उत्तर प्रदेश के मुहम्मद जिनका पुराना नाम मल्का बर्जी पट्टी हैं कुवैत में एक घर में काम करने आए तो परिवार के सदस्यों के अच्छे व्यवहार को देखते हुए उन्होंने एक दिन स्वयं अपने कफील के सामने इस्लाम स्वीकार करने की रूची प्रकट की और इस्लाम स्वीकार कर लिया। उनकी कुछ भावनाएं निम्न में पेश की जा रही हैं:
(1) इस्लाम स्वीकार करने के बाद मैंने इस्लाम में दान का बड़ा महत्व देखा, मेरे कफील ने मुझे ईद के अवसर पर 23 दीनार दिया तो मैंने उसे एक निर्धन को दे दिया।
(2) मैं जब नमाज़ पढ़ने जाता था तो नमाज़ में मेरा दिल इधर उधर भटकने लगता था जब कि मन्दिर में मूर्ति पूजा करते समय मन मस्तिष्क बिल्कुल उपस्थित रहता था। मैंने कफील से इसकी शिकायत की तो उसने कहाः देखो! पहले तुम शैतान की पूजा करते थे इस लिए वह तुम से खुश था, अब तुम एक अल्लाह की ईबादत कर रहे हो और वह नहीं चाहता कि तुमको मुक्ति मिले। इस लिए मनाज़ में अल्लाह को याद करो और समझो कि अल्लाह को तुम देख रहो हो या कम से कम अल्लाह तुझे देख रहा है। इस प्रकार नमाज़ पढ़ोगे तो मन को शान्ति मिलेगी। मैंने ऐसा ही किया, यहाँ तक कि मुझे नमाज़ में मज़ा आने लगा।
(3) जब मैं इस्लाम स्वीकार करने के बाद मस्जिद में नमाज़ अदा करने गया तो एक जाहिल मुसलमान मुझे मस्जिद में देख कर क्रोधित हो गया और चाहा कि मैं मस्जिद से निकल जाऊं। मैंने उसे समझाया कि मैं इस्लाम स्वीकार कर चुका हूं परन्तु वह महीं माना और चिल्लाने लगा । मुझे गुस्सा आया और उसे तुरन्त दो तमाचा दे मारा। उसने जा कर मेरे कफील से शिकायत की तो कफील ने मुझे बुला कर मारने का कारण पूछाः मैंने जब सारी घटना सुनाई तो कफील को भी उस मुसलमान पर आश्चर्य हुआ। फिर उसे ताकीद की कि अब से कभी इसे नमाज़ से मना मत करना।
(इस प्रकार की शिकायक कुछ जाहिल मुसलमानों की होती है जो इस्लाम को मुसलमानों का धर्म समझते हैं ऐसे लोगों को समझाना चाहिए कि Islam Is by Choise Not by Chance.)