समर की छुट्टियाँ और बच्चों का प्रशिक्षण
हमारे बच्चे हमारी अमानत हैं, उनकी शिक्षा दिक्षा और प्रशिक्षण हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन दुख की बात यह है कि उनकी शिक्षा की ओर हमारा ध्यान इस कदर नहीं जाता जितना उनके खाने पीने और कपड़े पोशाक की ओर जाता है। हालांकि खाने पीने और पोशाक के साथ उन्हें इस उम्र में प्रशिक्षण की बेहद आवश्यकता है।
बचपन में प्रशिक्षण का बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है, बचपन में जो बातें मन में बैठ जाती हैं वह पत्थर की लकीर साबित होती हैं। वैसे भी इस उम्र में बच्चों का मन मस्तिष्क सफेद कागज के जैसे होता है जिस पर जो चाहें लिख दें।
इसलिए अगर हम विचार करें तो आज यहूदी आंदोलन, ईसाई मशीनरियां, हिंदू संगठन मुसलमानों की नई पीढ़ी पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रही हैं। क्योंकि वे जानती हैं कि बचपन में अगर उनका दिमाग़ चेंज कर दिया गया तो उन्हें आसानी से साथ अपने हित में प्रयोग किया जा सकता है। फिर आज दुनिया में हमारे बच्चों को जो पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है, यह पाठ्यक्रम पश्चिमी देशों से लिया गया है या कम से कम उस पर पश्चिमी देशों की संस्कृति की छाप है।
इसमें भौतिकवाद को सब कुछ बताया गया है, इसे पढ़कर बच्चा यही सीखता है कि दुनिया कमाओ चाहे जैसे भी हो, मिश्रित शिक्षा ने ऐसी अश्लीलता और नग्नता फैलाई है कि हमारी मुस्लिम लड़कियां अपनी पहचान खोने लगी हैं, कितने मुस्लिम बच्चे सहिष्णुता के नाम पर सब धर्म एक है का विचार मन में पालने लगे हैं, और कुछ तो इस्लामी शिक्षाओं को निशाना बनाने लगे हैं। बच्चों को मारने का यह वह सभ्य तरीका है जिस पर आज माता पिता शर्मिंदा नहीं बल्कि गर्व का अनुभव कर रहे हैं, अकबर इलाहाबादी ने इसी युग की व्याख्या की थी
यूं क़त्ल से बच्चों के वे बदनाम न होते
अफसोस कि फिरौन को कॉलेज की ना सूझी
जी हाँ! यह हत्या ही है जिस पर गर्व किया जा रहा है, लेकिन यह कोई शारीरिक हत्या नहीं बल्कि आध्यात्मिक हत्या है, ईमान की हत्या है। इंग्लिश मध्यम स्कूलों के आम होने के कारण बच्चे अल्लाह और रसूल का नाम तक नहीं जान पाते, वहाँ मिश्रित शिक्षा का रिवाज है, वहाँ बे परदगी को सभ्यता का नाम दिया जाता है, ऐसे माहौल में जब हमारे बच्चे पढ़ेंगे तो ज़ाहिर है कि इसी सभ्यता के शौक़ीन बनेंगे, इसी माहौल का गुण गाएंगे, इसी की बोली बोलेंगेः
हम समझते थे कि लाएगी फ़राग़त तालीम
क्या खबर थी कि चला आएगा इल्हाद भी साथ
याद रखें! बच्चे हमारी अमानत है, महाप्रलय के दिन उनके प्रति हम से पूछताछ होने वाली है। अगर इस दिशा में लापरवाही बरती गई तो परिणाम बड़े खतरनाक होने वाले हैं, हमारे समाज में कितने सलमान रुश्दी और तस्लीमा नसरीन पैदा हो सकते हैं। आखिर उस ज्ञान से क्या फायदा जिस से मनुष्य अस्थायी दुनिया तो कमा ले, लेकिन अपने पैदा करने वाले की सही पहचान हासिल न कर सके, उस ज्ञान का क्या फाइदा जिस से मुस्लिम समाज में नास्तिकता फैले, हमारी बातों से कोई निष्कर्ष न निकाले कि हम दुनियावी शिक्षा के विरोधी हैं, नहीं, बल्कि हम दुनियावी शिक्षा पर प्रोत्साहित करते हैं, आज मुसलमानों में डॉक्टर्स, इनजीनियरस और वैज्ञानिकों की बेहद जरूरत है, और अगर अल्लाह पाक ने हमें समृद्धि दे रखी है तो हम अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाएं, लेकिन दीन की ओर से अनदेखी करके नहीं …।
आज समय की मांग है कि हम स्कूलों और कालेजों में पढ़ने वाले मुस्लिम बच्चों पर विशेष ध्यान दें। अपनी नई पीढ़ी को आधुनिक शिक्षा दिलाने के साथ साथ दीनी तालीम भी दिलाएं, वैसे भी दीन की बुनियादी शिक्षा हर मुसलमान महिला एवं पुरुष पर अनिवार्य है, कम से कम इस हद तक तो बच्चों को दीन की शिक्षा से लैस करना हर माता पिता की धार्मिक जिम्मेदारी है।
आज के इस दौर में आधुनिक तकनीक की बदौलत दुनिया एक घर का रूप धारण कर चुकी है, ऐसे में पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से हम अपने बच्चों को अलग नहीं कर सकते, इलेक्ट्रानिक मीडिया का अपना प्रभाव है, पर्यावरण का अपना प्रभाव है, स्कूल का अपना प्रभाव है, पाठयक्रम शिक्षा का अपना प्रभाव है।
अभी हम गर्मी की छुट्टी से गुजर रहे हैं, यधपि हम में से अधिकांश लोगों के दैनिक जीवन इससे प्रभावित न हुए हों मगर इतना तो ज़रूर है कि हमारे बच्चे छुट्टियां मना रहे हैं, छुट्टी के दिनों में बच्चे स्कूल से दूर हो जाते हैं और उनके सारे समय घर पर गुजरते हैं, इस हिसाब से बच्चों की निगरानी की सारी जिम्मेदारी माता-पिता के सिर आ जाती है। अक्सर बच्चे अपनी छुट्टियों को खेल कूद में बर्बाद कर देते हैं, कितने इंटरनेट कैफों में समय बिताया करते हैं, कितने टेलीविजन चैनल के दीवाने हो जाते हैं, कितने बुरे दोस्तों की संघत अपना लेते हैं, इस प्रकार छुट्टी उनके लिए मानसिक मनोरंजन का कारण बनने की बजाय हानिकारक बन जाती है।
इसलिए माता-पिता की बड़ी जिम्मेदारी है कि बच्चों की छुट्टी को उनके धार्मिक प्रशिक्षण के लिए उपयोगी बनाएं। घर में दीनी वातावरण हो, टेलीविजन इंनटरनेट का इस्तेमाल संरक्षक की निगरानी में हो, धार्मिक उत्सव और कोर्स में बच्चों को भाग दिलाएं, मस्जिदों के इमामों की जिम्मेदारी है कि वह इस सम्बन्ध में लोगों का सही मार्गदर्शन करें, मुस्लिम समाज के लीडरों की जिम्मेदारी है कि बच्चों के लिए समर कैम्प की व्यवस्था करें जिस में बच्चों को देनी प्रशिक्षण के साथ मानसिक और मनोरंजन के उपकरण प्रदान किए गए हों।
बच्चों के अभिभावक को भी चाहिए कि अपने बच्चों को ऐसे कोर्स से लाभ उठाने का पूरा अवसर प्रदान करें, इस संबंध में बिल्कुल कोताही न करें, क्योंकि यही बच्चे हमारे भविष्य हैं। देश और राष्ट्र के रखवाला बनने वाले हैं, उनकी अच्छाई का लाभ खुद हमें दुनिया और आख़िरत में मिलने वाला है। ऐसे कोर्स से बच्चों के अंदर धार्मिक चेतना पैदा होगी, उनके स्वभाव में बदलाव आएगा, अच्छी संगति प्राप्त होगी और वह हर तरह की बेकार मश्ग़ूलियतों से भी बच जाएंगे। उम्मीद है कि बच्चों के माता-पिता ऐसे कोर्स से भरपूर लाभ उठाएंगे।