इस्लामी महीनों में से एक महीना सफर का महीना है। जिसका अर्थ होता है खाली होना, फारिग़ होना, और इस महीने को सफर इस लिए कहा जाता है कि इस्लाम से पहले अरब दुसरे समुदायों पर आक्रमण करते, उनका सब कुछ लूट लेते और उन्हें ख़ाली हाथ कर देते थे। अरब इस महीने में दो बड़ी ग़लतियाँ करते थेः
पहलाः इस महीने को अपने स्वार्थ के कारण आगे पीछे कर लेते थे।
दुसराः इस महीने को अपशगुन मानते थे।
इस्लाम ने पूर्व अरबवासियों के दोनों कार्यों का बहुत ज्यादा खंडन किया है और एक साफ सुथरा मन्त्र अल्लाह पर विश्वास पेश किया है जो हर प्रकार से पवित्र और लाभदायक है।
पहलाः
इस्लाम से पहले अरब सफर के महीने को अपने स्वार्थ के कारण आगे – पीछे कर लेते थे जिस महीने को अल्लाह तआला ने आदर- सम्मान वाला बनाया था, उस में पूर्व अरब उलट फेर कर देते थे। अल्लाह ने उसी उलट फेर की निति को अशुद्ध किया। सफर का महीना वर्ष के बारा महीने में से दुसरा महीना है। अल्लाह तआला के पास उन में से चार महीने आदर (हुरमत वाले) हैं। जैसा कि अल्लाह तआला का कथन है ,
إِنَّ عِدَّةَ الشُّهُورِعِندَ اللَّـهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِي كِتَابِ اللَّـهِ يَوْمَ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ مِنْهَا أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ۚ ذَٰلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ ۚ فَلَا تَظْلِمُوا فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ۚ. (سورة التوبة: 36
“वास्तविकता यह है कि महीनों की संख्या जब से अल्लाह ने आसमान और जमीन की रचना की है, अल्लाह के लेख में बारह ही है और उन में से चार महीने आदर के (हराम) हैं , यही ठीक नियम है, अतः इन चार महीनों में अपने ऊपर ज़ुल्म न करो,” ( 9-अल- तौबाः 36 )
इसलाम से पूर्व अरब वासी इस चार महीनों के आदर (हुरमत) को मानते थे और उस के अनुसार अमल करने का प्रयास भी करते थे परन्तु अपनी आर्थिक स्वाद के लिए मुहर्रम महीने को सफर महीने से बदल देते थे और कभी सफर के स्थान पर मुहर्रम महीने से परिवर्तन कर देते थे। अल्लाह तआला ने मुश्रिकीन (इस्लाम से पूर्व अरब वासी) के इसी निति का खंडण किया है और खुले शब्दों में मानव को आदेश दे दिया कि तुम इस महीनों उलट फेर करके अपने ऊपर अत्याचार न करो, अल्लाह तआला ने जो नियम बना दिया है, उस में संशोधन नहीं हो सकता यदि जो संशोधन करने का प्रयास करेगा, वह अपने ऊपर ज़ुल्म करेगा। यदि कोइ मानव महीने की उलट फेर करता है तो उसे कोइ लाभ तो न होगा बल्कि वास्तविक घाटा उठाएगा।
दुसरी बड़ी ग़लतीः
अरब इस महीने को अपशगुन मानते थे। बल्कि आज के भी बहुत से लोग सफर के महीने को अपशगुन मानते हैं और बहुत सारे ऐसे काम करते हैं जो शिर्क की सूची में आते हैं। अपशगुन कहते हैं ” कोई व्यक्ति किसी काम के करने का पुख्ता इरादा करे लेकिन उसी समय बिल्ली रास्ता काट दे, या किसी नापसन्द व्यक्ति को देख ले, या शीशा गिर कर टूट जाए, या कोई कुछ कह दे तो अपशगुन माने कि अब हमारा यह काम न होगा और उस काम को न करते हुए छोड़ दे या दुसरे दिन पर टाल दे तो यह अपशकुन माना जाएगा और यह शिर्क है। जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
الطِّيرَةُ شِركٌ الطِّيرةُ شِركٌ الطِّيرةُ شِركٌ : قالَ ابنُ مسعودٍ : وما منَّا إلَّا . ولَكنْ يذهبُهُ اللَّهُ بالتَّوَكُّلِ. (غاية المرام: 303: الألباني و صحيح الترغيب: 3098
अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद (रज़ियल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया ” अपशकुन शिर्क है, अपशकुन शिर्क है, अपशकुन शिर्क है, अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद (रज़ियल्लाह अन्हु) कहते है) , हम में से प्रत्येक व्यक्ति के जहन में इस प्रकार क चिन्ता आता है परन्तु अल्लाह पर विश्वास और भरोसा से यह चीज समाप्त होजाती है ” (गायतुल मुरामः 303 सही अत्तरगीबः3098 )
क्योंकि अपशगुन और बदशुगूनी की कोई वास्तविरकता नहीं बल्कि यह अंधविश्वास है जो अज्ञानता के कारण है। लाभ तथा हानि का मालिक केवल एक अल्लाह है जिस में उसका कोई शरीक नहीं और अल्लाह तआला के आज्ञा के अनुसार हर वस्तु अपने अन्जाम को पहुंचती है। किसी भी मख्लूक (वस्तु) के पास उस चीज को रोकने की शक्ति नहीं, यदि कोइ व्यक्ति शक्ति उस चीज में मान कर वह काम नहीं करता तो उसने अल्लाह तआला से विश्वासघात किया और बन्दों को लाभ या हाणि का मालिक माना है तो यही शिर्क है। प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस अपशकुन और बद शुगूनी से खुले शब्दों में मना फरमाया है।
عن أبي هريرة قال : قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: ” لا عدوى ولا طيرة ولا هامَة ولا صَفَر وفر من المجذوم كما تفر من الأسد ” (صحيح البخاري: 5707
अबू हुरैरा (रज़ियल्लाह अन्हु) से वर्णन है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” छूत वाला रोग स्वयं नहीं लगता, और न ही अपशकुन होता, और न उल्लू के बोलने से कोई फरक पड़ता, और न ही सफर महीना मनहूस और अशुभ है और तुम कोढ़ी से वेसे भागो जेसे शेर से भागते हो। ” (सही बुकारीः 5707)
बल्कि यदि कोई व्यक्ति काम के करने का पुख्ता इरादा कर ले और फिर अपशकुन लेते हुए वह काम छोड़ दे तो यह शिड़ होगा जो कि बहुत बड़ा पाप है जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने स्पष्ट कर दिया जिस हदीस को अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस (रज़ियल्लाह अन्हु) वर्णन करते हैं कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः
من ردَّتهُ الطِّيَرةُ مِن حاجةٍ فقد أشرَكَ قالوا يا رسولَ اللَّهِ ما كفَّارةُ ذلِكَ قالَ أن يَقولَ أحدُهُم اللَّهمَّ لا خَيرَ إلَّا خيرُكَ ولا طيرَ إلَّا طيرُكَ ولا إلَهَ غَيرُكَ. (مسند أحمد: 12/10
” जिसे अपशकुन ने किसी काम के करने से रोक दिया तो उसने शिर्क किया। तो सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने फरमायाः इसाका प्रायश्चात किया है। ऐ अल्लाह के रसूलः तो आप ने फरमायाः तुम यह दुआ पढ़ो, अल्लाहुम्मा ला त़ैरा इल्ला त़ैरुका, व ला खैरा इल्ला खैरुका व ला इलाहा गैरूक । (मुस्नद अहमदः 12/10)
दुआ का अर्थः ऐ अल्लाहः कोई हाणि नहीं है मगर तुम्हारे आदेश से पहुंचती है और कोई भलाइ नहीं है मगर तुम्हारे आदेश से मिलता है और तेरे सिवा कोई सत्य पुज्य नहीं है।
इसी प्रकार नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) किसी चीज से शुभ खबर लेना पसन्द करते थे। और बदशुगूनी और अपशकुन नापसन्द करते थे। जैसा कि हदीस में वर्णन है।
سُئلَ النبيُّ صلَّى اللهُ عليهِ وسلَّمَ عن الطِّيَرةِ ، قال : أصدَقُها الفأْلُ ، ولا تُردُّ مسلمًا . . . (السلسلة الصحيحة: 155/6)
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से बदशुगूनी और अपशगुन के प्रति प्रश्न किया गया तो फरमायाः शुभ शकुन अच्छी चीज़ है और किसी मुसलमान को किसी काम से अपशकुन नहीं रोकता है….. (अस्सिल्सिला अस्सहीहाः शैख अल्लामा अलबानीः 54/3)
अपशगुन न लेने वाले लोेग जन्नत में बिना हिसाब किताब के दाखिल होंगेः
जो लोग अपशगुन नहीं लेते हैं और पूर्ण रूप से अल्लाह पर भरोसा करते हैं और परेशानियों और दुःख में अल्लाह ही को नफा और नुकसान का मालिक समझते हैं अल्लाह ऐसे व्यक्तियों को जन्नत में बिना हिसाबु किताब के दाखिल करेगा। अल्लाह के सत्तर हज़ार नेक बन्दे ऐसे होंगे जिन्हें अल्लाह तआला बिना हिसाब व किताब के जन्नत में दाखिल करेगा, उनका एक लम्बी हदीस में विवरण इस प्रकार हैः इब्नि अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णित है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः मुझ पर पिछली क़ौमें पेश की गईं, तो मैं ने देखा कि एक नबी के साथ कुछ लोग हैं तो किसी नबी के साथ एक दो आदमी हैं, तो एक नबी के साथ एक भी आदमी नहीं है, फिर मुझे एक बहुत बड़ी जमाअत नज़र आई तो मुझे लगने लगा कि वह मेरी उम्मत होगी, तब मुझे सूचित किया गया कि यह मुसा (अलैहिस्सलाम) की उम्मत है। आप आकाश की ओर देखिये, तो मैं ने लोगों की एक बहुत बड़ी जमाअत देखा, फिर मुझ से कहा गया कि आकाश के दूसरे ओर देखिये, मैं ने देखा, वहां बहुत बड़ी जमाअत देखा, मुझे सूचित किया दया कि यह आप की उम्मत है और उन में से सत्तर हज़ार लोग ऐसे होंगे जो बिना हिसाब किताब के जन्नत में दाखिल होंगे, फिर रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उठे और अपने घर चले गए। इधर लोग (सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हु) आपस में बातें करने लगे कि वह सत्तर हज़ार बिना हिसाब किताब के जन्नत में दाखिल होने वाले लोग कौन होंगे, कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि शायद वे आपके सहाबा होंगे तो कुछ लोगों ने कहा, नहीं, उन से मुराद वे लोग होंगे जिन्हों ने इस्लाम में जन्म लिया और अपने जीवन में कुछ भी शिर्क नहीं किया, कुछ लोगों ने कुछ दुसरे लोगों को गिनाया, जब रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तश्रीफ लाए तो फरमायाः तुम लोग किस चीज़ के बारे में एक दुसरे बातें कर रहे हो ? सहाबा ने उत्तर दिया कि हम लोग उन सत्तर हज़ार लोगों के प्रति बात कर रहे थे जो बिना हिसब किताब के जन्नत में प्रवेश करेंगें कि वे कौन लोग होंगे ?, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः यह वह लोग होंगे जो झार फूंक नहीं करते, और न किसी दुसरे से झार फूंक करवाते हैं, और अपशगुन नहीं लेते और केवल अपने रब्ब पर भरोसा करते हैं। यह सुन कर उकाशा बिन मेहसन खड़े हुए और कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! आप अल्लाह से दुआ कर दीजीये कि अल्लाह मुझे उन लोगों में शामिल कर दे, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः तुम उन्हीं लोगों में से हो। (यह सुनकर) दुसरा आदमी खड़ा हुआ और आप से दुआ करने का निवेदन किया तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने उत्तर दिया कि तुम पर उकाशा प्राथमिक्ता ले गए। (सही बुखारीः 3410, सही मुस्लिमः 220)