देश प्रेमः इस्लाम के दर्पण में
अपनी मातृभूमि से प्रेम, स्नेह और मुहब्बत एक ऐसी प्राकृतिक भावना है जो हर इंसान बल्कि हर ज़ीव में पाई जाती है। जिस धरती पर मनुष्य पैदा होता है, अपने जीवन के रात और दिन बिताता है, जहां उसके रिश्तेदार सम्बन्धी होते हैं,वह धरती उसका अपना घर कहलाती है, वहाँ की गलयों, वहाँ के दरो-दीवार, वहां के पहाड़,घाटियां, चट्टानें,जल और हवाएं, नदी नाले, खेत खलयान तात्पर्य यह कि वहां की एक एक चीज़ से उसकी यादें जुड़ी होती हैं। जहां उसके दोस्तों, माता पिता, दादा दादी का प्यार पाया जाता है।
प्रवासी होने के नाते हमें इसका सही अनुभव है। किसी को यदि अपने देश के किसी कोने में कमाने के लिए जाना होता है तो उसका इतना दिल नहीं फटता जितना एक प्रवासी का फटता है जब विदेश जा रहा होता है। यह देश से प्राकृतिक प्रेम का ही परिणाम है कि उसे छोड़ते समय हमारी स्थिति दयनीय होती है। इसी लिए जो लोग देश से विश्वासघात करते हैं उन्हें कभी अच्छे शब्दों से याद नहीं किया जाता बल्कि दिल में उनके खिलाफ हमेशा नफरत की भावनाएं पैदा होती हैं। उसके विपरीत जो लोग देश के लिए बलिदान देते हैं उनके जाने के बाद भी लोगों के हृदय में वह जीवित होते हैं मातृभूमि से प्रेम की इस प्राकृतिक भावना का इस्लाम न केवल सम्मान करता है अपितु ऐसा शान्तिपूण वातावरण प्रदान करता है जिसमें रह कर मानव अपनी मातृभूमि की भली-भांति सेवा कर सके।
मुहम्मद सल्ल. को आपके शत्रुओं ने जब अपने देश और मातृभूमि से निकलने पर विवश किया तो आपने मक्का छोड़ते समय अपनी मातृभूमि को सम्बोधिक करते हुए कहा थाः
ما أطيبك من بلد وأحبك إلي ولولا أن قومي أخرجوني منك ما سكنت غيرك رواه الترمذي
“हे मक्का तू कितनी पवित्र धरती है… कितनी प्यारी है मेरी दृष्टि में….यदि मेरे समुदाय ने मुझे यहां से न निकाला होता तो मैं कदापि किसी अन्य स्थान की ओर प्रस्थान न करता।” (तिर्मिज़ी)
जी हाँ! यह वाक्य उस महान व्यक्ति की पवित्र ज़बान से निकला हुआ है जिन्हें हम मुहम्मद सल्ल. कहते हैं। और उस सयम निकला था जबकि अपनी मातृभूमि से उन्हें निकाला जा रहा था। मुहम्मद सल्ल. मक्का से न निकलते अगर निकाला न जाता, आपने हर प्रकार की यातनाएं झेलीं पर अपनी मातृभूमि में रहना पसंद किया। परन्तु जब पानी सर से ऊंचा हो गया तो न चाहते हुए भी मक्का से निकलने के लिए तैयार हो गए, जब वहाँ से प्रस्थान कर रहे थे तो विदाई के समय दिल पर उदासी छाई हुई थी। और ज़बान पर उपर्युक्त वाक्य जारी था।
फिर जब मदीना आए तो मदीना में ठहरने के बाद मदीना के लिए इन शब्दों में प्रार्थना कीः
اللهم حبب إلينا المدينة كما حببت إلينا مكة أو أشد
” हे अल्लाह हमारे दिल में मदीना से वैसे ही प्रेम डाल दे जैसे मक्का से है बल्कि उस से भी अधिक। ” (बुख़ारी, मुस्लिम)
मातृभूमि से प्रेम केवल भावनाओं तक सीमित नहीं होता अपितु हमारी कथनी और करनी में भी आ जाना चाहिए इस में सब से पहले अपनी मातृभूमि की शान्ति और सलामती के लिए अल्लाह से दुआ करनी चाहिए क्योंकि दुआ में दिल की सच्चाई का प्रदर्शन होता है। इस में झूठ, अतिशयोक्ति, या पाखंड नहीं होता और अल्लाह के साथ सीधा संबंध होता है। स्वयं अल्लाह के रसूल सल्ल. ने मदीना के लिए दुआ की थी कि “ हे अल्लाह मक्का से मदीना में दो गुनी बर्कत प्रदान कर।” (बुखारी, मुस्लिम)
क़ुरआन में स्वयं इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने प्रार्थना की थी कि हे अल्लाह इस धरती को शान्ति देन्द्र बना और यहाँ के निवासियों को भोजन हेतु विभिन्न प्रकार के फल प्रदान करः
وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَـٰذَا بَلَدًا آمِنًا وَارْزُقْ أَهْلَهُ مِنَ الثَّمَرَاتِ مَنْ آمَنَ مِنْهُم بِاللَّـهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُ قَلِيلًا ثُمَّ أَضْطَرُّهُ إِلَىٰ عَذَابِ النَّارِ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ ( سورة البقرة 126)
और याद करो जब इबराहीम ने कहा, “ऐ मेरे रब! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासियों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएँ।” कहा, “और जो इनकार करेगा थोड़ा फ़ायदा तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत-ही बुरा ठिकाना है!” (अल-बकरः 126)
ईब्राहीम अलै0 ने मक्का में अम्न और रिज़्क़ में वृद्धि के लिए दुआ की जो जीवन सामग्रियों में महत्वपूर्ण भुमिका अदा करता है। यदि वह दोनों या उनमें से एक खो जाए तो शान्ति छीन जाती है और देश जीवन सामग्रियों से खाली खाली देखाई देता है।
इस्लाम ने तो देश की शान्ति को भंग करने वालों के लिए सख्त से सख्त सज़ा सुनाई है मात्र इस लिए कि किसी को राष्ट्र में अशान्ति फैलाने का साहस न हो सकेः क़ुरआन ने कहाः
إِنَّمَا جَزَاءُ الَّذِينَ يُحَارِبُونَ اللَّـهَ وَرَسُولَهُ وَيَسْعَوْنَ فِي الْأَرْضِ فَسَادًا أَن يُقَتَّلُوا أَوْ يُصَلَّبُوا أَوْ تُقَطَّعَ أَيْدِيهِمْ وَأَرْجُلُهُم مِّنْ خِلَافٍ أَوْ يُنفَوْا مِنَ الْأَرْضِ ۚ ذَٰلِكَ لَهُمْ خِزْيٌ فِي الدُّنْيَا ۖ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ ﴿سورة المائدة 33﴾
जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है (माइदा 33)
इस्लाम हर उस काम का आदेश देता है जिस से राष्ट्र के लोगों के बीच सम्बन्ध दृढ़ रहे। इस्लाम ने मातृभूमि से प्यार के अंतर्गत ही रिश्तेदारों के साथ अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है। इसे बहुत बड़ी नेकी बताया गया है और उसे नष्ट करना फसाद का कारण सिद्ध किया है। सम्बन्ध बनाने की सीमा इतनी विशाल है कि हर व्यक्ति के साथ अच्छे व्यवहार का आदेश दिया गयाः इसी लिए मुहम्मद सल्ल. ने फरमायाः
لَا يُؤْمِنُ أَحَدُكُمْ حَتَّى يُحِبَّ لِأَخِيهِ مَا يُحِبُّ لِنَفْسِهِ رَوَاهُ الْبُخَارِيُّ
तुम में का एक व्यक्ति उस समय तक मोमिन नहीं हो सकता जब तक अपने भाई के लिए वही न पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता हैं। ( सहीह बुख़ारी)
बल्कि इस्लाम ने विश्व बंधुत्व की कल्पना देते हुए सारे मानव को एक ही माता पिता की संतान सिद्ध किया और उनके बीच हर प्रकार के भेद भाव का खंडन करते हुए फरमाया कि ईश्वर के निकट सब से बड़ा व्यक्ति वह है जो अल्लाह का सब से अधिक भय रखने वाला हो, अल्लाह का आदेश हैः
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ وَأُنثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا ۚ إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّـهِ أَتْقَاكُمْ ۚ إِنَّ اللَّـهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ ﴿ سورة الحجرات 13﴾
ऐ लोगो! हमनें तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और क़बिलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है, जो तुममे सबसे अधिक डर रखता है। निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है (सूरः अह-हुजरात 13)
इसी लिए मुहम्मद सल्ल. ने आदेश दिया कि:
“مَنْ ظَلَمَ مُعَاهَدًا، أَوِ انْتَقَصَهُ حَقًّا، أَوْ كَلَّفَهُ فَوْقَ طَاقَتِهِ، أَوْ أَخَذَ مِنْهُ شَيْئًا بِغَيْرِ طِيبِ نَفْسٍ مِنْهُ؛ فَأَنَا حَجِيجُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ” ( أبو داود: السلسلة الصحيحة 445)
” जिस किसी ने किसी अम्न से रहने वाले गैर-मुस्लिम पर अत्याचार किया, या उसके अधिकार में किसी प्रकार की कमी की, या उसकी शक्ति से अधिक उस पर काम का बोझ डाला, या उसकी इच्छा के बिना उसकी कोई चीज़ ले ली तो में कल क्यामक के दिन उसका विरोधी हुंगा। ( सुनन अबू दाऊद, अल-सिलसिला अल-सहीहा 445)
उस से आगे बढ़ कर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह फ़रमाया किः
“مَنْ قَتَلَ مُعَاهَدًا لم يَرِحْ رَائِحَةَ الْـجَنَّةِ“ ( رواه البخاري : 2995)
” जिसने किसी अम्न से रहने वाले गैर-मुस्लिम की हत्या की वह जन्नत की खुशबू तक न पा सकेगा।” (सहीह बुख़ारी 2995)
बल्कि इस्लाम ने पशु पक्षी, पौधे, और पत्थर सब के साथ अच्छे व्यवहार का आदेश दियाः अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमाया कि एक महिला को एक बिल्ली के कारण अज़ाब दिया गया। उसने बिल्ली को बांध रखा था, उसे न खिलाती थी और न खोलती थी कि ज़मीन के कीड़े मकूड़े खा लेती, जिस से वह मर गई अतः इसके कारण वह नरक में गई। (बुखारी, मुस्लिम) आप सल्ल. ने फरमाया कि “यदि क़यामत का समय आ जाए और तुम में से किसी के हाथ में खजूर के पौधे हों और वह महा-प्रलय के बरपा होने से पहले पौधे को लगा सकता हो तो लगा दे क्योंकि उसे इसके बदले पुण्य मिलेगा।” (सही जामिअ़ हदीस संख्या 1424).
हम देश प्रेमी हैं देश भक्त नहीं:
कुछ लोग पूछते हैं कि आप अपने देश से अधिक प्यार करते हैं अथवा अपने धर्म से…? ऐसे लोगों से हम कहना चाहेंगे कि आप हम से मानो यह प्रश्न कर रहे हैं कि तुम अपने बाप का बेटा हो या मां का। उत्तर स्पष्ट है कि मैं अपने बाप का भी बेटा हूं और मां का भी। उसी प्रकार मुसलमान होने के नाते मेरा धर्म इस्लाम है और भारतीय होने के नाते मेरा देश भारत है.. इस लिए किसी के देश प्रेमी होने पर संदेह करना स्वयं को देशद्रोंही सिद्ध करना है। हम अपने देश से इतना प्यार करते हैं कि उसके लिए जान देने के लिए भी तैयार हैं परन्तु इसके बावजूद हम देश प्रेमी ही रहेंगे देश भक्त नहीं हो सकते। क्यों कि भक्ति मात्र एक अल्लाह की होनी चाहिए। भक्ति में उसके साथ अन्य को भागीदार ठहराना वैध नहीं। जिसका राज है उसी का चलना चाहिए, जिस कम्पनी के कर्मचारी हैं उसी का काम होना चाहिए।
राष्ट्र से प्रेम करने वाला कौनः
राष्ट्र से प्रेम करने वाला वही हो सकता है जो राष्ट्र हित के लिए काम करे, जो प्रेम और स्नेह का वातावरण बनाए, जो बंधुत्व और भाईचारा को बढ़ावा दे। वह देश प्रेमी नहीं हो सकता जो देश की शान्ति को भंग करे, जो देश की एकता का विरोद्ध करे, जो देश में घृणा फैलाए, जो देश की सम्पत्ति का दुर्उपयोग करे।
राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्यः
66वें स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हमें अपना जाइज़ा लेने की ज़रूरत है कि हमने अब तक अपने देश के लिए क्या किया है। देश की प्रगति में कितना भाग लिया है। जन-कल्याण के लिए क्या क्या है। जाग्रुकता अभियान में किस हद तक भाग लिया है। आज हमारा कर्तव्य बनता है कि भारत की प्रगति हेतु शिक्षा और जन-कल्याण के लिए जो भी भुमिकाएं हो सकती हों देने का वचन दें।