इस्लाम ने जीवन के विभिन्न विभागों सम्बन्धित आदेश दी है जिसमें से एक शिष्टाचार भी है। इस्लाम ने खान-पान के शिष्टाचार, लेटने और सोने के शिष्टाचार, खुशी और शोक के शिष्टाचार, पवित्रता के शिष्टाचार, मज्लिस के शिष्टाचार, सलाम के शिष्टाचार, बिमारपुर्सी के शिष्टाचार, बातचीत के शिष्टाचार आदि का विस्तृत वर्णन किया है।
जिस धर्म ने मानव को जीवन के हर विभाग में मार्गदर्शक किया हो वह इस योग्य है कि महाप्रलय के दिन तक मानवता के मार्गदर्शन का काम करे और मानवता को जीवन की सम्पूर्ण समस्सयाओं का समाधान बताए।
पवित्रता के शिष्टाचार
इस्लाम प्राकृतिक धर्म है इसने जहां अपने मानने वालों को आध्यात्मिक शुद्धता का आदेश दिया है वहीं इस बात का भी बल दिया है कि मुसलमान शारीरिक सफाई और सुथराई का ख्याल रखें। अल्लाह तआला फरमाता हैः ان الله يحب التوابين ويحب المتطهرين अल्लाह तौबा करने वालों और पवित्र रहने वालों को प्रिय रखता है।
और क़बा वालों की इस लिए प्रशंसा की औऱ उनको अपना प्रिय बताया कि वह पवित्रता का अधिक ख्याल रखते हैं। अल्लाह ने फरमायाः فيه رجال يحبون أن يتطهروا والله يحب المطهرين इस गांव में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो पवित्रता को पसंद करते हैं और अल्लाह तआला पवित्र रहने वालों को पसंद करता है।
और नबी सल्ल0 का फरमान हैः الطهور شطر الإيمان पवित्रता आधा ईमान है। अर्थात् आधा ईमान तो यह है कि एक व्यक्ति अपनी आत्मी की शुद्धिकरण पर ध्यान दे और आधा ईमान यह है कि एक व्यक्ति अपने शरीर की पवित्रा का ख्याल रखे।
(1) एक व्यक्ति जब सोकर उठे तो हाथ धोए बिना पानी के बर्तन में हाथ न डाले क्यों कि उसे पता नहीं कि उसका हाथ कहाँ कहाँ गया है ।
(2) बाथरूम में प्रवेश करने से पूर्व अल्लाह का ज़िक्र कर लिया जाए, प्रवेश करते समय बायाँ पैर रखा जाए और दुआ पढ़ी जाएः بسم الله اللهم إني أعوذ بك من الخبث والخبائث अल्लाह के नाम से …” ऐ अल्लाह! मैं तेरा शरन चाहता हूं स्त्रि और पुरूष शैतानों से। और जब बाथरूम से निकले तो दायाँ पैर बाहर निकाले और दुआ पढ़े غفرانك ” ऐ अल्लाह हम तुझ से अपने पापों की क्षमा चाहते हैं।”
(3) शौचालय में ऐसी कोई वस्तु लेकर न जाएं जिस पर अल्लाह का नाम लिखा हो। यदि आवश्यकता पर जाए तो जेब में या अंदर कहीं अच्छे प्रकार से छुपा लिया जाए।
(4) क़िबला की ओर मुंह अथवा पीठ करके न बैठें।
(5) नदी, नहर के घाट और सार्वजनिक स्थल पर पैशाब पाखाना न करें।
(6) इस्लाम का आदश है कि खाना खाने से पूर्व हाथ धुल लें, नमाज़ अदा करने से पहले चार ज़ाहिरी अंगों को धुल लें जिसे वुज़ू कहा जाता है। खाने पीने की सामग्रियों को ढ़ांक कर रखें, बर्तनों को साफ सुथरा रखें, पोशाक और लेटने बैठने के बिस्तरों को पाक साफ़ रखें, उठने बैठने के स्थलों की सफाई का विशेष ख्यला रखें।
(7) पेशाब करने के बाद पानी से या टिश्यु पेपर से या ढेले से पेशाब के स्थान को साफ़ अवश्य करें ताकि पेशाब के बुंदों से कपड़ा गंदा और सुगंधित न होने पाए।
(8) इस्लाम ने पवित्रता हेतु उन प्राकृतिक कामों के करने का आदेश दिया है जो मानव प्रकृति के बिल्कुल अनुकूल है। उदाहरण स्वरूपः
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मिस्वाक करनाः इस सम्बन्ध में अनुमानतः 200 हदीसें आई हैं। अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः मिस्वाक करने से मुंह की सफाई होती है और अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त होती है। अल्लाह के रसूल सल्ल0 बुज़ू के समय मिस्वाक करते, नमाज़ के समय मिस्वाक करते, घर में प्रवेश करने के बाद मिस्वाक करते, सोकर उठते तो मिस्वाक करते थे। यहाँ तक कि अपने जीवन के अन्तिम छन में भी मिस्वाक किया। आपने फरमाया कि यदि मेरी उम्मत पर कठिन न होता तो मैं उन्हें आदेश देता कि हर वुज़ू के साथ मिस्वाक किया करें। और एक रिवायत में है कि … हर नमाज़ के समय मिस्वाक करने का आदेश देता। (बुखारी, मुस्लिम, मुसन्नफ इब्ने अबी शैबः)
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खत्ना करनाः खत्ना के विभिन्न लाभ हैं, इसका सब से महत्वपूर्ण लाभ यह है कि खत्ना द्वारा झिल्ली का आंतरिक भाग ज़ाहिर हो जाता है और वह हर प्रकार के मैल-कुचैल से शुद्ध रहता है। इसके लिए उचित समय बाल्यावस्था है।
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मोचें काटना और दाढ़ी बढ़ानाः इस से सुन्दर्ता पैदा होती और पवित्रता प्राप्त होती है।
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नाख़ुन काटनाः यह काम शारिरीक शुद्धता में शामिल है, नाख़ुनों को काटने से उनके नीचे जमा हुआ मैलकुचैल दूर हो जाता है परन्तु आज फैशन के नाम पर कितने युवक और युवतियाँ तम्बे लम्बे नाख़ुन रखते हैं जो इस्लामी शिक्षा तथा प्राकृतिक नियम दोनों के विरोध है।
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गुप्तांग के चारों ओर का बाल उतारनाः हर मुसलमान के लिए आवश्यक है कि वह गुप्तांग के चारों ओर के बालों को रेज़र से अथवा किसी अन्य पाउडर आदि से उतार ले ताकि पवित्रता प्राप्त हो।
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बगलों के बाल उखेड़नाः बग़लों के बाल उखेड़ना या उसे साफ करना प्राकृतिक कामों में से एक है जिससे सफाई हासिल होती है और वह गंध भी जाता रहता है जो उन बालों के कारण पैदा होता है।
यह है इस्लाम की पवित्रा की का नियम जिससे इस बात का भलिभांती अनुभव होता है कि इस्लाम विश्वव्यापी धर्म है जो अपने मानने वाले को सफाई और सुथराई का अदभुत नियम देता है जिस से आत्मा को शुद्धता,मन को ताज़गी और दिल को सुकून मिलता है।