गुस्सा हर व्यक्ति को आता है परन्तु उस पर क़ाबू कैसे पाया जाए और स्वभाव में कैसे नरमी लाई जाए इसी विषय पर इस लेख में चर्चा किया गया है
विवेक,गंभीर स्वभाव और धैर्यता ऐसी सुनहरी विशेषताएँ हैं जिन्हें नैतिकता में में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, नरम स्वभाव रखने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व लोकप्रिय होती है, उसका दुश्मन भी दोस्त बन जाता है और वह अल्लाह की दृष्टि में बहुत प्यारा और पसंदीदा होता है।
अशज्ज अब्दुल क़ैस से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया था:
( إن فيكَ خصلتينِ يحبهُما اللهُ : الحلمُ والأناةُ ( صحیح مسلم(17
“तेरे अंदर दो स्वभाव ऐसा है जिसे अल्लाह पसंद करता है, स्वभाव की नरमी और समझ कर काम करना”।
अब सवाल यह उठता है कि हमारा स्वभाव नरम कैसे बनें? हमारे अंदर क्रोध से दूरी कैसे पैदा हो ? तथा मतभेद की स्थिति में जल्द से जल्द कैसे सहमत हो जाएं ? तो विदित है कि यह एक ऐसा मामला है जिसके लिए बलिदान की आवश्यकता है, भाई चारा और बन्धुत्व बहुत कोमल रिश्ता होता है उसे बनाए रखने के लिए कुछ सिद्धांत और नियम की जरूरत पड़ती है।
दूसरों के प्रति अच्छा गुमान रखें:
सबसे पहले आपके दिल में क्रोध को पीने के महत्व का एहसास होना चाहिए, फिर उसके बाद आप दूसरों के प्रति अच्छा गुमान रखें, आपकी निगाह उनकी गुणवत्ता पर हो, नकारात्मक चीज़ों से अनदेखी करने की आदत डालें, अगर किसी व्यक्ति के बारे में नकारात्मक रवैया का पता लगे तो जहां तक हो सके उसके लिए बहाना तलाशने की कोशिश होनी चाहिए।
अबू क़लाबा अल-जज़मी रहिमहुल्लाह ने बहुत पते की बात कही है:
إذا بلغك عن أخيك شيء تكرهه فالتمس له العذر جهدك ، فإن لم تجد له عذرا فقل في نفسك : لعل لأخي عذرا لا أعلمه . حلية الأولياء، رقم : 2485
“जब तुम्हारे पास अपने भाई की ओर से कोई बात पहुंचे जो तुम्हें ख़राब लगे तो जहां तक हो सके उसके लिए कोई बहाना तलाश करो, अगर कोई बहाना समझ में न आ सके तो कहो शायद मेरे भाई के पास कोई उज़्र होगा जिसका मुझे ज्ञान न हो सका “।
और अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन मनाज़िल कहते हैं:
” الْمُؤْمِنُ يَطْلُبُ مَعَاذِيرَ إِخْوَانِهِ ، وَالْمُنَافِقُ يَطْلُبُ عَثَرَاتِ إِخْوَانِهِ ” .
“मोमिन अपने भाई के लिए बहाना तलाश करता है जब कि कपटाचारी अपने भाई की बुराई की छानबीन में लगा रहता है।”
इसलिए अल्लाह तआला ने मुसलमानों को बुरे गुमान से मना किया, अल्लाह तआला ने फरमाया:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اجْتَنِبُوا كَثِيرًا مِّنَ الظَّنِّ إِنَّ بَعْضَ الظَّنِّ إِثْمٌ – سورہ الحجرات 12
“ऐ ईमान वालो! बहुत गुमान करने से बचो कि कुछ गुमान गुनाह होते हैं “।
इसलिए यदि आपके पास किसी व्यक्ति के व्यवहार के बारे में कोई नकारात्मक बात पहुंचे तो भावनात्मक फैसला करने के बजाय उसकी सच्चाई तक पहुँचने की कोशिश करें, किन परिस्थितियों में उसने यह बात कही है ? उसके कहने का उद्देश्य क्या था ? ऐसा तो नहीं कि उसने बस मनोरंजन किया है? फिर उसकी ढेर सारी ख़ूबियों और भलाइयों को भी नज़र रखें और कभी भी पक्षपातपूर्ण रवैया न अपनायें।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र जीवनी से हातिब बिन अबी बलतआ रज़ियल्लाहु अन्हु की घटना हमारे विषय की व्याख्या के लिए काफी है।
रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब मक्का की विजय का इरादा कर रहे थे तो एक सहाबी हातिब बिन अबी बलतआ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुरैश को एक पत्र लिखकर यह सूचना भेजी कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमला करने वाले हैं, उन्होंने यह पत्र एक औरत को दिया और उसे क़ुरैश तक पहुंचाने पर मुआवजा रखा, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आसमान से खबर आ गई, आपने सहाबा का एक छोटा सा प्रतिनिधिमंडल उसके पीछे लगाया, इस तरह सहाबा किराम उसे पाने में कामयाब हो गए, फिर यह पत्र लेकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए, प्रत्येत सहाबा हातिब बिन बलतआ के रवैये से बहुत क्रोधित। यहां तक कि उमर फारूक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
دَعْنِي أضْرِبْ عُنُقَ هذا المُنافِقِ فإنه خان الله ورسوله
ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुझे छोड़ दें मैं इस कपटाचारी की गर्दन मार दूं क्योंकि उसने अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ विश्वासघात की है, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भावनात्मक फैसला करने के बजाय तथ्य की खोज करते हैं:
یاحاطب ما حملک علی ما صنعت
ऐ हातिब! तुमने ऐसा क्यों किया? हातिब ने क्षमा चाही कि मक्का में उनके परिवार और बाल बच्चे हैं और क़ुरैश में उनकी कोई रिश्तेदारी नहीं कि उस के कारण वै उसके बाल बच्चों की रक्षा करें, उन्होंने यह काम इस्लाम से फिरने के कारण किया है और न कुफ्र से सहमत होने के कारण। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:
صدق لا تقولوا إلا خیرا۔
उसने सच कहा उसके बारे में भलाई की बात ही कहो। पूरा विवरण सुनने के बाद हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की दोनों आंखें नम हो गईं और पुकार उठे:अल्लाह और उसके रसूल बेहतर जानते हैं। (सही बुख़ारी: 4274)
तजरबा बताता है कि किसी भी मामले को नरमी से सलटने की कोशिश करने से सरलतापूर्वक मामला सलट जाता है, क्योंकि सख्ती, जल्दबाज़ी और भावनात्मक फैसले का परिणाम कभी कभी बहुत भयानक होता है, नरम अंदाज़ सख्त दिल इनसान को भी मोम बना देता है।
अब्बासी खलीफा मामून रशीद को एक प्रवक्ता ने उपदेश दिया और सख़्ती से बात करने लगा, इस पर खलीफा कण बराबर भी ग़ज़बनाक न हुआ और बहुत विवेक से जवाब दिया:
يا رجل ارفق فقد بعث الله من هو خير منك إلى من هو شرمني وأمره بالرفق. فقال اللہ تعالی فَقُولَا لَهُ قَوْلًا لَّيِّنًا لَّعَلَّهُ يَتَذَكَّرُ أَوْ يَخْشَىٰ – سورہ طہ 44
“हे आदमी! नरमी बरत, क्योंकि अल्लाह तआला ने तुझ से अच्छे व्यक्ति को मुझे से अधिक बुरे व्यक्ति के पास भेजा तो उसे नरमी बरतने का आदेश दिया अल्लाह का इरशाद है: “उससे नरमी के साथ बात करना, शायद वह नसीहत स्वीकार करे या डरे “।
इस से अभिप्राय असल में हज़रत मूसा और हारून अलैहिमस्सलाम हैं जबकि उन्हें फिरौन द्वारा नबी बनाकर भेजा जा रहा था तो अल्लाह ने दोनों को ताकीद की थी कि उससे नरमी से बात करना।
बुराई का बदला अच्छाई से दें:
अगर कोई व्यक्ति आपके साथ दुर्व्यवहार करता है तो उसके लिए अल्लाह से दुआ करें ताकि दिल की नफरत दूर हो जाए, फिर उसके साथ साथ कुछ एहसान भी कर सकते हों तो जरूर करें. एक व्यक्ति ने हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा को खूब गाली दी, जब चुप हुआ तो आपने अपने दास इकरमा रज़ियल्लाहु अन्हु से कहाः
ياعكرمة هل للرجل حاجة فنقضيها
“ऐ इकरमा क्या इस आदमी को किसी चीज की जरूरत है जिसे हम पूरी कर सकें? यह सुनकर आदमी बहुत शर्मसार हुआ सिर झुका लिया”।
जब बुराई का बदला अच्छाई से दिया जाता है तो दुश्मन भी दोस्त बन जाता है। अल्लाह ने सूरः फुस्सिलत में फ़रमाया:
وَلَا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلَا السَّيِّئَةُ ۚادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ . سورہ فصلت- سورہ فصلت 34
“भलाई और बुराई समान नहीं है। तुम (बुरे आचरण की बुराई को) अच्छे से अच्छे आचरण के द्वारा दूर करो। फिर क्या देखोगे कि वही व्यक्ति तुम्हारे और जिसके बीच वैर पड़ा हुआ था, जैसे वह कोई घनिष्ठ मित्र है “।(सूरःफुस्सिलत 34)
नादानों और जाहिलों की बात पर ध्यान मत दें:
आमतौर पर लोग नादानों और जाहिलों की बातों का असर लेते हैं और मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं हालांकि एक मुस्लिम को नैतिकता के उच्च गुणवत्ता पर होना चाहिए, नादानों और जाहिलों से उलझने और एक एक कोताही पर उनका दमन करते रहना एक मोमिन का स्वभाव नहीं है क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है:
خُذِ الْعَفْوَ وَأْمُرْ بِالْعُرْفِ وَأَعْرِضْ عَنِ الْجَاهِلِينَ – سورہ الاعراف 199
” क्षमा की नीति अपनाओ और भलाई का हुक्म देते रहो और अज्ञानियों से किनारा खींचो”।
अब्बासी खलीफा मामून के बारे में आता है, अब्दुल्लाह बिन ताहिर कहते हैं, एक दिन मैं मामून के पास बैठा हुआ था, उसने सेवक को आवाज़ दी, ऐ गुलाम! लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, तो ऊंचे स्वर में पुकारा, अतः एक तुर्की गुलाम यह कहते हुए दाख़िल हुआ:
أما ينبغي للغلام أن يأكل ويشرب؟ كلما خرجنا من عندك تصيح يا غلام يا غلام ! إلى كم يا غلام ؟
“क्या गुलाम के लिए खाना-पीना भी उचित नहीं, जब भी आप से हटते हैं गुलाम गुलाम करके चिल्लाने लगते हैं”
अब्दुल्लाह बिन ताहिर कहते हैं: बहुत देर तक मामून अपना सिर झुकाए रखा, मुझे पूरा विश्वास हो गया था कि बादशाह उसकी गर्दन मारने का आदेश देंगे, लेकिन उसने हमारी ओर देखा और कहा:
يا عبد الله ! إن الرجل إذا حسَّن أخلاقَهُ ساءتْ أخلاقُ خدمِهِ؛ وإنَّا لا نستطيعُ أنْ نُسئَ أخلاقَنا، لنحسِّن أخلاقَ خدمِنا.
ऐ अब्दुल्लाह! “जब एक आदमी अच्छे स्वभाव से पेश आता है तो उसके सेवक बुरे स्वभाव के बन जाते हैं लेकिन हम अपने सेवकों के बुरे स्वभाव की सुधार के लिए अपना स्वभाव ख़राब नहीं कर सकते। “
प्रिय पाठकगण! आपने देखा बादशाह मामून की नैतिकता को कि अपने दास के संबंध में भी कैसा विवेक और नरमी व्यक्त करते हैं।
स्वयं की समीक्षा करें अपने में कमी तलाशने का प्रयास करें:
हम अपने नफ्स की समीक्षा करें कि ऐसा तो नहीं कि हम जल्द ग़ुस्सा हो जाते हैं, ऐसा तो नहीं कि हम मामूली बात पर ग़लत असर लेते हैं, और यही समीक्षा असल में इंसान को मान-मर्यादा, दिल की व्यापकता और आक्रोश को क़ाबू में करने का आदी बनाता है, इसलिए हर व्यक्ति को चाहिए कि पहले अपने आप में कमी तलाशने की कोशिश करे, आप उन आदतों की निशानदेही करें जिन्हें दूसरों में देखना पसंद करते हैं फिर अपने आप से पूछें कि क्या आप उन्हीं आदतों को दूसरों के प्रति सही और ठीक तरीक़े से बरतते हैं, अगर जवाब हां में है तो आपका नैतिक कर्तव्य बनता है कि विशाल हृदय से उसे अपने क़ाबू में कर लें और अगर जवाब ना में है तो आख़िर उस व्यवहार पर क्रोधित होने का आपको क्या अधिकार है जिसे आप अपने स्वयं पर नहीं बरत सकते।
हमारे लिए प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की की पवित्र जीवनी एक उत्तम आदर्श है, यह हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु हैं जिन्होंने लगातार दस साल तक मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा की थी, आपने प्रशिक्षण की विशेषता इन शब्दों में बयान करते हैं :
فَمَا قَالَ لِي لِشَيْءٍ فَعَلْتُهُ : لِمَ فَعَلْتَهُ ، وَلا لِشَيْءٍ لَمْ أَفْعَلْهُ : لَمْ تَفْعَلْهُ
“आप कभी भी किसी काम के बारे में नहीं कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया और ऐसा क्यों नहीं किया।”
क्रोध उत्पन्न करने के कारण से दूरी अपनायें:
हर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी कमजोरी के बिंदुओं पर नजर रखे और गुस्सा पैदा करने वाले सारे कामों से दूर रहे, जैसे ज़ैद को किसी से मिलना है, इच्छित समय निर्धारित स्थान पर पहुंच गया लेकिन वांछित व्यक्ति वहां मौजूद नहीं है, इंतजार की घड़ी गंभीर हो रही है, अब ज़ैद को यहां ठहर कर जरा गौर करना होगा कि दूसरे के व्यवहार पर किसी को संप्रभुता का अधिकार नहीं है और नाव अधिकतर मुख़ालिफ रुख पर चलता है, इस प्रकार वह गुस्सा को क़ाबू में कर ले और प्रतीक्षा के वे क्षण उपयोगी किताबों के पठन आदि में बिताने की कोशिश करे।
जहां नागवारी की कोई बात सामने आय वहां से हट जाएं:
वह स्थान जहां एक व्यक्ति अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकता वहाँ ठहरने से बचे। अहमद बिन रशीद उन्दुलसी फ़रमाते हैं:
إنما غضبي في نعلي، فاذا سمعت ما أكره أخذتهما ومضيت
“मेरा गुस्सा मेरे जूते में है जब कोई नागवार बात सुनता हूँ तो जूते उठाता हूँ और वहाँ से चल पड़ता हूँ”।
ये हैं कुछ सुझाव जिन्हें अपना कर हम अपने स्वभाव को नरम कर सकते हैं और गुस्सा से दूर रह सकते हैं। अल्लाह से दुआ है कि वह हमें नरम स्वभाव और विवेक का मालिक बनाए और क्रोध से दूर रखे. आमीन