मुहर्रम महीने का महत्व

मुहर्म के महीने का महत्वसम्पूर्ण प्रशंसा का अल्लाह तआला ही योग्य है और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर अनगिनित दरूदु सलाम हो, अल्लाह तआला का अपने दासों पर बहुत बड़ा कृपा है कि उसने बन्दों की झोली को पुण्य से भरने के लिए विभिन्न  शुभ अवसर , महीने तथा तरीके उतपन्न किये, ताकि बन्दा ज़्यादा से ज़्यादा इन महीनों में नेक कर्म कर के अपने झोली को पुण्य से भर ले, उन महीनों में से एक मुहर्रम का महीना है।

मुहर्रम के महीने की सर्वश्रेष्टा निम्नलिखित वाक्यों से प्रमाणित होता है।

माहे मुहर्रम में रक्तपात, किसी पर अत्याचार करने का पाप दुग्ना हो जाता हैः

जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है।

إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِ‌ عِندَ اللَّـهِ اثْنَا عَشَرَ‌ شَهْرً‌ا فِي كِتَابِ اللَّـهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْ‌ضَ مِنْهَا أَرْ‌بَعَةٌ حُرُ‌مٌ ۚ ذَٰلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ ۚ فَلَا تَظْلِمُوا فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ۚ. – 9- سورة التوبة: 36

” वास्तविकता यह है कि महीनों की संख्या जब से अल्लाह ने आकाश और धरती की रचना की है, अल्लाह के लेख में बारह ही है और उन में से चार महीने आदर के (हराम) हैं। यही ठीक नियम है, अतः इन चार महीनों में अपने ऊपर ज़ुल्म (अत्याचार) न करो ” ( 5- सूरः तौबा , 36)

अबू बकरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने हज्ज के भाषण में फरमायाः  ” निःसंदेह समय चक्कर लगा कर अपनी असली हालत में लौट आया है। जिस दिन अल्लाह ने आकाशों तथा धरती की रचना किया। वर्ष में बारा महीने होते हैं। उन में से चार आदर के (हराम) महीने हैं। तीन महीने मुसलसल हैं, जूल क़ादा, जूल हिज्जा, मुहर्रम और रजब मुज़र जो जुमादिस्सानी और शाअबान के बीच है……” ( सही बुखारीः 4662 और सही मुस्लिमः 1679)

अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि रात का कौन सा भाग अच्छा है और कौन सा महीना सर्वश्रेष्ट है ? तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया। रात का अन्तिम भाग अच्छा है और मुहर्रम का महीना सर्वश्रेष्ट है।” ( सही मुस्लिमः 1163 )

रमज़ान महीने के बाद के मुहर्रम का महीना उत्तम है जैसा की एक हदीस से इस बात की पुष्टिकरण होती है। अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” सब से अच्छा रोज़ा रमज़ान के बाद अल्लाह के महीने मुहर्रम का रोज़ा है और फर्ज़ नमाज़ के बाद सर्वश्रेष्ट नमाज़ रात की नमाज़ है।” ( सही मुस्लिमः 1163 )

मुहर्रम का रोज़ा रखने का कारणः

रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस मुहर्रम के रोज़ा रखने का कारण भी बता दिया है। जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब मदीना हिज्रत कर के तशरीफ लाए तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पाया कि यहूद रोज़ा रखते हैं। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने प्रश्न किया, तुम लोग किस कारण आशूरा (10 मुहर्रम) के दिन रोज़ा रखते हो ? तो उन लोगों ने उत्तर दिया, यह एक महान दिन है जिस में अल्लाह ने मूसा (अलैहिस्साम) और उन की समुदाय को फिरऔन से मुक्ति दी और फिरऔन और उस की समुदाय को डुबा दिया। तो मूसा (अलैहिस्साम) ने अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए रोज़ा रखा। तो हम लोग भी इसी दिन रोज़ा रखते हैं। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः ” हम तुम लोगों से अधिक मूसा (अलैहिस्साम) के निकटतम और हक्दार हैं और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और इस रोज़े के रखने का आदेश दिया।” ( सही बुखारीः 4737 और सही मुस्लिमः 1130)

मुहर्रम के रोज़े की फज़ीलतः

मुहर्रम के 10 वे दिन की अहमीयत बहुत ज़्यादा है और मूसा (अलैहिस्साम) ने रोज़ा रखा और उन के अनुयायियों ने भी रोज़ा रखा, यहाँ तक कि कुरैश (इस्लाम से पहले के अरब वासी) ने रोज़ा रखा और प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने रोज़ा रखा और लोगों को इस रोज़े के रखने पर प्रोत्साहित किया। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है जिसे अबू क़ताता (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि एक व्यक्ति ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से आशूरा के रोज़े के प्रति प्रश्न क्या ?

وصيامُ يومِ عاشوراءَ ، أَحتسبُ على اللهِ أن يُكفِّرَ السنةَ التي قبلَه. – صحيح مسلم: 1162 “

 तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया।” आशूरा के रोज़े के प्रति मैं अल्लाह से पूरी आशा करता हूँ कि पिछ्ले एक वर्ष के पापों के मिटा देगा ” ( सही मुस्लिमः 1162)

यह अल्लाह तआला का बहुत बड़ा कृपा हम पर है कि एक दिन के रोज़े के बदले एक वर्ष के छोटे पाप समाप्त हो जाते हैं। प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) 10 मुहर्रम के रोज़े का खास ध्यान रखते थे।

ما رأيتُ النبيَّ صلَّى اللهُ عليه وسلَّم يتحرَّى صيامَ يومٍ فضَّلَه على غيرِه إلا هذا اليومَ، يومَ عاشوراءَ، وهذا الشهرَ، يعني شهرَ رمضانَ. – صحيح البخاري: 2006

इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आशूरा के दिन का रोज़ा रखने का बहुत ख्याल करते हुए पाया और रमज़ान के रोज़े का ऐहतमाम करते हुए देखा । ( सही बुखारीः 2006)

आशूरा का रोज़ा किस किस तिथि को रखा जाए ?

(1) मुहर्रम की 9 और 10 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया ” यदि मैं आने वाले वर्ष तक जीवित रहा तो 9 और 10 का रोज़ा रखूंगा ” ( सही मुस्लिम)

(2)    मुहर्रम की 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया ” यहूद की मुखाल्फत करो, 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) या एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो, (मुस्नद अहमद और इब्ने खुज़ैमाः 2095)

(3)   मुहर्रम की 9 , 10 और 11 तिथि को रोज़ा रखा जाए, जैसा कि इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आशूरा के दिन का रोज़े बारे में फरमाया ” 10 के साथ एक दिन पहले ( 9 तिथि) और एक दिन बाद (11) को रोज़ा रखो, (अल-जामिअ अस्सगीरः 5068)

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