क़ुरआन में गाय का गोश्त खाने की अनुमति दी गई है और कहीं इस से रोका नहीं गया है
एक सज्जन ने बड़े ज़ोरदार तरीक़े से टिप्पणी की है कि क़ुरआन में गौहत्या से रोका गया है, मैं उसकी टिप्पणी पढ़ कर दंग रह गया कि कैसे लोग इतना सफेद झूठ बोलते हैं, और मन में आया कि इस बारे में कुछ लिखा जाए। ज्ञात होना चाहिए कि क़ुरआन सत्य और असत्य को परखने का ऐसा मापदंड है जिसके दर्पण में किसी भी विषय को सरलतापूर्वक जांचा और परखा जा सकता है। क़ुरआन की दृष्टि में गाय सामान्य पशुओं के जैसे एक पशु है जिससे इंसान बहुत सारे फाइदे उठाता है। क़ुरआन में 4 स्थान पर गाय से संबंधित क़िस्सा बयान किया गया है। आइए निम्न में इसे जानते हैं:
क़ुरआन की सब से बड़ी सूरः का नाम सूरः अल-बक़रा है जिसमें एक घटना के संदर्भ में गाय का वर्णन आया है। घटना का सारांश यह है कि बनू-इस्राईल में एक धनी व्यक्ति था जो निःसंतान था। उसके भतीजे ने सोचा कि चाचा को मार कर उसके धन पर सरलतापूर्वक क़ब्ज़ा जमाया जा सकता है। एक दिन इसी इरादा से आया और बेदर्दी से अपने चाचा की हत्या कर दी और शव खुले रास्ता पर डाल दिया। परिवार के सदस्य संदेष्टा मूसा अलैहिस्सलाम के पास उपस्थित हुए और घटना से अवगत कराया और समाधान पूछा तो मूसा अलैहिस्सलाम पर अल्लाह की ओर से प्रकाशना आई कि वे गाय ज़ब्ह करें और उसके गोश्त का लोथड़ा मृतक के बदन पर मारें मृतक जीवित हो जाएगा और अपने हत्यारे का पता बता देगा। परन्तु गाय की विशेषता के विषय में बनू इस्राईल उल्टे सीधे प्रश्न करने लगे। अंततः बड़ी कोशिश के बाद एक गाय मिली जिसे उन्हों ने ज़ब्ह किया और गोश्त का एक भाग लेकर मृतक को मारा को चमत्कारिक रूप में अल्लाह की अनुमति से वह जीवित हो गया और अपने हत्यारे का पता बताया फिर तुरंत मर गया। (क़ुरआनः 2:67-73)
दूसरे स्थान पर गाय का वर्णन संदेष्टा इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़िस्सा के संदर्भ में आया है कि जब फरिश्ते इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पास मानव के रूप में उपस्थित हुए तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन्हें देखते ही घर गए अपना एक पछड़ा ज़ब्ह किया, उसका गोश्त बनाकर लाये और फरिश्तों की सेवा में प्रस्तुत करते हुए उन से खाने का अनुरोघ किया। लेकिन वे तो फरिश्ते थे खाते कैसे। फरिश्ते खाने से रुके रहे तो इब्राहीम अलैहिस्सलाम भय हुआ, तब फरिश्तों ने कहा कि हम फरिश्ते हैं और आपको शूभसूचना देने आए हैं कि अल्लाह की अनुमति से आपको संतान होने वाली है। इस प्रकार बुढ़ापे में इब्राहीम अलैहिस्सलाम को सारा से एक लड़का हुआ जिनका नाम इस्हाक़ अलैहिस्सलाम पड़ा। (क़ुरआनः 7:69-71)
तीसरे स्थान पर गाय का वर्णन सूरः युसूफ में मिस्र के बादशाह के सपना के संदर्भ में आया है कि युसूफ अलैहिस्सलाम जब जेल में थे तो सम्राट ने स्वप्न देखा कि सात मोटी गायों को सात दुबली गायें खा रही हैं। इस समपने का अर्थ जब युसूफ अलैहिस्सलाम से पूछा तो उन्हों ने बताया कि ऐसा समय आने वाला है कि तुम्हारे देश में सात वर्ष तक खूब समृद्धि रहेगी। फिर आगामी सात वर्ष में अकाल पड़ेगा तो इकट्ठा कर के रखे गए सारे अनाज को समाप्त कर देगा। इस लिए तुम समृद्धि के पहले 7 सालों में अनाज उत्पादन करके बोलियों सहित जमा कर लो ताकि अकाल के समय काम आ सके। (क़ुरआनः 12:43-49)
पहले और दूसरे क़िस्से में गाय को ज़ब्ह करने की अनुमति का संदेश मिलता है क्यों कि गाय भी उपयोग में आने वाले पशुओं में से एक है। जबकि तीसरे क़िस्से में सात मोटी और सात दुबली गायें का वर्णन ख़ुशहाली और अकाल को दर्शाने के लिए किया गया है। इस से पता यह चला कि क़ुरआन में गाय का गोश्त खाने की अनुमति दी गई है और कहीं इस से रोका नहीं गया है, क़ुरआन की सूरः अंआम की आयत 143-144 में आठ नर-मादा जानवरों का वर्णन किया गया है (भेड़, बकरी, ऊँट, गाय नर-मादा) जिन में से कुछ को अज्ञानता काल में लोग स्वयं पर अवैध ठहरा लेते थे, क़ुरआन ने कहा कि वे सब वैध हैं।
गौ-पूजा की कहानीः
क़ुरआन में मूसा अलैहिस्सलाम और उनके समुदाय की कहानी के संदर्भ में यह आता है कि जब मूसा अलैहिस्सलाम बनू इस्राईल को फिरऔन के अत्याचार से निकाल कर मिस्र से निकले और समुद्र के पास आये तो पीछे से देखा कि फिरऔन अपनी सेना के साथ उनका पीछा कर रहा है, यह भयानक दृश्य देख कर बनू इस्राईल परेशान हो गए। लेकिन उसी समय अल्लाह के आदेश से मूसा अलैहिस्सलाम ने समुद्र में लाठी मारा और अल्लाह ने उनके लिए बहते समुद्र के मध्य में रास्ता बना दिया जिसे बनू-इस्राईल सरलतापूर्वक पार कर गए और फिरऔन अपनी सेना सहित उसी समुद्र में डूब कर हमेशा के लिए ऐतिहासिक पाठ बन गया। (क़ुरआनः 26:61-67)
समुद्र पार करने के बाद मूसा अलैहिस्सलाम ने बनू इस्राईल को एक अल्लाह की पहचान बताई, उनके हृदय में अल्लाह की महानता बैठाई, यहाँ तक कि सब एक अल्लाह (ईश्रर) की पूजा करने लग गए। फिर वह समय आया कि अपने भाई हारून अलैहिस्सलाम को बनू-इस्राईल की देख-भाल हेतु छोड़ कर चालीस दिन के लिए अल्लाह के आदेशानुसार तूर पर्वत पर चले गए। जब लौटे तो देखा कि बनू-इस्राईल गाय की पूजा करने लगी है। जिसकी कहानी यह है कि “सामरी” नामक एक पथभ्रष्ठ व्यक्ति बनू-इस्राइल के पास आया, और उसने सोने का एक बछड़ा बनाया, बछड़ा तैयार होने के बाद “सामरी” ने लोगों को धोखा में रखने के लिए एक योजना बनाई कि बछड़े के मुंह की ओर से फूंक मारता तो पीछे से एक प्रकार का स्वर निकलता, अब “सामरी” ने लोगों को समझाया कि यह बछड़ा ही तुम्हारा वास्तविक भगवान है जिसकी पूजा होनी चाहिए। अब क्या था ? भौतिकवादी बनू-इस्राइलियों ने एक अल्लाह (ईश्वर) को भूल कर गौ-पूजा शुरू कर दी। मूसा अलैहिस्सलाम जब बनू-इस्राईल के पास लौट कर आए और उन्हें बछड़े की पूजा करते देखा तो बहुत क्रोधित हुए, तुरंत अपने भाई हारून अलैहिस्सलाम की ख़बर लेने लगे कि इतना बड़ा पाप हुआ लेकिन तुम कहाँ थे। तुमने रोका क्यों नहीं। हारून अलैहिस्सलाम ने सच सच बता दिया कि मैंने इन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्हों ने मेरी एक न सुनी और “सामरी” के बहकावे में आ गए। तब मूसा अलैहिस्सलाम ने “सामरी” को डांट पिलाई और तुरंत वहाँ से निकाल भगाया। और गाय की उस मूर्ति को जला कर उसकी राख समुद्र में फेंक दिया। (कुरआन 20: 85 – 98)
सूरः आराफ में अल्लाह ने उनकी बुद्धि को ललकारते हुए कहाः “क्या उन्होंने देखा नहीं कि वह न तो उनसे बातें करता है और न उन्हें कोई रास्ता दिखाता है? ” ( क़ुरआनः7:148) फिर उनकी पूजा क्यों कर हो सकती है।
गाय की पूजा कब से होती आ रही है इसका कोई इतिहास नहीं परन्तु इतना अवश्य जान लें कि पुराने मिस्र के गैर-मुस्लिम निवासी इसकी पूजा करते रहे हैं और फिर भारत में शताब्दियों से गाय की पूजा होती आ रही है। परन्तु जब हम बौद्धिक दृष्टि से गौ-पूजा का विश्लेषण करते हैं तो पता पचला है कि यह मात्र अंधविश्वास का परिणाम है वरना गाय अन्य पशुओं के समान एक पशु है।
यह कड़वी सच्चाई है कि मनुष्य धार्मिक मूल्यों की ओर बिना सोचे समझे आकर्षित हो जाता है, धार्मकि प्रथाओं और रीति रेवाजों का बौद्धिक विश्लेषण नहीं करता और यह समझता है कि धार्मिक मूल्य विचार योग्य नहीं होते। चाहे वे बुद्धि और विवेक के खिलाफ ही क्यों न हों। एक व्यक्ति अपने बाल्यावस्था से माता पिता को जो काम करते हुए देखता आता है उसके विरोद्ध कोई बात सुनना नहीं चाहता। ऐसी बहुत सारी धार्मकि प्रथायें हमारे समाज में प्रचलित हैं जिन पर हम इस कारण अमल कर रहे हैं कि हमारे पूर्वज एक ज़माना से ऐसा करते आ रहे हैं। उन्हीं प्रथाओं में से एक प्रथा गौ-पूजा है। कोई व्यक्ति यह सोचने की चेष्टा नहीं करता कि गौ-पूजा क्यों की जाती है और क्या वास्तव में एक पशु पूजा योग्य हो सकता है।
अंत में मैं कुछ शब्द एक हिन्दु भाई से लेकर आपकी सेवा में प्रस्तुत करता हूं जो उसने गौ-पूजा के सम्बंध में लिखी हैः
” मैं उस गाय को माता कैसे कह दूं जिसका जन्म मेरी आँखोँ के सामने हुआ। क्या माँ का जन्म बेटे के सामने होता है? अगर गाय माँ है तो नाक में नकेल क्योँ डालते हैँ? गाय माँ है तो खुंटे मे क्योँ बांधते हैं? अपनी माँ को खुंटे मे बांधना कौनसा संस्कार है? गाय को डंडे क्योँ मारते हैं? गाय अगर माँ है तो आपकी माँ उसकी बहन लगेगी और गाय का बेटा आपका भाई लगेगा लेकिन यहाँ तो सब माँ हीँ कहते हैँ। भैँस और दूसरे दुध देने वाले जानवर माँ क्योँ नही जब इनसान में काले गोरे का भेद नहीं तो जानवरो में कयोँ? त्रृगवेद में गाय की बलि का जिक्र क्योँ है? इनसान गाय के प्रजनन हेतु खुद सांढ के पास ले जाता है और तमाशा देखता है तो क्या सांढ बाप है?।”