प्रति दिन सूर्य बिना किसी विलंब के अपने समय पर संसार को प्रकाशमान करते हुए निकलता है, जिसके प्रकाश में लोग अपने हज़ारों काम निपटाते हैं, यदि एक दिन के लिए भी सूर्य न निकले तो दुनिया में अंधेयारा छा जाए और इनसानों के हज़ारों काम धरे के धरे रह जाएं।
पवित्र ग्रन्थ क़ुरआन जो सत्य और असत्य को परखने की कसौटी है इस में अल्लाह ने सूर्य का 33 बार वर्णन किया है, क़ुरआन में अल्लाह ने सूर्य की क़सम खाई है (सूरः अश्शम्स 1) वह स्वयं पैदा नहीं हुआ बल्कि उसे अल्लाह ने पैदा किया हैः
وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۖكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ سورة الأنبياء 33
वही है जिसने रात और दिन बनाए और सूर्य और चन्द्र भी। प्रत्येक अपने-अपने कक्ष में तैर रहा है (सूरः अल-अंबिया, 33)
जी हाँ अल्लाह ने उसे पैदा किया और उसके लिए एक कक्ष निर्धारित कर दिया अब क्या मजाल कि वह अपने कक्ष से निकल कर चांद के कक्ष में पहुंच जाए।
सूर्य अल्लाह के वजूद की निशानियों में से एक निशानी है परन्तु उसकी हर प्रकार की विशालता के बावजूद उस में ईश्वरीय गुण कदापि नहीं। अतः उसकी पूजा नहीं हो सकती बल्कि पूजा हो सकती है तो उसके पैदा करने वाले की जो धरती, आकाश तथा स्वंय मानव का सृष्टिकर्ता हैः
وَمِنْ آيَاتِهِ اللَّيْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ ۚ لَا تَسْجُدُوا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوا لِلَّـهِ الَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ فصلت 37
“रात और दिन और सूर्य और चन्द्रमा उसकी निशानियों में से है। तुम न तो सूर्य को सजदा करो और न चन्द्रमा को, बल्कि अल्लाह को सजदा करो जिसने उन्हें पैदा किया, यदि तुम उसी की बन्दगी करने वाले हो।” (सूरः फुस्सिलतः 37)
इनसान जब अपनी सीमित बुद्धि से अल्लाह की इन महान सृष्टियों पर विचार करता है तो वह उन से इतना प्रभावित हो है कि उसी के समक्ष अपना माथ छुकाने लगता है और इसकी बिल्कुल परवाह नहीं करता कि उसके बनाने वाले की खोज की जाए। इसी रास्ते से सूर्य एंव चंद्रमा की पूजा शुरू हुई है। हज़रत इब्राहीम अलै. जिस क़ौम में भेजे गए थे वहाँ के लोग मूर्तिपूजा के साथ सूर्य, चंद्रमा और सितारों की भी पूजा करते थे, अतः ईब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने समुदाय को समझाने के लिए अति उत्तम शैली अपनाई, जब रात में सितारे को निकला हुआ देखा तो कहा कि यह मेरा रब है, लेकिन जब सितारा डूब गया तो कहने लगे कि मैं डूबने वाले को पसंद नहीं करता, दूसरे दिन जब चंद्रमा को निकला देखा तो कहा कि यह मेरा रब है लेकिन जब चंद्रमा भी डूब गया तो कहने लगे कि यह मेरा रब नहीं हो सकता, फिर सुबह में जब सूर्य को निकला हुआ देखा तो कहा, “यह मेरा रब है! यह तो बहुत बड़ा है।” फिर जब वह भी छिप गया, तो कहा, “ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं विरक्त हूँ उनसे जिनको तुम साझी ठहराते हो। ( सूरः अनआम 78)
अभिप्राय यह था कि जो निकलता हो, डूबता हो, भला वह रब कैसे हो सकता है। यही बताने के लिए आपने ऐसी शैली अपनाई ताकि सच्चाई उनके मन मस्तिष्क तक पहुंच सके, और वे विचार कर सकें कि जो छुपता और डूबता हो वह भगवान कैसे हो सकता है।
उसी प्रकार अल्लाह के एक संदेष्टा सुलैमान अलै. गुज़रे हैं जिनको अल्लाह ने ऐसी बादशाहत दी थी कि उनके बाद किसी अन्य को वैसी बादशाहत न मिल सकी, अल्लाह ने जिन्नात और सारे पक्षियों को उनके अधीन किया था, उनमें से “हुद हुद” नामक एक पक्षी भी था, अल्लाह ने सूरः नमल में उनका वर्णन करते हुए कहा है कि एक दिन हुदहुद पक्षी सुलैमान अल्ल. को सुचित किए बिना कहीं ग़ाइब हो गया, सुलैमान अलै. ने जब पक्षियों की खोज की तो उनमें “हुद हुद” को ग़ाइब पाया, तब सलैमान अलै. ने कहा कि उसके आने के बाद उसे सख़्त सज़ा दूंगा, जब वह आया तो उसने रिपोर्ट प्रस्तुत की सबा की एक रानी की जो अपनी प्रजा के साथ सूरज की पूजा करती थी. “हुद हुद” पक्षी होने के बावजूद सूरज की पूजा देख कर परेशान हो जाता है और कहता हैः
وَجَدتُّهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِن دُونِ اللَّـهِ سورة النمل 24
“मैंने उसे और उसकी क़ौम के लोगों को अल्लाह से हट कर सूर्य को सजदा करते हुए पाया है।” (सूरः अल-नमल 24)
अतः सुलैमान अलै. ने रानी के नाम एक पत्र लिखा और हुदहुद को पहुंचाने के लिए भेजा जिस में उसे अपने पास उपस्थित होने का निमंत्रण दिया था, अतः सबा की रानी सुलैमान अलै. के पास उपस्थित हुई और अपनी पूरी क़ौम के साथ इस्लाम स्वीकार कर किया।
मुहम्मद सल्ल. के आगमन से पहले अज्ञानता काल में भी लोगों में सूर्य से सम्बन्धित कुछ विशेष अवधारणाएं पाई जाती थीं, उन में से एक अवधारणा यह थी कि किसी बड़े व्यक्ति के जन्म और मृत्यु पर सूर्य प्रभावित होता है और उसे ग्रहण लग जाता है, संयोग की बात यह है कि जिस दिन मुहम्मद सल्ल. के पुत्र हज़रत इब्राहीम का निधन हुआ, उसी दिन सूर्य को ग्रहण लग गया, सहाबा के मन में आया कि यह घटना अल्लाह के रसूल सल्ल. के पुत्र की मृत्यु के कारण हुई है, नबी सल्ल. को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी कि कोई ऐसी बात मुसलमानों के मन में बैठ जाए जिससे उनकी आस्था को ठेस पहुंचे या एक इनसान किसी जीव को अल्लाह की सृष्टि में अधिकार रखने वाला समझ ले, हालांकि उस समय आप बहुत शोक में थे, लेकिन आप ने समय पर इस गलत आस्था का समाधान जरूरी समझा, अतः आपने भाषण देते हुए कहा:
إنَّ الشمسَ والقمرَ من آيات اللهِ . وإنهما لا يَنخسفان لموتِ أحدٍ ولا لحياتِه . فإذا رأيتُموهما فكبِّروا . وادعو اللهَ وصلُّوا وتصدَّقوا صحيح مسلم: 901
” निःसंदेह सूर्य और चंद्रमा अल्लाह के संकेत के दो लक्षण हैं, उनको न किसी के मरने के कारण ग्रहण लगता है और न किसी के पैदा होने के कारण, लेकिन जब ऐसी घटना घटे तो जब तक सूर्य खुल न जाए दुआ करो, नमाज़ पढ़ो और सदक़ा (दान) दो।” (सही मुस्लिमः 901)
आम तौर पर सूर्य के पुजारी सूर्य के निकलते और डूबते समय या जब सूर्य आधा आसमान पर हो, सूर्य की पूजा करते हैं, इसी लिए मुहम्मद सल्ल. ने इन तीन समयों में नमाज़ पढ़ने से रोका है, उक़्बा बिन आमिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है किः
ثلاثُ ساعاتٍ كانَ رسولُ اللَّهِ ينهانا أن نصلِّيَ فيهِنَّ أو أن نقبرَ فيهنَّ موتانا حينَ تطلعُ الشَّمسُ بازغةً حتَّى ترتفِعَ وحينَ يقومُ قائمُ الظَّهيرةِ حتَّى تميلَ وحينَ تضيَّفُ الشَّمسُ للغروبِ حتَّى تغربَ صحيح النسائي 559
तीन समय में अल्लाह के रसूल सल्ल. हमें नमाज़ पढ़ने और अपने मृतकों को दफन करने से रोकते थे, जब सूरज निकल रहा हो यहाँ तक कि बुलंद हो जाए, जब सूरज सीधा आसमान पर हो यहाँ तक कि माएल न हो जाए और जब सूरज डूबने के क़रीब हो यहाँ तक कि बिल्कुल डूब न जाए। ( सही नसाईः 559)
प्रिय पाठको! हमने आपके समक्ष सूर्य पूजा से सम्बन्धित संक्षिप्त में इतिहास से कुछ प्रमाण प्रस्तुत किए हैं, जिन से इतना ज्ञात होता है कि सूर्य के पुजारी एक ज़माने से चले आ रहे हैं, लेकिन क्या आज के युग में जब कि मानव बुद्धि में प्रगति आ चुकी है, ऐसे समय में जब कि चांद और सूर्य को अधीन करने का दावा किया जा रहा है क्या कुछ लोग पाये जाते होंगे तो सूर्य की पूजा करते होंगे, खेद की बात है कि आज के युग में भी ऐसे लोग पाए जाते हैं। हिन्दु धर्म के मानने वाले अपने धार्मिक ग्रन्थों से दूर होने के कारण आज तक सूर्य की पूजा कर रहे हैं जिसे सूर्य नमस्कार का नाम दिया जाता है।
जब सूर्य अल्लाह की पैदा की हुई एक सृष्टि है जो अल्लाह के नियत की हुई गति में रहने का पाबंद है, तो आख़िर अल्लाह को छोड़ कर सूर्य की पूजा करना क्या अर्थ रखता है ?
यहीं पर हमें इस्लाम की महानता समझ में आती है जिसने हमें सच्चाई से अवगत कराया और सृष्टा और सृष्टि के अंतर को खोल खोल कर स्पष्ट कर दिया, लेकिन खेद की बात यह है कि कुछ लोगों ने अल्लाह की सृष्टि की महानता पर तो चिंतन मनन किया लेकिन उसके पैदा करने वाले की पहचान प्राप्त न कर सके, जिसके कारण सृष्टि को ही भगवान बना बैठे। आवश्यकता तो इस बात की थी कि इनसान अपनी बुद्धि से काम लेकर सच्चाई की तलाश करता लेकिन ऐसा करने की बजाए अपने पूर्वजों की आस्था पर जम गया, यदि स्थिति उन तक ही सीमित रहती तो कोई आपत्ति की बात न थी लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि वह मुसलमानों को भी इसे अपनाने पर विवश करने लगे हैं। भारत के जो राज्य भारतीय जंता पार्टी की छाया में हैं वहाँ स्कूलों में “वंदे मातरम” के साथ “सूर्य नमस्कार” भी बच्चों पर आवश्यक कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में मुसलमानों को चाहिए कि अपने बच्चों को बचपन से ही सही अक़ीदा की शिक्षा देने का प्रबंध करें और ऐसे स्कूल खोले जाएं जहाँ धार्मिक वातावरण में आधुनिक शिक्षा का व्यवस्था किया जा सके।