खानपान के शिष्टाचार

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खानपान अल्लाह के महान उपकारों में से एक है जिसका सेवन करके मानव इस दुनिया में जीवित है। अल्लाह ने सूरः वाक़िआ में फरमायाः

أَفَرَأَيْتُم مَّا تَحْرُثُونَ ﴿٦٣ أَأَنتُمْ تَزْرَعُونَهُ أَمْ نَحْنُ الزَّارِعُونَ ﴿٦٤ لَوْ نَشَاءُ لَجَعَلْنَاهُ حُطَامًا فَظَلْتُمْ تَفَكَّهُونَ ﴿٦٥ إِنَّا لَمُغْرَمُونَ ﴿٦٦ بَلْ نَحْنُ مَحْرُومُونَ ﴿٦٧ أَفَرَأَيْتُمُ الْمَاءَ الَّذِي تَشْرَبُونَ ﴿٦٨ أَأَنتُمْ أَنزَلْتُمُوهُ مِنَ الْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ الْمُنزِلُونَ﴿٦٩ لَوْ نَشَاءُ جَعَلْنَاهُ أُجَاجًا فَلَوْلَا تَشْكُرُونَ ﴿٧٠

“अच्छा यह बताओ कि तुम जो कुछ बोते हो, उसे तुम ही उगाते हो अथवा हम उगाने वाले हैं। यदि हम चाहें तो उसे कण-कण कर दें तथा तुम आश्चर्य के साथ बातें बनाते ही रह जाओ कि हम पर तो दण्ड ही पड़ गया बल्कि हम तो पूर्ण रूप से वंचित ही रह गए। अच्छा यह बताओ कि जिस पानी को तुम पीते हो उसे बादलों से तुम ही ने उतारा है अथवा हम वर्षा करते हैं। यदि हमारी इच्छा हो तो हम उसे कडुवा (विष) कर दें फिर तुम हमारी कृतज्ञता क्यों नहीं व्यक्त करते?”। ( सूरः वाक़िअः 63-70)

इस लिए हमें चाहिए कि खानपान का सेवन करते समय इस्लामी शिष्टाचार को सामने रखें। निम्न में इस सम्बन्ध में कुछ शिष्टाचार बयान किए जा रहे हैं :

(1)    हलाल रोज़ी का सेवन करें अल्लाह तआला ने फरमायाः ” ऐ लोगो धरती पर जितनी हलाल और पवित्र वस्तुएं हैं उन्हें खाओ”। (अल-बक़रः 168)

(2)    खाने की नियतः खाते और पीते समय यह नियत करें कि इस से अल्लाह के अनुसरण पर सामर्थ्य प्राप्त करेंगे तो इस पर पुण्य मिलेगा और यह आदत भी इबादत बन जाएगी।

(3)    सोने और चांदी के बर्तन में खानपान अवैध हैः अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः सोने और चांदी के बर्तन में मत खाओ और मत पियो, क्यों कि यह काफिरों के लिए दुनिया में है और हमारे लिए आखिरत में है। ( बुख़ारी, मुस्लिम) और एक दूसरी हदीस में अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः जो सोने और चांदी के बर्तन में पीता है वह अपने पेट में जहन्नम की आग ऊंडेल रहा है।(मुस्लिम)

(4)    यदि खाना सामने हो और नमाज़ का समय हो जाए तो पहले खाना खालें फिर नमाज़ में वयस्त हों क्योंकि बुख़ारी और मुस्लिम में अल्लाह के रसूल सल्ल0 का फरमान हैः जब किसी के रात का खाना रख दिया जाए और नमाज़ खड़ी हो जाए तो ऐसी स्थिति में सर्वप्रथम रात का खाना खाए और जल्दी न करे यहाँ तक कि खाने से फारिग़ हो जाए”।

(5)    खाना खाने से पहले दोनों हाथ धो लें : हज़रत आइशा रज़ि0 फरमाती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 जब खाना खाना चाहते तो अपने दोनों हाथ धोते।” (नसाई)

(6)    खानपान शुरू करने से पहले “बिस्मिल्लाह” कहना चाहिए। अगर भूल जाएं तो याद आने पर बिस्मिल्लाहि अव्वलहू व आख़िरहू। पढ़ें। अमर बिन सलमः कहते हैं कि मैं रसूल सल्ल0 की पर्वरिश(पोषण) में था, मेरा हाथ खाने के बर्तन में इधर उधर फिरता था, तो आप सल्ल0 ने मुझ से फरमायाः ऐ बच्चे बिस्मिल्लाह पढ़ो, और अपने दाहिने ओर से खाओ और जो तुम्हाने निकट है उस में से खाओ।” (बुख़ारी,मुस्लिम) इस हदीस से ज्ञात यह हुआ कि खाने से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना चाहिए, अपने दाहिने हाथ से खाना खाना चाहिए और अपने सामने और निकट से खाना चाहिए। एक दूसरी हदीस में अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः एक व्यक्ति जब अपने धर में प्रवेश करता है और प्रवेश करते समय और खाने के समय अल्लाह का स्मरण करता है तो शैतान अपने साथियों से कहता हैः तुम्हारे लिए आज रात न तो खाना ही है और न रात गुज़ारने का अवसर। परन्तु जब एक व्यक्ति अपने घर में प्रवेश करते समय अल्लाह का नाम नहीं लेता तो शैतान कहता हैः आज रात गुज़ारने का अवसर पा गए, और जब खाने पर भी अल्लाह का नाम नहीं लेता तो शैतान कहता हैः आज रात खाने और विश्राम करने दोनों का अवसर पा गए। (मुस्लिम) एक दिन अल्लाह के रसूल सल्ल0 अपने 6 साथियों के साथ खाना खा रहे थे कि एक देहाती आया और पूरा खाना दो लुक़मों में खा गयाः अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः यदि उसने बिस्मिल्लाह कहा होता तो यह खाना तुम सब को काफी हो जाता”। (तिर्मिज़ी) कुछ लोगों ने एक दिन अल्लाह के रसूल सल्ल0 से शिकायत की कि हम खाते तो हैं परन्तु हमें तुष्टी नहीं होती। आपने फरमायाः शायद तुम अलग अलग खाते हो। सहाबा ने कहाः हाँ। आपने फरमायाः मिलजुल कर खाना खाओ, बिस्मिल्लाह कह कर खाओ, खाने में बर्कत उतरेगी। (अबूदाऊद)

(7)    खाना दाहिने हाथ से खाना चाहिए, बाएं हाथ से खाना खाना अवैध है। हाँ यदि दाहिने हाथ से खाने में किसी प्रकार की कठिनाई हो तो कोई बात नहीं। एक दिन की बात है एक व्यक्ति ने अल्लाह के रसूल सल्ल0 के पास बाएं हाथ से खाना खाया, आप सल्ल0 ने उसे शिष्टाचार बताते हुए फरमाया कि अपने दाहिने हाथ से खाओ। उसने उत्तर दियाः मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप सल्ल0 ने फरमायाः (अल्लाह करे) तुम ऐसा कभी न कर सको। घमंड के कारण उसने नबी सल्ल0 के आदेश का अनुपालन नहीं किया परिणामस्वरूप वह कभी अपना दाहिना हाथ अपने मुहं तक नहीं उठा सका।

(8)    बैठ कर खाना खाना चाहिए उसी प्रकार बैठ कर पानी पीना चाहिए, यही सुन्नत का तरीक़ा है। परन्तु आवश्यकतानुसार खड़े हो कर खानपान कर सकते हैं।

(9)    खाने के बीच वैध बातें करने में कोई आपत्ति नहीं। उसी प्रकार सलमा भी कर सकते हैं और सलाम का उत्तर भी दे सकते हैं।

(10)चम्चा और कांटा से खाना खाना हलाल और वैध है।

(11) पानी पीने के शिष्टाचार में से एक यह है कि यदि एस से अधिक सांस में पानी पीना हो तो बर्तन में सांस न लें अपितु बर्तन से मुंह हटा कर सांस लें।

(12) यदि खाने में से कुछ गिर जाए तो उसे साफ करके खालें और उसे शैतान के लिए न छोंड़ें (तिर्मिज़ी)

(13) खानपान पसंद हो तो खाएं और यदि पसंद न हो तो छोड़ दें उसमें दोष न लगाएं। खाने में ऐब निकालना नबी सल्ल0 का तरीक़ा नहीं था बल्कि आप खाने की खुबियाँ बयान करते थे। (बुखारी, मुस्लिम)

(14) पेट भर कर खाना खाना इस्लाम में सराहनिय नहीं है और न ही मानव बुद्धि उसका समर्थन करती है क्यों कि आवश्यकता से अधिक खानपान से विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं, शरीर में आलस्य आता है और दिल में सख्ती पैदा होती है। इसी लिए अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः किसी व्यक्ति ने पेट से अधिक बुरा कोई बर्तन नहीं भरा। आदम की संतान के लिए कुछ लुक़्मे काफी हैं जिन से उनकी पीठ सीधी रहे, यदि उस से अधिक खाना चाहता है तो एक तिहाई खाने के लिए, एक तिहाई पीने के लिए और एक तिहाई सांस के लिए रखे। (तिर्मिज़ी) हाँ कभी कभी पेट भर खाया जा सकता है इसे अपनी आदत नहीं बनानी चाहिए।

(15) खाने के बाद अल-हम्दु लिल्लाह कहना चाहिए। और यदि किसी अन्य के पास खाना खाएं तो यह दुआ करनी चाहिएः अल्लाहुम्म अतइम मन अत-अमनी वस्क़ि मन सक़ानि। ” ऐ अल्लाह! जिसने मुझे खिलाया उसे खिला और जिसने मुझे पिलाया उसे पिला”। (मुस्लिम)

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