विकलांगताः इस्लाम की दृष्टि में
जिसके शरीर अथवा बुद्धि में किसी प्रकार की कमी पाई जाती हो उसे विकलांग कहते हैं। जैसे अंधा, बहरा, लंगड़ा, काना, नाटा आदि। दुनिया में अनुमानतः 10 प्रतिशत लोग किसी न किसी प्रकार से विकलांग हैं। ऐसे लोगों के सम्बन्ध में इस्लाम क्या आदेश देता है इस लेख में इसी विषय को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है।
वास्तविक विकलांग गैर-मुस्लिम हैः
अल्लाह का इनकार करने वाला सब से बड़ा विकलांग है, कि अल्लाह ने उसे आंख, कान और दिल दिया ताकि उन से काम लेकर अपने पैदा करने वाले का पहचाने और उसकी आज्ञानुसार जीवन बिताये लेकिन उसने इन अंगों को पा कर भी नाशुक्री का रास्ता अपनाया और अल्लाह की अवज्ञा करता रहा। अल्लाह ने फ़रमायाः
لَهُمْ قُلُوبٌ لَّا يَفْقَهُونَ بِهَا وَلَهُمْ أَعْيُنٌ لَّا يُبْصِرُونَ بِهَا وَلَهُمْ آذَانٌ لَّا يَسْمَعُونَ بِهَا ۚ أُولَـٰئِكَ كَالْأَنْعَامِ بَلْ هُمْ أَضَلُّ ۚ أُولَـٰئِكَ هُمُالْغَافِلُونَ ﴿سورة الأعراف 179﴾
“उनके पास दिल है जिन से वे समझते नहीं, उनके पास आँखें है जिन से वे देखते नहीं; उनके पास कान है जिन से वे सुनते नहीं। वे पशुओं की तरह हैं, बल्कि वे उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट हैं। वही लोग हैं जो ग़फ़लत में पड़े हुए हैं ।“(सूरः आराफ़ 179)
उसी प्रकार वह व्यक्ति भी विकलांग के समान है जो किसी अंग से वंचित तो नहीं है परन्तु उनका प्रयोग अल्लाह की अवज्ञा में करता है।
अल्लाह ने हर सृष्टि की रचना उत्तम रूप में की हैः
अल्लाह ने अपनी सृष्टि को उत्तम रूप दे कर पैदा किया है, अल्लाह तआला ने फरमाया किः
الَّذِي أَحْسَنَ كُلَّ شَيْءٍ خَلَقَهُ ﴿السجدة 7﴾
जिसने हर एक चीज़, जो बनाई ख़ूब ही बनाई (अल-सजदा 7)
दूसरे स्थान फरमायाः
وَلَقَدْكَرَّمْنَابَنِيآدَمَ ﴿سورةالإسراء 70﴾
हमने आदम की सन्तान को श्रेष्ठता प्रदान की ( अल-इस्रा 70)
अल्लाह ने विकलांग क्यों पैदा कियाः
अब प्रश्न यह पैदा होता है कि अल्लाह ने कुछ लोगों को विकलांग क्यों बनाया ? तो इसका उत्तर यह है कि अल्लाह ने अपनी कुछ सृष्टियों में कमी बहुत बड़ी हिकमत और तत्वदर्शिता के अंतर्गत रखी है। अल्लाह ने अपनी तत्वदर्शिता से जो चीज़ भी पैदा की है उसके विरोधी को भी पैदा किया है, जैसे फरिश्ता और शैतान. रात और दिन, अच्छा और बुरा, सुन्दर और बद सूरत। उसी प्रकार बन्दों के शरीर, बुद्धि और शक्ति के बीच भी अंतर रखा, उन में से किसी को गरीब और किसी को समृद्ध, किसी को स्वस्थ्य और किसी को बीमार, किसी को बुद्धिमान और किसी को बुद्धिहीन बनाया. अल्लाह का आदेश है.
الَّذِيخَلَقَالْمَوْتَوَالْحَيَاةَلِيَبْلُوَكُمْأَيُّكُمْأَحْسَنُعَمَلًا ۚ (سورةالملك 2)
” जिसने पैदा किया मृत्यु और जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा करे कि तुममें कर्म की दृष्टि से कौन सबसे अच्छा है। “(सूरः अल-मुल्क 2)
एक दूसरे स्थान पर अल्लाह ने फ़रमायाः
ورَفَعَبَعْضَكُمْفَوْقَبَعْضٍدَرَجَاتٍلِّيَبْلُوَكُمْفِيمَاآتَاكُمْ (سورةالأنعام165 )
और तुममें से कुछ लोगों के दर्जे कुछ लोगों की अपेक्षा ऊँचे रखे, ताकि जो कुछ उसने तुमको दिया है उस में वह तुम्हारा परीक्षा ले। (सूरः अल- अनआम 165)
निम्न में उन हिकमों में से कुछ का उल्लेख किया जा रहा हैः
पापों की सज़ाः
अल्लाह कभी किसी व्यक्ति को उसके घोर पापों के कारण किसी प्रकार से विकलांग कर देता है,अल्लाहनेफरमायाः
ظَهَرَالْفَسَادُفِيالْبَرِّوَالْبَحْرِبِمَاكَسَبَتْأَيْدِيالنَّاسِلِيُذِيقَهُمبَعْضَالَّذِيعَمِلُوالَعَلَّهُمْيَرْجِعُونَ ﴿ سورةالروم 41﴾
“थल और जल में बिगाड़ फैल गया स्वयं लोगों ही के हाथों की कमाई के कारण, ताकि वह उन्हें उनकी कुछ करतूतों का मज़ा चखाए, कदाचित वे बाज़ आ जाएँ” (अल-रूम 41)
मनुष्यकोअल्लाहकीशक्तिकाअनुभवहोसकेकिवहीउनकीलाभअथवाहानिकामालिकहैःअल्लाहनेफ़रमायाः
مَّا يَفْتَحِ اللَّـهُ لِلنَّاسِ مِن رَّحْمَةٍ فَلَامُمْسِكَ لَهَا ۖ وَمَايُمْسِكْ فَلَامُرْسِلَ لَهُ مِن بَعْدِهِ ۚ وَهُوَالْعَزِيزُالْحَكِيمُ ﴿سورةالفاطر 2 ﴾
“अल्लाह जो दयालुता लोगों के लिए खोल दे उसे कोई रोकनेवाला नहीं और जिसे वह रोक ले तो उसके बाद उसे कोई जारी करनेवाला भी नहीं। वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है” (अल-फातिर2)
इनसानको इस बात का सही अनुभव हो सके कि अल्लाह ने अच्छाईऔरबुराई दोनों कोपैदा की है, उसीनेजन्नतबनायातोउसीनेजहन्नमभीबनाया ताकि अच्छा कर्म करने वालों को जन्नत में और बुरा कर्म करने वालों को जहन्नम में रखा जा सके।
जिसे अल्लाह ने स्वस्थ्य रखा है वह अल्लाह के उपकार को पहचान सकेः
क्यों कि उपकार का सही महत्व उपकार से वंचित होने के बाद ही समझ में आता है, आँख का महत्व अंधे को देख कर समझ में आता है, कान का महत्व बहरे को देख कर कमझ में आता है, ज़बान का महत्व गुंगे को देख कर समझ में आता है, पैर का महत्व पैर कटे को देख कर समझ में आता है। कहते हैं कि शैख़ सादी रहि. पर एक समय ऐसा गुज़रा जब कि उनके पास जुते नहीं थे, खाली पैर चल रहे थे जिसका उनको बड़ा एहसास था लेकिन उसी समय एक पैर कटे को देखा तो तुरंत उन्हें अल्लाह के उपकार का एहसास हुआ और अल्लाह का शुक्र अदा किया कि हे अल्लाह यदि मैं जूते से वंचित हूं तो कम से कम तूने मुझे पैर तो दे रखा है जिस से चल सकता हूं जब कि यह व्यक्ति पैर से भी वंचित है।
जिसेअल्लाहनेकिसीउपकारसेवंचितकियाहैउसका पापक्षमाकरदियाजाएऔरआखिरतमेंउसकास्थानबुलंदहोः यदि दुनिया में अल्लाह ने किसी को किसी उपकार से वंचित रखा है तो यह उसके हक़ में बुरा नहीं बल्कि उत्तम है, वह अल्लाह जो अपने बन्दे से इतना प्रेम करता है जितना एक माँ भी अपने बच्चे से नहीं करती, आख़िर वह उसे कैसे त्याग देगा, लेकिन वह उसे किसी कष्ट में डालता है तो सच्ची बात यह है कि इसी में उसका हित छुपा होता है। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फ़रमायाः “ अल्लाह अपने बन्दे के साथ किसी प्रकार की अच्छा मआमला करना चाहता है तो उसे किसी कष्ट में डाल देता है।“ ( ) और बन्दे को जो कठिनाई पहुंचती है यहाँ तक कि एक कांटा भी चुभता है तो अल्लाह उसके द्वारा उसके पापों को क्षमा करता है (बुख़ारी, मुस्लिम) मानो नेक बन्दों के लिए सांसारिक कष्ट उपहार के समान है तब ही तो सब से अधिक कष्ट सहन करने वाले लोगों की सूची में सब से प्रथन स्थान पर संदेष्टा आते हैं, फ़िर उनके बाद नेक लोग फ़िर उनके बाद के उत्तम लोग। (तिर्मिज़ी) इसी लिए अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फ़रमायाः
إنّ الله قال: إذا ابتليت عبدي بحبيبتيه فصبر عوضته منهما الجنة (رواه البخاري)
“ अल्लाह तआला फ़रमाता हैः जब मैं अपने बन्दे को उसकी दो प्यारी चीज़ के प्रति आज़माता हूं (अर्थात् दोनों आख़ों से वंचित करता हूं) और उस पर बन्दा सब्र करता है तो उसके बदले उसे जन्नत प्रदान करूंगा।“ (बुख़ारी)
सारांश यह कि एक व्यक्ति जब अपने समाज में विकलांग को देखेगा तो अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों को भली-भांति पहचान सकेगा, अल्लाह के इनाम का शुक्र अदा करेगा, उससे भलाई कासवालकरेगा और उसे यहविश्वासहोगा कि अल्लाह हर चीज़ पर ताक़त रखता है। उसी प्रकार यदि विकलांग कमज़ोरी की स्थिति में हैतो उसका अल्लाह से अच्छा सम्पर्क हो सकता है
क्यों कि एक इनसान जब हर प्रकार से सुखी होता है तो उसके अन्दर सरकशी आ जाती है। इसीलिएअल्लाहनेफ़रमायाः
كَلَّا إِنَّ الْإِنسَانَ لَيَطْغَىٰ ﴿٦﴾ أَن رَّآهُ اسْتَغْنَىٰ ﴿٧﴾ (سورة العلق )
कदापि नहीं, मनुष्य सरकशी करता है, (6) इसलिए कि वह अपने आपको आत्मनिर्भर देखता है। (अल- अलक़ 6-7)
विकलांगों के प्रति इस्लामी शिक्षाः
(1) यह समझना चाहिए कि ऐसा होना उसके भाग्य में लिखा था उसी के आधार पर हुआ है। अल्लाह ने फरमायाः
ما أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍ فِيالْأَرْضِ وَلَا فِي أَنفُسِكُمْ إِلَّافِي كِتَابٍ مِّن قَبْلِ أَن نَّبْرَأَهَا ۚ إِنَّ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّـهِ يَسِيرٌ ﴿سورة الحديد 22﴾
जो मुसीबतें भी धरती में आती है और तुम्हारे अपने ऊपर, वह अनिवार्यतः एक किताब में अंकित है, इससे पहले कि हम उसे अस्तित्व में लाएँ – निश्चय ही यह अल्लाह के लिए आसान है। (अल- हदीद 22)
(2) इस बात पर विश्वास रखे कि अल्लाह जब किसी मोमिन को किसी परेशाने में ग्रस्त करता है तो इसके द्वारा वास्तव में वह उस से प्रेम करता है। इसी लिए संदेष्टा सब से अधिक कष्टों को सहन करने वाले सिद्ध हुए हैं। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः सब से अधिक परेशानी नबियों को झेलनी पड़ी है…(तिर्मिज़ी)
(3) विकलांग को यह समझना चाहिए कि अल्लाह दुनिया की परेशानी के बदले इनसान को बहुत ही पुण्य प्रदान करता है और उसके पापों को क्षमा कर देता हैः (बुख़ारी, मुस्लिम)
(4) विकलांग को चाहिए कि अपनी मजबूरी का रोना रोने की बजाए जितना सम्भव हो स्वयं से समाज और मानव को लाभ पहुंचाए। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः शक्तिशाली मोमिन कमज़ोर मोमिन से उत्तम है…(मुस्लिम)
विकलांगों के सम्बन्ध में स्वस्थ्य की ज़िम्मदारियां
(1) अल्लाह का शुक्र बजा लाए कि अल्लाह ने उसे इस आपदा से बचा लिया।
(2) यदि विकलांग नेक है तो उसके लिए अल्लाह से दुआ करे।
(3) विकलांग पर दया करे कि वह अल्लाह के निकट स्वस्थ्य लोगों से उत्तम है।
(4) विकलांग की सहायता करे और उसको लाभ पहुंचाने की सम्भवतः कोशिश करे।
(5) विकलांग का मज़ाक़ न उड़ाए और न ही उसकी ओर बुरे शब्द से संकेत करे।
विकलांगों के प्रति समुदाय तथा समाज के कर्तव्य
(1) उनके साथ सहानुभुति होनी चाहिए, उनको सब्र करने और धेर्य से काम लेने की ताकीद करनी चाहिए और उनकी परेशानी को हल्का करने में उनका साथ देना चाहिए।
(2) विकलांग को ऐसी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए जिसके द्वारा वह अपने शेष अंगों से समाज और समुदाय के लिए कुछ कर सके वैसे भी एक इंसान किसी एक उपकार से वंचित होता है तो दूसरे मैदान में अच्छी से अच्छी भूमिका अदा कर सकता है।
(3) विकलांगों को समाज और लोगों से दूर न रखा जाए बल्कि उनकों सार्वजनिक जीवन में शरीक किया जाए जैसे नमाज़, खुशी और ग़म के अवसर, लोगों की बैठक आदि।
विकलांग का वजूद बरकत,सहायता और भलाई का कारण हैः
यदि अल्लाह चाहता तो सब को एक ही स्थिति में पैदा कर देता परन्तु इस से सृष्टि का महत्वपूर्ण उद्देश्य प्राप्त न हो सकता था। कि धनवानों के बीच निर्धनों का वजूद स्वयं धनवानों के लिए आदर्श और भलाई का माध्यम है। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः तुम्हारे कमज़ोरों के द्वारा ही तुम्हें रोज़ी दी जाती है और तुम्हारी सहायता की जाती है। (अबूदाउद, अल्लामा अल्बानी ने इस हदीस को सहीह कहा है )
विकलांगों के पुनर्वास हेतु पश्चिम का दृष्टिकोणः
पश्चिमी देशों ने विकलांगों के चिकित्सा हेतु गाने, फिल्मों और हराम माध्यमों को उनके बीच प्रचलित किया और आज तक करते आ रहे हैं, ऐसा वह अपने उस विचार के आधार पर करते हैं कि दुनिया भोग विलास का स्थान है जितना सम्भव हो इस से विकलांगों को भी लाभांवित हो लेना चाहिए, जब कि इस्लामी दृष्टिकोण इस विचार का खंडन करता है। इस लिए क़ुरआन की तिलावत, अच्छी पुस्तकों का अध्ययन, समाज सेवा में भाग लेना जैसे कामों को विकलांगों के बीच प्रचलित करने का प्रयत्न करना चाहिए, हम इस्लामी इतिहास में ऐसे विकलांगों को देखते हैं जिन्हों ने अपने मैदान में अविस्मरणीय भूमिका अदी की है।
विक्लांगों के प्रति कुछ फ़िक्ही मसाइलः
(1) अल्लाह किसी इनसान को उसकी शक्ति से ज़्यादा मुकल्लफ़ नहीं बनाता (सूरः बक़रः 286) इस लिए जिस व्यक्ति को किसी कारणवश किसी आदेश के पालन की शक्ति प्राप्त न हो उस आदेश से उसे छूट मिलेगी।
(2) बुद्धि ही मुकल्लफ़ होने का मूल आधार है, इस लिए यदि कोई व्यक्ति बुद्धि से वंचित हो तो वह शरीअत के किसी आदेश का मुकल्लफ़ नहीं होगा।
(3) शरीर के कुछ अंगों से वंचित होने के कारण किसी को शरीअत के अनुसरण में छूट नहीं मिलेगी बल्कि उसे चाहिए कि अपनी शक्ति के अनुसार शरीअत के आदेशों का पालन करे।
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जैसे फर्ज़ नमाज़ों की अदायगी ज़रूरी है, यदि खड़े हो कर नमाज़ अदा नहीं कर सकता तो बैठ कर पढ़े, यदि बैठ कर नहीं पढ़ सकता तो सो कर या लेट कर जैसे सम्भव हो पढ़े, यदि ऐसे भी सम्भव न हो तो इशारे से पढ़ ले।
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यदि पूर्ण रूप में वुज़ू नहीं कर सकता तो जिस हद तक हो सकता हो कर ले, यदि बिल्कुल वुज़ू कर ही नहीं सकता तो तयम्मुम कर ले, यदि तयम्मुम करने का भी सामर्थ्य प्राप्त न हो तो बिना वूज़ू और तयम्मुम के उसी स्थिति में नमाज़ पढ़ ले। हाँ विकलांग की देख-रेख करने वालों का कर्तव्य बनता है कि नमाज़ और बुज़ू में उसकी सहायता करें।
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यदि विकलांग अपने शरीर से गंदगी को दूर कर सकता हो तो करना अनिवार्य है, यदि उसे दूर करने की ताक़त नहीं है और कोई दूर करने वाला पाया नहीं जाता तो उसी स्थिति में वह नमाज़ पढ़ लेगा और उसकी नमाज़ सही होगी, फ़िर उसे लौटाने की ज़रूरत भी नहीं है।
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यदि विकलांग को रोज़ा रखने की ताक़त है तो उसके लिए रोज़ा रखना अनिवार्य होगा परन्तु यदि रोज़ा नहीं रख सकता और उसकी बीमारी ठीक होने वाली नहीं है तो वह रोज़ा नहीं रखेगा और उसके लिए हर रोज़े के बदले किसी निर्धन को एक दिन का खाना दे देना काफ़ी होगा।
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यदि विकलांग को हज करने का आर्थिक तथा शारीरिक सामर्थ्य प्राप्त है तो उसके लिए हज्ज करना अनिवार्य होगा, और यदि आर्थिक सामर्थ्य तो प्राप्त हो परन्तु शारीरिक सामर्थ्य प्राप्त नहीं है तो उसके लिए ज़रूरी है कि अपनी ओर से किसी ऐसे व्यक्ति को हज के लिए भेजे जिसने अपनी ओर से पहले हज कर लिया हो।
विक्लांगों के प्रति इस्लामी आदेश के वर्णन के बाद स्पष्ट रूप में इस्लाम की महानता समझ में आती है कि यह धर्म वास्तव में अल्लाह का उतारा हुआ नियम है जो जीवन के हर भाग में और हर व्यक्ति का पूर्ण रूप में मार्गदर्शन करता है चाहे वह किसी भी स्थिति में हो। अंत में अल्लाह से दुआ है कि वह हमारे अन्दर विक्लांगों के प्रति जाग्रुकता पैदा फ़रमाये और वह एहसास उत्पन्न करे कि हम उसके विभिन्न उपकारों का सदैव शुक्र अदा करते रहें। आमीन