त्योहार मनाने का अन्दाज़ ही एक बहुत निराला और अन्य धर्म से अलग थलग है। जिस में पवित्रता, एस दुसरे की मदद, गरीबों मिस्किनों की सहायाता, रिश्तेदारों के अधिकार की पूर्ति और समाज और पड़ोसियों का पूर्ण ख्याल, मेल मुहब्बत, और अल्लाह की इबादत पर आधिरत है। जिस में किसी को नुक्सान पहुंचाने, नाचा गाना और हुल्लर बाज़ी से मना किया गया है। अल्लाह तआला ने केवल दो ही ईद मनाने की अनुमति दी है। इन के अलावा इस्लाम में कोइ तीसरी ईद नहीं। जैसा कि हदीस में वर्णनि है।

عن أنسٍ قالَ: قدمَ رسولُ اللَّهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ المدينةَ ولَهم يومانِ يلعبونَ فيهما. فقالَ: ما هذانِ اليومانِ؟ قالوا كنَّا نلعبُ فيهما في الجاهليَّةِ. فقالَ رسولُ اللَّهِ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ: إنَّ اللَّهَ قد أبدلَكم بِهما خيرًا منهما يومَ الأضحى ويومَ الفطرِ. (صحيح أبي داؤد: 1134)

अनस (रज़ि0) कहते हैं: रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मदीना तश्रीफ लाए और मदीना वासी दो दिन को ईद के रूप में मनाते थे, जिन में वे खेल कूद करते थे। तो रसूल (सल्ल) ने फरमायाः यह दो दिन क्या है ? तो लोगों ने उत्तर दिया। इस्लाम से पहले हम इन दो दिनों खैल कूद और मौज मस्ती करते थे। तो रसूल (सल्ल) ने फरमायाः बेशक अल्लाह ने जाहिलत के दोनों ईद को बदल कर ईदुल्-अज़्हा और ईदुल्फितर को त्योहार के रूप में मनाने का आदेश दिया है जो बहुत उत्तम है। (सही अबू दाऊदः 1134)

इन ईदों में ईदुल्अज़्हा ऐसी ईद है जो इबराहीम (अलैहिस्सलाम) की सुन्नत की नवीकरण है। जिसे अल्लाह तआला ने मुसलमानों को मनाने का आदेश दिया है।

ईदुल अज़्हा के कुछ शिष्टाचार निम्न में बयान किया जाता है।

1- ईद के दिन गुस्ल करना और अपना सब से अच्छा और सुन्दर पोशाक पहनना चाहिये और खुश्बू लगाना चाहिये। (अस्सिल्सिला अस्सहीहाः अल्बानीः 1279)

2- रसूल (सल्ल) बिना कुछ खाए हुए ईदुल अज़्हा की नमाज़ पढ़ने जाते थे, जबकि ईदुलफित्र की नमाज़ कुछ खा पी कर जाते थे। (सुनन तिर्मिज़ीः 542)

3- ईद की नमाज़ के लिए हो सके तो पाँव पैदल जाना चाहिये और तक्बीर और तह्लील और तहमीद बयान करते हुए और अल्लाह का नाम लेते हुए जाना चाहिये और एक रास्ते से जाना और दुसरे रास्ते से वापस आना चाहिये। (सुनन तिर्मिज़ीः 541)

4- महिला और व्यस्क बालिका को भी ईदगाह ज़रूर जाना चाहिये यदि महिला मासिक चक्र से ग्रस्त हो तो नमाज़ नहीं पढ़ेगी परन्तु मुसलमानों की दुआओं में भागिदार रहेंगी। (सही बुखारीः 974, सही मुस्लिमः 890)

5- ईदुल् अज़्हा की नमाज़ पढ़ने के बाद क़ुरबानी का जानवर ज़बह किया जाए। ईद की नमाज़ के बाद से तश्रीक के दिनों (चार दिनों) तक क़ुरबानी किया जा सकता है। यदि किसी ने ईदुल् अज़्हा की नमाज़ पढ़ने से पहले ही क़ुरबानी का जानवर ज़बह कर दिया तो उस के बदले दुसरा जानवर ज़बह करे। (ज़ादुल-मआदः 319/2, फतावा अल्लजना अद्दाइमाः 406/8)

6- मुसलमान एक दुसरे को ईद की मुबारकबाद देना चाहिये और एक दुसरे से ईद की खुशी बांटना चाहिये। यह दुआ देना चाहियेः तक़ब्बल्लाहु मिन्ना व मिन्कुम. (अल्लाह हमारे और आप के नेक कर्मों को स्वीकार करे)। जैसा कि सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) एक दुसरे को ईद की खुशी में यही कहा करते थे। (फत्हुलबारीः अब्ने हज्रः 517/2)

7- एक दुसरे से मुहब्बत का इज़्हार करे, ईद की खुशी बांटे, लोगों से भलाइ करे और रिश्तेदारों को प्रेम और निम्रता के बनंधन से जोड़े।

8- गरीबों और फक़ीरों और अनाथों से लगाव रखें और उन से हम्दर्दी करें और उन्हें अपनी खुशी में शामिल करें। (सही बुखारीः 5986, सही मुस्लिमः 2557)

 

ईद में की जाने वाली कुछ अवैध चीज़ेः

1- फुज़ूलखर्ची से बचना चाहिये, क्योंकि फुज़ूलखर्ची शैतानी कार्य है। (सूरह इस्राः 27)

2- तकब्बुर तथा घमंड से बचना चाहिये और लोगों को कमतर और नीच और अछूत नहीं समझना चाहिये। क्योंकि घमंड करने वाले को अल्लाह पसन्द नहीं करता और दुनिया और आखिरत में सख्त सज़ा देता है।

3- महिलाओं का बिना निक़ाब के निकलना या बनाव और सिंग्हार कर के लोगों पर प्रकट करने से मना किया गया है, और गैर मह्रिम से हाथ मिलाना और उन से बिना ज़रूरत के बेकार की बात चीत करना अवैध है। (अस्सिल्सिला अस्सहीहाः अल्बानीः 226)

4- ईद के दिन नाच गाना या फिल्म देखने में समय लगाना भी वर्जित कार्म में से है। वर्ना यह अल्लाह के अज़ाब में ग्रस्त होने का कारण बनता है। (सहीहुल जामिअः 3665)

5- ईद मनाने में गैर मुस्लिमों के रीति रेवाज से बचना चाहिये, उन के तौर तरीके से दूर रहना चाहिये नहीं तो, उन्ही में से शुमार किया जाएगा। (सही अबू दाऊदः 4031)

6- महिला को ईदगाह जाते समय बनाव सिंग्हार और खुश्बू लगाने से बचना चाहिये। क्योंकि यह फितने का कारण बनता है।

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