नबियों की इतिहास में हिजरत एक ऐसा निःस्वार्थ घटना है। जो रसूलों (अलैहिमुस्सलाम) की सुन्नत रही है। जिस पर अमल कर के रसूलों (अलैहिमुस्सलाम) ने अल्लाह तआला की प्रसन्नता प्राप्त की। अपनी दीन की सुरक्षा की खातिर अपने घर तथा परिवार को त्याग दिया। अल्लाह की खुशी के लिए अपने मन को अल्लाह के धर्म के अनुसार चलने के लिए मजबूर कर दिया ताकि अल्लाह की खुशी प्राप्त हो।
इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने लोगों को अल्लाह की ओर बुलाया जब उन की समुदाय के लोगों ने उनकी बात न मानी और आप के जान के दुश्मन हो गए तो अल्लाह के आदेश से अपना इलाका छोड़ कर दुसरे शहर की ओर हिजरत किया, मूसा (अलैहिस्सलाम) ने हिजरत किया और अन्तिम नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हिजरत किया।
सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हिजरत का संछिप्त में कुछ विवरण किया जाता है।
सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को दीन को खातिर सताया गयाः
जब रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लोगों को अललाह की इबादत की ओर दावत दिया और लोगों को मूर्ति , पत्थर और अन्य वस्तुओं की इबादत से मना किया और इस्लाम स्वीकार करने वालों की संख्या प्रति दिन अधिक से अधिक होने लगी, जिस के कारण इस्लाम के शत्रु आग बगोला होने लगे और इस्लाम स्वीकार करने वाले को हर प्रकार से सताने लगे, तक्लिफ देने लगे, ताकि लोग डर कर, भय खा कर इस्लाम से दूर रहें, इस्लाम स्वीकार न करें, इन में से कुछ का उदाहरण देता हूँ। सुमय्या (रज़ियल्लाहु अन्हा) नामक एक महीला को उनके गुप्तांग पर बरछा मार कर शहीद कर दिया गया। वह इस्लाम में शहीद होने वाली सब से पहली महीला थीं। उन के पुत्र अम्मार और पति यासिर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) को भी बहुत ज़्यादा यातनाऐं दी गईं। बेलाल (रज़ियल्लाहु अन्हु) के मालिक ने उनके गले में रस्सा डाल कर बदमाश लड़को के हाथ में दे दिया जो उनको पर्वतों, गलियों में घसीटते फिरते थे , मक्का के गर्म रेतों पर उन्हें लिटा कर गर्म पत्थर उन के सीने पर रख दिया जाता था। परन्तु वह यही पुकारते थे कि ” अल्लाह एक है, अल्लाह एक है”। खब्बाब बिन अरत (रज़ियल्लाहु अन्हु) जब मुसलमान हो गये तो धरती पर आग के शोले बिछा कर उस पर उन को लिटा दिया गया और एक दृष्ट व्यक्ति उनके सीने पर पैर रखे रहा ताकि आप करवट न ले सके, यहाँ तक कि आग बुझ गई और बहुत वर्षों के बाद उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने उनका पीठ देखा तो पूरे पीठ पर सफेद दाग़ ( धब्बे) थे। ज़ुबैर बिन अव्वाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने जब इस्लाम स्वीकार किया तो उन के चाचा ने चटाइ में लपैट कर उनके नाक में धूंवां देते थे। और सईद बिन जैद (रज़ियल्लाहु अन्हु) को रस्सियों में जकड़ दिया जाता था। यह कुछ उदाहरण है जो आप के समक्ष बयान किया गया है।
हब्शा की ओर हिजरत करने वाले प्रथम दलः
इसी तरह की बहुत सी कठिनाइंया, यातनाएं और कष्ट प्रत्येक दिन यह नव मुस्लिम झेलते थे। परन्तु यह लोग इस्लाम पर डटे रहे और लोगों को इस्लाम की ओर बुलाते रहे। इसी कारण प्रति दिन इस्लाम स्वीकार करने वालों की संख्या बढ़ रही थीं, जिसे देख कर इस्लाम विरोधि दल मुसलमानों पर बहुत ज़्यादा अत्याचार, ज़ुल्म और ज़्यादती करने लगे, जब इस्लाम के शत्रू की ओर से मुसलमानों पर मुसीबतें ,तकलिफें और अत्याचार अधिक से अधिक होने लगे तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने नबूव्वत के पांचे वर्ष मुसलमानों को अपने धर्म की रक्षा के कारण हब्शा देश की ओर हिजरत करने की अनुमति दे दी। तो रजब के महीने सन 5 नबुव्वत में उसमान (रज़ियल्लाहु अन्हु) के साथ बारह पुरूष तथा चार महिलाएं अपने घर और धन दौलत को दीन के खातिर बलिदान करके हब्शा की ओर हिजरत किया। ताकि वहाँ जाकर सही तरीके से अल्लाह की इबादत कर सके। यह इस्लाम में हिजरत करने वाले सर्वप्रथम दल था जिन्हों ने अपने धर्म की सुरक्षा के खातिर घर बार, धनदौलत, परिवार को त्याग कर हबशा की ओर हिजरत किया। परन्तु एक झूटी खबर मिली कि मक्का वासी इस्लाम स्वीकार कर लिए हैं तो वह लोग मक्का लौट आए। अब मक्का वासी इन नव मुस्लिमों को बहुत ज़्यादा कष्ट देने लगे। उन पर अत्याचार करने लगे।
हब्शा की ओर हिजरत करने वाले दुसरा दलः
तो दोबारा इस्लाम धर्म की सुरक्षा के कारण मक्का छोड़ कर हब्शा की ओर 83 पुरूष और 18 या 19 महिलाएं हिजरत के लिए निकल पड़े और हब्शा के राजा नजाशी की शरण ली। किन्तु यह शत्रू वहाँ भी पहुंच गए और राजा को मुसलमानों के विरोध उकसाने लग और राजा से इन लोगों को अपने साथ मक्का वापस ले जाने के लिए अनुमति मांगा। परन्तु वह बहुत ही अच्छा राजा था, इस लिए उसने मुसलमानों को बुलाया। और वास्तविक्ता मालूम की तो जअफर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने इस्लाम की शिक्षा , अल्लाह की पूजा और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के अच्छे स्भाव के माध्यम से इस्लाम और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का परिचय कर वाया जिस से नजाशी राजा बहुत प्रभावित हुआ और मक्का वालों को डांट कर वापस भेज दिया।
मक्का वासी आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बहुत सताने और यातनाए देने लगे, आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के अनुयायियों को कष्ट देने लगे, उस समय अल्लाह तआला ने भी ऐसी आयतें उतारी जिस के माध्यम से मुसलमानों को तसल्ली और सब्र करने पर प्रोत्साहित किया। ताकि वे सब्र करके जन्नत में उत्तम से उत्तम स्थान प्राप्त कर सकें, इसी समय की इस आयत पर ध्यान दें,
أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَأْتِكُم مَّثَلُ الَّذِينَ خَلَوْا مِن قَبْلِكُم مَّسَّتْهُمُ الْبَأْسَاءُ وَالضَّرَّاءُ وَزُلْزِلُوا حَتَّىٰ يَقُولَ الرَّسُولُ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ مَتَىٰ نَصْرُ اللَّـهِ أَلَا إِنَّ نَصْرَ اللَّـهِ قَرِيبٌ ﴿البقرة: ٢١٤﴾
” क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश पा जाओगे, जबकि अभी तुम पर वह सब कुछ नहीं बीता है जो तुमसे पहले के लोगों पर बीत चुका ? उनपर तंगियाँ और तकलीफ़े आई और उन्हें हिला मारा गया यहाँ तक कि रसूल बोल उठे और उनके साथ ईमानवाले भी कि अल्लाह की सहायता कब आएगी? जान लो! अल्लाह की सहायता निकट है ” (सूरह अल-बकराः 214)
इसी तरह दुसरी आयत में भी अल्लाह तआला ने मुसलमानों को स्पष्ट रूप से तसल्ली देते हुए फरमाया है।
ألم ﴿١﴾ أَحَسِبَ النَّاسُ أَن يُتْرَكُوا أَن يَقُولُوا آمَنَّا وَهُمْ لَا يُفْتَنُونَ ﴿٢﴾ وَلَقَدْ فَتَنَّا الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۖ فَلَيَعْلَمَنَّ اللَّـهُ الَّذِينَ صَدَقُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْكَاذِبِينَ . (سورة العنكبوت: 3
अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ (1) क्या लोगों ने यह समझ रखा है कि वे इतना कह देने मात्र से छोड़ दिए जाएँगे कि “हम ईमान लाए” और उनकी परीक्षा न की जाएगी? (2) हालाँकि हम उन लोगों की परीक्षा कर चुके है जो इनसे पहले गुज़र चुके है। अल्लाह तो उन लोगों को मालूम करके रहेगा, जो सच्चे है। और वह झूठों को भी मालूम करके रहेगा। (29- सूरह अल्अन्कबूतः 3)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का ताइफ में इस्लाम की दावतः
इन हालात के बाद रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मक्का से बाहर भी इस्लाम के निमन्त्रण को फैलाने के इच्छुक हुए। और सन 10 नबवी में ताइफ शहर की ओर निकल पड़े जो मक्का से लग भग 90 कि0 म0 पर स्थिर है। इस आशा के साथ कि शायद ताइफ वासी इस्लाम की सच्चाइ को मान कर इस्लाम स्वीकार कर ले। परन्तु इन लोगों ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की बात न मानी और बदमाशों और गुंडो को आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पीछे लगा दिया जिन्हों ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर पत्थर बरसाऐ और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का पूरा शरीर ज़ख्मी हो गया और रक्त बह कर जूते में जम गया। इस के बाद रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने दास जैद बिन हारिसा के साथ एक बाग़िचा (उद्धान) में विश्राम के लिए गए और अपनी परिशानी और बेबसी का गिला, अल्लाह तआला से किया। उस समय अल्लाह तआला के आदेश से पर्वतों का फरिशता प्रकट हुए और कहा यदि आप कहें तो मैं इन ताइफ वासियों को दो पर्वतों के बीच रख कर पीस दूँ, सर्वनाश कर दूँ। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया कि नहीं, यह लोग इस्लाम स्वीकार न किया तो अल्लाह से आशा है कि इन की वंश ज़रूर इस्लाम स्वीकार करेगी और इस्लाम की सेवा करेगी, यह रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दयालुता थी कि पत्थर बरसाने वालों को सही मार्ग पर चलने की प्रार्थना करते हैं, इसके बाद मक्का लौट आए और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के ऊपर मक्का वासी की यातनाए अधिक हो गई। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बहुत परिशान और ग़मों में डूबे हुए थे।
यसरिब का प्रथम दल जिसने इस्लाम स्वीकार कियाः
अल्लाह की ओर निमंत्रण के रास्ते में प्रत्येक प्रकार की कठिनाईयां का समना कर रहे थे। अरब वासी मक्का हज (पवित्र यात्रा) के लिए आते थे। इसी कारण रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इस धार्मिक उत्सव में बहुत ब्यस्त रहते थे। जहाँ भी लोग दिखते, उन के पास तश्रिफ ले जाते, उन पर इस्लामी शिक्षा पेश करते, अपने नबी होने की घोषणा करते, एक अल्लाह की इबादत तथा उपासना की ओर लोगो को बुलाते, एक अल्लाह की इबादत और पूजा की ओर निमंत्रण करने में लोगों से सहायता और समर्थन की अपील करते थे। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) इसी कार्य में व्यस्त रहते थे। सन 11 नबवी में यस्रिब (जो मदीना का पूराना नाम है) के छे लोग हज्ज के लिए मक्का आए थे, और उक़्बा के स्थान पर उन की मुलाकात हुई, उन लोगों पर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी बात पेश की, जिसे सुन्ते ही वह लोग एक दुसरे की ओर देखा और इस्लाम स्वीकार कर लिया क्योंकि उन लोगों ने यस्रिब में यहूदियों को कहते हुए सुना था कि एक नबी (अल्लाह का संदेष्टा) प्रकट होन वाला है और हम लोग उस पर ईमान और विश्वास लाकर तुम लोगों को सर्वनाश करेंगे, इस लिए जब इन लोगों ने आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का नबी होने की घोषणा को सुना तो बिना किसी झिझक के इस्लाम स्वीकार कर लिया। इस पुण्य के कार्य में विलंभ न किया।
अक़बा का प्रथम प्रतिज्ञाः
दुसरे वर्ष सन 12 नब्वी में यस्रिब के 12 व्यक्ति हज्ज के लिए मक्का मुकर्रमा आऐ और इन लोगों ने उक़्बा के स्थान पर आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हाथों पर बैत करते हुए इस्लाम स्वीकार किया और इन लोगों के साथ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुस्अब बिन उमैर (रज़ियल्लाहु अन्हु) को इस्लामी शिक्षा और लोगों को इस्लाम का परिचय कराने के लिए यस्रिब भेज दिया जो इस्लामी शिक्षा के सब से पहले शिक्षक बने जो दुसरे शहर में जा कर इस्लाम की ओर निमंत्रण किया। मुस्अब बिन उमैर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने बहुत उत्तम रूप से यस्रिब में इस्लाम का परिचय कराया जिस कारण लोग इस्लाम के साया में दाखिल होते गये।
अक़बा का दुसरा प्रतिज्ञाः
सन 13 नब्वी(622 ईस्वी) ज़िल्हिज्जा के महीने में यस्रिब के सत्तर (70) से अधिक मुसलमान हज्ज के लिए मक्का मुकर्रमा आऐ और रात की तारीकी में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से मुलाक़ात किया और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सब सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) को यस्रिब तश्रिफ लाने को निमंत्रण दिया। उस समय आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के चाचा अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हु) जो कि मुस्लिम नही हुए थे यस्रिब वासियों से कहा और कठोर वचन लिया, कि तुम लोग रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की भरपूर सहायता तथा मदद करोगे, सब लोगों ने एक जुट हो कर वचन दिया और बैत किया कि हम मरते दम तक रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का साथ देंगे, प्रत्येक प्रकार से समर्थन करेंगे। चुनांचि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उन में से बारा व्यक्तियों को अपने अपने समुदाय का निग्रां और जिम्मेदार नियुक्त किया।
सहाबा का मदीना की ओर हिजरत आरम्भ करनाः
इस पवित्र प्रतिज्ञा के पश्चात रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने साथियों को यस्रिब की ओर हिज्रत करने की अनुमति दे दी। सहाबा किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) यस्रिब की ओर अपने धर्म की सुरक्षा के कारण धन दौलत तथा घड़ बार छोड़ कर हिजरत करने लगे। परन्तु मक्का के शत्रु मुसलमानों को यस्रिब जाने से प्रत्येक प्रकार से रोकने लगे, उन के रास्ते में रोड़े अटकाने लगे। कुछ मुसलमानो को मक्का वासियों ने बांध कर रख दिया कि वह मक्का छोड़ कर निकल न सके। उन में से कुछ का उदाहरण पेश करता हूँ। सुहैब (रज़ियल्लाहु अन्हु) जब मक्का छोड़ कर यस्रिब की ओर हिजरत करने का इच्छा किया तो मक्का वासी उस के पास आए और कहा धनदौलत के साथ तुम्हें वापस नहीं जाने देंगे तो सुहैब (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने कहा यदि मैं सारा धनदौलत तुम लोगों को ही दे दूँ तो तुम लोग मुझे हिजरत करने दोगे। तो मक्का वासियों ने उत्तर दिया हाँ, तो सुहैब (रज़ियल्लाहु अन्हु) सारा धनदौलत उन ही लोगों को दे कर यस्रिब की ओर हिजरत किया। इसी प्रकार एक और अबू सलमा (रज़ियल्लाहु अन्हु) मक्का से यस्रिब की ओर हिजरत कर के जाने लगे तो उन के परिवार वाले आऐ और बेटा को छीन कर ले गये और ससुराल वाले आकर पत्नी को छीन कर ले गये परन्तु वह एकेले ही अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए हिजरत के लिए यस्रिब की ओर निकल पड़े, इसी तरह दो तीन महीने के बीच सारे मुसलमान अपना घर बार तथा धनदौलत छोड़ कर मक्का से यसरिब की ओर हिजरत कर गये सिवाए कमज़ोर और गरीब मुसलमान और अबू बकर और अली बिन अबी तालिब और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के क़त्ल करने की योजनाः
जब मक्का के शत्रू ने देखा कि मुसलमान यसरिब जा कर खुश हैं और अपने धर्म के अनुसार जीवन बीता रहें और प्रति दिन उनकी संख्यां बढ़ती जा रही है तो मक्कावासी ने एक सभा का आयुजित किया जिस में रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को जान से मार देने का निर्णय लिया गया। इस मिटींग के अनुसार प्रत्येक क़बीले (समुदाय) का एक एक पहलवान का चयन किया गया जो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर एक साथ आक्रमण कर के क़त्ल करना था ताकि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के क़त्ल करने का अपराध पूर्ण क़बीले पर आता और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समुदाय वाले इन पूर्ण क़बीले से लड़ने की क्षमता न रखते परन्तु अल्लाह तआला ने इस पूरी योजना की सूचना रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को दे दी और मक्का से यसरिब की ओर हिजरत करने की अनुमति भी प्रदान किया। इस लिए रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) दो पहर के समय अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के घर पधारे और मक्का से मदीने की ओर हिजरत की तैयारी का आदेश दे कर दुसरे ज़रूरी कामों को अन्जाम देने के लिए वापस अपने घर आ गये। मक्कावासी आप के शत्रू होने के बावजूद बहुत से लोग अपनी अमानतें आप के पास रखते थे। इस लिए अली बिन अबी तालिब (रज़ियल्लाहु अन्हु) को अपने बिस्तर पर रात में लेटने का आदेश दिया और मक्का वासियों की अमानतें भी समझा दिया कि मेरे जाने के बाद सब लोगों की अमानतें लौटा कर मदीना चले आना। मक्का के शत्रू ने अपने नौजानों को रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की हत्या करने के लिए रात में ही आप के घर के पास नियुक्त कर दिया कि जैसे मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) घर से बाहर नमाज़ के लिए निकलें, तुम सब एक साथ आक्रमण कर के जान से मार देना, परन्तु जिस का अल्लाह रक्षक हो, उसे धरती की सम्पूर्ण शक्ति नुक्सान और हानी नही पहुंचा सकती।
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का मदीना की ओर हिजरतः
27 सफर, सन 14 नुबुव्वत ( 12 सेपतेम्बर 622) की रात रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने बिस्तर पर अली बिन अबी तालिब को लेटा कर चादर ओढ़ने का कह कर क़ुरआन की आयतें पढ़ते हुए शत्रूओं के सर पर मिट्टी डालते हुए अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के घर की ओर निकल पड़े। अल्लाह तआला ने इन शत्रूओं को कुछ समय के लिए अन्धा कर दिया जिस कारण वह आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को देख न सके। फिर अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के साथ सौर गुफा में जा कर छुप गये। जब सुबह हो गइ और अली बिन अबी तालिब रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बिस्तर से उठे तो शत्रू आग बगुला हो गये। अली बिन अबी तालिब को एक तमांचा लगाया और आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के प्रति प्रश्न क्या, अली बिन अबी तालिब ने उत्तर दिया, मुझे मालुम नहीं, फिर कुफ्फारे मक्का रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को हर तरफ तलाशने लगे, अपने आदमियों को प्रति दिशा भेज दिया और यह पुरस्कार की घोषणा कर दी कि जो मुहम्मद और अबू बकर को मृतक या ज़िन्दा लाएगा, उसे सौ (100) ऊंट दिया जाएगा। कुछ लोग दुश्मनी और कुछ लोग पुरस्कार के लालच में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) को हर तरफ तलाशने लगे, पहाड़ो, सह्राओं और हर रास्ते को छान डाले, यहां तक कि सौर गुफा तक पहुंच गये, उस समय अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) दुश्मनों को देख कर घबरा गये और कहा, ऐ अल्लाह रसूल! यदि यह लोग अपने पैर के नीचे देखेंगे, तो हमें देख लेंगे, परन्तु रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पुरे विश्वास से साथ उत्तर दिया। डरो नहीं, अल्लाह हमारे साथ है, अल्लाह हर तरह से सुरक्षा करेगा। शत्रू वापस लौट गये, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) उसी गारे सौर में तीन दिन तक छुपे रहे, रात में अबू बकर के बैटे अबदुल्लाह आते और पूरे दिन की सूचना और समाचार सुना देते और नौकर आमिर बिन फुहैरा बक्रियां चराते हुए वहा से गुज़रते तो आप और अबू बकर दूध पी लेते थे और अब्दुल्लाह के आने जाने के पैर के चिह्ना भी मिट जाते। जब शत्रुओं की भाग दौड़ और तलाश तथा जुस्तजू ठंडी पड़ गइ तो तीन रात के बाद रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) सौर गूफा से निकलने का इरादा किया तो अब्दुल्लाह बिन अरीक़त को मज्दूरी पर रखे हुए थे जो पर्वतों और मरूभूमि रास्तों से बहुत ज़्यादा परिचय था, उस के साथ यस्रिब की ओर निकल पड़े।
सोमवार 8 रबीउल-अव्वल सन 14 नबुव्वत 23 सिप्तेम्बर 622 को रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) कुबा पहुंचे, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और अबू बकर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के पहुंचने की खबर सुन कर पूरा यस्रिब खुश्यों से झुम उठा, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को एक झलक देखने के लिए पूरे यस्रिब वासी बेचैन थे। रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) क़ुबा में 24 दिन रूके और यहां इस्लाम की सब से पहली मस्जिद का निर्माण किया। जुमा के दिन रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कुबा से यस्रिब तशरीफ लाए और यस्रिब का नाम परिवर्तन कर के मदीना रखा और अब मदीना मुनव्वरा कहा जाता है। मदीना में प्रवेश करते समय मदीना की छोटी छोटी बालिका खूशी के गीत गा कर आप का स्वागत कर रही थीं। मदीने का प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता था कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अपने घर मेहमान बना कर रखने का शरफ प्राप्त करे, और जा जा कर रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ऊंटनी पकर कर आप से आवेदन भी करते थे। परन्तु रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उत्तर देते थे कि उसे छोड़ दो, यह अल्लाह के आदेश से चल रही है। ऊंटनी चलती रही यहां तक उस स्थान पर पहुंची जहां मस्जिद नब्वी है तो वह बैठ गई, फिर उठकर कुछ चली और वापस आकर उसी स्थान पर बैठ गइ तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नीचे उतरे, सामने अबू अय्युब (रज़ियल्लाहु अन्हु) का घर था, दौड़ कर अबू अय्युब (रज़ियल्लाहु अन्हु) आऐ और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अपने घर ले गये। मस्जिद नब्वी और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का घर तैयार होने तक लग भग छे महीने अबू अय्यूब के घर मेह्मान बने रहे। मदीना पहुंचने के पश्चात सब से रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मस्जिद का निर्माण किया।