सब से बड़ा अधिकार किसका ?
Safat Alam Taimi
अल्लाह का अधिकार बन्दों पर यह है कि वे केवल उसी की इबादत (उपासना) करें।
अगर कोई आदमी जरूरत के समय आपके पास आता है और आपको एक लाख रुपए देता है और कहता है कि उस से अपनी जरूरत पूरी कर लो, जरा बताइए! क्या हालत होगी आपके दिल की उस आदमी के प्रति? यही ना कि हर समय उसके सामने बिछे रहेंगे केवल इसलिए कि उसने जरूरत में एक लाख रुपए से आपकी मदद की थी. इनसान के एहसान का यह हाल होता है कि इनसान अपने मुहसिन के लिए आत्म हत्या तक करने के लिए तैयार हो जाता है।
सब से बड़ा इहसान करने वाला कौन ?
हम पर सब से बड़ा एहसान करने वाला वह अल्लाह है जो आकाश और धरती का सृष्टा है, जो राजाओं का राजा, सारी ब्रह्मांड को चलाने वाला है, जिसने आकाश और पृथ्वी को स्थापित कर रखा है, जो सारी चीज़ों का निर्माता और मालिक है, जिसकी महानता का क्या कहना कि यदि दुनिया के सारे वृक्षों का क़लम बना दिया जाए और सारे समुद्रों की रोशनाई बना दी जाए, फिर सात समुद्र और हों, तब भी क़लम घिस जायें और रोशनाई समाप्त हो जाए लेकिन अल्लाह की महानता के शब्द समाप्त न हों। अल्लाह ने कहाः
وَلَوْ أَنَّمَا فِي الْأَرْضِ مِن شَجَرَةٍ أَقْلَامٌ وَالْبَحْرُ يَمُدُّهُ مِن بَعْدِهِ سَبْعَةُ أَبْحُرٍ مَّا نَفِدَتْ كَلِمَاتُ اللَّـهِ ۗ إِنَّ اللَّـهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ ( سورة لقمان 27)
धरती में जितने वृक्ष हैं, यदि वे क़लम हो जाएँ और समुद्र उसकी स्याही हो जाए, उसके बाद सात और समुद्र हों, तब भी अल्लाह के बोल समाप्त न हो सकेंगे। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
वह अल्लाह जिसने हमें पानी की एक बूंद से बनाया है, माँ के पेट के अंधेरे में भी पोसा पाला, वहाँ कोई प्राणी हमें आहार, विकास और जीवन की सामग्रियां प्रदान नहीं कर सकती थीं, उसने हमें बहुत तंग जगह से निकाला, जब हम बाहर आए तो हमारे लिए माँ की छातियों से भोजन उतार दिया, माता पिता के दिल में ऐसा प्यार पैदा किया कि वह हमें टूट कर चाहने लगे, फिर हमें बुद्धि ज्ञान दिया गया और हम पर हर तरह की नवाज़िशें कीं ? अल्लाह ने फरमाया:
وَاللَّـهُ أَخْرَجَكُم مِّن بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ لَا تَعْلَمُونَ شَيْئًا وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۙ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ (سورہ النحل ۷۸)
अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी माँओ के पेट से इस दशा में निकाला कि तुम कुछ जानते न थे। उसने तुम्हें कान, आँखें और दिल दिए, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ (सूरः अन्नह्ल 78)
यदि अल्लाह पलक झिपकने के बराबर भी अपना अनुग्रह और दया हम से रोक लेता तो हम मर जाते, जीवन से वंचित हो जाते, जब हम पर अल्लाह की कृपा और दया का यह हाल है तो उसका अधिकार भी हम पर सभी अधिकारों से बढ़कर होगा।
अल्लाह हम से क्या चाहता है ?
इतने सारे उपकारों के बावजूद वह हम से क्या चाहता है? वह हम से रोज़ी और खाना नहीं चाहता, धन और पैसे नहीं चाहता। अल्लाह ने फरमायाः
لَا نَسْأَلُكَ رِزْقًا ۖ نَّحْنُ نَرْزُقُكَ ۗ وَالْعَاقِبَةُ لِلتَّقْوَىٰ سورة طه 132
हम तुमसे कोई रोज़ी नहीं माँगते। रोज़ी हम ही तुम्हें देते है, और अच्छा परिणाम तो धर्मपरायणता ही के लिए निश्चित है.
बस वह हमसे एक चीज की मांग करता है जिसका फायदा भी हमें ही मिलने वाला है, वह यह है कि हम इबादत केवल उसी की करें, अल्लाह ने फरमाया:
وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ ﴿٥٦﴾ مَا أُرِيدُ مِنْهُم مِّن رِّزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَن يُطْعِمُونِ ﴿٥٧﴾ إِنَّ اللَّـهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ
मैंने तो जिन्नों और मनुष्यों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी बन्दगी करे (56) मैं उनसे कोई रोज़ी नहीं चाहता और न यह चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ (57) निश्चय ही अल्लाह ही है रोज़ी देनेवाला, शक्तिशाली, दृढ़ (सूरः ज़ारियात 56-58)
सही बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत मुआज़ बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक दिन मैं अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे सवार था, आपने मुझ से कहा: हे मुआज़! मैंने कहा: हाज़िर हूं ऐ अल्लाह के रसूल, आप ने फरमाया: क्या तुमको पता है कि अल्लाह के बन्दों पर क्या अधिकार है? और बन्दों के अल्लाह पर क्या अधिकार है? मैंने कहा: अल्लाह और उसके रसूल ही अधिक जानते हैं. तब आपने कहा:
فإنَّ حقَّ الله على العباد أن يعبدوه ولا يُشركوا به شيئًا، وحق العباد على الله ألا يعذب مَن لا يشرك به شيئًا
बन्दों पर अल्लाह का अधिकार यह है कि वे केवल उसी की उपासना करें और उसके साथ किसी अन्य को शरीक न करें, और बन्दों का अल्लाह पर अधिकार यह है कि जो अल्लाह के साथ किसी को साझी न ठहराए उसे यातना न दे.
यह सुन कर हज़रत मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: “ क्या लोगों को बशारत न दे दूँ?” आप सल्लल्लाहू अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “उन्हें बशारत मत दो वरना वे उसी पर भरोसा कर लेंगे”.(बुख़ारी 2856, मुस्लिम 30)
हज़रत मुआज़ रज़ियल्लाहु अन्हु की मृत्यु का समय जब करीब हुआ और उन्हें डर पैदा हुआ कि ऐसा न हो कि यह भी ज्ञान छिपाने की श्रेणी में आ जाए तब उन्होंने यह हदीस बयान कर दिया, इस हदीस में मूल रूप में दो अधिकार बयान किए गए हैं. अल्लाह का अधिकार बन्दों पर और बन्दों का अधिकार अल्लाह पर, अल्लाह का अधिकार बन्दों पर क्या है? अल्लाह का अधिकार बन्दों पर यह है कि वे केवल उसी की इबादत (उपासना) करें। इबादत क्या है? इबादत केवल नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात का नाम नहीं बल्कि बलिदान करना भी इबादत है, किसी विशिष्ट हस्ती से प्रार्थना करना भी इबादत है, उसके नाम की भेंट देना भी इबादत है, उसके सामने हाथ बांधे खड़ा होना भी इबादत है, उसका तवाफ़ करना भी इबादत है और उस से उम्मीद बांधना भी इबादत है। और इन सारी इबादतों को शुद्ध अल्लाह के लिए अंजाम देना ज़रूरी है. हम हर रकअत में सूरः फातिहा के अंदर यही स्वीकार करते हैं किः
اياك نعبد وإياك نستعين (سورة الفاتحة 4
ऐ अल्लाह! हम तेरी ही इबादत करते हैं और केवल तुझ से ही मदद चाहते हैं.
अब अगर कोई इबादत के कुछ काम दूसरों के लिए भी करता है जैसे किसी अन्य को मुश्किल दूर करने वाला समझता है, ज़रूरत पूरी करने वाला मानता है, किसी व्यक्ति, पीर फ़क़ीर की कब्र पर सज्दे करता है, उनके लिए नज़रें मानना, उनकी कब्रों पर जानवर ज़बह करता है तो गोया उसने शिर्क किया. और शिर्क क्या है? अल्लाह के अस्तित्व, या इसके गुणों या इबादत में किसी अन्य को साझी ठहराना। और शिर्क बहुत बड़ा अत्याचार है, जाहिर है कि अल्लाह का शुद्ध अधिकार दूसरों को दे देना शिर्क नहीं तो और क्या है। अल्लाह पाक ने फरमाया:
وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّـهِ ۖ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ (سورة لقمان 13
याद करो जब लुकमान ने अपने बेटे से, उसे नसीहत करते हुए कहा, “ऐ मेरे बेटे! अल्लाह का साझी न ठहराना। निश्चय ही शिर्क (बहुदेववाद) बहुत बड़ा ज़ुल्म है।”
शिर्क से सारे अमल बर्बाद हो जाते हैं। सूरः अनआम में अल्लाह तआला ने 18 संदेष्टाओं का वर्णन किया, फिर आयत न. 88 में फरमायाः
وَلَوْ أَشْرَكُوا لَحَبِطَ عَنْهُم مَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ (سورة الأنعام 88
और यदि उन लोगों ने कहीं अल्लाह का साझी ठहराया होता, तो उनका सब किया-धरा अकारथ हो जाता. (सूरः अल-अनआम 88)
बल्कि अल्लाह ने अपने प्यारे नबी को धमकी देते हुए कहाः
وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكَ لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ (سورة الزمر 65
तुम्हारी ओर और जो तुम से पहले गुज़र चुके हैं उनकी ओर भी वह्य की जा चुकी है कि “यदि तुमने शिर्क किया तो तुम्हारा किया-धरा अनिवार्यतः अकारथ जाएगा और तुम अवश्य ही घाटे में पड़ने वालों में से हो जाओगे।” (सूरः ज़ुमर 65)
और अगर किसी व्यक्ति की मौत शिर्क की स्थिति में हो तो उसकी माफी भी नहीं है, अल्लाह ने कहाः
إِنَّ اللَّـهَ لَا يَغْفِرُ أَن يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَاءُ ۚ وَمَن يُشْرِكْ بِاللَّـهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا بَعِيدًا (سورة النساء 116
निस्संदेह अल्लाह इस चीज़ को क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ किसी को शामिल किया जाए। हाँ, इससे नीचे दर्जे के अपराध को, जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराता है, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा (सूरः निसा 116)
अब अगर कोई आदमी शिर्क नहीं करता और शुद्ध एक अल्लाह की इबादत करता है तो ऐसे व्यक्ति के लिए अल्लाह ने अपनी दया से, अपने अनुग्रह से, पुरस्कार और इकराम के रूप में खुद पर अनिवार्य किया है कि उसे सज़ा न दे।