अल्लाह ने अपनी महानता और तत्वदर्शिता से अपनी सृष्टि में प्रावधान का वितरण किया है, किसी को धनी बनाया तो किसी को गरीब, किसी को बेनियाज़ किया तो किसी को मोहताज, किसी को मालिक बनाया तो किसी को नोकर, इस अंतर पदनाम का मुख्य उद्देश्य यह है कि हर व्यक्ति एक दूसरे के काम आ सके, एक की जरूरत दूसरे से पूरी हो सके, अगर सारे एक ही श्रेणी के लोग हो जाते तो बहुत सारी मसलहतें निलंबित ठहरतीं।
चूंकि हमारी जरूरतें भिन्न भिन्न होती हैं, प्रत्येक के लिए सारा काम कर लेना संभव नहीं होता, इस लिए हमारे लिए आसानी पैदा कर दी गई कि जो जैसा काम करने की योग्या रखता हो उस से हम अपना काम करा लें और अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए अपने पास नौकर रख लें।
लेकिन इस्लाम ने नौकरों और कर्मचारियों के अधिकार भी बता दिए, जिन्हें अदा करना अत्यंत आवश्यक है, आज अफसोस कि अक्सर लोगों की नज़रों से अपने अधीनस्थों के अधिकार का महत्व निकलता जा रहा है, नौकर को यह अधिकार है कि उसे उसका हक़ मिले, उसे उसकी मजदूरी पूरी पूरी दी जाए।
सही बुखारी की रिवायत है अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया कि तीन तरह के लोग ऐसे हैं जिनका मैं न्याय के दिन प्रतिद्वंद्वी हूँ… उनमें से एक
ورَجُلٌ اسْتَأْجَرَ أَجِيرًا فاسْتَوْفَى مِنْهُ ولَمْ يُوفِهِ أَجْرَهُ
“ऐसा आदमी जिसने किसी को मजदूरी पर रखा उस से काम पूरा लिया लेकिन उसे उसका हक़ अदा नहीं किया।“
सेवक का यह अधिकार है कि उसे कष्ट में न डाला जाए, उसे उसकी शक्ति से अधिक काम न दिया जाए, कोई ऐसा काम दिया भी तो उसमें उसकी मदद की जाए, अगर किसी तरह से कोताही करे तो उसे सख्त सुस्त या बुरा भला न कहा जाए, हर मामले में नरमी का मामला किया जाए, क्योंकि सहजता प्रत्येक मामले में आवश्यक है, हमारे लिए आदर्श अल्लाह के रसूल हैं, हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:
«خَدَمْتُ رَسُولَ اللهِ ﷺ عَشْرَ سِنِينَ، وَاللهِ! مَا قَالَ لِـيَ أُفًّ قَطُّ، ولا قالَ لِي لِشَيْءٍ: لِمَ فَعَلْتَ كذا؟ وهَلَّا فَعَلْتَ كذا» [أَخْرَجَهُ الشَّيْخانِ].
“मैं ने दस वर्ष तक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा की, अल्लाह की क़सम! आपने किसी काम के प्रति ऊंह तक नहीं कहा, न आपने किसी चीज़ के बारे में कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया या ऐसा क्यों नहीं किया।“ (बुख़ारी, मुस्लिम)
बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है मअरूर बिन सुवैद रहिमहुल्लाह कहते हैं कि मेरी मुलाकात अबुज़र रज़ियल्लाहु अन्हु से अर्रबज़ा स्थान पर हुई, उनके बदन पर एक जुब्बा था और उनके दास के बदन पर भी एक जुब्बा था, मैंने इस सम्बन्ध में उनसे पूछा तो उन्होंने कहा: एक बार एक दास के साथ मेरी गालम गलौज हो गई, मैं ने उसकी माँ का नाम लेकर उसे आर दिलाया, तब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुझ से कहा:
«يَا أَبا ذَرٍّ أَعَيَّرْتَهُ بِأُمِّهِ؟! إِنَّكَ امْرُؤٌ فِيكَ جَاهِلِيَّةٌ، إِخْوَانُكُمْ خَوَلُكُمْ جَعَلَهُمُ اللهُ تَحْتَ أَيْدِيكُمْ، فمَن كَانَ أَخُوهُ تَحْتَ يَدِهِ فَلْيُطْعِمْهُ مِمَّا يَأْكُلُ، وَلْيُلْبِسْهُ مِمَّا يَلْبَسُ، ولا تُكَلِّفُوهُمْ ما يَغْلِبُهُمْ، فإِنْ كَلَّفْتُمُوهُمْ فأَعِينُوهُمْ»
“अबुज़र! क्या तुमने उसे उसकी माँ का नाम लेकर उसे आर दिलाया है, तुम ऐसे इंसान हो जिसमें अज्ञानताकाल की बोबास पाई जाती है, तुम्हारे दास असल में तुम्हारे भाई हैं, अल्लाह ने उन्हें तुम्हारे अधीन किया है, तो जिसका भाई उसके अधीन हो वह जो खाता है उसे भी वही खिलाए, और जो पहनता है उसे भी वही पहनाए, और ऐसे काम की ज़िम्मवारी न दो जिसकी उसे शक्ति न हो और अगर देता है तो उसमें उसकी मदद करो।“
अगर किसी तरह की कोई कोताही और ग़लती हो जाती है तो उसे माफ कर देना चाहिए क्योंकि माफ कर देना ईमान वालों की पहचान है। और जो सृष्टि से क्षमा का मामला करता है अल्लाह उसके पापों को क्षमा कर देता है।
सुनन अबी दाऊद और तिर्मिज़ी की रिवायत है हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं कि एक आदमी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपने दास को कितनी बार माफ करूँ? अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) चुप रहे, फिर उसने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मैं अपने दास को कितनी बार माफ करूँ? तब रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया: प्रतिदिन सत्तर बार।
कफील को चाहिए कि दास को गाली देने, बुरा भला कहने, मारने पीटने, अपमानित करने, डराने-धमकाने से बच्चे। क्योंकि उसका परिणाम पछतावे और लज्जा का कारण होने वाला है।
सही मुस्लिम की रिवायत है, ज़ैद बिन अस्लम बयान करते हैं कि अब्दुल मलिक बिन मरवान ने उम्मे दरदा रज़ियल्लाहु अन्हा को अपने पास बुलवाया, उम्मे दरदा रज़ियल्लाहु अन्हा उनके पास ठहरीं, एक रात अब्दुल मलिक बिन मरवान रात में जगे और अपने दास को आवाज़ दी, आने में उसने हल्की सी देरी की तो उसकी निन्दा करने लगे, सुबह हुई तो उम्मे दरदा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अब्दुल मलिक बिन मरवान से कहा: मैंने रात में सुना कि आपने अपने सेवक को जिस समय बुलाया उस समय उस पर शाप दे रहे थे, मैंने अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु को यह कहते हुए सुना है, वे कहते थे कि अल्लाह के रसूल ने फरमाया:
لا يَكُونُ اللَّعَّانُونَ شُفَعاءَ ولا شُهَداءَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ
“अभिशाप करने वाले न्याय के दिन सिफारिशी नहीं बनेंगे और न ही गवाही देने वाले बनेंगे।“
सुनन तिर्मिज़ी की रिवायत है हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि एक आदमी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास बैठा, उसने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे पास कुछ गुलाम हैं, वे मुझे झुठलाते हैं, मेरी विश्वासघात करते हैं, मेरी अवज्ञा करते हैं, उन्हें मैं गाली देता और मारता हूँ। आप मुझे बताइए कि मैं उनके प्रति कैसा हूँ? आप ने कहा: जितनी उन्होंने विश्वासघात की, तेरी अवज्ञा की, और तुझे झुठलाया और फिर तुमने उन्हें सज़ा दी यह सब गिन लिया जाएगा, यदि तुम्हारा उन्हें सजा देना उतना ही होगा जितना उन्होंने गलती की है तो तेरे लिए मामला बराबर होगा। न तो तुम्हारी पकड़ होगी और न ही उसकी पकड़ होगी। और अगर तुम्हारा उन्हें सजा देना उनकी गलतियों से कम होगा तो तुम्हारे लिए यह अनुग्रह की बात होगी, और अगर तुम्हारा उन्हें सजा देना उनकी गलतियों से अधिक होगा तो जितनी सजा ज्यादा होगी कल क़यामत के दिन उनके बराबर तुम्हें सजा मिलेगी।
सैयदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि वह आदमी रोने और चींखने लगा, अल्लाह के रसूल ((सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा: क्या तुमने अल्लाह की किताब नहीं पढ़ी:
وَنَضَعُ الْمَوَازِينَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيَامَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَإِنْ كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا وَكَفَى بِنَا حَاسِبِينَ [الأنبياء:47].
“और हम बज़नी, अच्छे न्यायपूर्ण कामों को क़ियामत के दिन के लिए रख रहे है। फिर किसी व्यक्ति पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा, यद्यपि वह (कर्म) राई के दाने के बराबर हो, हम उसे ला उपस्थित करेंगे। और हिसाब करने के लिए हम काफ़ी हैं।“ (सूऱः अल-अंबिया 47)
उस आदमी ने कहा:
واللهِ يا رَسُولَ اللهِ! ما أَجِدُ لي ولِهَؤُلاءِ شَيْئًا خَيْرًا مِن مُفارَقَتِهِمْ، أُشْهِدُكُمْ أَنَّهُمْ أَحْرارٌ كُلُّهُمْ
“ऐ अल्लाह के रसूल अल्लाह की क़सम! मैं अपने और उनके लिए सबसे बेहतर यही समझता हूँ कि मैं उनसे जुदा हो जाऊं, मैं गवाह बनाकर कहता हूँ कि वे सब आज से स्वतंत्र हैं।“
मालिक पर सेवक का यह अधिकार है कि मालिक जैसा खाता है सेवक को भी वैसा ही खिलाए, उसे अच्छा से अच्छा कपड़ा पहनाए, अगर उसका स्वास्थ्य खराब हो जाता है तो उसका इलाज कराए और उसे फर्ज़ कामों के करने का अवसर प्रदान करे।
बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: जब तुम्हारा सेवक तुम्हारे लिए खाना लेकर आए तो अगर उसे अपने साथ बैठाकर खिला नहीं सकते तो खाने में से कुछ हिस्सा उसे दे दो।
अंत में क्या आप चाहेंगे कि आपको सेवक रखने उत्तम तरीका न बता दिया जाए?
सही बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि चक्की पीसते पीसते फ़ातिमा रज़ियल्लाहू अन्हा के हाथों में छाले पड़ जाते थे, एक दिन अल्लाह के नबी के पास कुछ कैदी आए, तो वह अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आईं, ताकि आपसे एक सेवक का सवाल कर सकें, लेकिन वह अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को न पा सकीं परन्तु आयशा से मिलीं तो उनसे निवेदन किया, जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आए तो आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा कि फातिमा आपसे मिलने आई थीं, तब अल्लाह के रसूल हमारे पास आए, हम उस समय अपने बिस्तर पर आ चुके थे और सोने जा रहे थे, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: तुम लोग अपनी जगह पर रहें, फिर अल्लाह के रसूल हमारे बीच बैठे यहाँ तक कि मैं आपके पैर की ठंडी अपने सीने पर महसूस की, फिर आपने फ़रमाया:
أَلَا أُعَلِّمُكُمَا خَيْرًا مِمَّا سَأَلْتُما؟
तुम दोनों ने जिस चीज़ का सवाल किया है क्या उस से बेहतर बात तुम्हें न सिखा दूँ ?
जब तुम अपने बिस्तर पर सोने के लिए आओ तो 34 बार अल्लाहु अकबर कहो, 33 बार सुब्हान अल्लाह कहो, और 33 बार अल-हम्दुलिल्लाह कह लिया करो। तुम्हारे लिए यह सेवक से बेहतर है। अली रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि
ما تَرْكتُهُ مُنْذُ سَمِعْتُهُ مِنَ النَّبِيِّ ﷺ
जब से मैंने इसे अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से सुना तब से अब तक उसे नहीं छोड़ा, आपसे कहा गया: क्या सिफ़्फ़ीन की रात भी नहीं। आपने कहा: हाँ! सिफ़्फ़ीन की रात भी नहीं। (बुख़ारी)
लेखः सफात आलम मुहम्मद ज़ुबैर तैमी