यह इस्लाम की पहली शादी थी जिसमें मुहर इस्लाम स्वीकार करना तै किया गया था।
एक महिला अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में सवाल करने के लिए उपस्थित हुई, वहाँ हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा मौजूद थीं, उसने सवाल करने से पहले कहा कि “अल्लाह हक़ बात से नहीं शर्माता” फिर कहा कि या रसूलल्लाह! महिला अगर सपने में वह देखती है जो पुरुष देखता है और अपने शरीर पर वह देखती है जो पुरुष देखता है तो वह क्या करे? यह सुनकर हज़रत आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: यह प्रश्न पूछ कर तुमने महिलाओं को बदनाम कर दिया, तेरे हाथ में धूल लगे, मतलब यह कि ऐसा प्रश्न करना तो अपमान की बात है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से कहा: उम्मे सुलैम! जब औरत इस तरह देखे तो उसे स्नान करना चाहिए। जी हाँ! पूछना दोष की बात नहीं बल्कि न पूछना और अज्ञानता में जीवन बिताना असल में दोष की बात है। जानते हैं वह महिला कौन थी जिसने बिना किसी संकोच के यह सवाल पूछा था?
वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दूध शरीक मौसी और अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु की माँ उम्मे सलैम रज़ियल्लाहु अन्हा थीं। जिनके कदमों की आहट आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जन्नत में सुनी थी, जो बहादुरी की ऐसा प्रतीक थीं कि मुजाहिदों को पानी पिलाने और घायलों की मरहम पट्टी करने के लिए अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ युद्ध में भाग लिया करती थीं। जो त्याग का ऐसा नमूना थीं कि अपने पति के साथ दीपक बुझा कर अतिथि को खाना परोसती हैं और घर भर भूखे सो जाती हैं, जिनके जीवन में संतान के प्रशिक्षण का सबक है, ईमान और अक़ीदे पर जमाव का पाठ है, पति के साथ सौंदर्य रूप में मामला करने की शिक्षा है, और क़िस्मत पर विश्वास का संदेश है। आइए हम उनके जीवन की एक झलक आपके सामने पेश करते हैं:
उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने हिजरते नबवी से पहले इस्लाम स्वीकार कर लिया था। मदीना की रहने वाली थीं, पति का नाम मालिक बिन नज़र था, इस्लाम स्वीकार करते समय पति व्यापार के लिए बाहर गया था, पति आया तो उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने उसे अपने इस्लाम के बारे में बताया और इस्लाम की दावत भी दी। उसने न केवल इस्लाम स्वीकार करने से इनकार किया बल्कि कहा कि तुम पथभ्रष्ठ हो गई हो, उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: मैं पथभ्रष्ठ नहीं हुई बल्कि मैं ने अल्लाह की सही पहचान प्राप्त की है। पति ने इस्लाम स्वीकार करने से साफ साफ इंकार कर दिया और सख्ती से पेश आने लगा, एक दिन घर में प्रवेश किया तो देखता है कि उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा अपने बेटे अनस रज़ियल्लाहु अन्हु को कल्मा शहादत याद करा रही हैं। यह देख कर मालिक ने कहा: क्या तुम मेरे बेटे को भी खराब करना चाहती हो? उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहाः मैं अपने बेटे को खराब नहीं बल्कि अच्छा बना रही हूँ, मेरा बेटा भी सच्चे दीन पर जमा रहेगा। (अत्तबक़ात अल-कुबरा 8/425)
यह है इस्लाम की महानता का एहसास, चाहे कुछ हो जाए, वैवाहिक रिश्ता टूट जाए वह गवारा है लेकिन धर्म का दामन हाथ से छूट जाए यह गवारा नहीं। अंततः जब मालिक बिन नज़र का उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा पर कोई बस नहीं चल सका तो वह घर से निकलकर सीरिया की ओर निकल गया, अभी रास्ते में ही था कि किसी शत्रु ने उसकी हत्या कर दी। (अल-इस्तिआब 1/630)
ईधर उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा इस्लाम पर जमी हुई हैं। अपने बच्चे का सही प्रशिक्षण कर रही हैं क्योंकि माँ की गोद बच्चे के लिए पहला पाठशाला होता है, बचपन के प्रशिक्षण का प्रभाव हमेशा रहता है, माँ की बड़ी जिम्मेदारी है कि अपने बच्चे को दीन सिखाए और बचपन से ही उसके मन मस्तिष्क में इस्लामी चेतना बैठाने की कोशिश करे। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब हिजरत कर के मदीना आए तो सबने दीन के लिए आपकी सेवा में कुछ न कुछ पेश किया, इस आदर्श महिला ने सोचा कि मैं अपने दीन के लिए क्या कर सकती हूँ? अंततः अपने बेटे अनस रज़ियल्लाहु अन्हु को आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में ले गईं और कहा कि मेरा बेटा अनस आज से आप का सेवक है, इस तरह उन्होंने आपकी सेवा के लिए अनस को समर्पित कर दिया ताकि उन्हें अच्छी संगत मिले, आपके अच्छे व्यवहार का उसमें असर आए, और आपके आदोशों को याद कर सके। इसलिए अनस रज़ियल्लाहु अन्हु स्वयं कहते हैं कि मैं ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दस साल तक सेवा की, इस बीच आपने कभी नहीं कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया और ऐसा क्यों नहीं किया।
उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा अभी विधवा जीवन बिता रही थीं, मदीना के एक समृद्ध व्यक्ति जिन्होंने अब तक इस्लाम स्वीकार नहीं किया था, एक दिन उम सलीम रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आए और उन्हें शादी का का पैग़ाम दिया, उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने बड़ी होशियारी से अबू तल्हा को जवाब दिया: आप जैसे व्यक्ति को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, लेकिन बात यह है कि आप काफिर हैं और मैं मुसलमान हूं, इस लिए मैं आपसे शादी नहीं कर सकती। अबू तल्हा ने कहा: मैं तुझे मुहर भी दूंगा। पूछा: क्या देंगे? अबू तल्हा ने कहाः सोना भी दूंगा और चांदी भी दूंगा। उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: मुझे सोने की तमन्ना है और न चांदी की इच्छा है। हाँ अगर आपने इस्लाम स्वीकार कर लिया तो यही मेरा महर होगा। इसके अलावा मुझे किसी चीज़ की आवश्यक नहीं। मतलब यह कि इनकार शादी करने से नहीं है, बल्कि इनकार इस बात से है कि आप मुसलमान नहीं हैं! अगर आप इस्लाम स्वीकार कर लें तो मुझे आप से शादी करने में कोई आपत्ति नहीं होगी। आज हमारी लड़कियाँ ग़ैर मुसलमानों के साथ भाग कर विवाह रचा लेती हैं, आख़िर क्यों? दीन पर सही प्रशिक्षण न होने और इस्लाम की महानता न जानने की वजह से। लेकिन इस नेक दिल महिला को देखिए जो एक गैर-मुस्लिम से शादी करने से इनकार ही नहीं करतीं बल्कि अबू तल्हा को समझाती भी हैं कि अबू तल्हा! आप उसी मूर्ति की ना पूजा करते हैं जिसे फ़लाँ समुदाय का दास बनाता है, उसमें आग लगा दी जाए तो जलकर राख हो जाए, उसमें कोई लाभ और नुकसान की शक्ति नहीं फिर भी आप उसकी पूजा करते हैं, अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचा और विचार किया। अंततः एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास गये और इस्लाम स्वीकार कर लिया, इस तरह उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा से अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु की शादी हो गई। यह इस्लाम की पहली शादी थी जिसमें मुहर इस्लाम स्वीकार करना तै किया गया था। (अत्तबक़ात अल-कुबरा 8/427)
यहाँ सबक है ऐसी महिलाओं के लिए जिनके पति दीन से दूर हैं, नमाज़ रोज़े की पाबंदी नहीं करते वे उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा की भूमिका निभायें, और उनके सुधार की सम्भवतः कोशिश करें। उसी तरह उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने शादी के लिए धन दौलत की शर्त नहीं रखी, यह शर्त नहीं रखी कि होने वाला पति जोज़गार वाला और समृद्ध हो बल्कि यह शर्त रखी कि इस्लाम स्वीकार कर ले, नेक बन जाए, और यही गुणवत्ता हर लड़की में होनी चाहिए।
उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ शांतिप्रिय वैवाहिक जीवन बिता रही थीं, कुछ महीनों के बाद उम्मीद के फूल खिले और उनके घर में एक लड़के ने जन्म लिया जिसका नाम उन्होंने अबू उमैर रखा, कभी कभी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा के घर जाते तो अबू उमैर से मनोरंजक भी करते थे। संयोग से वह बीमार हो गए। माँ बाप ने देखरेख में कोई कमी नहीं की, लेकिन बीमारी बढ़ती गई। उधर अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु की आदत बन गई थी कि सुबह नमाज़ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ अदा करते और दो पहर से पहले आते तो खाना खाते,क़ैलूला करते, फिर दोपहर की नमाज के बाद जाते थे तो आपके पास से ईशा की नमाज़ के बाद ही लौटते थे।
एक दिन, जबकि अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास थे कि अबू उमैर की तबियत बेहद खराब हुई यहाँ तक कि जानबर न हो सके और उनकी मृत्यु हो गई। उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने घर के सारे लोगों को रोने-धोने से रोक दिया, और पड़ोस में सब से कह दिया कि देखो! कोई अबू तल्हा को बच्चे की मौत की खबर न दे, मैं स्वयं उन्हें बताऊंगी। ईधर बच्चे को ढक कर घर के एक कोने में रख दिया, फिर उन्हों ने अबू तल्हा के लिए भोजन तैयार किया, रात में अबू तल्हा कुछ लोगों को साथ लेकर आए थे। अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु ने घर में घुसते ही बच्चे का हाल पूछा तो उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा:
هو أسكن ما كان
“वह पहले से अधिक सुविधा में है”।
पति ने समझा कि बच्चा शायद ठीक हो गया और सो रहा है। हालांकि उम्मे सुलैम ने तौरिया इस्तेमाल किया था, उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने सबको खाना परोसा, जब खाना खा चुके तो लोग निकल गये। ईधर उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने कपड़े बदला, शृंगार किया, खुशबू लगाई और पति के पास आईं, हज़रत अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु को खुशबू महसूस हुई तो शारीरिक संबंध स्थापित कर लिया।
जरा विचार करें! उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा एक महिला हैं, जिनके पास वही दिल था जो आज की महिलाओं के पास होता है, जिसमें बच्चे से प्रेम होता है, और बच्चा अल्लाह को प्यारा हो चुका है, लेकिन अल्लाह के फैसले पर ऐसा दृढ़ विश्वास है कि धैर्य की चट्टान बनी हुई हैं, बात यहीं पर खत्म नहीं होती बल्कि जब रात का एक हिस्सा गुज़र जाता है और अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु शांत हो जाते हैं तो उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने मौत की खबर देने के लिए बहुत सुन्दर शैली अपनाया और कहा कि देखिए ना आज एक अजीब घटना हुई, फ़लाँ व्यक्ति ने फ़लाँ आदमी का सामान उधार लिया था, आज सामान वाले आए अपना सामान मांगने तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया। अबू तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: नहीं उन्हें मना करने का कोई अधिकार नहीं बनता। यह असल में उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा की भूमिका थी, अब उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: तो फिर आपका बच्चा भी आपके पास अल्लाह की अमानत था, आज उसने अपनी अमानत वापस ले ली है।
चलिए और बच्चे के कफन दफन का इंतजाम कीजिए। यह सुनना था कि गुस्सा हो गए, कहा कि तुमने मामले को गुप्त रखा यहां तक कि शारीरिक संबंध स्थापित कर लिया और जनाबत की हालत हो गई तब बता रही है। अंततः उन्होंने अन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन कहा और पहुंचे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास, आपके पीछे फज्र की नमाज़ अदा की और आपको सारी कहानी सुनाई तो आपने फरमाया:
بارك الله لكما في ليلتكما
अल्लाह तुम्हारी इस रात में बरकत प्रदान करे। अतः उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा गर्भावस्था से हो गईं और जब बच्चे का जन्म हुआ तो सर्वप्रथम उसे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सेवा में भेजा, अतः आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसकी तह्नीक (ख़ुजूर चबाकर चटाना) की और उसका नाम अब्दुल्लाह रखा। (सही बुख़ारी: 5153, सही मुस्लिम 2144)
यहाँ पर उम्मै सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा की रणनीति और विकेकता पर विचार कीजिए कि पति के अधिकार का कैसा ख़्याल रखती हैं, और फिर मृत्यु की सूचना देने के लिए कैसा सुंदर तरीक़ा अपना रही हैं, आज की महिलाएं होतीं तो पति के घर में प्रवेश करते ही चीखने चिल्लाने लगतीं, सख़्त सुस्त कहतीं कि ऐसे गायब हो जाते हो कि घर के सदस्य मर भी जाएं तो तुम्हें कोई परवाह नहीं, लेकिन उम्मे सुलैम रज़ियल्लाहु अन्हा ने मृतक घर में होने के बावजूद भी पति की सेवा में कोई कोताही नहीं की और मौत की सूचना देने के लिए बड़ी उत्तम भूमिका निभाई क्योंकि अनुभव बताता है कि यदि तुरंत किसी को मृत्यु की सूचना दी जाए तो कभी कभी हार्ट अटेक की दुर्घटना तक हो जाती है।