अल्लाह तआला ने अपने दासों और बन्दों के लिए वह धर्म पसन्द किया जो कि प्रत्येक प्रकार से पूर्ण हो, और उसकी जीवन व्यवस्था प्रत्येक रूप से पूर्ण हो और आचरण, स्वभाव और राज्यनेतिक स्थर पर भी सही मार्ग दर्शन करता हो, और एक पवित्र और साफ सुथरा शासन का आज्ञा देता हो, राज्यक्रमचारी तानाशाह नहीं बल्कि वह समाज के सेवक और जिम्मेदार हैं, और क़ियामत के दिन उन से अपनी जनता के प्रति प्रश्न किया जाऐगा और जनता को भी आदेश दिया कि प्रत्येक वह आदेश जो अल्लाह की अवज्ञाकारी का न हो, उस की बात मानी जाए जैसा कि अल्लाह तआला का प्रवचन है। देश का नियम जो अल्लाह की नाफरमानी में न हो, उस पर चला जाए, ताकि देश और राज्य का व्यवस्था उत्तम तरीके से चले, इस के लिए अल्लाह तआला ने जनता को राजा या प्रधानमंत्री जैसे शसकों की आज्ञाकारी का आदेश दिया है जो अल्लाह की अवज्ञाकारी में न हों, जैसा कि अल्लाह का कथन है।
” يا أيها الذين آمنوا أطيعوا الله و أطيعوا الرسول وأولي الأمر منكم فإن تنازعتم في شيء فردوه إلى الله والرسول إن كنتم تؤمنون بالله واليوم الآخر ذلك خير وأحسن تأويلا ” – النساء: 59
” ऐ लोगों जो ईमान लाऐ हो, अल्लाह के आज्ञा का पालण करो, रसूल के आज्ञा का पालण करो, और तुम अपने में से जिम्मेदार लोगों की आज्ञा का पालण करो, और यदि तुम्हारे बीच किसी चीज़ में विभिन्नता हो जाए तो अपने विभिन्नता को अल्लाह और उस के रसूल के प्रवचनों पर रखो, यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन पर सही तरीके से ईमान रखते हो, यही अच्छा और सब से उत्तम बात है।” (सूराः निसाः 59)
जिम्मेदार लोगों का अर्थ जैसा कि धार्मिक विद्वानों ने कहा है।
(1) राजा या प्रधान मन्त्री और उनके सहयोगी लोग
(2) धार्मिक बड़े विद्वान ( बड़े उलमाए किराम)
परन्तु राजा और राज्यनेताओं और बड़े विद्वानों के आज्ञा का पालन केवल अल्लाह की इताअत में ही की जाएगी और अल्लाह की नाफरमानी में किसी मानव की इताअत अनुचित है जैसा कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः
عنِ ابْنِ عُمَرَ، عَنِ النَّبِيِّ )صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ( أَنَّهُ قَالَ: “عَلَى الْمَرْءِ الْمُسْلِمِ السَّمْعُ وَالطَّاعَةُ فِيمَا أَحَبَّ وَكَرِهَ، إِلَّا أَنْ يُؤْمَرَ بِمَعْصِيَةٍ، فَإِنْ أُمِرَ بِمَعْصِيَةٍ، فَلَا سَمْعَ وَلَا طَاعَةَ” ( صحيح مسلم رقم الحديث: 1839)
अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाह अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः ” मुस्लिम व्यक्ति पर राजा (प्रधानमन्त्री) की आदेशों को सुनना और उनकी बात पर अमल करना अनिवार्य है, चाहे उसे पसन्द आऐ या पसन्द न आऐ, सिवाए कि वह राजा अल्लाह की अवज्ञा का आदेश दे यदि उसने अल्लाह तआला की अवज्ञाकारी का हुक्म दिया तो उसकी बात मानना अनुचित है ” (सही मुस्लिमः 1839)
وقال عبادة بن الصامت رضي الله عنه : بَايَعْنَا رَسُولَ اللهِ )صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ – عَلَى السَّمْعِ وَالطَّاعَةِ فِي الْعُسْرِ وَالْيُسْرِ، وَالْمَنْشَطِ وَالْمَكْرَهِ، وَعَلَى أَثَرَةٍ عَلَيْنَا، وَعَلَى أَنْ لَا نُنَازِعَ الْأَمْرَ أَهْلَهُ، وَعَلَى أَنْ نَقُولَ بِالْحَقِّ أَيْنَمَا كُنَّا، لَا نَخَافُ فِي اللهِ لَوْمَةَ لَائِمٍ. ( صحيح مسلم رقم الحديث: 1709)
उबादा बिन सामित (रज़ियल्लाह अन्हु) फरमाते है कि हम ने रसूस (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हाथ पर बेअत (इस्लाम स्वीकार करते समय शपथ) किया कि हम आप के प्रत्येक आदेश का हर स्थिति में अनुपालन करेंगे, चाहे अच्छी हालत हो या परेशानी, और हर्ष की स्थिति हो, या गमों की हालत हो, और हम पर दुसरों को तरजीह दी जाए और हम हकदार लोगों से सत्ता न छिनें जब कि ज़्यादा रक्तपात का डर हो और हम जहाँ कहीँ भी रहें सत्य बोलें और सत्य का समर्थन करें। अल्लाह के प्रति सत्य बात कहने से किसी से भी नहीं डरें।” (सही मुस्लिमः हदीस क्रमांकः 1709)
قال رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ “مَنْ أَطَاعَنِي فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ وَمَنْ عَصَانِي فَقَدْ عَصَى اللَّهَ، وَمَنْ يُطِعِ الأَمِيرَ فَقَدْ أَطَاعَنِي،وَمَنْ يَعْصِ الأَمِيرَ فَقَدْ عَصَانِي وَإِنَّمَا الإِمَامُ جُنَّةٌ يُقَاتَلُ مِنْ وَرَائِهِ وَيُتَّقَى بِهِ، فَإِنْ أَمَرَ بِتَقْوَى اللَّهِ وَعَدَلَ، فَإِنَّ لَهُ بِذَلِكَ أَجْرًاوَإِنْ قَالَ بِغَيْرِهِ فَإِنَّ عَلَيْهِ مِنْهُ”– صحيح البخاري: رقم الحديث: 2957
रसूस (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः ” जिसने मेरी इताअत की, तो उसने अल्लाह की इताअत की, और जिसने मेरी नाफरमानी की, उसने अल्लाह की नाफरमानी की, और जिसने राजा और गवरनर की इताअत की, उसने मेरी इताअत की और जिसने राजा की नफरमानी की, उसने मेरी नाफरमानी की, और बेशक गवरनर और राजा ढाल है जिसकी साथ रहा जाता है और दुशमनों से मुकाबला किया जाता है, और उस के माध्यम से शत्रू से सुरक्षित रहा जाता है, यदि उसने अल्लाह के डर का आदेश दिया और न्याय किया तो इसका उसे पूण्य मिलेगा और अगर उसने अशुद्ध वस्तुओं का आदेश दिया तो उस का पाप उसी पर लौटेगा।” (सही बुखारीः 1839)
سَمِعْتُ ابْنَ عَبَّاسٍ، رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا،عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: “مَنْ رَأَى مِنْ أَمِيرِهِ شَيْئًا يَكْرَهُهُ فَلْيَصْبِرعَلَيْهِ فَإِنَّهُ مَنْ فَارَقَ الجَمَاعَةَ شِبْرًا فَمَاتَ، إِلَّا مَاتَ مِيتَةً جَاهِلِيَّةً” – صحيح البخاري: رقم الحديث: 7054
अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाह अन्हुमा) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः ” जो व्यक्ति भी अपने अमीर से या उस के मातहत रहने वाले से ऐसी चीज़ देखे जिसे वह नापसन्द करता है तो वह उस पर सब्र करे। क्योंकि बेशक जो व्यक्ति भी जमाअत से थोड़ा भी अलग थलग रहता है तो उसकी मृत्यु पापों के ढ़ेर पर होती है। (कुफ्र की हालत में उस का निधन होता है।) ” (सही बुखारीः हदीस क्रमांकः 7054)
सब लोग एकात्र हो कर एक शासक के मातहत रह कर जीवन बिताने में ही किसी भी समाज और समुदाय की उन्नती है। शासक के आदेशों का अनुपालन किया जाए। देश के संविधान का उल्लंघन न किया जाए। तब ही देशवासी सुख शांति से रहेंगे।
शासको के आदेश का अनुपालन करने से बहुत से लाभ प्राप्त होते हैं।
(1) अमीर और राजा के आदेशों को मानने से अल्लाह की आज्ञा पालन होता है। जैसा कि अल्लाह तआला ने मुसलमानों को आदेश दिया है।
(2) राजा और अमीर के आदेश मानने से पूरे देशवासियों का जीवन व्यवस्था ठीक ठाक रहता है।
(3) राजा की बात मानने से समाज में सुधार उत्पन्न होता है, समाज के लोगों में आपस में प्रेम और मेल जोल पैदा होता है।
(4) राजा के आज्ञा के अनुपालन करने से पूरे देश में शान्ति होती है। लोगों को सुकून और शान्ति प्राप्त होती है। बुराई करने वाले और पाप करने वाले बुराई करने से घबराते हैं आदि।
(5) राजा के आज्ञा का अनुपालन करने से पूरे देश में विकास की लहर उत्पन्न होती है। लोग खुशहाल होते हैं। व्यापार और बीजनेस का अवसर ज़्यादा होता है। सार्वजनिक पूंजी से लाभ अधिक से अधिक लोग उठाते हैं। प्रत्येक मैदान में लोग अच्छा प्रदर्शन करते हैं।