पड़ोसी के अधिकार

पड़ोसी के अधिकार

इस्लाम ने मानव जीवन से संबन्धित सम्पूर्ण रूप को सही मार्ग दर्शन किया है। समाज में प्रेम और लगाव उत्पन्न होने की सम्पूर्ण दिशा की ओर ध्यान दिया है। उसी में पड़ोसी के साथ उत्तम व्यवहार और उन के अधिकार को अदा करने पर विशेष रूप में उत्साहित किया है। ताकि समाज में उपस्थित सम्पूर्ण वर्ग के लोग एक दुसरे के दुख सुख में साथ देते हुए जीवन व्यतीत करे।

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ईमान के 73 से अधकि भाग बयान फरमाया है।उन्ही भागें में से एक भाग यह कि मानव अपने पड़ोसी के साथ उत्तम व्यवहार करे, उस के साथ मदद, प्रेम और लगाव के साथ पेश आए।

निम्न में कुछ उधारण दी जा रही जिस से स्पष्ट होगा कि इस्लाम ने किस कदर पड़ोसियों के साथ उत्तम व्यवहार और उन की सहायता करने पर उभारा है।

(1)   पड़ोसियों के साथ उत्तम व्यवहार और सुन्दर कर्तव्य से पेश आना चाहिये और पड़ोसियों की आदर सम्मान करना ईमान की निशानी है। जैसा नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन है।

من كان يؤمن باللهِ و اليومِ الآخرِ فلْيُكرِمْ جارَه ، و من كان يؤمنُ باللهِ و اليومِ الآخرِ فلْيَقُلْ خيرًا أو ليصمُتْ ، و من كان يؤمنُ بالله و اليومِ الآخرِ من نسائِكم فلا يدخُلِ الحمَّامَ. (صحيح الترغيب: الألباني: 166

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमायाः “ जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास और ईमान रखता है तो उसे चाहिये कि अपने पड़ोसियों का आदर-सम्मान करे। जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास और ईमान रखता है, तो उसे चाहिये कि अच्छी बात करे या खामूश रहे, और जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास और ईमान रखता है, तो उसे चाहिये कि अपनी महिलाओं को हम्माम में न जाने दे। (आज के समय में स्विमिंग पूल)। (सही तर्गीब व तर्हीबः 166)

(2) पड़ोसियों के अधिकार और हुक़ूक़ का पूरा ख्याल करना चाहिये और उसे अदा करना चाहिये। क्योंकि जिबरील नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) को बहुत ज़्यादा पड़ोसी के अधिकार को अदा करने पर उत्साहित करते थे। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमायाः

ما زالَ يوصيني جبريلُ بالجارِ حتَّى ظنَنتُ أنَّهُ سيورِّثُهُ. (صحيح البخاري: 6014

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का प्रवचन है। “फरिश्ते जिब्रील मुझे बहुत ज़्यादा पड़ोसी के साथ अच्छा व्यवहार करने पर उभारते रहे, यहाँ तक कि मुझे अनुमान होने लगा कि वह पड़ोसी को सम्पत्ती में वारिस बना देंगे।” (सही बुखारीः 6014 तथा सही मुस्लिम)

यदि इस हदीस पर विचार करें तो प्रतीत होता है कि फरिश्ते जिब्रील नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को पड़ोसीयों के अधिकार को अदा करने पर बहुत ज़्यादा उत्साहित करते थे। यहाँ तक कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अनुमान लगाने लगे कि हो सकता है कि अल्लाह पड़ोसियों को वारिस बना देंगे।

(3) पड़ोसी अपने पड़ोसी को अपने घर में खूंटी और कांटी गारने से मना न करे। ताकि समाज में प्रेम उत्पन्न हो और पड़ोसियों में मेल जोल हो और मतभेद न हो, और पड़ोसियों की आवश्यकतगओं की पूर्ति हो और पारस्पर झकड़ा लड़ाई न हो बल्कि प्रत्येक पड़ोसी अपने पड़ोस में रहने वालों की सहायता करे ताकि पूरा समाज उन्नति के रास्ते पर अगरसर हो।

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस प्रवचन पर विचार करें।

لا يمنعُ أحدُكم جارَه أن يغرزَ خشبَه في جدارِه. ( صحيح مسلم: 1609

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का प्रवचन हैः“कोई पड़ोसी अपने पड़ोसी को दीवार में लकड़ी ठोंकने से मना न करे।” (सही मुस्लिमः 1609)

(4) पड़ोसी को अपने बनाए गए भोजन में से कुछ देना चाहिये। क्योंकि समाज में रहने वाले व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति एक जैसी नहीं होती है। इसी कारण इस्लाम ने पड़ोसियो की मदद करते रहने का आदेश दिया है। अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने फरमयाः मेरे खलील (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुझे वसीयत की है।

إنَّ خليلي صلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ أوصاني ” إذا طبخْتَ مرَقًا فأَكثِرْ مائه. ثم انظُر أهلَ بيتٍ من جيرانِك ، فأَصِبْهم منها بمعروفٍ. ( صحيح مسلم: 2625

“जब तुम शोरबा बनाओ तो उस में पानी की मात्रा अधिक कर दो और उस में से भले तरीके से अपने पड़ोसियों को देते रहो” (सही मुस्लिमः 2625)

प्रत्येक पड़ेसी अपने स्थिति और आर्थिक व्यवस्थानुसार अपने पड़ोसी को बनाए गए भोजन में से उपहार दे और लेने वाले पड़ोसी के सामान को न देखे बल्कि प्रेम और हृदय को देखे जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमायाः “ऐ मुसलमान महिलाऐं! कोई अपने पड़ोसी महिला से दिये गए उपहार को कम्तर न समझे यदि वह बकरी का खुर ही क्यों न हो।” (सही मुस्लिम)

(5) पड़ोसियों के लिए भलाइ और अच्छाई की चाहत वैसे ही करना चाहिये। जैसे कि कोई मानव अपने लिए पसन्द करता है। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमयाः “उस जात की क़सम जिस के हाथ में मेरी प्राण है, कोई बन्दा मूमिन नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने पड़ोसी के लिए वही चीज पसन्द करे जो वह अपने लिए पसन्द करता है। (सही मुस्लिम)

(6) पड़ोसियों में से जिस का दरवाज़ा ज़्यादा निकट हो। तो वह दुसरे पड़ोसियों से उत्तम व्यवहार का ज़्यादा हक्कदार है। जैसा कि आईशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) से कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे दो पड़ोसी हैं, तो मैं किसे उपहार भेजूँ ?तो आप ने उत्तर दियाः“ जिस का दरवाज़ा तुम्हारे दरवाज़े से निकटतम हो।”(सही बुखारी)

जो लोग अपने पड़ोसियों का ख्याल नहीं रखते और उन के हुक़ूक़ को अदा नहीं करते। बल्कि उन्हें परिशान करते और उन्हें कष्ट देते हैं। तो ऐसे लोगों को इस्लाम ने बहुत से नुक्सान और घाटे के प्रति चेतावनी दे दी है। हदीस के रोशनी में कुछ निम्न घाटे का विवरण किया जाता है।

(1) जो व्यक्ति पैट भर खाना खा कर सो गया, हाँलांकि उसका पड़ोसी भूखा है, तो ऐसे लोगों से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने ईमान का इन्कार किया। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमयाः

ليسَ المؤمنُ الَّذي يشبَعُ وجارُهُ جائعٌ إلى جنبِهِ. (السلسلة الصحيحة: 149

वह व्यक्ति मूमिन नहीं जो पैट भर कर खाए और उसका पड़ोसी उस के निकट भूखा रहे। (सिल्सिला अस्सहीहाः इमाम अल्बानीः 149)

यह हदीस हम सब मुसलमानों को गंभीरता से अपने पड़ोसियो की स्थिति के ज्ञान रखने और उसकी सहायता करने पर उभारती है।

इसी प्रकार नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने स्पष्ट रूप से उन लोगों से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) पर ईमान लाने का इन्कार किया जो पड़ोसि के भूखे मालूम होने के बावजूद खुद पैट भर खाना खाते हैं और अपने पड़ोसी को खाना नहीं भेजते हैं।

ما آمن بي من بات شبعانَ و جارُه جائعٌ إلى جنبِه و هو يعلم به. (صحيح الجامع: 5505 و السلسلة الصحيحة: 279/1

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमयाः “वह व्यक्ति मुझ पर ईमान नहीं लाया जो भर पैट खा कर रात गुजारे और उसका पड़ोसी उस के निकट भूखा रहे और वह उस के भूखापन को जानता हो। ”(सिल्सिला अस्सहीहाः इमाम अल्बानीः 279/1, सहीहुल जामिअः 5505)

इस हदीस से ज्ञान मिलता है कि मानवता का ख्याल करते हुए अपने पड़ोसियों को भूखा न छोड़ा जाए। जब कि उसे के पास खाने पीने की साम्ग्री उपस्थित हो और पड़ोसियों के भुखे होने का ज्ञात भी हो।

(2) मूमिन व्यक्ति अपने पड़ोसियों को कष्ट नहीं पहुंचा सकता है। क्योंकि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने ऐसे व्यक्तियों से ईमान का इन्कार किया जो अपने पड़ोसियों को कष्ट पहुंचाता है। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) ने फरमायाः

من كان يؤمنُ باللهِ واليومِ الآخرِ فلا يؤذي جارَه ومن كان يؤمنُ باللهِ واليومِ الآخرِ فليكرمْ ضيفَه . ومن كان يؤمنُ باللهِ واليومِ الآخرِ فليقلْ خيرًا أو ليسكتْ . وفي روايةٍ : فليحسنْ إلى جارِه. (صحيح مسلم: 47)

जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता है, वह अपने पड़ोसी को कष्ट न पहुंचाएऔर जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास और ईमान रखता है तो उसे चाहिये कि अपने मेहमान की अच्छी तरीके से मेहमान नवाजी करे और जो व्यक्ति अल्लाह और आखिरत के दिन पर विश्वास और ईमान रखता है तो उसे चाहिये कि अच्छी बात करे या खामूश रहे। (एक दुसरी रिवायत में वर्णन है) तो अपने पड़ोसियों के साथ एहसान का मामला करे। (सही मुस्लिमः 47)

(3) उन लोगों पर लोगों की लानत होती है जो अपने पड़ोसियों को परेशान करते हैं। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म) के समय में एक आदमी अपने पड़ोसी को बहुत परिशान करता था, उसे कष्ट देता था। हदीस के माध्यम से पूरा किस्सा सुनते हैं।

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ: جَاءَ رَجُلٌ إِلَى النَّبِيِّ-صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ- يَشْكُو جَارَهُ فَقَالَ: اذْهَبْ فَاصْبِرْ. فَأَتَاهُ مَرَّتَيْنِ أَوْ ثَلَاثًا، فَقَالَ: اذْهَبْ فَاطْرَحْ مَتَاعَكَ فِي الطَّرِيقِ.فَطَرَحَ مَتَاعَهُ فِي الطَّرِيقِ، فَجَعَلَ النَّاسُ يَسْأَلُونَهُ، فَيُخْبِرُهُمْ خَبَرَهُ، فَجَعَلَ النَّاسُ يَلْعَنُونَهُ ،فَعَلَ اللَّهُ بِهِ وَفَعَلَ وَفَعَلَ!! فَجَاءَ إِلَيْهِ جَارُهُ، فَقَالَ لَهُ: ارْجِعْ لَا تَرَى مِنِّي شَيْئًا تَكْرَهُهُ. (سنن أبي داوؤد وصحيح الترغيب: 2559

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन हैः एक व्यक्ति नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और अपने पड़ोसी की शिकायत करताहै। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उस से कहते हैं:घर जाओ और सब्र करो, तो वह व्यक्ति तूसरी या तीसरी बार आ कर फिर शिकायत करता है।, तो आप(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जाओ और अपना सामान रास्ते पर निकालो, तो वह गया और अपना सामान रास्ते पर निकालने लगा, तो लोग उस से सामान के निकालने का कारण पूंछते तो वह कहता कि फलां व्यक्ति मुझे परेशान और कष्ट देता है। इस लिए मैं अपना सामान निकाल रहा हूँ, तो लोग परेशान करने वाले को बद्दुआ देते और अल्लाह की लानत और दिक्कार भेजते थे। और कहते, अल्लाह उस के साथ ऐसा ऐसा करे, तो परेशान करने वाला पड़ोसी आया और कहाः तुम अपने घर में चलो, आज के बाद मैं तुम्हें परेशान और कष्ट नहीं दूंगा। (सुनन अबी दाऊद व सही अत्तर्गीबः 2559)
(4) वह व्यक्ति जन्नत में दाखिल नहीं हो सकता है, जो अपने पड़ोसियों को कष्ट पहुंचाए। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)ने फरमायाः

والذي نفسي بيدِه لا يدخلُ الجنَّةَ عبدٌ لا يأمنُ جارُه بوائقَه. (السلسلة الصحيحة: 2/290

उस ज़ात की कसम जिस के हाथ में मेरी जान है, वह व्यक्ति जन्नत में दाखिल नहीं हो सकता है, जिस के पड़ोसी उस के परेशानियों से सुरक्षित न हो। (सिल्सिला अस्सहीहाः 290/2)

इस्लाम ने मानव समाज में पारस्परिक मेल मिलाप और प्रेम और एक दुसरे की सहायता करने का भावना उत्पन्न करने के विभिन्न तरीके अपनाया है और मेल मिलाप के रास्ते पर चलने वालों को आखिरत में उत्तम पुरस्कार देने का वादा किया है। जैसा कि पड़ोसियों के साथ उत्तम व्यवहार करने वालें के प्रति कुछ उदाहरण गुज़र चुका है।

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