कर्म नियत पर आधारित है।

सहीह बुखारीउमर बिन खत्ताब (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” निःसंदेह कर्मों संकल्प (हृदय की ईच्छा) पर आधारित है और प्रति व्यक्ति के संकल्प के आधार पर अच्छे या बुरे कर्मों का बदला मिलेगा। तो जिसने अल्लाह और रसूल के खातिर अपने घर बार को छोड़ (हिज्रत) कर दुसरे गाँव में निवास किया, तो उस का घर बार छोड़ना अल्लाह के लिए हुआ और जिसने दुनिया को पाने या किसी स्त्री से विवाह के लिए (हिज्रत किया) घर बार छोड़ा, तो उस का घर बार छोड़ना दुनियावी लक्ष्य के लिए हुआ”।   (सही बुखारीः 1)

यह हदीस धर्म के महत्वपूर्ण नियमों को प्रचलित करता है। प्रत्येक मुस्लिम को किसी भी कर्म के करने से पहले सर्व प्रथम अपने नियत को स्वयं अल्लाह तआला के लिए शेष कर ले। कोई भी कार्य केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए करे। लोगों को खुश करने या दुनिया के किसी लाभ को प्राप्त करने का लक्ष्य न रखे, किसी मानव को खुश करने के इरादा से न करे, जो कर्म भी अल्लाह की प्रसन्नता के सिवा के लिए हो तो वह अकारथ हो जात है।

इस हदीस में कई उपदेश हैं।

प्रथम उपदेशः  मानव के कर्म और कर्तव्य उसी समय अल्लाह तआला के पास स्वीकारित हैं, जब मानव अपने कर्म और कर्तव्य करते समय अपनी नियत को केवल अल्लाह की खुशी और प्रसन्नता पर निर्भर रखे। यदि उसने अच्छे कर्म करने की नियत की और वह कर्म केवल अल्लाह की प्रसन्नता के कारण किया तो उसे पुण्य प्राप्त होगा। अगर्चे के वह कर्म न कर सका। यदि उसने बुरे कर्म करने की नियत की तो उसका बदला मिलेगा।

दुसरा उपदेशः  नियत का अर्थः इरादा करना, इच्छा करना या दृढ़ संकल्प को नियत कहते हैं। यह दृढ़ संकल्प केवल अल्लाह की प्रसन्नता के खातिर की जाए, जिस में अपने कर्म के बदले की आशा केवल अल्लाह से ही रखना चाहिये। इसी प्रकार जो कर्म कर रहा है, उस चीज़ के करने का इरादा करे। उदाहरण वह अल्लाह के लिए नमाज़ पढ़ने का इरादा कर रहा है तो वह नियत करे कि वह फर्ज नमाज़ या सुन्नत नमाज, चार या दो रक्आत पढ़ने जा रहा है। इसी प्रकार दान और सद्का और खैरात करते समय फर्ज या नफली की नियत करे।

इसी प्रकार इबादत को आम आदत से अलग करे, जैसे कि स्नान और गुस्ल कई प्रकार के होते हैं, उदाहरण या तो वह गुस्ल गरमी दूर करने या फरेश होने के लिए करेगा, या अपवित्र होने के कारण पाकी सफाई के लिए गुस्ल करेगा, मृत शव को गुस्ल दिलाने के कारण या उमरा या हज्ज के लिए गुस्ल करेगा। तो इन स्थितियों में उस की नियत करे और अपने इस गुस्ल पर अल्लाह और उसके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के आज्ञाकारी पर अल्लाह से सवाब की आशा रखे।

तीसरा उपदेशः  जो व्यक्ति जिस नियत से जो कार्य करेगा तो उसे उसी के अनुसार सवाब और पुण्य प्राप्त होगा। यदि वह नेक कार्य करने की नियत अल्लाह की खुशी प्राप्त करने के लक्ष्य से करता है तो उसे बहुत सवाब हासिल होगा यदि वह नेक कार्य दुनिया के किसी लक्ष्य को पाने की नियत से करता है तो दुनिया ही में  उसे वह चीज़ हासिल हो सकती है या हासिल नहीं भी हो सकती परन्तु दोनों स्थितियों में अल्लाह के पास पुण्य प्राप्त नहीं होगा। बल्कि वह पापी होगा जिसे अल्लाह अपने चाहत के अनुसार सजा देगा या माफ कर दे। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के इस हदीस पर गम्भीरता के साथ विचार करें।

من تعلَّمَ عِلمًا مِمَّا يبتَغى بِهِ وجهُ اللَّهِ ، لا يَتعلَّمُهُ إلَّا ليُصيبَ بِهِ عَرَضًا منَ الدُّنيا ، لم يجِد عَرفَ الجنَّةِ يومَ القيامةِ. (أبو هريرة:  مسند الإمام أحمد الصفحة: 16/193)

जिसने कोई ऐसा इल्म (ज्ञान) सिखा जिस के माध्यम से अल्लाह की खुशनूदी हासिल की जाती है परन्तु उसने उस ज्ञान को हासिल करने का लक्ष्य दुनिया का लाभ प्राप्त करना था तो वह क़ियामत के दिन जन्नत की सुगंध नहीं पाएगा। (मुस्नद अहमदः 193/16)

इस के अलावा भी बहुत सी हदीसों प्रमाणित हैं जो स्पष्ट करती हैं कि मानव अपने प्रत्येक कार्य में केवल अल्लाह की खुशी का लक्ष्य रखे। ताकि उसे दुनिया और आखिरत में सफलता मिले।

चौथा उपदेशः  जो भी नेक कार्य किया जाता है और उस में दिखलावा पाया जाए तो उसकी तीन हालात हो सकते हैं।

पहली हालतः जो नेक कर्म असल दिखलावा के लक्ष्य से ही किया जाए। जो केवल लोगों को दिखलाने के लिए किया जाए। जिस का मक्सद दुनिया का कोई लाभ हासिल करना हो। अल्लाह तआला की खुशी मुराद न हो तो ऐसे कर्म का कोई फाइदा नहीं होता है। बल्कि ऐसे कर्म करने वालों पर अल्लाह की नाराजगी और प्रकोप नाज़िल होती है। जैसा कि अल्लाह के रसूल के समय में मुनाफिक़ीन की हालत होती थीं।

दुसरी हालतः नेक कर्म अल्लाह की खुशी के लक्ष्य से की जाए परन्तु फिर उस में अल्लाह तआला के साथ किसी दुसरे व्यक्ति को शामिल कर लिया जाए। तो ऐसा कर्म और अमल का भी कोई फाइदा और लाभ नहीं बल्कि उसका अमल नष्ट और अकारथ हो जाता है। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने भी शिर्क करने वालों के प्रति अल्लाह का कथन हदीस कुद्सी के माध्यम से वर्णन किया हैः

قال اللهُ تباركَ وتعالَى : أنا أغنَى الشركاءِ عن الشركِ. مَن عمِل عملًا أشرك فيه معِي غيرِي، تركتُه وشركُه- ( صحيح مسلم – الرقم: 2985)

अल्लाह  तबारक व तआला का फरमान हैः मैं शिर्क करने वालों के शिर्क से बेनयाज़ हूँ तो जिसने कोई ऐसा कर्म किया जिस में उसने किसी को मेरे साथ भागीदार बनाया तो मैं उसे भी और उसके शिर्क को भी छोड़ देता हूँ।  (सही मुस्लिमः 2985)

तीसरी हालतः नेक कर्म केवल अल्लाह की खुशी के खातिर आरम्भ किया जाए परन्तु कर्म के बीच में दिखलावा दाखिल हो जाए, तो वह इस विचार को खत्म करे और फिर अल्लाह की खुशी पर केन्द्रित कर दे। तो कोई बात नहीं, यदि वह दिखलावा विचार खत्म नहीं किया बल्कि उसी में लगा रहा तो ऐसे व्यक्ति के अमल के स्वीकारित और अस्वीकारित होने में विद्वानों के बीच मतभेद है। सही यही है कि उसका अमल अकारथ नहीं होगा बल्कि अपनी नियत के अनुसार बदला पाएगा। बदला देनेवाला अल्लाह दिलों के भेद और हृदय की बातों और नियत को जानने वाला है जो उसी के अनुसार बदला देगा।

परन्तु नेक कर्म के साथ कुछ दुनिया का लाभ आ जाए तो पुण्य कम प्राप्त होगा , पूरा कर्म अकारथ और नष्ट न होगा।

इसी प्रकार नेक कर्म करने के कारण यदि अल्लाह ने लोगों के हृदय में उसकी मुहब्बत और प्रशंसा डाल दी है तो उसे खुशी प्राप्त होती है तो इस में कोई बात नहीं। जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की हदीस से प्रमाणित है।

قيل لرسولِ اللهِ صلَّى اللهُ عليه وسلَّمَ : أرأيتَ الرجلَ يعملُ العملَ من الخيرِ ، ويحمدُه الناسُ عليه ؟ قال ” تلك عاجلُ بُشرى المؤمنِ .(صحيح مسلم: 2642)

अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से प्रश्न किया गया कि आप का क्या कहना है कि एक व्यक्ति भलाई का कार्य करता है और लोग उसकी उस कार्य पर तारीफ करता है, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) फरमायाः यह मुमिन की पेशगी खुशखबरी है। (सही मुस्लिमः 2642)

पांचवां उपदेशः  नेक कार्य करने वाले के ईमान, इख्लास और नियत के अनुसार नेक कर्मों का पुण्य अधिक से अधिकतम हो जाता है। बल्कि केवल नेक कर्म के करने की नियत के कारण पुण्य प्राप्त होता है अगर्चे कि वह कार्य किसी उचित कारण से कर न सका हो। इस हदीस पर विचार करें।

قال رسولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم: إذا مرضَ العبدُ، أو سافرَكُتِبَ له مثلُ ما كان يعملُ مُقيمًا صحيحًا. ( صحيح البخاري: 2996)

अबू ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमायाः जब बन्दा बिमार होता है या यात्रा पर जाता है तो उस के लिए उतना ही पुण्य लिख दिया जाता है जितना कि वह स्वस्थ और निवास के समय नेक कर्म करता था। ( सही बुखारीः 2996)

नियत के अधार पर कर्मों का बदला मिलता है जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का इर्शाद है।

 من أتى فراشَه، و هو ينوي أن يقومَ يصلي من الليلِ، فغلبتْه عينُه حتى أصبحَ، كُتِبَ له ما نوى، و كان نومُه صدقةً عليه من ربِّه. (صحيح الترغيب: الشيخ الألباني: 601)

अबू दरदा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जो व्यक्ति अपने बिस्तर पर सोने के लिए आया और उसकी नियत है कि रात में उठ कर तहज्जुद की नमाज़ पढ़ेगा परन्तु वह निन्द से उठ न सका और फजर का वक्त हो गया तो उसे उतना पुण्य प्राप्त होगा जितना उसने नियत किया था। और उसकी निन्द उसके रब्ब की ओर से सद्का होगी। (सही तर्गीब – अल्लामा अल्बानीः 601)

ऊपरयुक्त दोनों हदीसें स्पष्ट करती हैं कि नियत के अनुसार पुण्य प्राप्त होता है यदि नियत करने वाला वह कर्म उचित कारण से न भी कर सका हो।

छटा उपदेशः  व्यवहार, सदाचार, व्यापार एवं दुनियावी कार्यों में भी नियत के अनुसार पुण्य प्राप्त होता है। जिस की जैसी नियत होगी, उसी के अनुसार उसे नेकी मिलेगी। बहुत से लोग अपने दुनिया के कार्यों में अल्लाह की खुशी की नियत नहीं करते हैं। जिस कारण वह बहुत ज़्यादा सवाब प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। ध्यानपुर्वक इस हदीस पर विचार करें।

عادني رسولُ اللهِ (صلَّى اللهُ عليه وسلَّم)  في حَجَّةِ الوداعِ، من شكوى أشفَيتُ منها على الموتِ، فقلتُ : يا رسولَ اللهِ، بلَغ بي ما تَرى من الوجَعِ، وأنا ذو مالٍ، ولا يرِثُني إلا ابنةٌ لي واحدةٌ، أفأتصدَّقُ بثلُثَي مالي ؟ قال : ( لا ) . قلتُ : فبشَطرِه ؟ قال : ( الثلُثُ كثيرٌ، إنك أن تذَرَ ورثتَك أغنياءَ خيرٌ من أن تذرَهم عالةً يتكفَّفونَ الناسَ، وإنك لن تنفِقَ نفقَةً تبتَغي بها وجهَ اللهِ إلا أُجِرتَ، حتى ما تجَعلُ في في امرأتِك………  (صحيح البخاري: 6373)

साद बिन अबू वकास (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मेरी बिमार पुरसी की जिस बिमारी में मुझे मृत्यु का भय प्रतीत हुआ। तो मैं ने कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे बहुत दर्द है, मैं बहुत धनी हूँ, और मेरे पास केवल एक ही लड़की है, तो क्या मैं अपना दो तेहाई माल सदका कर सकता हूँ ?, तो आप  ने फरमायाः नहीं. तो मैं ने कहा, आधा माल सदके में दे सकता हूँ, तो आप ने फरमायाः एक तेहाई भी बहुत है , बेशक तुम अपने संतान को धनीवान छोड़ो यह बहुत बेहतर है कि तुम अपनी संतान को गरीब छोड़ो जो लोगों से सवाल करते हुए भीक मांगा करे और बेशक तुम जो कुछ भी खर्च करते हो और उस पर अल्लाह की खुशी हासिल करने की नियत करते हो तो तुम्हें पुण्य हासिल होगा, यहां तक कि तुम अपने पत्नी के मुंह में एक लुक्मा भी खिलाओगे तो तुम्हें नेकी मिलेगी।   ( सही बुखारीः 6373)
सुब्हानल्लाह! यदि मानव अपने जीवन के प्रत्येक कार्य करते समय अल्लाह की खुशी और आदेश के पालन की नियत कर ले तो उस के उस कार्य पर सवाब प्राप्त होता है। वह हमेशा नेकियां ही कमाएगा। हम हमेशा अपनी नियतों को अल्लाह तआला की खुशी पर आधारित कर लें, यक़ीनन हम दुनिया और आखिरत में सफल होंगे।

सातवां उपदेशः  अल्लाह के खातिर अपने गाँव या देश को त्याग कर दुसरे गाँव या देश में निवास करना बहुत पुण्य का काम है। जिसे इस्लामी परिभाषा में हिज्रत कहते हैं। अपने प्रिय जन्म धरती को छोड़ कर दुसे धरती पर आवास करना बहुत कठिन काम है, परन्तु अल्लाह के धर्म की सुरक्षा के लिए दुसरे स्थान पर आवास करना बहुत ही उत्तम कर्मों में से शुमार होता है। जो हिज्रत अल्लाह की खुशी के खातिर करने का हुक्म क़ियामत तक बाकी है।

अल्लाह के खातिर हिज्रत करने का आदेश दो प्रकार के हैं।

अनिवार्य हिज्रतः जिस देश में मुस्लिम अपनी इबादतों को अदा नहीं कर सकते, अपने दीन के अनुसार जीवन व्यतीत नहीं कर सकते या अपने और अपने बच्चों के लिए खतरा महसूस करते हैं, तो ऐसे देश से हिज्रत करना अनिवार्य हो जाता है। जैसा कि अल्लाह का फरमान है।

إِنَّ الَّذِينَ تَوَفَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ ظَالِمِي أَنفُسِهِمْ قَالُوا فِيمَ كُنتُمْ ۖ قَالُوا كُنَّا مُسْتَضْعَفِينَ فِي الْأَرْ‌ضِ ۚ قَالُوا أَلَمْ تَكُنْ أَرْ‌ضُ اللَّـهِ وَاسِعَةً فَتُهَاجِرُ‌وا فِيهَا ۚ فَأُولَـٰئِكَ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَسَاءَتْ مَصِيرً‌ا. (سورة النساء: 97)

जो लोग अपने-आप पर अत्याचार करते है, जब फ़रिश्ते उस दशा में उनके प्राण ग्रस्त कर लेते है, तो कहते है, “तुम किस दशा में पड़े रहे ?” वे कहते है, “हम धरती में निर्बल और बेबस थे।” फ़रिश्ते कहते है, “क्या अल्लाह की धरती विस्तृत न थी कि तुम उसमें घर-बार छोड़कर कहीं ओर चले जाते?” तो ये वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है। – और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है। (4-सूरह निसाः 97)

सिवाए कि मजबूर और गरीब लोग जो वहां से हिज्रत करने की क्षमता नहीं रखते हैं। ऐसे लोगों को हिज्रत करने से छुट दी गई है। जैसा कि अल्लाह का कथन है।

إِلَّا الْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّ‌جَالِ وَالنِّسَاءِ وَالْوِلْدَانِ لَا يَسْتَطِيعُونَ حِيلَةً وَلَا يَهْتَدُونَ سَبِيلًا – فَأُولَـٰئِكَ عَسَى اللَّـهُ أَن يَعْفُوَ عَنْهُمْ ۚ وَكَانَ اللَّـهُ عَفُوًّا غَفُورً‌ا (سورة النساء: 99)

सिवाय उन बेबस पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के, जिनके बस में कोई उपाय नहीं और न कोई राह पा रहे है; –  तो सम्भव है कि अल्लाह ऐसे लोगों को माफ कर दे; क्योंकि अल्लाह  बहुत माफ करने वाला और बड़ा क्षमाशील है। (4-सूरह निसाः 99)
मुस्तहब हिज्रतः जिस देश में शिर्क और बिद्आत या व्याभिचार और पापों का प्रचलन बहुत ज़्यादा हो तो ऐसे देश से हिज्रत करना उत्तम और मुस्तहब है। ऐसे देश तथा मुल्क की ओर हिजरत करना चाहिये , जहां सुन्नत और नेक कार्य करना सरल और आसान हो। जैसा कि अस्लाफ से इस प्रकार का हिज्रत प्रमाणित है।

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