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أكاديمية سبيلي Sabeeli Academy

जहाँ भी रहो अल्लाह से डरते रहो

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 हज़रत अबूज़र और हज़रत मुआज़ बिन जबल रजि़0 से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः जहाँ कहीं भी रहो अल्लाह से डरते रहो,गुनाहों के बाद नेकियाँ कर लो, नेकियाँ गुनाहों को मिटा देंगीं, और लोगों के साथ अच्छे आचरण से पेश आओ। (तिर्मिज़ी)

व्याख्याः यह मुहम्मद सल्ल0 के प्रवचनों में से एक महान प्रवचन (हदीस) है, जिसके शब्द कम हैं परन्तु अर्थ अत्यधिक हैं, प्यारे नबी सल्ल0 ने इसमें लौकिक तथा पारलौकिक सारी भलाइयों को एकत्र कर दिया है। इसमें मात्र तीन शब्दों में तीन मूल सम्बन्धों को बयान कर दिया गया है।
1. अल्लाह के साथ तेरा सम्बन्ध कैसा हो ?
2. अपने नफ्स के साथ तेरा सम्बन्ध कैसा हो ?
3. आम जनता के साथ तेरा सम्बन्ध कैसा हो ?

अल्लाह के साथ सम्बन्धः

 इस बिन्दू की स्पष्टता हदीस के पहले शब्द से होती है। जहाँ कहीं भी रहो अल्लाह से डरते रहो,घर में हो या घर से बाहर, एकांत में हो या साथियों के साथ,रात में हो या दिन में हर समय और हर जगह अल्लाह का डर दिल में बसाए रहो। क्योंकि अल्लाह तुझे देख रहा है। उसकी निगाह से किसी पल तुम ओझल नहीं हो सकते।
जब यह आस्था एक व्यक्ति के दिल में पैदा हो जाती है कि अल्लाह हर समय हमें देख रहा है तो उसका पूरा जीवन सुधर कर रह जाता है।वह जहाँ भी होता है अल्लाह की अवज्ञा नहीं करता, बन्द कमरे में भी होता है तो उसके मन मस्तिष्क में यह बात घूमती होती है कि यधपि यहाँ हमें लोग नहीं देख रहे हैं पर अल्लाह तो यहां भी देख रहा है।
एक बार इस्लाम के ख़लीफ़ा उमर रजि0 अपने शासन में जनता की देख-भाल के लिए एक रात निकले, जब थक गए तो एक दीवार के सहारे बेठ कर विश्राम करने लगे। इसी बीच एक महिला ने घर के अन्दर से अपनी बच्ची को आवाज़ दिया किः बेटी उठो और दूध में पानी मिला दो ताकि बेचते समय दुध कुछ ज्यादा हो जाए।बेटी ने कहाः अम्मी जान उमर (बादशाह) के आदमी ने यह घोषना की है कि बेचने के लिए दूध में पानी न मिलाया जाए। माँ ने कहाः बेटी अभी तुम ऐसी जगह पर है जहाँ न उमर देख रहे हैं और न उनके आदमी। बेटी ने कहाः माँ उमर नहीं देख रहे हैं तो अल्लाह तो देख रहा है।
तात्पर्य यह कि इस हदीस में यह आदेश दिया गया है कि एक व्यक्ति को चाहिए कि वह हर समय अल्लाह का निगरानी को अपने ऊपर बसाए रहे, और यही रोज़े का भी सार है अल्लाह ने फरमायाः ऐ ईमान वालो तुम पर रोज़े अनिवार्य किए गए हैं जैसा कि तुम से पूर्व लोगों पर अनिवार्य किए गए थे ताकि तुम्हारे अन्दर तक्वा(अल्लाह का डर) पैदा हो गाए।
तक्वा की परिभाषा करते हुए हज़रत अली रजि0 फरमाते हैं अल्लाह का डर, इस्लामी शास्त्रानुसार अमल, कम पर संतुष्ठी, और मौत के दिन की तैयारी।
इस परिभाषा से ज्ञात हुआ कि मुत्तक़ी होने के लिए इन चार विशेषताओं का पाया जाना अनिवार्य है कि अल्लाह का भय ह्दय में समाया हुआ हो, शरीयत के अनुसार उसका पूरा अमल हो रहा हो, अल्लाह ने उसे जितना दे रखा है उस पर संतुष्ट हो,और मरने के दिन को हमेशा याद रखता हो।
हज़रत अबू हुरैरा रजि0 से किसी ने तक्वा की परिभाषा पूछा तो आपने फरमायाः क्या तुझे कभी काँटेदार रास्ते से गुज़रने का इत्तेफाक़ हुआ? उसने कहाः जी हाँ बहुत बार, आपने पूछाः वहाँ तुम कैसे गुज़रे? उन्हों ने कहा कि कपड़े को खूब समेट कर गुज़रा कि कहीं काँटे दामन से उलझ न जाएं। अबू हुरैरा रजि0 ने फरमायाः यही तक्वा है।

अपने नफ्स के साथ सम्बन्धः 

कुछ लोग यह समझ सकते हैं कि जो लोग अल्लाह का डर रखने वाले होते हैं उनसे गुनाह कभी होता ही नहीं। ऐसी सोच ग़लत है, इनसान है तो गलतियाँ हो ही सकती हैं, परन्तु एक मुत्तक़ी और पापी में अन्तर यह होता है कि मुत्तक़ी से जब ग़लती होती है तो वह तुरन्त पश्चाताप करता है, और अल्लाह से अपने पापों की क्षमा-याजना में लग जाता है जबकि पापी को अपने पाप की कोई चिंता नहीं होती। अतः जह एक व्यक्ति अपने पापों पर पछताते हुए तौबा कर लेता है तो अल्लाह तआला उसके गुनाहों का माफ कर देते हैं।
हदीस के दूसरे शब्द में यही बताया गया है कि जब गलतियाँ हो जाएं तो नेकी कर लो, नेकियाँ गलतियों को मिटा देंगीं। यह अल्लाह तआला की दया और कृपा है कि वह नेकियाँ करने से गुनाहों को मिटा देता है। बुख़ारी व मुस्लिम की हदीस है एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्ल0 के पास आया औऱ अर्ज़ कियाः ऐ अल्लाह के रसूलः मैं ने अवेध तरीक़े से आज एक महिला को बोसा ले लिया है। अल्लाह के रसूल सल्ल0 चुप रहे यहाँ तक कि यह आयत अवतरित हुईः
(और दिन के दोनों किनारों में नमाज़ क़ाएम रख और रात की कई घड़ियाँ में भी, बेशक नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती हैं। यह नसीहत है नसीहत हासिल करने वालों के लिए।) (सूरः हूद 114)
जब यह आयत उतरी तो अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने उस व्यक्ति को बुलाया और उसके सामने यह आयत पढ़ी। वहाँ पर उपस्थित एक दूसरे व्यक्ति ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल क्या यह इसी के लिए खास है या यह हुक्म सब के लिए समान है ? आपने फरमायाः यह सारे लोगों के लिए सामान्य है।

सामान्य जनता के साथ सम्बन्धः

हदीस के तीसरे शब्द में आम जनता के साथ सम्बन्ध कैसा हो? इसको स्पष्ट किया गया है। इसी लिए फरमाया गया कि लोगों के साथ चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो, तथा किसी भी जाति से सम्बन्ध रखता हो अच्छा व्यवहार करो। अपने लिए जो पसंद करते हो वही दूसरों के लिए भी पसंद करो, हर एक व्यक्ति से ख़ूश-दिली के साथ मिलो,दूसरे कोई कष्ट पहुंचाएं तो उन्हें क्षमा कर दो, और स्वयं दूसरों को कष्ट मत पहुंचाओ।
आज दिलों को जीतने के नियमों पर विभिन्न पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं और उनकी बाज़ार में माँग बढ़ रही है केवल इस कारण कि यदि किसी को यह सलीक़ा आता है तो लोग उसे टूट कर चाहते हैं। उदाहरण स्वरूप यदि आप किसी से ख़ूश-दिली के साथ मिलते हैं और उच्च आचरण का व्यवहार करते हैं तो वह आपसे प्रेम करने लग जाता है और आपकी प्रसनन्नता के लाग अलापने लगता है। इस्लाम ने अपने मानने वालों को यह शिक्षा दिया कि तुम्हारा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना इस कारण न होना चाहिए कि लोग तुम से प्रेम करें बल्कि इस लिए होना चाहिए कि इस से हमारा रब ख़ूश होगा, और हमें अपने से निकट करेगा। इसी लिए हदीस में बताया गया है कि एक व्यक्ति अपने अच्छे आचरण से रोज़ा रखने वाले और क़्याम (रात में नमाज़ पढ़ने वाले) करने वाले के पद पर आसीन हो जाता है। और जब आप सल्ल0 से पूछा गया कि वह कौन सी चीज़ है जो लोगों को जन्नत में ज्यादा दाखिल करती है? आपने फरमायाः अल्लाह का डर और अच्छा आचरण।

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