हिजरत से प्राप्त होने वाले पाठ

rbF6Pk8XZePzहिजरत अल्लाह के रसूल सल्ल0 के पवित्र जीवन का एक क्रान्तिकारी मरहला है जिसके बाद इस्लाम को शक्ति प्राप्त होती है,  इस्लामी राज्य स्थापित होता है और इस्लाम की दावत दुनिया में फैलती और आम होती है। हिजरत की  इस यात्रा में एक मुसलमान के लिए  महुमूल्य पाठ हैं जिनकी ओर निम्न में संकेत किया जा रहा है।

  (1) धैर्य और विश्वास सहायता और विजय का रास्ता हैः मुहम्मद सल्ल0 और आपके साथियों ने 13 वर्ष तक मक्का में अत्याचार सहन कर चुके तो अल्लाह की चाहत हुई कि परिणाम-स्वरूप उन पर सहायता और विजय के द्वार खोल दे।

(2) अल्लाह पर विश्वास प्रत्येक संकटों में मुक्ति का साधन है। अल्लाह ने फरमायाः ” जो अल्लाह पर भरोसा करेगा अल्लाह उसके लिए काफी है” ( अल-तलाक़3) हिजरत के समय आप तलवारों की छाया में थे, शत्रु आपके सर की तलाश में “सौर” गुफे के द्वार पर पहुंच चुके थे। अबू-बक्र भी परेशान हो गए। ऐसी गम्भीर स्थिति में आपने उन से फरमायाः “गम न करो, निःसंदेह अल्लाह हमारे साथ है।”

(3) अल्लाह पर भरोसा होने के साथ ज़ाहिरी माध्यमों को अपनाना भी आवश्यक है: आपने सब से पहले हिजरत का पलान बनाया, नायक मुहम्मद सल्ल0 हैं, सहायक अबू बक्र हैं, खाना पहुंचाने वाली अस्मा हैं, गुफा में क़ुरैश की सूचना पहुंचाने वाले अबू बक्र के बेटे अब्दुल्लाह हैं। बकरियों के रेवड़ द्वारा अब्दुल्लाह के पैर के चिन्ह को मिटा कर शत्रु को धोखे में रखने के लिए आमिर बिन फुहैरा हैं, रास्तों का माहिर गैरमुस्लिम लेकिन अमानतदार अब्दुल्लाह बिन उरैक़ित है। तत्काल निवास सौर पहाड़ है।

(4) जब अल्लाह अपने मोमिन बन्दों की सहायता का इरादा करता है तो प्रत्येक जाहिरी नियम टूट जाते हैं: तलवारों की छाया में आप निकल जाते हैं, शत्रुओं का एक समूह गुफा के द्वार पर पहुंचने के बावजूद उनको देख नहीं पाता है। सुराक़ा बिन मालिक के घोड़े के दोनों पैर ज़मीन में धंस जाते हैं। उम्मे माबद की मर्यल बकरी के थन में दूध भर आता है।

(5) हिजरत से हम अल्लाह के रसूल से प्रेम का महान पाठ सीखते हैं: यही प्रेम था जिसने अबू बक्र को खूशी के आँसू रोलाया। यही वह प्रेम था जिसने अबू बक्र को ज़हरीले कीड़े का कष्ट सहन करने पर तैयार किया। यही वह प्रेम था कि अबू बक्र अब तक 35 हज़ार दिरहम खर्ज कर चुके थे और फिर हिजरत की यात्रा में 5 हज़ार दिरहम लेकर निकलते हैं।

(6) हिजरत से क़ुरबानी का पाठ मिलता है।

(7) अल्लाह की सहायता पर पूरा विश्वास ( मैं देख रहा हूं ऐ सोराक़ा कि तुम किसरा के कंगन पहने हो)

(8)  अल्लाह के रसूल सल्ल0 की कोशिश कि रास्ते का कोई साथी हो: ( अबू बक्र को साथ ले कर चलने में संकेत है कि एक व्यक्ति हमेशा नेक संगत को अपनाए)

(9) नायक आदर्श होता है: ( मुहम्मद सल्ल0 के लिए सम्भव था कि अल्लाह उनको बुराक़ पर बैठा कर मदीना पहुंचा देता परन्तु आप मानव के लिए कठिनाइयों को सहन करने में आदर्श न बन सकते थे।

(10) हर समय दावत का काम होना चाहिए:(इस यात्रा में भी बुरैदा और उनके साथियों को इस्लाम की दावत दी)

 सन् हिजरी का आरम्भ कब और कैसे  ?

मुहर्रम इस्लामी सन् हिजरी का सब से पहला महीना है। यहाँ से नया हिजरी वर्ष आरम्भ होता है। उमर फारूक़ रज़ि0 अन्हु की खिलाफत का तीसरा या चौथा वर्ष था ( अर्थात् हिजरत के सोलहवी अथवा सतरहवीं वर्ष ) हज़रत अबू मूसा रज़ि0 ने आपको पत्र लिखा कि हमारे पास आप के पत्र आते हैं परन्तु उन पर तिथि अंकित नहीं होती, उसी के बाद उमर रज़ि0 ने यह तै किया कि मुसलमानों का एक ऐसा इस्लामी कलैण्डर होना चाहिए जो दूसरे समुदायों से अलग और भिन्न हो। अतः सहाबा से परामर्श किया कि किस घटना से इस्लामी सन् का आरम्भ किया जाए। किसी ने नबी सल्ल0 की पैदाईस को अपनाने का परामर्श दिया तो किसी ने आपकी नुबूवत की तीथि को, तो किसी ने हिजरत को अपनाने की बात कही।

मुसलमान शताब्दियों से बराबर इस इस्लामी सन् हिजरी को अपनाते रहे, यहाँ तक कि 1924 में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने जहाँ उस्मानी खिलाफत की समाप्ती की घोषणा की वहीं इस्लामी सन् हिजरी पर अमल को भी निरस्त कर दिया और ईसवी कलैण्डर पर अमल अनिवार्य ठहराया।

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