हिजरी नव वर्ष के आरम्भ में हर मुसलमान का ध्यान उस ऐतिहासिक हिजरत की ओर आकर्षित हो जाता है जिसने पैगंबर मुहम्मद सल्ल. की 23 वर्षिय निमंत्रण में एक महान क्रांति बरपा किया जो राजनीतिक, आर्थिक,और विश्वव्यापी शांति का बिंदु केंद्र बनी. आज हम आपके सामने हिजरत से प्राप्त होने वाले इन्हीं कुछ पाठ को प्रस्तुत करेंगे:
हिजरत क्या है?
हिजरत नाम है धर्म की खातिर ऐसी जगह चले जाने का जहाँ इस्लामी आदेशों का पालन करना सम्भव न हो, लेकिन नबी सल्ल. की हिजरत आम हजरतों से बिल्कुल अलग थी, आप की हिजरत आराम और राहत हासिल करने के लिए नहीं थी और न आपका लक्ष्य पद की लालच या हुकूमत की इच्छा थी। स्वयं क़ुरैश आपको अपना हाकिम बना लेने और आपके पैरों तले माल और सम्पत्ति के ढेर बिछाने को तैयार थे, आपका लक्ष्य इन सब से अति उच्च और पवित्र था, इसी लिए जब आपके चचा अबू तालिब ने आप के पास आकर उनके देवताओं को बुरा भला न कहने का अनुरोद्ध किया तो उन्हों ने साहस और हिम्मत का पैकर बन कर कहा:
يا عم ! و الله لو وضعوا الشمس في يميني ، و القمر في يساري ، على أن أترك هذا الأمر حتى يظهره الله أو أهلك فيه ما تركته
السلسلة الضعيفة : 909 ضعيف
चचा जान! अल्लाह की क़सम, अगर वह हमारे दाहिने हाथ में सूर्य ला कर रख दें और बाएँ हाथ में चाँद लाकर रख दें फिर भी मैं यह काम नहीं छोड़ सकता जब तक कि अल्लाह इसे प्रबल कर या इस तरह मैं अपनी जान दे दूं. (शैख अल्बानी ने इस हदीस को ज़ईफ कहा है, देखिए सिलसिला ज़ईफा 909)
1- तवक्कुल माध्यम अपनाने के खिलाफ नहीं:
नबी सल्ल. की हिजरत में सबसे पहला सबक यह मिलता है कि अल्लाह पर तवक्कुल और भरोसा माध्यम अपनाने के खिलाफ नहीं यानी अल्लाह पर भरोसा का मतलब यह नहीं कि किसी काम के लिए संघर्ष और प्रयास छोड़ कर चुप चाप हाथ पांव बांधे बैठ जाएं कि अल्लाह को जो कुछ करना है वह खुद से हो जाएगा, माध्यम और तदबीर की जरूरत नहीं, बल्कि तवक्कुल नाम है किसी काम को पूरे इरादा और तदबीर के साथ करना और परिणाम को अल्लाह के हवाले कर देना कि अगर उस में कोई भलाई है तो अल्लाह तआला ज़रूर सफलता प्रदान करेगा।
आजकल तवक्कुल के सम्बन्ध में भी मुसलमानों का बहुत बड़ा समूह अतिश्योक्ति का शिकार है, कुछ लोग माध्यम पर पूरा भरोसा करते हैं, तथा उसी को सकारात्मक अथवा नकारात्मक परिणाम का पूरा जिम्मेदार ठहराते हैं, जबकि कुछ लोग माध्यम को बिल्कुल त्याग कर अल्लाह पर भरोसा और तवक्कुल का दम भरते हैं, हालांकि तवक्कुल का अर्थ यह था कि माध्यम और तदबीर अपनाने के बाद परिणाम को अल्लाह के हवाले कर दिया जाए और यह समझा जाए कि अल्लाह यदि चाहे तो हमें कोई विफल नहीं कर सकता और यदि अल्लाह न चाहे तो कोई हमारी मरादें पूरी नहीं कर सकता।
इसी लिए हिजरत की घटना पर विचार करने से पता चलता है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हर संभव भौतिक संसाधनों और माध्यम तथा तदबीर को सामने रखा हालांकि आपको वह्य का पूरा समर्थन प्राप्त था।
(1) जैसे आप घर से निकलने से पहले हज़रत अली को अपने बिस्तर पर सुलाया ताकि दुश्मन को एहसास हो कि आप अंदर सो रहे हैं।
(2) फिर यात्रा में साथी का चयन किया जिसका श्रेय हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु को प्राप्त हुआ।
(3) दो तेज़ गति वाली सवारियों की चार महीने पहले से खूब देख रेख की गई और हिजरत के अवसर पर उन्हें आवश्यक उपकरण से सुसज्जित किया गया।
(4) रास्ता के विशेषज्ञ ‘अब्दुल्लाहै बिन उरैक़ित‘ को रास्ते की पहचान के लिए मजदूरी पर साथ लिया।
(5) रास्ते के पानपान और आवश्यक उपकरण का व्यवस्था किया गया, हज़रत अबू बकर ने लगभग छः हजार दिरहम अपने साथ रख ली, हज़रत अस्मा हर शाम खाना पहुँचाया करतीं और आमिर बिन फुहैरा रात को दूध पहुंचाया करते।
(6) हिजरत के मामले को पूरी तरह से गोपनीय रखा केवल ऐसे ही कुछ लोगों को खबर दी जिन्हें इस योजना को व्यववहारिक रूप देना था।
(7) रास्तों के बारे में आपने दुश्मनों को संदिग्ध में रखने के लिए दक्षिण में यमन का रास्ता अपनाया हालांकि मदीना उत्तर दिशा में स्थित है।
(8) उसी प्रकार सौर पहाड़ में तीन दिन तक छिपे रहे ताकि दुश्मनों की खोज में कमी आ जाए, इस बीच दुश्मनों की हरकत से अवगत रहने का भी पूरा इंतजाम किया गया,उसी कदर कदमों के निशान भी मिटाने की कोशिश की गई कि ऐसा न हो कि कुफ़्फ़ारे क़ुरैश क़दमों के निशान देख कर दिशा का पता लगा लें। रिवायत में आता है कि इसी कारण आप सल्ल. अपने पांव के ऊपरी भाग पर टेक देकर निकले, यहाँ तक कि पहुंचते पहुंचते पांव में छाले पड़ गए।
यह सारे माध्यम अपनाने के बावजूद अल्लाह पर ही भरोसा और विश्वास था, इसी लिए जब कुफ़्फ़ारे क़ुरैश के कदमों की आहट से हज़रत अबू बकर चिंतित हुए तो आप ने जवाब दिया:
لَا تَحْزَنْ إِنَّ اللَّهَ مَعَنَا . سورة التوبة 40
अबू बकर! मत घबरा अल्लाह हमारे साथ है। यह है तवक्कुल का सही अर्थ।
2- अल्लाह की सुरक्षा करो अल्लाह तेरी सुरक्षा करेगाः
हिजरत से हमें दूसरा सबक यह मिलता है कि जो अल्लाह के आदेशों की सुरक्षा करता है अल्लाह उसकी सुरक्षा करता है:
ज़रा विचार करें कुफ़्फ़ारे क़ुरैश ने आप सल्ल. की हत्या के लिए कितनी प्लानिंग की थी,नंगी तलवारें सोंते हर ओर से घर को घेर रखा था, बचने के कोई स्पष्ट कारण दिखाई नहीं दे रहे थे, हां! केवल अल्लाह की शक्ति थी जो अपने हबीब को ज़ालिमों के चंगुल से निकाल सकती थी, इस लिए वह्य के द्वारा आप को सूचना दे दी जाती है, आप उनकी आँखों पर एक मुट्ठी मिट्टी फेंकते हैं और उनके सामने से सुरक्षित गुज़र जाते हैं, फिर सौर गुफा में आते हैं, वहाँ भी अल्लाह ने आप को कुरैश के काफिरों की निगाहों से ओझल रखा हालांकि वह गुफा के कगार पर पहुंच चुके थे. उसी तरह हिजरत की यात्रा के दौरान अल्लाह ने सुराक़ा बिन मालिक के आक्रमण से भी बचाया बल्कि वह उल्टे आप से शरण मांगने पर विवश हुआ।
तात्पर्य यह कि जिसने भी अल्लाह की सुरक्षा की, अर्थात् अल्लाह के आदेशों का पालन किया अल्लाह ने उसकी सुरक्षा की, और सुरक्षा में सब से पहले दीनी सुरक्षा आती है लेकिन उसमें शारीरिक सुरक्षा भी शामिल है, परन्तु यह कोई नियम नहीं कि नेक और पवित्र इंसान को किसी तरह की हानि न पहुंचे, कभी कभी नेक लोगों पर भी परेशानियां आती हैं जो वास्तव में उनका परीक्षा होता हा जिन से उनके पाप माफ होते हैं और पद बुलंद होते हैं जैसा कि स्वयं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को क़दम क़दम पर तकलीफों और परेशानियों का सामना करना पड़ा।
3- तंगी हो या समृद्धि हर स्थिति में संतुलन अपनाना चाहिएः
हिजरत से हमें तीसरा सबक़ यह मिलता है कि तंगी और समृद्धि हर स्थिति में संतुलन को सामने रखना चाहिए, अल्लाह के नबी सल्ल. जिस दिन बे-सामानी की स्थिति में मक्का से निकले थे उस दिन आपके में जैसी विनम्रता थी, और अल्लाह पर जैसा दृढ़ विश्वास था ऐसी ही विनम्रता और ऐसा ही विश्वास उस दिन भी पाया गया जिस दिन आप मक्का में बतौर विजेता के प्रवेश करते हैं, और इस्लाम और मुसलमानों को विजय प्राप्त होता है। मक्का ने निकाले जाने के दिन आपका जैसा जीवन था वैसा ही जीवन तब भी रहा जब कि अरब द्वीप पर इस्लाम की जीत का ध्वज लहरा रहा था और मस्जिदे नबवी में सोने और चांदी के ढ़ेर रखे थे।
4- अच्छा परिणाम हमेशा नेक लोगों का होता है:
हिजरत से हमें चौथा सबक यह मिलता है कि अच्छा परिणाम हमेशा नेक लोगों और पवित्र आत्माओं को प्राप्त होता है: इस लिए जो व्यक्ति भी हिजरत की घटना पर विचार करेगा उसे ज़ाहिर में अनुभव होगा कि इस्लामी दावत पतन की ओर अग्रसर है लेकिन वास्तव में हिजरत हमें सबक देती है कि सर्वश्रेष्ठ परिणाम नेक लोगों को ही प्राप्त होता है, इस लिए हुआ भी ऐसा ही, मदीना पहुंचने के बाद पहली बार इस्लामी हुकूमत का गठन हुआ और शुद्ध इस्लामी समाज की स्थापना हुई, फिर वह इस्लाम जो मक्का में गरीबी की स्थिति में था, मदीना की धरती ने उसे बल पहुंचाया, विशेष रूप में मक्का विजय के बाद जब कुफ़्फ़ारे क़ुरैश ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दया का अद्भुत नमूना देखा तो उन की आंखे खुल गईं, जो कभी इस्लाम के कट्टर दुश्मन थे इस्लाम के मुजाहिद और सिपाही बन गए, अब क्या था? देखते ही देखते अरब द्वीप और उसके आसपास में सत्य की आवाज़ गूंजने लगी, लोग ग्रुप के ग्रुप इस्लाम में आने लगे और हर ओर इस्लाम का बोलबाला हो गया, यह सब बरकतें थीं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हिजरत की।
तात्पर्य यह कि हिजरत इस बात की घोषणा थी कि बातिल को जितनी भी शक्ति और बल प्राप्त हो जाए उसका परिणाम हमेशा गिरावट, बरबादी और पतन ही है, और हक़ को जितना भी दुख और कष्ट झेलना पड़े उनका परिणाम जीत, सहायता और सफलता ही है, और ऐसा क्यों न हो जब कि अल्लाह ने ईमान वालों की सहायता का वादा किया है, और उनके लिए हर सख्ती के बाद आसानी की गारेंटी ली है।
5- धैर्य मोमिनों की खूबी हैः
हिजरत से पांचवां सबक यह मिलता है कि धैर्य मोमिनों की खूबी है और सब्र का फल हमेशा मीठा होता है:
यदि अल्लाह चाहता तो नबी सल्ल. को मामूली तकलीफ भी नहीं पहुंच सकती थी,लेकिन आप आज़माइश में ग्रस्त किए गए ताकि आपके धैर्य और सब्र की परख की जा सके, अपार पुण्य के हकदार ठहरें, और यह नमूना आपके बाद दीन के दाइयों के लिए मार्गदर्शक बने ताकि वे उसके मार्गदर्शन में कठिनाइयों का मुक़ाबला कर सकें।
6- अंसारे मदीना की भूमिकाः
हिजरत में सबसे मूल भूमिका मदीना के अंसार की देखाई देती है जिन्हों ने दिल से इस्लाम स्वीकार किया था और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके साथियों को मदीना हिजरत करने की दावत दी थी, हालांकि वे दावत देते समय अच्छी तरह जान रहे थे कि इसके परिणाम स्वरूप उन्हें सभी अरब की दुश्मनी मोल लेनी होगी, और यही नहीं कि आप और आपके मक्की साथियों के ठहरने के लिए अपना शहर पेश कर दिया बल्कि आप को अपना हाकिम भी स्वीकार कर लिया, अपनी वफादार जनता बन गए, मुहाजिर मुसलमानों को अपने साथ बराबर के अधिकार दिए, अपना भाई बनाया, अपने घर बार, अपने माल और संपत्ति तक उनके लिए पेश कर दिया यहां तक कि जिनके पास दो पत्नियां थीं उन्होंने अपने मुहाजिर भाई के सामने तलब रखा कि उन में से जो उन्हें पसंद आयें संकेत करें उन्हें तलाक दे दूं और इद्दत गुज़रने के बाद उन से शादी कर के अपना घर बसालें। ऐसे त्याग का उदाहरण इतिहास के किसी युग में नहीं मिलता।
1951ईसवी में द्वितीय विश्व युद्ध के पीड़ितों के प्रति संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले 147 देशों ने जनीवा कनवेनशन में मुहाजिरीन के लिए आपसी सहमति से कुछ सुझाव पास किया था जिस का मूल दफआ था कि किसी भी देश में शरणार्थियों की इक़ामत पूर्णकालिक होगी लेकिन उसके बावजूद सवाल यह है कि क्या मुहमाजिरीन की समस्याओं का समाधान हो सका, आज भी यूरोप में बसने वाले बहुत सारे मुहाजिरीन की समस्यायें जटिल बनी हुई हैं।
7- संदेशः
नबी सल्ल. की हिजरत में उन मुसलमान भाइयों और बहिनों के लिए संदेश है जो अपने समाज में रह कर इस्लामी शरीअत की पाबंदी नहीं कर पा रहे हों वह अल्लाह पर भरोसा करते हुए उस जगह को त्याग कर ऐसी जगह हिजरत कर जायें जहां मुसलमानों की आबादी हो और अपने धार्मिक कर्तव्य भली भांति अंजाम दे सकते हों, क्योंकि इसी में उनकी भलाई, उनके परिवार की भलाई, उनके दीन और ईमान की भलाई है, और उनकी दुनिया की भी भलाई है, अल्लाह का आदेश हैः
وَمَن يُهَاجِرْ فِي سَبِيلِ اللَّـهِ يَجِدْ فِي الْأَرْضِ مُرَاغَمًا كَثِيرًا وَسَعَةً ۚ . سورة النساء 100
“जो कोई अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़कर निकलेगा, वह धरती में शरण लेने की बहुत जगह और समाई पाएगा” (सूरः अन्निसा 100)
गोया कि धर्म की खातिर हिजरत करना प्रावधान की प्राप्ती का बनियादी स्रोत है,बल्कि जो व्यक्ति अल्लाह की खातिर कोई चीज़ छोड़ देता है अल्लाह उसे उससे उत्तम चीज़ प्रदान करता है, सहाबा किराम का उदाहरण हमारे सामने है, जब उन्हों ने अपने घर बार, अपने परिवार और अपने धन, दौलत को त्याग कर मदीना की ओर हिजरत किया तो सर्वशक्तिमान अल्लाह ने उन्हें उसका ऐसा बदला दिया कि अरब द्वीप उनके अधीन हो गया, उन्हें सीरिया, ईरान और रूम के खजाने की कुंजी हाथ लगी।