दासों और कैदियों के साथ उत्तम व्यवहार
इस्लाम ने बिना बदला के कैदियों, मिसकिनों और अनाथों को खाना खिलाने पर उत्साहित किया है और जिन सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ने यह कार्य किया और अपने इस कार्य पर अल्लाह की प्रसन्नता का इच्छा रखा तो अल्लाह तआला ने उन लोगों की प्रशंसा बयान किया है। अल्लाह तआला का फरमान है।
وَيُطْعِمُونَ الطَّعَامَ عَلَىٰ حُبِّهِ مِسْكِينًا وَيَتِيمًا وَأَسِيرًا – إِنَّمَا نُطْعِمُكُمْ لِوَجْهِ اللَّـهِ لَا نُرِيدُ مِنكُمْ جَزَاءً وَلَا شُكُورًا. (76- سورة الإنسان: 9)
और वे मुहताज, अनाथ और क़ैदी को खाना उसकी चाहत रखते हुए खिलाते है – हम तो केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए तुम्हें खिलाते हैं, तुम से न कोई बदला चाहते हैं और न कृतज्ञता ज्ञापन। (76- सूरह इनसानः 9)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कैदियों के साथ उत्तम व्यवहार और उन्हें स्वतन्त्र करने पर उत्साहित किया है। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फरमान है।
أطعِموا الجائِعَ، وعودوا المريضَ، وفُكُّوا العانِيَ. (صحيح البخاري: 5649)
भूखों को खिलाओ, बिमार की बिमार पुरसी करो और कैदियों को आजाद करो। (सही बुखारीः 5649)
बल्कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने युद्ध के कैदियों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करने का आदेश दिया है।
मुसअब बिन उमैर के भाई अबू उजैज (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि मैं बद्र के कैदियों के साथ था कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार करो, मैं अन्सार की एक जमाअत के पास कैदी था तो जब दिन या रात के खाने का समय होता तो वह लोग हमें रोटी सालन देते थे और खुद केवल खुजूर खा लेते थे। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के आदेश के कारण (मजमूउज्जवाइदः हैस्मीः 6/89) (उन के पास रोटी सालन उत्तम खानों में शुमार होता और केवल खुजूर साधारण खाना माना जाता था)
बल्कि दासों की हत्या करने या उन्हें गैर इन्सानी कष्ट देने से मना फरमाया और उन्हें कत्ल करने या नाहक सताने पर बदले की चेतावनी दी। इस हदीस पर विचार करें कि इस्लाम ने गुलामों की सुरक्षा का किस कदर ख्याल किया है।
”من قتل عبده قتلناه، ومن جدع عبده جدعناه، ومن أخصى عبده خصيناه“ (تخريج مشكاة المصابيح – ابن حجر العقلاني: 3/380)
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः जिस ने किसी दास की हत्या की तो हम हत्यारे को उक के बदले कत्ल करेंगे, और किसी ने किसी दास के किसी अंग को काट दिया तो भी हम उसके उस अंग को काट देंगे और किसी ने किसी दास के नापुंशक बना दिया तो हम भी बदले में उसे नापुंशक बना देंगो। (तख्रीज़ मिश्कात अलमसाबीहः इब्ने हजरः 380/3)
इस्लाम ने दासों और दासियों के आत्मसम्मान और उन के आदर को सुरक्षा किया है। उन नामों और विशेषताओं से पुकारने से मना किया जिन से उन्हें कष्ट और दुःख पहुंचे। विशेष रूप में दास और दासी और भक्त जैसे नामों से मना किया है।
لا يقلْ أحدُكم : أطعم ْربَّك ، وضئ ربّك ، اسق ربَّك ، وليقلْ : سيدي مولاي ، ولا يقلْ أحدُكم : عبدي أمتي ، وليقلْ : فتاي وفتاتي وغلامي. (صحيح البخاري: 2552 وصحيح مسلم: 2248)
तुम में से कोई हरगिज न कहे, अपने रब्ब को खिलाओ, अपने रब्ब को वुज़ू कराओ और अपने रब्ब को पानी पिलाओ और कहे, अपने सरदार और मालिक को खिलाओ ,पिलाओ, और तुम में से कोई हरगिज न कहेः मेरा दास, भक्त और मेरी दासी, भक्ती बल्कि कहे, मेरा बालक तथा बालिका और मेरा लड़का। (सही बुखारीः 2552, सही मुस्लिमः 2248)
इसी प्रकार गुलाम तथा दासों पर किसी प्रकार का झूटा आरोप लगाना भी बहुत बड़ा पाप है। और झूटा आरोप लगाने वालों को अल्लाह तआला कियामत के दिल डंडित करेगा। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
”من قذفَ مملوكًا بريئًا مِمَّا قالَ لَهُ أقامَ اللَّهُ عليْهِ الحدَّ يومَ القيامةِ إلَّا أن يَكونَ كما قالَ“ (صحيح الترمذي: 1947)-
जिसने अपने निर्दोष दास पर आरोप लगाया तो कियामत के दिन अल्लाह उस पर हद लागू करेंगे सिवाए वह दास वैसा ही हो जैसा कि उसने कहा है। (सही तिर्मिज़ीः 1947
जिसने अपने दासों एवं दासियों या सेवक तथा सेविका पर अत्याचार करते हुए मारा, या उन के अपराध से अधिक सजा दिया तो ऐसे लोगों से कियामत के दिन उन से बदला लिया जाएगा।
” من ضرب مملوكه ظلما اقيدَ منه يوم القيامة “ (صحيح الترغيب: 2280)
जिसने अपने दास पर अत्याचार करते हुए मारा तो कियामत के दिन उस से बदला लिया जाएगा। (सहीहु ततरगीबः 2280)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) दासों और दासियों के अधिकार का बहुत ज़्यादा ख्याल करते थे। रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अपने साथियों को उन गुलामों पर तनिक भी अत्याचार करने से मना करते थे। यदि मानव होने के कारण किसी से उन पर अत्याचार हो जाता तो उस दास को स्वतन्त्र करने पर उत्साहित करते थे। इस हदीस पर विचार करें।
أنَّ رجُلًا قعدَ بينَ يدَيِ رسولِ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ علَيهِ وسلَّمَ فقالَ: يا رسولَ اللَّهِ، إنَّ لي مَملوكينَ يُكَذِّبونَني ويخونونَني ويعصونَني، وأشتُمُهُم وأضربُهُم فَكَيفَ أَنا منهُم؟ قالَ: يحسَبُ ما خانوكَ وعصوكَ وَكَذَّبوكَ وعقابُكَ إيَّاهم، فإن كانَ عقابُكَ إيَّاهم بقدرِ ذنوبِهِم كانَ كفافًا، لا لَكَ ولا عليكَ، وإن كانَ عقابُكَ إيَّاهم دونَ ذنوبِهِم كانَ فضلًا لَكَ، وإن كانَ عقابُكَ إيَّاهم فوقَ ذنوبِهِم اقتُصَّ لَهُم منكَ الفضلُ. قالَ: فتَنحَّى الرَّجلُ فجعلَ يبكي ويَهْتفُ، فقالَ رسولُ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ علَيهِ وسلَّمَ: أما تقرأُ كتابَ اللَّهِ وَنَضَعُ الْمَوَازِينَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيَامَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا الآيةَ. فقالَ الرَّجلُ: واللَّهِ يا رسولَ اللَّهِ ما أجدُ لي ولَهُم شيئًا خيرًا من مفارقتِهِم، أشهدُكَ أنَّهم أحرارٌ كلُّهم.) صحيح الترمذي: 3165)
उम्मुलमूमिनीन आईशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से वर्णन है कि एक व्यक्ति रसूल के सामने आ कर बैठ गया और कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे पास दो दास हैं, परन्तु दोनों मुझे झुटलाते हैं और दोनों मेरी अवज्ञा करते हैं और दोनों मेरे साथ ख्यानत करते हैं। तो मैं उन्हें गाली देता हूँ और उन्हें मारता हूँ, तो क्या मेरा उन के साथ यह व्यवहार ठीक है ? तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः यदि उनको तुम्हरी सजा उनके ख्यानत और झुटलाने और अवज्ञा के बराबर ही है तो यह तुम्हारे लिए काफी है, न तुम से बदला लिया जाएगा और न तुम्हें नेकी मिलेगी। और अगर उन्हें तुम्हारी सजा उनके अपराध से कम है तो तुम्हारी नेकी सुरक्षित हो गई। और यदि उन्हें तुम्हारी सजा उनके अपराध से अधिक है तो उनके लिए तुम से बदला लिया जाएगा। तो वह व्यक्ति एक किनारे में जा कर जोर जोर से रोने लगा। तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः क्या तुमने अल्लाह का यह कथन न पढ़ा है। क़ियामत के दिन हम ठीक ठीक तौलने वाले तराज़ू रख देंगे, फिर किसी व्यक्ति पर कण-भर अत्याचार न होगा। जिस का राई के दाने के बराबर भी कुछ किया-धरा होगा। वह हम सामने ला देंगे। (सूरः अन्बियाः47), तो उस व्यक्ति ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! अल्लाह की कसम, मेरे और उनके बीच जुदाइ में ही मेरे लिए भलाइ है। आप साक्षी रहें कि मैं ने उन्हें स्वतन्त्र कर दिया। (सही तिर्मिज़ीः 3165)
यह हदीस सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हु) का अल्लाह से भय और आखिरत के तैयारी के लिए सब कुछ बलिदान करने को प्रमाणित करता है। उस साधारण सहाबी ने अपने दासों की शिकायत नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से किया कि उनका दोनों दास बहुत झूट बोलते हैं, और खयानत करते हैं और उसकी बात नहीं मानते हैं तो वह अपने दासों को मारता और बुरा भला कहता है। तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने न्याय के साथ फैसला दिया। तुम उन्हें उतना ही सजा दो जितना वह तुम्हारे साथ अपराध करते हैं वरना क़ियामत के दिन तुम से अधिक सजा का बदला लिया जाएगा। तो उस सहाबी (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने अल्लाह के भय और आखिरत में अपने लिए उत्तम जीविका के लिए उन्हें आजाद कर दिया।
दासों और सेवकों के साथ उत्तम व्यवहार करने का आदेश अल्लाह तआला ने दिया है। उनके साथ एहसान का मामला किया जाए जिस प्रकार अपने रिश्तेदारों और अभिभावकों के साथ एहसान किया जाता है। अल्लाह के इस आयत पर विचार करें जिस में अल्लाह ने अपनी इबादत के साथ दासों तथा दासियों के साथ उत्तम व्यवहार का आदेश दिया है।
وَاعْبُدُوا اللَّـهَ وَلَا تُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا ۖ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَبِذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَالْجَارِ ذِي الْقُرْبَىٰ وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنبِ وَابْنِ السَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ ۗ إِنَّ اللَّـهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ مُخْتَالًا فَخُورًا (سورة النساء: 36)
अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को साझी न बनाओ और अच्छा व्यवहार करो माँ-बाप के साथ, नातेदारों, अनाथों और मुहताजों के साथ, नातेदार पड़ोसियों के साथ और अपरिचित पड़ोसियों के साथ और साथ रहनेवाले व्यक्ति के साथ और यात्री के साथ और उनके साथ भी जो तुम्हारा दास हों। अल्लाह ऐसे व्यक्ति को पसन्द नहीं करता, जो घमंड और डींगें मारता हो। (4-सूरह अन्निसाः 36)
इस्लाम ने दासों और सेवकों के साथ कितना उत्तम व्यवहार का आदेश दिया जिस का उदाहरण किसी अन्य धर्म में नहीं मिलता। दासों और सेवकों को वही खिलाने और कपड़ा पहनाने का आदेश दिया जो स्वयं खाते और पहनते हैं। इस हदीस पर विचार करें।
لقيتُ أبا ذرٍّ بالربذة وعليه حُلَّةٌ وعلى غُلامِه حُلَّةٌ فسألتُه عن ذلك فقال: إني ساببتُ رجلاً فعيرتُه بأمِه فقال لي النبيُّ صلى الله عليه وسلم: يا أبا ذرٍّ، أعيرتَه بأمِه ، إنك امْرُوٌ فيك جاهليةٌ، إخوانُكم خَوَلُكم، جعلَهم اللهُ تحتَ أيديِكم، فمن كان أخوه تحتَ يدِه، فلْيُطعِمْه مما يأكُلُ ، وليُلْبِسه مما يَلبَسُ، ولا تُكلِّفوهم ما يَغلِبُهم، فإن كلَّفتُموهم فأعينوهم. (صحيح البخاري: 30
मअरूर बिन सूवैद कहते हैं कि हम रबज़ा के स्थान पर अबू ज़र से मुलाकात हुइ तो हमने देखा कि वह और उनका दास एक जैसे कपड़े पहने हुए थे। तो हमने इस के प्रति प्रश्न किया तो अबू ज़र ने कहाः मैं ने अपने एक दास को बुरा भला कहा और उसे उसकी माँ के प्रति आड़ दिलाया, तो उसने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से मेरी शिकायत की तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुझ से फरमायाः ऐ अबू ज़र! क्या तुमने उसे उसकी माँ के प्रति आड़ दिलाया, तुम में अभी भी अज्ञानता काल की आदत बाकी है। यह तुम्हारे भाई है जिन को अल्लाह ने तुम्हारे मातहत में किया है। जिस के मातहत में उस का भाइ हो तो उसे वही चीज खिलाए जो वह खाता है और उसे वही पहनाए जो वह खुद पहनता है। और उसे उसकी शक्ति से अधिक काम पर न लगाए यदि उसे अधिक काम दे दिया तो उसकी मदद करे। (सही बुखारीः 30)
यदि दास भी ज्ञान वाला है, शासन चलाने के लिए साक्षम हैं तो उसकी बात मानी जाएगी और उके नेतृत्व में रहा जाएगा। इस हदीस पर विचार करें।
قال النبي صلى الله عليه وسلم: ” يا أَيُّها الناسُ ! اتقوا اللهَ ، وإن أُمِّرَ عليكم عبدٌ حَبَشِيٌّ مُجَدَّعٌ فاسمَعوا له وأَطِيعوا ما أقام لكم كتابَ اللهِ. (صحيح الجامع: 7861)
नबी ने फरमायाः ऐ लोगों, अल्लाह का तक्वा इख्तियार करो यदि तुम्हारा शासक एक हबशी विकलांग दास हो तो भी उसकी बात सुनो और उसका अनुपालन करो जब तक कि वह अल्लाह तआला की पुस्तक के अनुसार न्याय करता है। (सहीहुल जामिअः 7861)
रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) के अमल को देखा जाए तो आप ने कई बार बड़े सहाबा और उच्च वंश के लोगो के होने के बावजूद दासों और दासों के सन्तान को फौज का सेनापति बनाया। और सहाबा ने कुछ इलाके का गवरनर भी दासों को बनाया और इसी प्रकार उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने भी फऱमायाः
قالَ عمرُ لو كانَ أبو عُبَيدةَ حَيًّا لاستخلفتُهُ فإن سألَني ربِّي قلتُ سمِعتُ نبيَّكَ صلَّى اللَّهُ عليهِ وسلَّمَ يقولُ هوَ أمينُ هذِه الأمَّةِ ولو كانَ سالمٌ مَولَى أبي حُذَيفةَ حَيًّا لاستخلفتُهُ فإن سألَني ربِّي قلتُ إنِّي سمِعتُ نبيَّكَ يقولُ إنَّ اللَّهَ يبعثُهُ يومَ القيامةِ رَتْوَةٌ بينَ يدَيِ العلماء. ( تاريخ دمشق: ابن عساكر: 404/58
उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने अपने मृत्यु से पूर्व कहा थाः यदि अबू उबैदा जीवित होते तो मैं उसे अपने बाद शासक के लिए नियुक्त करता, और मेरा रब्ब मुझ से प्रश्न करता तो मैं उत्तर देता कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फरमाते हुए सुना है। अबू उबैदा, इस उम्मत के अमानत दार है। और यदि सालिम (अबू हुजैफा का दास) जीवित होता तो मैं उसे अपने बाद शासक के लिए नियुक्त करता, और मेरा रब्ब मुझ से प्रश्न करता तो मैं उत्तर देता कि मैं ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को फरमाते हुए सुना है। बेशक अल्लाह तआला सालिम को क़ियामत के दिन विद्वानों के साथ उच्च स्थान पर उठाएगा। (तारिख दमिशः 404/58)
प्रिय पाठकोः क्या किसी धर्म ने इस प्रकार गुलामों तथा दासों के साथ उत्तम व्यवहार का आदेश दिया है यदि आप न्याय के साथ उनके विश्वासनीय पुस्तकों के शलकों का अध्ययन करेंगे तो बेशक इस्लाम के अतिरिक्त की दुसरे धर्म में इस प्रकार का उत्तम शिक्षा नहीं मिलेगा।