मानव जिस धरती पर जन्म लेता है। जहां पढ़ता लिखता हैं, जहां उसने अपने जीवन के सब से बहुमूल्य तथा महत्वपूर्ण समय बिताया है तो वह उस से प्रेम करता है, यह नियम अल्लाह बनाया हुआ है, जिस का स्पष्टि करण रसूलु (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के इस कथन से प्रमाणित होता है। जब मक्का वासियों ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की हत्या करने की योजना बनाया और इस विचार पर अमल करने के लिए अपने नौजवानों को रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के घर पर नियुक्त कर दिया। तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अल्लाह तआला के आदेश के अनुसार मक्का से मदीने की ओर हिजरत करने पर मजबूर हो गए और हिजरत करते समय मक्का को सम्बोधित करते हुए फरमायाः
قالَ رسولُ اللَّهِ صلَّى اللَّهُ عليهِ وسلَّمَ: لمكَّةَ ما أطيبَكِ من بلدٍ وأحبَّكِ إليَّ،ولولا أنَّ قومي أخرجوني منكِ ما سَكَنتُ غيرَكِ. (صحيح الترمذي: الألباني: 3926
” ऐ मक्का! तू क्या ही सुगंध वाला शहर है, तू मेरे लिए बहुत ही प्रियतम शहर है, यदि मेरे समुदाय वाले तुझ से नहीं निकालते तो मैं तेरे सिवा किसी दुसरे स्थान पर कदापि नहीं रहता ” ( सुनन तिर्मिज़ीः 3926
अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का यह कथन देशप्रेमिता को प्रमाणित करता है कि मानव जन्मस्थल से प्रेम करता है। इसी कारण इस्लाम ने देश और जन्मभूमी के लिए उस के रहने वाले पर कुछ अधिकार और हुक़ूक़ अनिवार्य किया है। ताकि देश की सही तरीक़े से सेवा की जा सके। देशवासियों के बीच प्रेम और भाइचारगी उत्पन्न हो सके, देशवासी एक दुसरे की अच्छी वस्तुओं में सहायता करें। ताकि देश और देशवासी प्रगति और उन्नति के अन्तिम सिमा तक पहुंच सके। देश में प्रत्येक प्रकार का विकास हो और देशवासी खुशी और प्रसन्नता का अनुभव करे।
हम देश प्रेमी हैं। परन्तु देश भक्त नहीं। क्योंकि हम भक्ति केवल एक अल्लाह की करते हैं और अल्लाह की भक्ति में किसी को भी तनिक साझिदार नहीं बनाते हैं। क्योंकि इस धरती और आकाश के सृष्टिकर्ता का यही आदेश है कि पूजा और भक्ति केवल उसी की की जाए।
निम्नलिखित तरिके से हम अपने देश हेतु अपने प्रेम को प्रकट कर सकते हैं।
यदि इन में से किसी में कमी है तो अपने देशप्रेमी के झुठे दावे का जाइज़ा लेना चहिये। बल्कि बहुत सारे लोग कहते है कि हम ही देशप्रेमी हैं, देश भक्त हैं, दुसरा देश प्रेमी नहीं परन्तु ऐसे झूठे देश प्रेमियों का कर्म देशद्रोही के जैसा होता है।
- (1) कोई भी मानव जब जन्म लेता है तो सब से ज़्यादा उस पर इहसान अल्लाह तआला का होता है फिर उसके माता-पिता का और फिर उस जन्मभूमि का जिस में वह परवान चढ़ता है। इस लिए इन तीनों के इहसान का बदला इहसान से देना चाहिये, अल्लाह तआला के इहसान का बदला, केवल उसकी इबादत और पूजा कर के दिया जा सकता है और वास्तविक्ता तो यह है कि इस इबादत का बदला मानव पर ही जन्नत (स्वर्ग) के रूप में लौटेगा। माता-पिता के इहसान का बदला, उनकी सेवा और उन पर अपना धनदौलत खर्च कर के दे सकते हैं और देश के इहसान का बदला उस की सेवा, उस के कमजोर व्यक्तियों की मदद आदि के माध्यम से कर सकते हैं और इहसान का बदला इहसान के माध्यम से देना चाहिये जैसा कि पूर्ण मानव को क़ुरआन मजीद ने उत्साहित किया हैः ” उपकार का बदला उपकार (प्रतिफल) के अतिरिक्त क्या है ” । (सूरः रहमानः60
- (2) देशवासियों को प्रेम और भाइचारगी के बंधन से बांधा जाए ताकि विभिन्न स्थितियों में एक दुसरे के साथ मिल कर नाजुक हालात ( बाढ़, भूकंभ, सोनामी, आतंकी हमले, आदि) का मुकाबला किया जा सके।
- (3) वह कार्य किया जाए जिस कारण जन्मभूमि पर समाजिक जीवन उत्तम तरीके से बीताया जाए। समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी भूमिकाओं को सही तरीके से निभाए। जो अधिकार समाज का, पास पडोस का, देश का है, उस से उसे परिचय कराया जाए। एक दुसरे की सहायता की जाए क्योंकि जब कोई किसी मानव की मदद करता है अल्लाह तआला उस की मदद करता है जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन हैः
واللهُ في عونِ العبدِ ما كان العبدُ في عونِ أخيه. (صحيح مسلم: 2699)
” अल्लाह की सहायता उस बन्दे के साथ होती है जब तक वह अपने भाई की मदद करता रहता है”। (सही मुस्लिमः 2699)
- (4) भूमिपूत्रों को अपने देश के आदर-सम्मान का शिक्षा दिया जाए। देश की सम्मपत्ती की सुरक्षा के शिक्षण का पाठ पढ़ाया जाए, देश की सार्वजनकि वस्तुओं की हिफाज़त की महत्वपूर्णता का शिक्षण दिया जाए। ताकि देश उन्नति के रास्ते पर आगे ही आगे बढ़े, कोई रूकावट उस के कदम रोक न सके। प्रत्येक व्यक्ति सार्वजनकि वस्तुओं से लाभ उठा कर दुसरों के लिए उसी हालत में छोड़ दे। ताकि ज़्यादा व्यक्ति इसका लाभ उठा सके।
- (5) प्रत्येक देशवासियों पर अनिवार्य है कि वह देश एकता का उदाहरण पेश करे और उन सम्पूर्ण वस्तुओं से दूर रहे जो देश एकता को भंग करे, देशवासियों को बांट दे, आपस में दुशमनी उत्पन्न करे। अपनी अपनी सिमा में रहे, सिमा का उल्लंघन न किया जाए। देश की संविधान का उल्लंघन न किया जाए, अपने लाभ के लिए दुसरे को धोखा न दे।
- (6) प्रत्येक देशवासियों पर अनिवार्य है कि वह अपनी क्षमता और उपलब्धी के अनुसार देश को लाभ पहुंचा, देशवासियों में जाग्रूगता उत्पन्न करे, अपने धनदौलत से देश की सेवा करे, भूमिपूत्रो को सही ज्ञान दे कर उन्हें लाभ पहुंचाए, ताकि पूर्ण समाज प्रेम, मेल जोल और सहयोग के वातावरण में सुख और शांति के साथ जीवन बीताए। प्रत्येक व्यक्ति दुसरे व्यक्तियों को लाभ पहुंचाए, रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का कथन हैः
أحبُّ الناسِ إلى اللهِ أنْفَعُهُمْ لِلنَّاسِ. (صحيح الجامع: 176 و السلسلة الصحيحة: 906)
” अल्लाह के पास सब से प्रियतम व्यक्ति वह है जो दुसरे लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा लाभ पहुंचाने वाला हो”। (सहीहुल-जामिअः 176 व अस्सिल्सिला अस्सहीहाः 906)
- (7) उन प्रत्येक हालात का मुक़ाबला करना जो देश के अमन और शान्ति को चकना चूर कर देता है और इस में अपराधियों को पकड़ कर सजा दिलाया जाए और इस में शामिल लोगों को माफ न किया जाए चाहे वह नेता, साधू संत, बाबा, पुलिस, फौज के अफसर या आम जनता हो परन्तु बेकुसूरों को परेशान न किया जाए और उस के जीवन से खेलवाड़ न किया जाए। तभी देश को भयंकर आतंकि हमले, बम बलास्ट, हिंदु मुस्लिम दंगा फसाद से मुक्ति करा सकते हैं।
- (8) देश की जिम्मेदारी को अदा करने के लिए अमान्तदार, निडर, ज्ञानिक, एक दुसरे का आदर-सम्मान करने वाले, निःस्वार्थ, सत्यवादी और अपनी जिम्मेदारी को उत्तम तरीके से पूरा करने वालों व्यक्तियों का चयन किया जाए चाहे वह अफसरों का पोस्ट हो या नेताओं या आम अधिकारी का, ताकि लूट खसुट, भ्रष्ठाचार, रिश्वत, दलाली, अन्याय, अत्याचार जैसे घातक बीमारियों से समाज को मुक्त किया जा सके। सत्ता और शक्ति का ज़्यादा दुर्उपयोग करने वालों को सख्त सज़ा दिलाया जाए।
- (9) देश की रक्षा की जाए, चाहे प्राण के माध्यम से, धनदौलत और बातों और लेख के माध्यम से, प्रत्येक स्थिति में हर देशप्रेमी अपनी क्षमता के अनुसार देश की मुदाफिअत करे।