इस्लाम ने सर्व मूमिनों को एक झंडे के नीचे एकात्र किया है। अल्लाह के लिए वह लोगों से प्रेम करते हैं यदि वह उनका संबन्धी न हो और ईमान न लाने वालों से नफरत करते हैं अगर्चे कि वह उस का क़रीबी संबन्धी हो, चूंकि अल्लाह के आदेश के अनुसार जीवन बीताना और अल्लाह की अवैध वस्तुओं से रुकना इबादत है जैसा कि विद्वानों ने कहा है। इबादत की एक परिभाषा यह भी की गई है कि प्रत्येक वह कार्य जिस के करने से अल्लाह प्रसन्न होता हो चाहि वह कार्य शारीरिक हो या मांसिक हो या विश्वासनीय हो या आर्थिक हो।
नेक लोगों से केवल अल्लाह के आदेश के कारण प्रेम करना भी इबादत है जिस के करने वालों व्यक्तियों को बहुत सवाब और पूण्य मिलता है, क्योंकि सर्व मुस्लिम भाई भाई है।
” المسلم أخو المسلم لا يظلمه ولا يسلمه ومن كان في حاجة أخيه كان الله في حاجته” (صحيح البخاري:6951 )
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया ” मुस्लिम भाई भाई हैं। वह उस पर अत्याचार नहीं करता और नहीं उसे कष्ठ देता और जो अपने भाई की मदद में होगा अल्लाह उस की मदद करेगा।” (सही बुखारीः 6951)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस भाई के बंधन को कितना शक्ति शाली बनाया है जिसे इस हदीस शरीफ से कुछ समझा जा सकता है,
” مثل المؤمنين في توادهم وتراحمهم وتعاطفهم ، مثل الجسد . إذا اشتكى منه عضو ، تداعى له سائر الجسد بالسهر والحمى ” ( صحيح مسلم 2586)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान हैः मूमिनों की उदाहरण प्रेम और दया और एक दुसरे से नरमी में एक शरीर के मानिन्द है जिस के किसी अंग को रोग लगती है तो सारा शरीर रोग की परेशानियों से जलने लगता है।” (सही मुस्लिमः 2586)
भाईचारा के इस महान स्थान के कारण इस्लाम ने हर वह रास्ता चयन किया है जो मुसलमानों के बीच प्रेम और अनुरोग और मेल मिलाप के बंधन को ठोस और मज़बूत करे, इसी तरह एक मूमिन का ईमान उसी समय पूर्ण होगा जब वह अपने भाई के लिए वही चीज़ पसन्द करे जो वह अपने लिए पसन्द करता है और अपने भाई के लिए वही चीज़ नापसन्द करे जो वह अपने लिए नापसन्द करता है।
“لايومن أحدكم حتى يحب لأخيه ما يحب لنفسه”(صحيح البخاري:13)
रसूल (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) का कथन हैः ” तुम में से कोई उस समय तक मूमिन नहीं हो सकता जब तक वह अपने भाई के लिए वही चीज पसन्द करे जो वह अपने लिए पसन्द करता है ” (सही बुख़ारीः 13)
कोई भी व्यक्ति उस समय तक जन्नत में नही जा सकता जब तक कि वह ईमान न लाए और उसका ईमन सही नहीं होगा जब तक वह दुसरे धार्मिक मुस्लिम भाईयों से प्रेम न करे जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने खबर दिया है,
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ:قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ ” وَالَّذِي نَفْسِي بِيَدِهِ لا تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ حَتَّى تُؤْمِنُوا,وَلا تُؤْمِنُوا حَتَّى تَحَابُّوا,أَوَلا أَدُلُّكُمْ عَلَى شَيْءٍ إِذَا فَعَلْتُمُوهُ تَحَابَبْتُمْ أَفْشُوا السَّلامَ بَيْنَكُمْ “ (9صحيح الجامع للشيخ العلامة الألباني – 708 )
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” उस ज़ात की क़सम जिस के हाथ में मेरी प्राण है, जन्नत में तुम प्रवेश नहीं हो सकते जब तक तुम ईमान न लाओ और तुम्हारा ईमान उस समय तक मुकम्मल न होगा जब तक तुम एक दुसरे से प्रेम न करो, मैं तुम्हें ऐसी चीज़ न बताऊ, जिसे तुम अपनाओगे तो एक दुसरे से प्रेम करने लगोगे, सब लोगों को सलाम करो ” (सहीउल-जामिअः अल्लामा अल-बानीः 708)
जो व्यक्ति अल्लाह तआला की प्रसन्नता के लिए नेक लोगों से प्रेम करता है, तो अल्लाह तआला ऐसे लोगों से प्रेम करता है जैसा का कथन है।
عن معاذ (رضي الله عنه) قال : سمعت رسول الله (صلى الله عليه و سلم) يقول : “قال الله تبارك و تعالى : وجبت محبتي للمتحابين فيّ ، و المتجالسين فيّ و المتزاورين فيّ ، و المتباذلين فيّ ” (رواه مالك و غيره )
मुआज़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फरमाते हुए सुनाः अल्लाह तबारक व तआला का इर्शाद है। ” मेरा प्रेम ऐसे लोगों के लिए अनिवार्य हो गया है कि जो आपस में एक दुसरे से मेरे लिए प्रेम करते हैं, आपस में एक दुसरे से मेरे लिए मिल बैठते हैं, आपस में एक दुसरे के घर मेरे कारण जाते हैं, आपस में एक दुसरे पर मेरे कारण खर्च करते हैं ” (मुअत्ता लिल इमाम मालिक)
जो लोग केवल अल्लाह की खूशी के लिए एक दुसरे मुस्लिम भाई, नेक और अच्छे मानव से प्रेम करते हैं तो अल्लाह ऐसे लोगों का आदर-सम्मान करता है, जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है।
عن أبي أمامة رضي الله عنه قال : قال رسول الله صلى الله عليه و سلم : ” ما من عبد أحبّ عبدا لله إلا أكرمه الله عز وجل ” ( أخرجه أحمد بسند جيّد)
अबू उमामा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” जो कोई मानव किसी दुसरे मानव से अल्लाह के कारण प्यार करता है तो अल्लाह तआला ऐसे बन्दो को सम्मानित करता है। ” (मुस्नद अहमद)
अल्लाह के कारण किसी मानव से प्रेम करना बहुत ही पूण्य का कर्म है और क़ियामत के दिन अल्लाह तआला ऐसे बन्दों को अपने छाव में स्थान देगा जिस दिन अल्लाह के छाव के अलावा कोई छाव न होगा, जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान है।
عن أبي هريرة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه و سلم : “إنّ الله تعالى يقول يوم القيامة: أين المتحابون بجلالي؟ اليوم أظلّهم في ظلّي يوم لا ظلّ إلاّ ظلّي ( رواه مسلم)
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः अल्लाह तआला क़ियामत के दिन कहेगाः ” आपस में एक दुसरे से मेरे लिए प्रेम करने वाले लोग कहाँ हैं ? आज के दिन मैं उन्हें अपने छाव में जगह दूंगा क्योंकि आज के दिन मेरे छाव के अलावा कोई छाव नहीं होगा।” (सही मुस्लिम)
जो लोग केवल अल्लाह के खुशी के कारण एक दुसरे नेक व्यक्तियों और अच्छे आचरन वाले व्यक्तियों से प्रेम करते हैं तो ऐसे लोगों ने ईमान की मिठास को प्राप्त कर लिया है, ऐसे लोगों को अल्लाह के नबी (अलैहिस्सलातु वस्सलाम) ने शुभ खबर दी है।
عن أنس رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه و سلم: ” ثلاث من كنّ فيه وجد حلاوة الإيمان: أن يكون الله و رسوله أحبّ إليه مما سواهما و أن يحبّ المرء لا يحبه إلا لله و أن يكره أ يعود في الكفر بعد إذ أنقذه الله منه كما يكره أن يلقى في النار” -(متفق عليه
अनस बिन मालिक (रज़ियल्लाहु अन्हु) वर्णित करते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” जिस व्यक्ति के अन्दर यह तीन विशेषता है, उसने ईमान की मिठास को पालिया, अल्लाह और उस के रसूल सब से ज़्यादा उस के पास प्रियतम हों और वह किसी मानव से केवल अल्लाह के कारण ही प्रेम करता हो और वह काफिर होना ऐसे ही ना पसन्द करे जब कि अल्लाह ने उसे उस से बचा लिया जैसे कि उसे ना पसन्द हो कि अग्नि (नरक) में डाला जाए।” (सही बुखारी और सही मुस्लिम)
इसी प्रकार जो लोग केवल अल्लाह की हर्षा प्राप्त करने के लिए दुसरे उत्तम व्यवहार और धार्मिक लोगों से प्रेम करते हैं तो ऐसे लोगों के ईमान के पूर्ण होने की गवाही नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दी है।
عن أبي أمامة رضي الله عنه قال:قال رسول الله صلى الله عليه و سلم: “من أحبّ لله و أبغض لله و أعطى لله و منع لله فقد استكمل الإيمان ” (رواه أبو داود بسند حسن)
अबू उमामा (रज़ियल्लाहु अन्हु) वर्णन हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” जिस ने अल्लाह की खुशी के कारण किसी से प्रेम किया और अल्लाह की खुशी के कारण किसी से घृणा किया और अल्लाह की खुशी के कारण किसी पर खर्च किया और अल्लाह की खुशी के कारण किसी पर खर्च नहीं किया तो उसने अपने ईमान को पूर्ण करने का कार्य किया।” (सुनन अबी दाऊद)
अल्लाह तआला के पास क्या ही महानतम स्थान है ऐसे लोगों के लिए जो अल्लाह की खुशी के कारण एक दुसरे से प्रेम करते हैं एवं लगाव रखते हैं जिस में वह संसारिक लाभ और स्वाद से मुक्त होते हैं। ध्यान पुर्वक निम्न हदीस पर विचार करें।
عن أبي مالك الأشعري قال: ” كنت عند النبي صلى الله عليه و سلم فنزلت عليه هذه الآية:” يا أيها الذين آمنوا لا تسألوا عن أشياء إن تبد لكم تسؤكم”(المائدة 101) قال:فنحن نسأله إذ قال: إنّ لله عبادا ليسوا بأنبياء و لا شهداء يغبطهم النبيون و الشهداء بقربهم و مقعدهم من الله يوم القيامة ، قال: و في ناحية القوم أعرابي فجثا على ركبتيه و رمى بيديه ، ثم قال : حدثنا يا رسول الله عنهم من هم ؟ قال : فرأيت في وجه النبي صلى الله عليه و سلم البِشر ، فقال النبي صلى الله عليه و سلم: ” هم عباد من عباد الله من بلدان شتى، و قبائل شتى من شعوب القبائل لم تكن بينهم أرحام يتواصلون بها، و لا دنيا يتباذلون بها ، يتحابون بروح الله ، يجعل الله وجوههم نورا و يجعل لهم منابر من لؤلؤ قدام الناس و لا يفزعون، و يخاف الناس و لا يخافون ” (رواه أحمد و الحاكم و صححه الذهبي)
अबू मालिक अल-अश्अरी ने कहा है कि मैं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास था तो आप पर अल्लाह ने यह आयत उतारीः ” ऐ ईमान वालों! तुम उन वस्तुओं के आदेश के प्रति प्रश्न न करो जिन्हें बदल दिया जाए तो तुम परेशानी में पड़ जाओगे….. ” (सूरः अल-माईदा- 101)
सहाबी ने कहा, हम इसी के प्रति एक दुसरे से प्रश्न कर रहे थे कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” बेशक अल्लाह के कुछ ऐसे दास और भक्त हैं कि जो नबी और शहीद नहीं हैं परन्तु क़ियामत के दिन नबियों और शुहुदा उन के अल्लाह से निकटतम होने के कारण रश्क करेंगे और सहाबी ने कहा, एक किनारे एक ग्रामिण सहाबी बैठे थे तो कहा ऐ अल्लाह के रसूल! उन लोगों के प्रति विस्तार से बताऐं, तो मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के चेहरे पर खुशी देखा, तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः वह अल्लाह के भक्तों में से कुछ भक्त हैं जो विभिन्न देशों और विभिन्न जातियों में से होंगे, उनका आपस में कोइ जाति सम्बंध नहीं होगा जिस के कारण वह मिलते हैं और न ही संसारिक लक्ष्य के कारण एक दुसरे पर खर्च करते हैं बल्कि अल्लाह के हर्ष के कारण एक दुसरे से प्रेम करते हैं। अल्लाह उनके चेहरे पर रोश्नी कर देगा, उन के लिए लोगों के आगे मोती का चबूतरा बनाऐगा और उन्हे किसी प्रकार की घबराहट नहीं होगी, लोग डरे हुए होंगे परन्तु वह डरेंगे नहीं।” (मुस्नद अहमद और इमाम ज़हबी ने सही कहा है)