इस्लाम की विश्वव्यापी शिक्षा ने मुझे इस्लाम स्वीकार करने पर विवश किया
हिदायत का मालिक अल्लाह है वह जिसे चाहता है हिदायत देता है और जिसे चाहता है वंचित रखता है , कितने ऐसे लोग हैं जो इस्लाम के कट्टर दुश्मन थे , इस्लाम के विरोध में एड़ी चोटी की बाजी लगा दी थी, लेकिन इस्लाम की सार्वभौमिक शिक्षा ने अंत में उन्हें मोम बना दिया, जबकि कितने ऐसे लोग हैं, जो किशोरा-वस्था को पहुँचते ही अपने पैत्रिक धर्म से बेज़ार हो गए , और एक दिन प्रकृति की आवाज़ पर लब्बैक कहते हुए इस्लाम को गले लगाने में शान्ति का अनुभव किया .उन्हें शुद्ध प्रकृति के मालिक व्यक्तियों में से नेपाल के मुहम्मद नूर जी हैं जिनकी कहानी में हम सब के लिए शिक्षा है, संदेश है, और समाधान है. तो लीजिए उनके इस्लाम स्वीकार करने की कहानी निम्न में प्रस्तुत की जा रही है :
प्रश्न: सबसे पहले हम चाहेंगे कि पाठकों से अपना परिचय करा दें ?
उत्तर: मेरा नाम ‘ मुहम्मद नूर’ है , नेपाल का निवासी हूँ , मेरा जन्म हिन्दू परिवार में हुआ , मेरा संबंध हिंदुओं की निचली जाति से था . मैं ने पिछले महीने रमजान में इस्लाम स्वीकार करने का सौभाग्य प्राप्त किया है, इस तरह अल्लाह की दया से अब मैं ‘ नर बहादूर ‘ से ‘ मुहम्मद नूर ‘ बन चुका हूँ। .
प्रश्न: इस्लाम तक पहुंचने की यात्रा आपने कैसे तय की ?
उत्तर: बचपन से ही मुझे हिन्दू धर्म से घृणा सी होने लगी थी जिसका बदला मुझे इस्लाम के रूप में मिला अल.हम्दुलिल्लाह। इसका विवरण कुछ यूं है कि जब मैं स्कूल में पढ़ने जाता तो ब्राह्मणों के बच्चे पाइप पर आसानी से उपस्थित होकर पानी पी लेते लेकिन हम सब को दूर रखा जाता यहां तक कि लाइन में लगाकर हमारे हाथों पर पानी रख दिया जाता कि पाइप अछूत न हो जाए।
मेरे पिता अपने परिवार में एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के मालिक हैं, उसके बावजूद जब वे ब्राह्मणों के घर जाते हैं तो उनके घरों में मेरे पिता को बैठने तक की अनुमति नहीं है, हमारे क्षेत्र के ऊंची जाति के हिंदुओं में छूत छात का रोग और जातिय भेदभाव की प्रवृत्ति अब तक बरक़रार है और इसमें कमी आती दिखाई नहीं देती. यह वह पहला मामला हुआ जिसके कारण मैं हिन्दू धर्म को दिल से नापसंद करने लगा।
एक अन्य कारण जो हिन्दुत्व से मेरी घृणा की वजह बनी वह हिन्दू धर्म में रोज़ाना के हिसाब से त्योहारों का पाया जाना है जो वास्तव में आश्चर्यजनक मामला है, त्योहार के अवसर पर सबको विभिन्न प्रकार की व्यवस्था करनी पड़ती है , विशेष रूप में बच्चों लिए नए कपड़े बनवाना और बाजार से खान-पान की विभिन्न वस्तुयें ख़रीदना ताकि त्योहार भलीभंति मनाया जा सके। मालदारों का तो कोई मस्ला नहीं है वह जब और जितना चाहें उत्सव सहायक वस्तुयें ख़रीद कर घर ले आएं, रहे गरीब और निर्धन तो हमारा अनुभव बताता है कि वह इस अवसर पर पिस कर रह जाते हैं , बच्चों की माँग पर माता पिता साहूकारों से ब्याज पर पैसे लेते हैं ताकि उन्हें त्योहार की खुशी में शरीक किया जा सके, लेकिन जब निर्धारित अवधि पर ब्याज के साथ पैसे का भुगतान न हो सका और ब्याज पर ब्याज चढ़ गया तो साहूकार ऐसे लोगों को बंधुवा गुलाम बनाकर अपने घर ले जाते हैं और जैसे चाहते हैं उन से काम लेते हैं. जाहिर है कि ऐसा रुसवाई धर्म के रीति रेवाज को अपनाने के कारण ही नसीब हुई है।
एक तीसरा कारण जो मुझे इस्लाम से निकट करने में सहायक बना वह यह कि रोजगार के उद्देश्य से चार साल तक कतर में रहा जहां मेरे चाचा ने इस्लाम का सौभाग्य प्राप्त की है, मैंने इस्लाम स्वीकार करने के बाद उनके अंदर बड़ा बदलाव देखा और उनकी बातें भी मुझे सुनने का अवसर मिला जिसकी वजह से इस्लाम को पसंद करने लगा . उसके बाद से जब कभी मुझे फुर्सत मिलती टीवी पर इस्लामी चैनलज़ का दर्शन करने लगता . कुवैत आने के बाद धार्मिक मुसलमानों के साथ रहने और उनकी इबादतों को क़रीब से देखने का अवसर मिला, इस तरह इस्लाम से मेरी रुचि बढ़ती गई अंततः मैंने कई मुसलमान साथियों से इस्लाम स्वीकार करने के विषय पर चर्चा की लेकिन किसी ने मेरा सही मार्गदर्शन नहीं किया, अचानक एक दिन मैं ने अपने एक साथी से कहा कि मैं इस्लाम स्वीकार करना चाहता हूँ , उसने मुझे IPC में पहुंचा दिया,जहां मुझे इस्लाम के बारे में जानकारी दी गई. इस तरह मैं ने वहीं पर इस्लाम स्वीकार कर लिया .
प्रश्न: स्वीकार इस्लाम करने का प्रभाव आपके परिवार पर कैसा पड़ा और आपके साथ इन दिनों उनका व्यवहार कैसा है ?
उत्तर: इस्लाम स्वीकार करने के बाद ही मैं ने इसका उल्लेख अपने माता पिता और पत्नी से से कर दिया क्योंकि मैं खुद जानता था कि वे हिन्दू धर्म का विशेष पालन नहीं करते. पत्नी पर इस्लाम पेश किया तो वह बिना किसी संकोच के इस्लाम स्वीकार करने के लिए सहमत हो गई और कलिमा पढ़ कर इस्लाम को गले लगा लिया लेकिन माता पिता को आमंत्रित किया तो उनके अंदर अभी तक झिझक पाई जा रही है , मेरी कोशिश जारी है , और मुझे पूरा विश्वस है कि मेरे माता पिता भी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।
मेरे पास दो लड़के और दो लड़कियां हैं , बड़ी लड़की 16 वर्ष की है जो नर्स की शिक्षा ग्रहण कर रही है . मैं ने उसे भी इस्लाम की दावत दी है , करीब है कि वह भी इस्लाम स्वीकार कर ले.
प्रश्न: जीवन में आपकी दिली इच्छा क्या है?
उत्तर: जीवन में मेरी दिली इच्छा यह है कि मैं इस्लाम का दाई (प्रचारक) बनूं , मैं चाहता हूं कि इस्लाम को पूरी तरह सीखूं, इस्लाम की सारी शिक्षाओं को व्यावहारिक जीवन में जगह दूं, उसके बाद उन सभी लोगों तक अल्लाह का संदेश पहुँचाउं जो अब तक अंधविश्वास में भटक रहे हैं।
प्रश्न: मुसलमानों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे ?
उत्तर: मुसलमान भाइयों और बहिनों से हम कहना चाहेंगे कि इस्लाम अल्लाह का बहुत बड़ा उपकार है जिससे वे परिपूर्ण हैं और जिस पर वे पैदा हुए हैं, उसके महत्व को पहचानें, आज कितने ऐसे मुसलमान हैं जो इस्लाम से कोसों दूर हैं, अगर उन्हें इस्लाम के वास्तविक मूल्य का अनुभव होता तो इस प्रकार निरुद्देश्य जीवन न बिताते, उन्हें चाहिए कि स्वयं इस्लाम को अपने व्यवहारिक जीवन में बरतने की कोशिश करें. अपने परिवार में इस्लामी वातावरण बनाएँ, और इस्लाम के संदेश से उन लोगों को अवगत करें जिन तक इस्लाम की शिक्षाओं अब तक न पहुंच सकी है।