मज्लिस के शिष्टाचार

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जब समाज में कुछ लोग रहते हैं तो सामाजिक प्रथा के अनुसार उनकी विभिन्न प्रकार की सभायें आयोजित होती हैं। उन सभाओं के इस्लाम में क्या शिष्टाचार हैं निम्न में बयान किए जा रहे हैं:

(1) मज्लिस को अल्लाह की याद से आबाद किया जाएः

अल्हलाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः  

 ما من قوم جلسوا مجلسا لم يذكروا الله فيه إلا رأوه حسرة يوم القيامة . رواه أحمد  7053  

जो लोग किसी सभा में बैठते हैं और उसमें अल्लाह का नाम नहीं लेते तो कल क़्यामत के दिन उन्हें पछतावा होगा। (मुस्नद अहमद 7053)

और ज़िक्र में यह बात आती है कि आदमी क़ुरआन करीम पढ़े और पढ़ाए जिसके सम्बन्ध में अल्लाह के रसूल सल्ल. ने कहा कि जो लोग अल्लाह के किसी घर में एकत्र होते हैं और अल्लाह की किताब को पढ़ते और पढ़ाते हैं तो उन पर शान्ति उतरती है. दया उनको ढ़ांप लेती है और फरिश्ते उनको घेर लेते हैं और अल्लाह अपने निकट फरिश्तों के पास उनका वर्णन करता है। ( मुस्लिम 2699)

तौबा इस्तिग़फ़ार करना भी ज़िक्र में शामिल हैः हज़रत इब्ने उमर रज़ि. का बयान है कि एक सभा से अल्लाह के रसूल सल्ल. के उठने से पहले सौ बार यह दआ शुमार की जाती थीः

 رب اغفر لي وتب علي إنك أنت التواب [ الرحيم ] الغفور . رواه الترمذي ( 3434 ) وابن ماجه  3814 

 हे अल्लाह हमें क्षमा कर दे और हमारी तौबा स्वीकार कर ले। निःसंदेह तू तौबा स्वीकार करने वाला और क्षमा करने वाला है।

सुब्हानल्लाह, अल-हम्दुलि्लाह, लाइलाह इल्लल्लाह कहना और अल्लाह से जन्नत का सवाल करना और जहन्नम से पनाह मांगना भी ज़िक्र में शामिल हैः

अल्लाह के रसूल. ने फरमायाः अल्लाह के कुछ फरिश्ते ज़मीन में चक्कर लगाते हैं और ज़िक्र करने वालों की खोज करते हैं, जब किसी समूह को अल्लाह का ज़िक्र करते हुए पाते हैं तो वह परस्पर पुकारते हैं “आ जाओ तुम्हारी ज़रूरत यहाँ है”। इस प्रकार वह उनको अपने बाज़ुओं से आसमाने दुनिया तक घेर लेते हैं, फिर अल्लाह उन से पूछता है हालांकि वह उन से अधिक जानता हैः मेरे दास क्या कह रहे थे ? फरिश्ते कहते हैं कि तेरी तकबीर, तस्बीह और तहमीद बयान कर रहे थे। अल्लाह पूछता हैः क्या उन्होंने मुझे देखा है ? फरिश्ते कहते हैंः नहीं अल्लाह की क़सम उन्होंने आपको देखा नहीं है। अल्लाह कहता हैः यदि वह मुझे देख लें तो उनकी स्थिति कैसी होगी ? फरिश्ते कहते हैं कि यदि उन्हों ने तुझे देख लिया तो वह तेरी इबादत में और सख्त हो जाएंगे और तेरी तकबीर, तस्बीह और तहमीद  भी खूब बयान करेंगे। अल्लाह  पूछता है कि वे हम से किस चीज़ का अनुरोद्ध करते हैं। फरिश्ते कहते हैं कि वह तुझ से जन्नत का सवाल करते हैं। अल्लाह पूछता है कि क्या उन्हों ने जन्नत को देखा है ? फरिश्ते कहते हैं कि नहीं ऐ अल्लाह उन्हों ने जन्नत को देखा नहीं है। अल्लाह कहता है कि यदि उन्हों ने जन्नत को देखा होता तो उनकी क्या कैफीयत होती ? फरिश्ते कहते हैं कि यदि उन्हों ने जन्नत देखा होता तो उसकी तड़प उनमें और अधिक होती। अल्लाह कहता है कि वह किस चीज़ से पनाह मांगते हैं ? फरिश्ते कहते हैं कि वह जहन्नम से पनाह मांगते हैं ? अल्लाह कहता है कि क्या उन्हों ने जहन्नम को देखा है ? फरिश्ते कहते हैं कि उन्हों ने जहन्नम को नहीं देखा। अल्लाह कहता है कि यदि उन्हों ने जहन्नम को देखा होता तो उनकी कैफीयत क्या होती ? तो फरिश्ते कहते हैं कि यदि उन्हों ने जहन्नम को देखा होता तो उस से बचने की तड़प उनमें और अधिक होती। तब अल्लाह कहता है कि मैं तुम सब को गवाह बना कर कहता हूं कि मैं ने उन सब को क्षमा कर दिया। फरिश्तों में से एक फरिश्ता कहता हैः हे अल्लाह! उन में एक व्यक्ति ऐसा भी आया था जो उन में से नहीं था अपने काम के लिए आया था। तो अल्लाह तआला फरमाता हैः

هم الجلساء لا يشقى بهم جليسهم . رواه البخاري  6045  ومسلم 2689  

 ” वे ऐसे लोग हैं कि उन के साथ बैठने वाले भी (दया और क्षमा) से वंचित नहीं किए जाते।” ( बुख़ारी 6045, मुस्लिम 2689)

 नेक मित्र का चयन करनाः

مثل الجليس الصالح والسوء كحامل المسك ونافخ الكير فحامل المسك إما أن يُحذيك – يعطيك – وإما أن تبتاع منه وإما أن تجد منه ريحا طيبة ونافخ الكير إما أن يحرق ثيابك وإما أن تجد ريحا خبيثة . رواه البخاري  5214 ومسلم  2628

नेक दोस्त और बुरे दोस्त का उदाहरण खूशबू बेचने वाले और भट्टी धूंकने वाले के समान है कि खूशबू बेचने वाला या तो कुछ खूशबू तुझे दे देगा या तुम उस से ख़रीद लोगे, या कम से कम उस से अच्छी खूशबू सूंघने को मिलेगी, जब कि भट्टी धूंकने वाला या तो तेरे कपड़े जला देगा या उस से बुरी ख़ूशबू सूंघने को मिलेगी। ( बुखारी 5214, मुस्लिम 2628)

 तात्पर्य यह कि कोई भी बैठक अल्लाह के स्मरण और आखिरत की याद से खाली न रहने पाए,  उचित रूप में बात का रुख दीनी विषय की ओर फेरने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए उत्तम है कि सभा आयोजित होने से पहले क्या क्या दीनी बातें करनी हैं उनके सम्बन्ध में मन में खाका बना लिया जाए, यदि ऐसा हो सका तो हम एक दूसरे के पीठ पीछे उसके दोष को बयान करने से भी बच जाएंगे और सवाब के अधिकारी भी बना सकेंगे।

(2) जहाँ स्थान मिले बैठ जाएः

हज़रत जाबिर बिन समुरा रज़ि. का बयान है कि “जब हम लोग अल्लाह के रसूल सल्ल. की सेवा में पहुंचते तो हम में का एक व्यक्ति जहाँ जगह पाता बैठ जाता था।” (तिर्मिज़ी 2725, अबू दाऊद 4825) 

(3) किसी बैठे हुए व्यक्ति को उठा कर बैठना किसी प्रकार उचित नहींः

इब्ने उमर रज़ि. का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने निषेध ठहराया कि किसी को खड़ा कर के उसके स्थान पर किसी अन्य को बैठाया जाए। लेकिन मज्लिस को विशाल करो और बैठने की गुंजाइश निकालो। ( बुख़ारी 5915, मुस्लिम 2177)

(4) मज्लिस से कोई उठ कर गया फिर लौट कर आया तो  वहाँ बैठने का वही हक़ रखता हैः

हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः

  إذا قام أحدكم – من قام من مجلسه – ثم رجع إليه فهو أحق به . رواه مسلم  2179 

” जब तुम में से कोई अपने स्थान से उठे फिर लौट कर आए तो वह उस स्थान की ज़्यादा अधिकार रखता है।” ( मुस्लिम 2179) 

(5) आते और जाते हुए सलाम करना चाहिएः  

हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्ललल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः 

إذا انتهى أحدكم إلى مجلس فليسلم فإن بدا له أن يجلس فليجلس ثم إذا قام فليسلم فليست الأولى بأحق من الآخرة . رواه الترمذي ( 2706 ) وأبو داود ( 5208 

” जब तुम में का कोई किसी मज्लिस में पहुंचे तो उसे चाहिए कि सलाम करे, यदि बैठने का दिल चाहे तो बैठ जाए फिर जब वह (मज्लिस से) उठे तो सलाम करे क्यों कि प्रथम सलाम दूसरे सलाम से कोई अधिक हक़ नहीं रखता।” ( तिर्मिज़ी 2706, अबू दाऊद 5208)

(6) मज्लिस का यह हक़ है कि उसके रहस्य की सुरक्षा की जाएः

हज़रत जाबिर बिन अब्दल्लाह का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः 

إذا حدث الرجل الحديث ثم التفت فهي أمانة    رواه أبوداؤد

“जब कोई व्यक्ति तुम से बात करे फिर वहाँ से हट जाए तो उसकी यह बात तुम्हारे पास अमानत है।” (सुनन अबीदाऊद )  

(7) मज्लिस में यदि तीन लोग हों तो दो व्यक्ति परस्पर चुपके से बातें न करेंः

उसी प्रकार ऐसी भाषा प्रयोग करनी चाहिए जिसे सब लोग समझते हों, अपनी विशेष भाषा में बात शुरू कर देना और दूसरों का ख्याल न करना इस्लामी शिष्टाचार के विरोध है। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ि. का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः 

 إذا كنتم ثلاثة فلا يتناجى رجلان دون الآخر  –  رواه البخاري ( 5932 ) ومسلم ( 2184  

” जब तुम तीन आदमी हो तो दो व्यक्ति तीसरे को छोड़ कर परस्पर बातें न करे।” ( बुख़ारी 5932, मुस्लिम 2184)  

इस से मना इस लिए किया गया कि यदि किसी सभा में तीन व्यक्तियों में से दो परस्पर धीमे स्वर में बात कर रहे हों तो तीसरे को ख्याल पैदा हो सकता है कि बात शायद मेरे खिलाफ़ हो रही है या मुझे तुच्छ समझते हुए बात में शरीक नहीं किया गया।  

(8) मज्लिस के गुनाहों की दुआः 

हज़रत अबू हुरैरा रज़ि. का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः जो व्यक्ति किसी सभा में बैठा जिसमें उसकी बहुत सारी आवाज़ और हंगामे की बातें कीं  फिर वह सभा से उठने से पहले यह दुआ पढ़ लिया तो उस सभा में जो कुछ हुआ है उसे क्षमा कर दिए जाते हैं। (दुआ यह है) 

سبحانك اللهم وبحمدك أشهد أن لا إله إلا أنت أستغفرك وأتوب إليك إلا غفر له ما كان في مجلسه ذلك . رواه الترمذي  3433 

” ऐ अल्लाह तू पवित्र है, मैं तेरी तारीफ बयान करता हूं। मैं गवाही देता हूं कि तेरे अतिरिक्त कोई इबादत के लाइक़ नहीं, मैं तुझ से क्षमा मांगता हूं और तेरी ओर तौबा करता हूं।” (तिर्मिज़ी 3433)  

 

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