जल का महत्व इस्लाम की दृष्टि में
आज विश्व जल दिवस है। इस दिन जल के संरक्षण पर वार्ताएं होती हैं, मानव जीवन में जल के महत्व पर प्रकाश डाला जाता है। यह मानवता के जीवन सामग्रियों में से एक बहुमूल्य सामग्री है जिसका अनुभव छोटा बड़ा हर एक करता है। इससे कोई भी चीज़ निर्लोभ नहीं हो सकती चाहे मनुष्य हों अथवा पेड़ पौधे, खाने की चीज़ बनानी हो अथवा परीशुद्धता प्राप्त करनी, दवाओं की तैयारी हो या कारीगरी तथा खेतीबारी का काम, पानी बिना असम्भव हैं।
जल हर देश का मूल अर्थ और उसके विकास का आधार होता है, उसकी उपलब्धि से मानवता प्रगति करती है जबकि उसके कम होने से विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। आज प्रतिदिन पानी का महत्व बढ़ता ही जा रहा है तथा हर ओर जल की सुरक्षाओं तथा उसकी बचत के लिए वार्ताएं हो रही हैं।
यह सारे तथ्य अपनी जगह पर कितने लोग हैं किनके मस्तिष्क में यह बात बैठी हो कि यह एक महान ईश्वरीय उपकार भी है। कितने लोगों ने विश्व जल दिवस के अवसर पर सोचा है कि इसे हम तकसरलता पूर्वक पहुंचाने वाला कोई है?
जल एक ईश्वरीय उपकार
हम मानव पर ईश्वर के विभिन्न उपकारों में से जल एक बहुमूल्य उपकार है। पवित्र ग्रन्थ क़ुरआन में पानी का वर्णन 160 बार से ज़्यादा आया है। कुरआन के अनुसार यह तो आत्मा और शरीर का जीवन और उसका रहस्य है। यदि आप चाहें तो कुरआन की यह आयत पढ़ लेंजी हाँ!
وَجَعَلْنَا مِنْ الْمَاءِ كُلَّ شَيْءٍ حَيٍّ [الأنبياء:30]..
(हमने जल से हर जीवित वस्तु को जीवन प्रदान किया) (अंबिया 30)
कुरआन ने यह भी कहाः
وَاللَّهُ خَلَقَ كُلَّ دَابَّةٍ مِنْ مَاء [النور:45
अल्लाह ने धरती पर चलने वाली हर चीज़ को पानी से पैदा किया।
अल्लाह ने जल को मानव के लिए एक महान उपकार बताया है
أَفَرَأَيْتُمْ الْمَاءَ الَّذِي تَشْرَبُونَ * أَأَنْتُمْ أَنزَلْتُمُوهُ مِنْ الْمُزْنِ أَمْ نَحْنُ الْمُنزِلُونَ * لَوْ نَشَاءُ جَعَلْنَاهُ أُجَاجاً فَلَوْلا تَشْكُرُونَ [الواقعة:68-70].
( फिर क्या तुमने उस पानी को देखा जिसे तुम पीते हो? क्या उसे बादलों से तुमने बरसाया अथवा बरसाने वाले हम हैं? यदि हम चाहें तो उसे अत्यन्त खारा बना कर रख दें। फिर कृतज्ञता क्यों नहीं दिखाते) (अल-वाकिआ 68-70)
فَلْيَنْظُرْ الإِنسَانُ إِلَى طَعَامِهِ * أَنَّا صَبَبْنَا الْمَاءَ صَبّاً * ثُمَّ شَقَقْنَا الأَرْضَ شَقّاً * فَأَنْبَتْنَا فِيهَا حَبّاً * وَعِنَباً وَقَضْباً * وَزَيْتُوناً وَنَخْلاً * وَحَدَائِقَ غُلْباً * وَفَاكِهَةً وَأَبّاً * مَتَاعاً لَكُمْ وَلأَنْعَامِكُمْ [عبس:24-32].
फिर तनिक इनसान अपने भोजन को देखे। हमने खूब जल लुंढ़ाया।फिर धरती को अजीब तरह से फोड़ा। फिर उसमें उगाए अनाज और अंगूर और तरकारियाँ और ज़ैतून और खुजूरें और घने बाग और तरह तरह के फल और चारे। तुम्हारे लिए और तुम्हारे मवेशियों के लिए जीवन सामग्री के रूप में। (अ़ ब स 24-32)
وَأَرْسَلْنَا الرِّيَاحَ لَوَاقِحَ فَأَنْزَلْنَا مِنْ السَّمَاءِ مَاءً فَأَسْقَيْنَاكُمُوهُ وَمَا أَنْتُمْ لَهُ بِخَازِنِينَ [الحجر:22]
हम ही वर्षा लानेवाली हवाओं को भेजते है। फिर आकाश से पानी बरसाते है और उससे तुम्हें सिंचित करते है। उसके ख़जानादार तुम नहीं हो॥22॥
وَأَنزَلْنَا مِنْ السَّمَاءِ مَاءً بِقَدَرٍ فَأَسْكَنَّاهُ فِي الأَرْضِ [المؤمنون:18].
और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है॥18॥
जल पैदा करने की हिकमतः
जल इस धरती पर विधमान हर जीवित के जीवन का पानी है। इसके द्वारा मानव स्वयं को जीवित रखता है, प्यास बुझाता है, शरीर की सफाई करता है, खाना बनाता है, सामान धोता है, खेतों को सींचाई करता है, और विभिन्न पशु एवं पक्षी इसे पीते हैं।
وَأَنزَلْنَا مِنْ السَّمَاءِ مَاءً طَهُوراً * لِنُحْيِيَ بِهِ بَلْدَةً مَيْتاً وَنُسْقِيَهُ مِمَّا خَلَقْنَا أَنْعَاماً وَأَنَاسِيَّ كَثِيراً * وَلَقَدْ صَرَّفْنَاهُ بَيْنَهُمْ لِيَذَّكَّرُوا فَأَبَى أَكْثَرُ النَّاسِ إِلاَّ كُفُوراً [الفرقان:48-50].
और वही है जिसने अपनी दयालुता (वर्षा) के आगे-आगे हवाओं को शुभ सूचना बनाकर भेजता है, और हम ही आकाश से स्वच्छ जल उतारते है॥48॥ ताकि हम उसके द्वारा निर्जीव भू-भाग को जीवन प्रदान करें और उसे अपने पैदा किए हुए बहुत-से चौपायों और मनुष्यों को पिलाएँ॥49॥ उसे हमने उनके बीच विभिन्न ढ़ंग से पेश किया है, ताकि वे ध्यान दें। परन्तु अधिकतर लोगों ने इनकार और अकृतज्ञता के अतिरिक्त दूसरी नीति अपनाने से इनकार ही किया॥50॥
هُوَ الَّذِي أَنزَلَ مِنْ السَّمَاءِ مَاءً لَكُمْ مِنْهُ شَرَابٌ وَمِنْهُ شَجَرٌ فِيهِ تُسِيمُونَ * يُنْبِتُ لَكُمْ بِهِ الزَّرْعَ وَالزَّيْتُونَ وَالنَّخِيلَ وَالأَعْنَابَ وَمِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لآيَةً لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ [النحل:10-11]
वही है जिसने आकाश से तुम्हारे लिए पानी उतारा, जिसे तुम पीते हो और उसी से पेड़ और वनस्पतियाँ भी उगती है, जिनमें तुम जानवरों को चराते हो॥10॥ और उसी से वह तुम्हारे लिए खेतियाँ उगाता है और ज़ैतून, खजूर, अंगूर और हर प्रकार के फल पैदा करता है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवालों के लिए इसमें एक निशानी है॥11॥
जल आजीविका की बुनियाद और रोज़ी का रास्ता है, उमर रज़ी0 ने कहाः जहाँ कहीं पानी होगा वहाँ माल होगा, और जहाँ कहीं माल होगा वहाँ फितने होंगे।
अल्लाह का शुक्रः
जल का जब इतना महत्व ठहरा और इसका स्रोत ईश्वर से मिलता है तो इसे पाकर एक इनसान को अल्लाह का कृतज्ञ होना चाहिए। क़ुरआन ने कहाः
वह अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती की सृष्टि की और आकाश से पानी उतारा, फिर वह उसके द्वारा कितने ही पैदावार और फल तुम्हारी आजीविका के रूप में सामने लाया। और नौका को तुम्हारे काम में लगाया, ताकि समुद्र में उसके आदेश से चले और नदियों को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगाया (इबराहीम 32 )
यदि वह चाहे तो हमें इस जल से वंचित कर देः
قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ أَصْبَحَ مَاؤُكُمْ غَوْراً فَمَنْ يَأْتِيكُمْ بِمَاءٍ مَعِينٍ [الملك:30].
कहो, “क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुम्हारा पानी (धरती में) नीचे उतर जाए तो फिर कौन तुम्हें लाकर देगा निर्मल प्रवाहित जल?”॥30॥
. وَإِنَّا عَلَى ذَهَابٍ بِهِ لَقَادِرُونَ [المؤمنون:18].
और हमने आकाश से एक अंदाज़े के साथ पानी उतारा। फिर हमने उसे धरती में ठहरा दिया, और उसे विलुप्त करने की सामर्थ्य भी हमें प्राप्त है॥18॥
जल का संरक्षण और हमारी ज़िम्मेदारियाँ
आज हर व्यक्ति जल का दुर्पयोग कर रहा है। स्नानागार, शौचालय, रसोई घर और बागीचे की सींचाई में जल की खपत अत्यधिक मात्रा में हो रही है। हम सब का कर्तव्य बनता है कि हम सब जल की सुरक्षा करें उसे नष्ट न होने दें, क्यों कि किसी भी चीज़ का दुर्पयोग दरिद्रता तथा निर्धनता का कारण होता है। फुज़ूलफर्ची करने वाले का प्रथम तथा अन्तिम उद्देश्य इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं होता कि अपनी कामनाओं को पूरा कर ले और बस। न वह अपने परिणाम को सोचता है और न ही दूसरों के लाभ की परवाह करता है।
इस्लाम फुज़ूल खर्जी से रोकता और संरक्षण की ताकीद करता है। क़ुरआन में कहा गयाः “खाओ पिओ और फुज़ूलखर्ची न करो, अल्लाह फुज़ूलखर्ची करने वालों को पसन्द नहीं करता।”
मुहम्मद सल्ल0 जिनका जीवन प्रत्येक मानव के लिए आदर्श था,जल के संरक्षण में आपका आदर्श हमें मिलता है कि आप ज़्यादातर एक मुद्द (650 ग्राम) जल से वुज़ू कर लेते तथा एक साअ से पाँच मुद्द (3 किलो ग्राम या उससे अधिक) में स्नान कर लेते थे।( मस्लिम)
एक व्यक्ति हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि0 के पास आया और कहाः वुज़ू के लिए कितना पानी हमें काफी होना चाहिए ? कहाः मुद्द , पुछाः स्नान के लिए कितना पानी काफी होना चाहिए? कहाः साअ। उसने कहाः इतना तो मुझे काफी नहीं। आपने फरमायाः उस इनसान को काफी हुआ जो तुझ से उत्तम थे, अर्थात् अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्ल0।( अहमद )
एक बार मुहम्मद सल्ल0 हज़रत साद बिन अबी वक्क़ास रज़ि0 के पास से गुज़रे जबकि वह वुज़ू कर रहे थे और पानी का प्रयोग ज़रुरत से ज़्यादा कर रहे थे। आपने फरमायाः हे साद! यह क्या फुज़ूल खर्ची है ? उन्होंने पूछाः क्या वुज़ू में भी फुज़ूलखर्ची है? आपने फरमायाः हाँ क्यों नहीं! यधपि तुम बहती नदी के निकट ही क्यों न हो (वहाँ भी आवश्यकता से अधिक पानी का प्रयोग करना फुज़ूलखर्ची है।)
विन्तीः
हम अपने प्रत्येक देशवासी भाइयों तथा बहनों से विन्ती करते हैं कि वह उस जटिल समस्या का बोध करें जो अधिक मात्रा में जल का प्रयोग करने के कारण पैदा होने वाली है। और उत्तरदायों के हाथ में हाथ देकर इस समस्या के समाधान की ओर अग्रसर हों, क्यों कि जल की सुरक्षा हम सब का कर्तव्य है।
जल के संरक्षण हुतु कुछ नियमः
(1) बाग़ीचों की सींचाई सुबह अथवा संध्या में पतले पाईप से की जाए तो बहुत हद तक पानी की बचत की जा सकती है।
(2) गाड़ियों को पाईप से धोने की बजाए बाल्टी अथवा डोल से धोया जाए।
(3) ब्रष करते समय, चेहरा बनाते समय, बर्तन धुलते समय नल को खुला रखने से बचें। उसी प्रकार काम होने के बाद नल को अच्छी तरह बंद कर दें। यदि प्रयोग किए गए जल को किसी अन्य काम में लाना सम्भव हो तो ला लें।
(4) गिरने वाले थोड़े बुंद से जल का अधिक मात्रा नष्ट हो जाता है। यदि पूरे दिन पानी के बूंद गिरते रहें तो एक दिन में अनुमानतः 27 लीटर पानी नष्ट होता है।